7/27/2017

श्री रामनाथ कोविंद अपने पहले भाषण में नेहरू का नाम लेना कैसे भूल गए?


            27 अगस्त 2012. संसद का मानसून सत्र चल रहा था. कांग्रेस कोयला ब्लॉक आवंटन के मामले में बुरी तरफ से घिरी हुई थी. भारी हंगामें के बाद दोनों सदनों की कार्यवाही को दोपहर दो बजे तक के लिए स्थगित कर दिया गया. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जब सदन से बाहर निकले पत्रकारों ने उन्हें घेर लिया. इस मामले पर उनकी चुप्पी के बाबत सवाल दागा गया. उन्होंने एक शायरी से अपना जवाब पेश किया.

“हज़ारों जवाबों से अच्छी है खामोशी मेरी 
न जाने कितने सवालों की आबरू रखी”

          बाज दफा ऐसा होता है कि हमारी चुप्पी हमारे बयान से ज्यादा मजबूत होती है. सियासत में यह रवायत है कि जो चीज ना कही जाए उसके ज्यादा मायने निकाले जाते हैं. 25 तारीख को राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद रामनाथ कोविंद का भाषण किन वजहों से याद रखा जाएगा? अगर इसके कंटेंट को देखा जाए तो इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है. ऐसा कुछ भी नहीं है , जो उम्मीद के मुताबिक नहीं हैं. देश की विविधता से स्टार्ट-अप इंडिया तक. बिलकुल वैसा ही, जैसा इसे होना चाहिए था. हालांकि भाषण के बाद लगे ‘जय श्री राम’ के नारे ने जायका थोड़ा बिगाड़ दिया. लेकिन फिलहाल इसे बेर की गुठली की तरह थूक दीजिए.

कोविंद साहब ने अपने भाषण में महात्मा गांधी, सरदार पटेल, बाबा साहेब अंबेडकर, राधाकृष्णन तक  कई राष्ट्रनायकों के नाम लिए. इस बीच वो एक नाम लेना भूल गए. भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का.

ब्रिटिश जब भारत से विदा हुए तो उन्होंने जो एक तहस-नहस देश छोड़ा था. एक देश जो मानवीय इतिहास के सबसे बड़े और खूनी विस्थापन का गवाह बना हुआ था. ऐसे में अपने 17 साल के शासन काल में नेहरू ने एक ऐसे लोकतंत्र की नींव रखी जिसका चरित्र धर्मनिरपेक्ष हो, जो अभिव्यक्ति के मामले में सहिष्णु हो और वैज्ञानिक चेतना से लैस हो. राष्ट्रपति के भाषण में नेहरू के नाम का जिक्र ना होने को क्या महज एक मानवीय भूल मान लिया जाना चाहिए?

राष्ट्रपति के इस किस्म के भाषणों में सामान्य तौर राष्ट्रनायकों का जिक्र दो तरीके से होता है. पहला राष्ट्रनायकों के योगदान को बतलाते हुए उनका जिक्र करना. दूसरा उनके कद के हिसाब से एक क्रम में उनका जिक्र करना. इन दोनों तरीकों में नेहरू का नाम छूटना सामान्य तो नहीं ही कहा जा सकता. या फिर एक तरीका यह भी है कि आप एपीजे अब्दुल कलाम की तरह किसी भी राष्ट्रनायक का जिक्र किए बिना अपना भाषण पूरा कर सकते हैं.

संघ परिवार में पंडित नेहरू के प्रति शुरुआत से ही एक नापसंदगी का भाव रहा है. महात्मा गांधी की हत्या के संघ को देश में प्रतिबंधित कर दिया गया था. हालांकि उस समय सरदार पटेल देश के गृहमंत्री थे लेकिन आज संघ उन्हें महान नेता के तौर पर पूजता है. श्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद चुनावी मजबूरियों के चलते ही सही गांधी और अंबेडकर के प्रति सार्वजानिक मंचो पर संघ का रवैय्या तेजी से बदला है. इस बीच नेहरू लगातार निशाने पर बने रहे. उन्हें कश्मीर विवाद से लेकर चीन युद्ध में शर्मनाम हार तक कई चीजों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. जो लोग नेहरू को महज इन वजहों से जानते हैं, उन्हें इस देश के प्रति नेहरू के योगदान को जानना चाहिए.

9 साल की जेल

नेहरू को आम तौर पर हम उनके प्रधानमंत्री काल के लिए याद रखते हैं. हम अक्सर आजादी के आंदोलन के दौरान उनके योगदान को भूल जाते हैं. नेहरू आजादी की लड़ाई के दौरान कुल 3,262 दिन जेल में रहे. इसमें से 1,040 दिन की जेल उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान भुगतनी पड़ी थी.

ऐसा नेता जो विपक्ष को मजबूत देखना चाहता था।

1975 में जब पंडित नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की. यह पहला और एक मात्र मौका था जब देश को तानाशाही का जायका चखना पड़ा. उस समय लोगों को समझ आया कि लोकतंत्र के क्या मायने हैं. जब भारत आजाद हुआ तो ये नेहरू ही जो देश के हर बालिग आदमी को मताधिकार देने के पक्ष में खड़े थे. यह वो दौर था जब तीन-चौथाई देश अनपढ़ हुआ करता था. इस बात के लिए उनकी बहुत आलोचना हुई. आज हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं. उनके हिसाब से एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए एक मजबूत विपक्ष का होना सबसे अहम चीज है. वो कहा करते थे, “मैं नहीं चाहता कि करोड़ों लोग एक आदमी की हां में हां मिलाएं. इसके बजाए मैं एक मजबूत विपक्ष चाहता हूं.”

क्या नेहरू ने भारत को आर्थिक तौर पर कमजोर किया?

‘याददाश्त एक अहसानफरामोश दोस्त की तरह है. हम जितना याद करते हैं, उससे ज्यादा भूलते जाते हैं.’

नेहरू को अक्सर के हारा हुआ समाजवादी कहा जाता है. उन्हें योजना आयोग के लिए भी आड़े हाथ लिया जाता है. नेहरू को आर्थिक बदहाली के लिए जिम्मेदार ठहराना मुर्दे के मत्थे इल्ज़ाम मढ़ने जैसा है. कांग्रेस सरकार में वित्तमंत्री रहे प्रणब मुखर्जी नेहरू पर लगे इल्ज़ामों को ख़ारिज करते हुए कहते हैं,

“नेहरू की अक्सर आलोचना होती है कि उन्होंने हमेशा आर्थिक मामलों में सार्वजानिक क्षेत्रों को आगे रखा. उस समय बनी आर्थिक नीतियों पर नेहरू के सामाजवाद की छाप देखी जा सकती है. आप अंदाजा लगाइए कि 190 साल तक आर्थिक शोषण का शिकार रहे देश की अर्थव्यवस्था को फिर से खड़ा करना कितना मुश्किल था. यह काम सिर्फ निजी औद्योगिक घरानों के हाथों में नहीं छोड़ा जा सकता था.

आर्थिक मामलों पर रेग्युलेशन को उस तौर में ठीक समझा जाता था. नेहरू के प्रयास कहीं भी निजी क्षेत्र के विकास में आड़े नहीं आते थे. कृषि और छोटे उद्योगों में निजी क्षेत्र की भूमिका को हमेशा प्रोत्साहित किया गया. असल में आजादी के बाद शुरुआती सालों में निजी क्षेत्र खुद चाहता था कि सरकार आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण रोल अदा करे.”

कुछ साल पहले प्रधानमंत्री श्री मोदी अपने एक बयान की वजह से सुर्ख़ियों में थे. उन्होंने इतिहास के उस टुकड़े को शर्मनाक बताया था जिस समय नेहरू प्रधानमंत्री थे . नए आजाद हुए देश की आर्थिक तरक्की के बारे में कुछ तथ्य जानकार आप शर्मसार तो कत्तई नहीं होंगे.

आजादी के शुरुआती 15 सालों में हमारी विकास दर 4 फीसदी थी. उस दौर में यह विकास दर इंग्लैंड, जापान,चीन जैसे कई देशों से कहीं बेहतर थी. यह वो दौर था जब फर्टिलाइजर, स्टील, हाईवे, बांध परियोजनाओं में सरकार की तरफ से खूब इंवेस्टमेंट किया गया. इन सब कामों ने देश के आर्थिक विकास के लिए बुनियादी ढांचा उपलब्ध करवाया.

पश्चिम से शिक्षा लेकर आए नेहरू वहां की आर्थिक तरक्की से काफी प्रभावित थे. वो जानते थे कि किसी देश का ढांचा संस्थानों की ठोस नींव पर खड़ा होता है. उन्होंने अपने कार्यकाल में संस्थानों को खड़ा करने का जरुरी काम किया. चुनाव आयोग, आईआईटी, आईआईएम्, एटॉमिक एनर्जी कमीशन, नेशनल डिफेंस एकेडमी जैसे कई संस्थान खड़े किए. इसके अलावा साहित्य अकादमी, ललित कला अकादमी, संगीत नाटक अकादमी सहित कई सारे केन्द्रीय विश्वविद्यालयों की नींव भी उनके समय में ही पड़ी. आज देश का सबसे बड़ा लोकतंत्र अपने तमाम सारे संस्थाओं के दम पर मजबूती से खड़ा है.

विज्ञान से दोस्ती
आज के दौर में जब हम टेलीविजन पर नजर सुरक्षा कवच और महालक्ष्मी यंत्र के प्रचार देख रहे हैं. आप सोचिए आजादी के वक़्त जब महज एक चौथाई आबादी आखर बांच सकती थी, समाज को वैज्ञानिक चेतना से लैस करना. नेहरू चाहते थे नया देश आकाश में टिमटिमा रहे नक्षत्रों को पढ़े तो लेकिन पंडित के पतरे के मार्फ़त नहीं. बल्कि टेलीस्कोप से.

भाखड़ा नंगल बांध के उद्घाटन के वक़्त दिया गया उनका भाषण इस बात की बानगी भर है कि वो किस किस्म का भारत चाहते थे.

“मेरे लिए आज के दौर में इस बांध जैसी जगहें ही मस्जिद हैं, चर्च हैं, गुरूद्वारे हैं. ये बाँध नए दौर के मंदिर हैं. यहां एक इंसान इस लिए मेहनत करता है ताकि दूसरे इंसान का भला हो सके. पूरी मानवता का भला हो सके. मेरे दिमाग में इस सिलसिले में बहुत सारी बातें आ रही हैं, लेकिन मैं अगर उन्हें बोलूंगा तो कई धर्मांध लोगों को बुरा लग जाएगा. ये हमारे नए पूजा स्थल हैं. यहां हम देश के करोड़ों लोगों की भलाई का काम कर रहे हैं. यह एक पवित्र काम है. “

महामहिम कोविंद से श्रीमान पंडित नेहरू का नाम क्यों नहीं लिया।

पंडित नेहरू हमेशा से मानते रहे कि मंदिर और मस्जिद के झगड़े देश का सत्यानाश कर देंगे. जब महात्मा गांधी की हत्या हुई तो उन्होंने प्रतिक्रिया की परवाह किए बिना आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया. वो पूरी जिंदगी सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ते रहे. इसके चलते उन पर चार बार जानलेवा हमले हुए. इसमें एक बम धमाका भी शामिल है.
वो देश को वैज्ञानिक चेतना वाले आधुनिक समाज में तब्दील करना चाह रहे थे. हिन्दू कोड बिल पर तमाम किस्म के विरोध को दरकिनार करते हुए वो मजबूती से डटे रहे. नेहरू को पंसद ना करने की संघ के पास यह भी एक वजह है.

आज संघ परिवार पंडित नेहरू को अभिजात्यपन, कश्मीर समस्या और 1962 युद्ध में हार का पर्याय बना कर पेश कर रहा है. इन्हें नेहरू की असफलता माना जा सकता है. सिर्फ असफलताओं पर किसी आदमी का मूल्यांकन करना कितना ठीक है. कोविंद नेहरू का नाम लेना क्यों भूल गए, इस सवाल का जवाब संसद के सेंट्रल हॉल में लगे ‘जय श्री राम’ के नारों से बेहतर किसी और चीज से नहीं समझा जा सकता.

इसे श्री वलय सिंह राय ने डेलीओ के लिए लिखा था।

संकलन
न्यूज़ मीडिया,
The Lallantop.com.
प्रस्तुति
पं. डॉ. एल.के शर्मा


7/02/2017

योग की दशा

जिसे योग कहा जा रहा है क्या वह योग है? आप अगर महर्षि पतंजलि मुनि के "योगदर्शन" को देखेंगे तो लगता है, पूरे देश के कुओं में भांग घुली है और योग के बारे में कोई कुछ नहीं जानता। दुनिया में योग के नाम पर भ्रम फैलाए जा रहे हैं।  भारतीय दर्शन की कुछ तथ्यात्मक बातें आपसे इस मौके पर साझा करना चाहता हूं। हालांकि यह तय कि बहुत से लोग इसे अनावश्यक और सिर्फ़ आलोचना का विषय समझेंगे। अगर कोई एक पत्ते को पेड़, एक पन्ने को पुस्तक और एक ईंट को मकान कहने लगे तो आप उसे क्या कहेंगे? अज्ञानी या अबोध ही न! अज्ञान किस तरह सिर चढ़कर बोलता है, उसका उदाहरण आज का दिन है। हमने सिर्फ आसनों को ही योग का नाम दे दिया है। आसन सिखाने वाला हर व्यक्ति अपने आपको योग गुुरु घोषित कर रहा है आैर मुझे लगता है कि यह न केवल गलत है, बल्कि भारतीय मनीषा की मानव-समाज को सबसे बड़ी देन का यह उपहास और अवमूल्यन है और यह नाकाबिले-बर्दाश्त भी। सच बात ये है कि योगदर्शन में महर्षि पतंजलि ने यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि सहित आठ अंगों की एक व्यापक प्रक्रिया को योग कहा है।  वे योग दर्शन के साधन पाद अध्याय दो में कहते हैं : यमनियमआसनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयो$ष्टावंगानि।।29/80 और इस योग का मतलब उष्ट्रासन या पद्मासन भर नहीं है। न ही आंखें मींचकर उन पर हाथ रख लेना और लंबी-लंबी श्वासें लेना-छोड़ना है, जैसा कि अज्ञान का एक सामूहिक वैश्विक प्रदर्शन इन दिनों हो रहा है। असल में योग के आठ अंगों की व्याख्या भौत्तिक विज्ञान के किसी गहन अध्याय का सा मामला है। हर चीज की एक परिभाषा है और उसे मनमर्जी से नहीं बदला जा सकता। यम और नियम क्या है ? यम क्या है?  योग का पहला चरण यम हैं। यम जाति, देश, काल और समय से परे हैं। इन्हें सार्वभौम महाव्रत भी कहा गया है। यम यानी आप हिंसा न करने का संकल्प लेंगे। सत्य ही बोलेंगे। अस्तेय यानी चोरी, भ्रष्टाचार या अनैतिकता से कतई दूर रहेंगे। ब्रह्चर्य का पूर्ण पालन करेंगे और अपरिग्रह को अपने जीवन में उतारेंगे। पतंजलि कहते हैं : अहिंसासत्यास्तेयब्रह्चर्यापरिग्रहा यमा:।।30/80 नियम क्या है?  अब योग का दूसरा चरण है नियम। आप शौच का पालन करेंगे यानी शारीरिक, मानसिक और अाध्यात्मिक रूप से पवित्र रहेंगे। ये शौच वो एफएम वाली विद्या बालन वाला नहीं है, जो दिन भर ऐसे लोगों में शौचालयों का प्रचार करती है, जिनके घरों में विद्या बालन के दादाजी के पैदा होने से पहले के शौचालय बने हुए हैं। यहां शौच कुछ और है। शौच पॉटी नहीं है। शौच यानी पवित्रता। तन, मन और बुद्धि की। हृदय और मस्तिष्क की। इस शौच के अंग हैं : संतोष, तप, स्वाध्याय और प्रणिधान। यहां संतोष का अर्थ न्यूनतम साधनाें और संसाधनों में जीवन यापन है, न कि जो मिल गया उस पर संतोष कर लेना। तप यानी अपने देश और काल में जो सबसे न्यूनतम सुविधाओं के साथ जीवन यापन कर रहा है, आप सदैव उसके स्तर पर रहने का अभ्यास करें। इसी तरह स्वाध्याय और प्रणिधान के अर्थ हैं। आसन क्या है? और आसन ये उलटे-सीधे क्रियाकलाप नहीं हैं। कहा गया है : स्थिरसुखमासनम्।। यानी जिसके स्थिर होने पर सुख का अनुभव होता है यही आसन है। पद्मासन ही नहीं, वीरासन, भद्रासन, दंडासन और स्वस्तिकासन में दिन भर रहना भी आसन है। प्राणायाम क्या है?  प्राणायाम कुंभक और रेचक ही नहीं है। यह प्राणों पर नियंत्रण की क्रिया है और इसके लिए आपको पर्वतों, नदियों, झीलों, पक्षी कलरव और न जाने कैसे-कैसे प्रकृति की रक्षा करनी होगी। प्राणायाम सांसों को ऊपर नीचे करना या एक समय कपाल-भाति करना और अगले ही क्षण सलवार पहनकर दौड़ पड़ना नहीं है। योग को कारोबार बना देना और उसे मुनि पतंजलि के नाम से बेचना भारतीय मनीषा के आदर्शाें के हिसाब से घनघोर पाप है। आप अगर योग कर रहे हैं तो आप किसी नीलगाय को मारने, लोगों पर टैक्सों की भरमार करके उनके जीवन को संकटापन्न करने, स्कूलों को पूरे संसाधन मुहैया नहीं करवाने, देश भर के अस्पतालों को बदहाल बनाए रखने और आए दिन सड़कों पर लोगों को कुत्तों की तरह कुचलने की छूट देने जैसे घनघोर अपराध करने पर आपको आत्मग्लानि जरूर होगी, लेकिन आप योग नहीं, आप आसन कर रहे हैं, लेकिन आपकी आत्मा में आम जीवन के प्रति क्षणिक भी संवेदना नहीं रहती। यह आसन और योग का फर्क है। प्रत्याहार क्या है?  मुनि पतंजलि कहते हैं : योग का पांचवां अंग प्रत्याहार है। प्रत्याहार यानी समस्त अंग-प्रत्यंग में ज्ञानवृत्तियों काे चेतनशीलता से नहलाना और उनमें ज्ञानवृत्तियां जगाना। यह बहुत लंबी व्याख्या है, जिसे यहां मुझ अल्पज्ञ व्यक्ति, जो भारतीय योगशास्त्र के बारे में बहुत उथली सी जानकारियां रखता है, बता पाना नामुमकिन है। इसे योगदर्शन का कोई योग्य विद्वान ही बता सकता है। धारणा क्या है?  योग के छहवें चरण पर मुनि पतंजलि कहते हैं : धारणासु च योग्यता मनस:।। 53/104 यानी मुनष्य को धारणाओं के अनुष्ठान करने होते हैं। ये कोई कर्मकांड नहीं है। यह शुद्ध रूप से मानसिक क्रियाकलाप है। ध्यान और समाधि क्या है ? ध्यान क्या है? आचार्य पतंजलि का कहना है : तत्र प्रत्ययैकतानताध्यानम्। 2/108 यानी अपनी स्वयं की काया और चित्त के साथ साथ समूचे देश और काल को ध्यानस्थ कर देने की यह मुद्रा सातवां योगांग है। समाधि क्या है? और आठवां योगांग समाधि है : तदेवार्थमात्रनिर्भाससं स्वरूपशून्यमिव समाधि।। लेकिन यह समाधि भी वह समाधि नहीं है, जो प्रचारित की जाती है। यह समाधि बहुत सूक्ष्म क्रिया है और इसके बिना योग कभी भी पूरा नहीं होता। समाधि यानी पूरे वातावरण को चैतन्य से परिपूर्ण करके त्रयमेकत्र संयमों का पालन, प्रज्ञालोक में अवतरण और भूमि विनियोग के निर्वैचार्य से परिपूर्ण होना। योग का पथ, मानवता का रथ!  योग दया, करुणा और विनम्रता की उपासना का पथ है। घृणाओं और हिंसक प्रवृत्तियों के दमन की राह है। योग रक्त-पिपासा की कल्पना तक से मुक्ति का नाम है। हिंसा, युद्ध, बर्बरता और भीषण अशांति रचने के दुु:स्वप्नों से दूरी बनाने का नाम है। सामाजिक विषमताओं के उन्मूलन करने के राजपथ का नाम योग है। योग दान देने, बांट कर खाने, संचित नहीं करने और विशाल हृदयता का नाम है। योग काया के भीतरी ही नहीं, अपने आसपास के समस्त द्वंद्वाें को मिटाने का नाम है। योग इस काया को ही नहीं, इस समूची धरती को ब्रह्मपुरी बनाने का नाम है।    

6/23/2017

जिसे योग कहा जा रहा है क्या वह योग है? आप अगर महर्षि पतंजलि मुनि के "योगदर्शन" को देखेंगे तो लगता है, पूरे देश के कुओं में भांग घुली है और योग के बारे में कोई कुछ नहीं जानता। दुनिया में योग के नाम पर भ्रम फैलाए जा रहे हैं।

     जिसे योग कहा जा रहा है क्या वह योग है? आप अगर महर्षि पतंजलि मुनि के "योगदर्शन" को देखेंगे तो लगता है, पूरे देश के कुओं में भांग घुली है और योग के बारे में कोई कुछ नहीं जानता। दुनिया में योग के नाम पर भ्रम फैलाए जा रहे हैं। 

     भारतीय दर्शन की कुछ तथ्यात्मक बातें आपसे इस मौके पर साझा करना चाहता हूं। हालांकि यह तय कि बहुत से लोग इसे अनावश्यक और सिर्फ़ आलोचना का विषय समझेंगे।

     अगर कोई एक पत्ते को पेड़, एक पन्ने को पुस्तक और एक ईंट को मकान कहने लगे तो आप उसे क्या कहेंगे? अज्ञानी या अबोध ही न! अज्ञान किस तरह सिर चढ़कर बोलता है, उसका उदाहरण आज का दिन है। हमने सिर्फ आसनों को ही योग का नाम दे दिया है। आसन सिखाने वाला हर व्यक्ति अपने आपको योग गुुरु घोषित कर रहा है आैर मुझे लगता है कि यह न केवल गलत है, बल्कि भारतीय मनीषा की मानव-समाज को सबसे बड़ी देन का यह उपहास और अवमूल्यन है और यह नाकाबिले-बर्दाश्त भी।

     सच बात ये है कि योगदर्शन में महर्षि पतंजलि ने यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि सहित आठ अंगों की एक व्यापक प्रक्रिया को योग कहा है। 

     वे योग दर्शन के साधन पाद अध्याय दो में कहते हैं : यमनियमआसनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयो$ष्टावंगानि।।29/80

     और इस योग का मतलब उष्ट्रासन या पद्मासन भर नहीं है। न ही आंखें मींचकर उन पर हाथ रख लेना और लंबी-लंबी श्वासें लेना-छोड़ना है, जैसा कि अज्ञान का एक सामूहिक वैश्विक प्रदर्शन इन दिनों हो रहा है।

     असल में योग के आठ अंगों की व्याख्या भौत्तिक विज्ञान के किसी गहन अध्याय का सा मामला है। हर चीज की एक परिभाषा है और उसे मनमर्जी से नहीं बदला जा सकता।

यम और नियम क्या है ?

यम क्या है? 
     योग का पहला चरण यम हैं। यम जाति, देश, काल और समय से परे हैं। इन्हें सार्वभौम महाव्रत भी कहा गया है। यम यानी आप हिंसा न करने का संकल्प लेंगे। सत्य ही बोलेंगे। अस्तेय यानी चोरी, भ्रष्टाचार या अनैतिकता से कतई दूर रहेंगे। ब्रह्चर्य का पूर्ण पालन करेंगे और अपरिग्रह को अपने जीवन में उतारेंगे। पतंजलि कहते हैं : अहिंसासत्यास्तेयब्रह्चर्यापरिग्रहा यमा:।।30/80

नियम क्या है? 
     अब योग का दूसरा चरण है नियम। आप शौच का पालन करेंगे यानी शारीरिक, मानसिक और अाध्यात्मिक रूप से पवित्र रहेंगे। ये शौच वो एफएम वाली विद्या बालन वाला नहीं है, जो दिन भर ऐसे लोगों में शौचालयों का प्रचार करती है, जिनके घरों में विद्या बालन के दादाजी के पैदा होने से पहले के शौचालय बने हुए हैं। यहां शौच कुछ और है। शौच पॉटी नहीं है। शौच यानी पवित्रता। तन, मन और बुद्धि की। हृदय और मस्तिष्क की।

     इस शौच के अंग हैं : संतोष, तप, स्वाध्याय और प्रणिधान। यहां संतोष का अर्थ न्यूनतम साधनाें और संसाधनों में जीवन यापन है, न कि जो मिल गया उस पर संतोष कर लेना। तप यानी अपने देश और काल में जो सबसे न्यूनतम सुविधाओं के साथ जीवन यापन कर रहा है, आप सदैव उसके स्तर पर रहने का अभ्यास करें। इसी तरह स्वाध्याय और प्रणिधान के अर्थ हैं।

आसन क्या है?
     और आसन ये उलटे-सीधे क्रियाकलाप नहीं हैं। कहा गया है : स्थिरसुखमासनम्।। यानी जिसके स्थिर होने पर सुख का अनुभव होता है यही आसन है। पद्मासन ही नहीं, वीरासन, भद्रासन, दंडासन और स्वस्तिकासन में दिन भर रहना भी आसन है।

प्राणायाम क्या है? 
     प्राणायाम कुंभक और रेचक ही नहीं है। यह प्राणों पर नियंत्रण की क्रिया है और इसके लिए आपको पर्वतों, नदियों, झीलों, पक्षी कलरव और न जाने कैसे-कैसे प्रकृति की रक्षा करनी होगी। प्राणायाम सांसों को ऊपर नीचे करना या एक समय कपाल-भाति करना और अगले ही क्षण सलवार पहनकर दौड़ पड़ना नहीं है। योग को कारोबार बना देना और उसे मुनि पतंजलि के नाम से बेचना भारतीय मनीषा के आदर्शाें के हिसाब से घनघोर पाप है।

     आप अगर योग कर रहे हैं तो आप किसी नीलगाय को मारने, लोगों पर टैक्सों की भरमार करके उनके जीवन को संकटापन्न करने, स्कूलों को पूरे संसाधन मुहैया नहीं करवाने, देश भर के अस्पतालों को बदहाल बनाए रखने और आए दिन सड़कों पर लोगों को कुत्तों की तरह कुचलने की छूट देने जैसे घनघोर अपराध करने पर आपको आत्मग्लानि जरूर होगी, लेकिन आप योग नहीं, आप आसन कर रहे हैं, लेकिन आपकी आत्मा में आम जीवन के प्रति क्षणिक भी संवेदना नहीं रहती। यह आसन और योग का फर्क है।

प्रत्याहार क्या है? 
     मुनि पतंजलि कहते हैं : योग का पांचवां अंग प्रत्याहार है। प्रत्याहार यानी समस्त अंग-प्रत्यंग में ज्ञानवृत्तियों काे चेतनशीलता से नहलाना और उनमें ज्ञानवृत्तियां जगाना। यह बहुत लंबी व्याख्या है, जिसे यहां मुझ अल्पज्ञ व्यक्ति, जो भारतीय योगशास्त्र के बारे में बहुत उथली सी जानकारियां रखता है, बता पाना नामुमकिन है। इसे योगदर्शन का कोई योग्य विद्वान ही बता सकता है।

धारणा क्या है? 
     योग के छहवें चरण पर मुनि पतंजलि कहते हैं : धारणासु च योग्यता मनस:।। 53/104 यानी मुनष्य को धारणाओं के अनुष्ठान करने होते हैं। ये कोई कर्मकांड नहीं है। यह शुद्ध रूप से मानसिक क्रियाकलाप है।

ध्यान और समाधि क्या है ?
ध्यान क्या है?
आचार्य पतंजलि का कहना है : तत्र प्रत्ययैकतानताध्यानम्। 2/108
    यानी अपनी स्वयं की काया और चित्त के साथ साथ समूचे देश और काल को ध्यानस्थ कर देने की यह मुद्रा सातवां योगांग है।

समाधि क्या है?
     और आठवां योगांग समाधि है : तदेवार्थमात्रनिर्भाससं स्वरूपशून्यमिव समाधि।। लेकिन यह समाधि भी वह समाधि नहीं है, जो प्रचारित की जाती है। यह समाधि बहुत सूक्ष्म क्रिया है और इसके बिना योग कभी भी पूरा नहीं होता। समाधि यानी पूरे वातावरण को चैतन्य से परिपूर्ण करके त्रयमेकत्र संयमों का पालन, प्रज्ञालोक में अवतरण और भूमि विनियोग के निर्वैचार्य से परिपूर्ण होना।

योग का पथ, मानवता का रथ! 
     योग दया, करुणा और विनम्रता की उपासना का पथ है। घृणाओं और हिंसक प्रवृत्तियों के दमन की राह है। योग रक्त-पिपासा की कल्पना तक से मुक्ति का नाम है। हिंसा, युद्ध, बर्बरता और भीषण अशांति रचने के दुु:स्वप्नों से दूरी बनाने का नाम है। सामाजिक विषमताओं के उन्मूलन करने के राजपथ का नाम योग है। योग दान देने, बांट कर खाने, संचित नहीं करने और विशाल हृदयता का नाम है। योग काया के भीतरी ही नहीं, अपने आसपास के समस्त द्वंद्वाें को मिटाने का नाम है। योग इस काया को ही नहीं, इस समूची धरती को ब्रह्मपुरी बनाने का नाम है।
 

 

6/22/2017

योग और योगगुरु

“जब हम योग की बात करते हैं तब बाबा रामदेव की छवि हमारी आंखों में तैरने लगती है। लोगों की आम धारणा है कि विश्व समुदाय को योग विद्या सिखाने में इनका अहम योगदान है, लेकिन आपको बता दें कि रामदेव से पहले भी कई योग गुरु हुए हैं जो विश्व भर में काफी चर्चित रहे।” भारत की धरती पर कई ऐसे योग गुरु हुए जिन्होंने देश-दुनिया में योग को पहुंचाने का प्रयास किया और सफलता भी पाई। ऐसे ही कुछ योग गुरूओं के बारे में हम आपको जानकारी दे रहे हैं। 

 स्वामी शिवानंद (1887-1963)

    माना जाता है कि विश्व भर में आज भी सबसे अधिक स्वामी शिवानंद के अनुयायी हैं। ऋषिकेश में वे एक हिंदू आध्यात्मिक गुरु थे। उनके प्रसिद्ध शिष्यों में अद्भुद योगासन करने वाले एक पूर्व फौजी विष्णुदेवानंद थे। एक बार शिवानंद ने विष्णु से कहा, “पश्चिम में जाओ, वे लोग योगासनों की प्रतीक्षा कर रहे हैं।” इसके साथ ही शिवानंद के दूसरे शिष्य सत्यानंद ने 1964 में बिहार योग विद्यालय की स्थापना की। विष्णु और सत्या दोनों योग गुरु अपनी सरल योग मुद्राओं को पश्चिमी दुनिया तक विस्तार देने में बेहद सफल हुए और अमेरिका सहित पूरे महाद्वीप में उन्‍होंने कई योग केंद्र की स्थापना किए।

श्री कृष्णामाचार्य (1888-1989)

श्री कृष्णामाचार्य हठ योग के महान व्याख्याता रहे। उन्होंने अपने आखिरी दिनों तक हठ योग की विनियोग प्रणाली का अभ्यास किया और उसकी शिक्षा दी। वे प्रसिद्ध जिद्दू कृष्णमूर्ति और बी.के.एस.अयंगर के योग गुरु रहे। बीकेएस अयंगर (1918-2014) अयंगर को विश्व के अग्रणी योग गुरुओं में से एक माना जाता है। अयंगर का जन्म 14 दिसंबर, 1918 को कर्नाटक के बेल्लुर में हुआ था।

अयंगर जब 16 साल के थे, तब उन्होंने अपने शिक्षक बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए योग सीखा। इसके दो साल बाद उन्हें योग के प्रचार के लिए पुणे भेज दिया गया। धीरे-धीरे उन्होंने 'अयंगर योग' का विकास किया। यह 'अष्टांग शैली' आज दुनियाभर में मान्य है और इसका अभ्यास दुनियाभर के योग प्रशिक्षक करते हैं। इनकी ख्याती का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चीन के डाक विभाग ने उनके सम्मान में वर्ष 2011 में डाक टिकट जारी किया था, जबकि सैन फ्रांसिस्को ने 3 अक्टूबर, 2005 को बीकेएस अयंगर दिवस के रूप में मनाया।

महर्षि महेश योगी (1918-2008)

महर्षि महेश योगी का जन्म 12 जनवरी 1918 को छत्तीसगढ़ के राजिम शहर के पास पांडुका गांव में हुआ था। सन् 1955 में उन्होने टीएम तकनीक की शिक्षा देना आरम्भ की। सन् 1957 में उनने टीएम आन्दोलन आरम्भ किया और इसके लिये विश्व के विभिन्न भागों का भ्रमण किया। इसके बाद महेश योगी का ट्रेसडेंशल मेडिटेशन अर्थात भावातीत ध्यान पूरी पश्चिमी दुनिया में लोकप्रिय हुआ। विश्व भर में उनके लाखों अनुयायी हैं। पश्चिमी दुनिया में इनका प्रभाव इस कदर रहा कि महर्षि महेश योगी की मुद्रा राम को नीदरलैंड में कानूनी मान्यता प्राप्त है। डच सेंट्रल बैंक के अनुसार राम का उपयोग क़ानून का उल्लंघन नहीं है। इसके सीमित उपयोग की अनुमति है।

धीरेन्द्र ब्रह्मचारी (1924-1994)

स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी पिछली सदी के चर्चित और विवादित योग गुरू रहे। वे पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के भी आध्यात्मिक गुरु रहे। कहा जाते है कि स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी पहले आधुनिक सन्यासी थे जो योग को राजनीति के करीब लाए और योग को रोजगार की विद्या बनाया। आपातकाल के दौरान भी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी काफी सुर्खियों में रहे। उन्होंने योग को स्कूलों तक पहुंचाने की शुरूआत की।

डॉ.एल के.शर्मा

2/25/2017

क्या आप Overthinking के शिकार तो नहीं हैं


Health Article#113

क्या आप Overthinking के शिकार तो नहीं हैं?

आजकल कुछ लोग बहुत अधिक सोचने (Overthinking) लगे हैं। सोहन को ही देख लीजिए।

सोहन अपने घर से ऑफिस के लिए कुछ सोचता हुआ बाहर निकला। लगातार कुछ सोचते हुए वह अपने ऑफिसपहुंचा। ऑफिस पहुंचकर उसे ध्यान आया कि जिस बस से वह आया, उस बस में वह अपना लंच बॉक्स भूल गया है।ऑफिस में भी वह कुछ सोच रहा था कि तभी एक चपरासी उसके पास आया और उसने बताया कि अभी थोड़ी देर पहले उसने एक फाइल में गलत जगह साइन कर दिए हैं, बॉस बहुत गुस्सा होकर उसके पास ही आ रहा है।Stop

Overthinkingऑफिस से लौटते समय अधिक सोचने के कारण उसके सिर में दर्द होने लगा। घर पहुंचा तो सिर के दर्द के बारे में इतना सोचने लगा कि अपने परिवार से एक भी बात शेयर नहीं कर पाया।डिनर के टाइम सिर में दर्द बहुत बढ़ने के कारण वह खाना भी नहीं खा पाया। फिर कुछ ही समय बाद जब वह कुछ सोच रहा था तो उसके छोटे से बेटे ने अपना होम वर्क कराने को कहा तो केवल इसी बात पर उसने अपने बेटे को डांट दिया।परिवार में किसी ने कुछ कहा तो उससे लड़ बैठा और कुछ सोचते हुए देर रात में उसे नींद आ गई।

दोस्तों! सोहन जैसी लाइफ आजकल बहुत से लोग जिये जा रहे हैं। ऐसी अस्त-व्यस्त लाइफ का केवल एक ही कारण है और वह है– अत्यधिक सोचना (Over Thinking)

आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी (Busy life) में प्रत्येक व्यक्ति बहुत व्यस्त होता जा रहा है। अधिक काम होने की वजह से वह अधिक सोचने लगा है। और यही अधिक सोचना (Overthink) उसके लिए घातक बनता जा रहा है।सोचना बुरा नहीं होता बल्कि सोचना तो मानव का एक जरुरी स्वभाव है लेकिन जरुरत से अधिक सोचना बिलकुल गलत है। जरुरत से अधिक सोचने पर हमारा अपने ही मन और शरीर पर कंट्रोल नहीं रहता है और तरह-तरह के हमें नुकसान उठाने पड़ते हैं।कोई व्यक्ति अधिक क्यों सोचने लगता है?

अब मैं आपको बताता हूँ कि ऐसे कौन से कारण हैं जिसकी वजह से लोग overthinking करने लगते हैं–

1-आजकल लोगों के ऊपर वर्कलोड बहुत अधिक हो गया है। किसी एक जॉब से जीवन को सही से चलाना कठिन होता जा रहा है। इसी वजह से व्यक्ति अधिक काम करने के साथ-साथ अधिक सोचने भी लगा है।

2-एक कार्य पूरा होता नहीं कि चार कार्य pending में लगजाते हैं। अतः आजकल व्यक्ति एक कार्य करते हुए किसी दूसरेकार्य के बारे में सोचता रहता है।

3-ऑफिस से मनचाहा payment न मिल पाना, society में मनचाही इज्जत न मिल पाने के कारण भी बहुत से लोग overthinking करने लगते हैं और इसी वजह से जो वह चाहते हैं वह उन्हें नहीं मिल पाता है।

4-आजकल एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ लगी हुई है। कैसे भी हो, दूसरों से आगे निकलना बहुत जरुरी है। प्रतियोगिता की ऐसी भावना किसी भी व्यक्ति को overthinking को मजबूर करती है।

5-घर से और बाहर कहीं से मिलने वाला pressure, अधिक कमाने की इच्छा, समय से पहले बड़ी सफलता (Big success)प्राप्त करने की चाहत आदि ऐसे बहुत से कारण है जिसकी वजह से व्यक्ति जरुरत से अधिक सोचने पर मजबूर हो जाता है।

जिस तरह लोगों में overthinking बढ़ती जा रही है, यह एक बहुत चिंता का विषय है। हर समय सोचते रहना और उससे कोई भी लाभ न होकर केवल नुकसान होने को ही चिंता (worry) कहते हैं।किसी ने सही कहा है कि चिंता (Worry) और चिता (Pyre) में कोई अंतर नहीं होता। और अगर कोई अंतर है भी, तो केवल एक बिंदु (.) का अंतर होता है।

लगातार और अधिक सोचते रहने से हमारा दिमाग एक जलती हुई भट्टी की तरह बन जाता है। यह जलती हुई भट्टी खुद भी जलती है और उसको भी जलाती है जो इसके पास आता है। अर्थात एक overthink करने वाला व्यक्ति खुद तो इसका नुकसान उठाता ही है बल्कि उस व्यक्ति के आसपास रहने वाले लोगों को भी नुकसान उठाना पड़ता है।

अधिक सोचने से क्या-क्या नुकसान हो सकते हैं?

Losses Of Overthinkingoverthinking से होने वाले नुकसान बहुत अधिक हैं। उनमे से कुछ, मैं यहाँ आपको बताने जा रहा हूँ–

1-Overthinking से हमारे मन में नकारात्मकता (Negativity) आने लगती है और हम Negative thinking के शिकार हो जाते हैं।

2-Overthinking से हम फालतू की बातें बहुत सोचने लगते हैं। इन फालतू की बातों का न तो कोई कारण होता है और न ही इनका कोई वजूद होता है।

3-Overthinking से हमें भूलने (Forget) की बीमारी हो जाती है। हम छोटी-छोटी बातों को भी भूलने लगते हैं जिससे हमारी दिनचर्या बहुत गड़बड़ा जाती है।

4-Overthinking से अनेक तरह के रोग (Disease) लग जाते है। भूख कम लगना, सिर में हर समय दर्द रहना, चिड़चिड़ाहट हो जाना आदि बहुत सी समस्याएं हमारे शरीर में उत्पन्न हो जाती हैं।

5-Overthinking से व्यक्ति न तो समाज से अच्छे रिलेशन रख पाता है और न ही घर के लोगों से अच्छे संबंध बना पाता है।

अब एक काम की बात आपको बताना चाहता हूँ। दोस्तों!हर समस्या का एक समाधान जरूर होता है।Problem जब भी आती हैतो अपने साथ Solution भी साथ में ही लेकर आती है।जब overthinking एक समस्या है तो इसके समाधान भी जरूर होंगे।

अधिक सोचने से कैसे बचा जा सकता है?

अब मैं आपको overthinking से कैसे बचा जाये या overthinking से होने वाली problems से कैसे बचा जाये, इस बारे में आपको बताता हूँ–

1- वर्तमान में रहने की आदत डालें (Living in the present moment)-अधिक सोचने वाला व्यक्ति कभी अपने अतीत (past) बारे में सोचता रहता है तो कभी अपने भविष्य (future) बारे में सोचता रहता है। इससे बचने के लिए वर्तमान में रहने की आदत डालें। अपने आसपास की घटनाओं पर ध्यान दें और जो कार्य आप कर रहें हैं उस पर अपना ध्यान केंद्रित करें।

2- अपना मनपसंद काम करें (Do what you like)-जब भी आपको free time मिले तो उस समय आप अपने पसंद के कार्य करो। इसके लिए आप writing कर सकते है, कोई game खेल सकते हैं, swimming कर सकते हैं। आप हर वह अच्छा काम कर सकते हैं जो आपको पसंद हों।

3- सोचना थोड़ा कम करें (Think less)-आप कोशिश करें कि थोड़ा कम सोचा जाए अर्थात उतना सोचें जितना जरुरी है। सोचना व्यक्ति की habit होती है लेकिन यदि सही समय पर सहीबात सोची जाये तो वह फायदा देती है। अतः अधिक सोचने की जगह कम तथा अच्छा सोचें।

4- फालतू की बातों को भूलना सीख लें (Forget to useless thinking)-जब भी फालतू की बातें आपके दिमाग में आएं तो तुरंत अलर्ट हो जाएं और उन बातों को अपने mind से तुरंत निकाल दें। ऐसा करने में शुरू में आपको कुछ परेशानी होगी लेकिन यदि आप मन में ठान लेंगे तो बाद में ऐसा करना आपके लिए बहुत आसान हो जायेगा।

5- अच्छा सोचने की आदत डालें (Develop the habit of good thinking)-आपको अच्छा सोचने की आदत डालनी चाहिए। अच्छा सोचने से negative thinking के लिए हमारे mind जगह नहीं रहती। अच्छा सोचने से मन प्रसन्न भी रहता है और कार्य में मन भी लगता है। अतः अच्छा सोचें और अच्छा करें।

6- संगीत सुने और मैडिटेशन करें (Listen to music and take meditation)-overthinking से बचने के लिए आप अपनामनपसंद Music सुन सकते हैं। अच्छा संगीत मन को टेंशन फ्री रखता है। आप meditation का प्रयोग भी कर सकते हैं। इससे आप अपने मन को अच्छा और कम सोचने के लिए motivate करपाओगे।

7- खाली (फ्री) न बैठें (Don’t sit free )-कहते हैं कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है। जब भी आप free बैठें होंगे तो आपके दिमाग में फालतू की बातें आती रहेंगी और आप बहुत अधिक सोचने लगेंगे। इससे बचने के लिए आप हमेशा कुछ न कुछ जरूर करते रहें। busy रहने से फालतू की बातें mind में कम आती हैं।



आर्टिकल पढ़ने के लिए आपका धन्यावाद।

2/22/2017

जार्ज वाशिंगटन,सबसे ज्यादा सैलरी लेता था ये राष्ट्रपति, और उसे शराब और जुए में उड़ा देता था.


सबसे ज्यादा सैलरी लेता था ये राष्ट्रपति,
और उसे शराब और जुए में उड़ा देता था.

जॉर्ज वॉशिंगटन अमेरिका के पहले राष्ट्रपति हैं. इनकी फोटो डॉलर पर छपती है. जॉर्ज को अमेरिका में सर्वोच्च आर्मी जनरल (जनरल ऑफ द आर्मीज़ ऑफ अमेरिका) का दर्जा मिला हुआ है. मतलब इनकी पोस्ट तक कोई और कभी नहीं पहुंचेगा. वॉशिंगटन ने देश को आज़ाद करवाया और पहले राष्ट्रपति बन गए मगर जॉर्ज का जीवन कई विवादों और अजीबो-गरीब संयोगों से भरा रहा. 22 फरवरी को पैदा हुए जॉर्ज वॉशिंगटन के बारे में कुछ रोचक किस्से पढ़िए.

सबसे ज़्यादा सैलरी पर सब उड़ा दी

1789 में वॉशिंगटन तनख्वाह के तौर पर अमेरिका के बजट का 2 प्रतिशत लेते थे. मतलब अगर आज की तारीख में वॉशिंगटन राष्ट्रपति होते तो साल में करीब 12,000 करोड़ रुपए की सैलरी उठा रहे होते. इस सैलरी से भी बड़ी बात ये है कि वॉशिंगटन बाबू ने इसमें से ज़्यादातर शराब और जुएं में खो दी थी. हालत यहां तक पहुंची की अपने पहले इनॉग्रेशन में जॉर्ज पैसा उधार लेकर पहुंचे. (और आप हर बात में ट्रंप को दोषी ठहरा देते हैं.)

सबसे बीमार राष्ट्रपति

जब वॉशिंगटन ने शपथ ली थी तो उनका एक दांत बाकी बचा था. खूब तंबाकू खाते थे (क्या पता पिछले जनम में कान्हेपुर के हों ). इसके अलावा वो डिप्थीरिया, टीबी, चेचक, कब्ज़, निमोनिया, कार्बंकल, टॉन्सिल, मलेरिया, एपिग्लॉटिटिस जैसी और कई बीमारियों से ग्रस्त थे. वॉशिंगटन को अमेरिका का सबसे बीमार राष्ट्रपति माना जाता है.

दवा के चलते नपुंसक और दोस्त की बीवी से प्यार

बताया जाता है कि वॉशिंगटन दवाओं की ओवर डोज़ के चलते नपुंसक हो गए थे. उनकी कोई संतान भी नहीं हुई. वॉशिंगटन अपनी एक नौकरानी के लड़के को अपना बताते थे. मगर उसके बच्चा होने से दो साल पहले तक वॉशिंगटन युद्ध के मैदान में थे और कभी घर नहीं आए थे. जॉर्ज को अपने दोस्त की बीवी से प्रेम हो गया था. उन्होंने ‘वोटरी ऑफ लव’ नाम से पत्र लिखा जो आज भी मौजूद है. वैसे ज़्यादातर अमेरिकी इतिहासकार कहते हैं कि जॉर्ज की संतान न होना अमेरिका के लिए अच्छा रहा. अमेरिका वंशवाद से बच गया.

अपनी शराब की फैक्ट्री

वॉशिंगटन की अपनी व्हिस्की की फैक्ट्री थी. उनके यहां साल में 45,000 लीटर शराब बनती थी. (सारी पीते नहीं थे, बेचते भी थे). इसके साथ ही एक बात और वॉशिंगटन की वो चेरी के पेड़ वाली कहानी भी झूठी है. नेताओं की इमेज अच्छी करने के लिए उनके बाल जीवन के किस्से लिखवाना एक पुरानी परंपरा है, समझ गए न.

किस्मत सबसे तेज़ थी

वॉशिंगटन अपने कार्यकाल में जितने युद्ध जीते उससे ज़्यादा हारे. युद्ध में उनके कोट को फाड़ती हुई दो गोलियां पीछे खड़े घोड़ों को लगीं. अब घोड़े मर गए या बच गए ये कन्फर्म नहीं है. पाठक स्वयं प्रयास करें और पता करके बताएं. जॉर्ज को खरोंच भी नहीं आई. इसके अलावा वॉशिंगटन पहले ब्रिटिश फौज की तरफ से लड़े. इन सब के बावजूद उन्हें अमेरिका का पहला राष्ट्रपति बनने का मौका मिला और दुनिया के सबसे ताकतवर देश की करेंसी पर छपने का भी.

कन्फ्यूजन में जान चली गई

वॉशिंगटन बीमार थे एल्बिन रॉलिंस नाम के सज्जन उनका खून लेने के लिए लेने आए. वॉशिंगटन ने अपनी बांह सामने करके कहा कि ‘डरो मत जितना चाहो ले लो.’ एल्बिन ने चार राउंड में शरीर से पांच बोतल (80 आउंस) खून निकाल लिया. (सच है भाई). महामहिम बेहोश हो गए. उनके सेक्रेटरी कर्नल टॉबियस लियर को बुलाया गया. वॉशिंगटन बीच में होश में आए और अपने अंतिम संस्कार के निर्देश दिए. इसके कुछ ही देर बाद वॉशिंगटन की मृत्यु हो गई.

संकलन
न्यूज़,मिडिया
प्रस्तुति
पं. एल.के.शर्मा
लेखक,प्राध्यापक,अधिवक्ता.

2/19/2017

'त्याग का गुणगान कर आप अपनी मां को बेवकूफ बनाते हैं'

आटा सानते वक़्त मां जिस तरह सूखे आटे का पहाड़ बना, उसमें गड्ढा कर, धीरे से पानी गिराती थीं, वो जादुई होता था. फिर कुछ ही समय में वो आटा रोटी में तब्दील हो जाता. सूखे आटे का रोटी बन जाना जैसे एक असंभव काम था. जिसे सिर्फ मां ही कर सकती थी. बेतरतीबी से बंधे हुए मां के जूड़े से हमेशा बाल की एक पतली से लट छूट जाया करती जो पसीने से गर्दन में चिपकी रहती. हमारे नीची छत वाले किचन में रोटियां सकते हुए गर्मी बढ़ जाती और मां पसीने से नहा उठती. सब काम निपटा कर मां सुलाने आती. उनके ठंडे, गुलगुले पेट को छूना भी जादुई था.

पर कोई मां से पूछता, उनके लिए इसमें कुछ भी जादुई नहीं था. पेट के मुलायम होने के पीछे एक कहानी थी, बच्चा पैदा करने वाले दर्द, और उसके बाद की गई सर्जरी की. पेट की ठंडक में उनका सूखा हुआ पसीना था जो उन्होंने काम करते हुए बहाया था.
ये सिर्फ एक मां की कहानी नहीं है. मांएं हर घर में होती हैं. हमारे ‘संस्कारी’ परिवारों के अंदर, रोटियां बेलतीं, बच्चे पैदा करतीं. बहू बनतीं, पत्नियां बनतीं. और अपनी मां की सिखाई हुई बातों से अपने पति के घर को जोड़तीं.

जब आप छोटे थे, आप उनकी कद्र नहीं करते. फिर आप बड़े होते हैं. तो पाते हैं आप कितने गलत थे. मां ने आपके लिए कितने त्याग किए. फिर आप कृतज्ञ महसूस करते हैं. मां को गिफ्ट भेजते हैं. उनके लिए पिता से लड़ जाते हैं. उनको साथ तस्वीरें खींचते हैं. मदर्स डे मनाते हैं. तमाम बड़े-बड़े कवियों की मां पर लिखी कविताएं अपनी मां को भेजते हैं. उनके हर त्याग को सलाम करते हुए. और इस तरह आप उनके त्याग को सही ठहरा देते हैं. आपकी मां खुश होती हैं कि उनके त्याग का फल उन्हें मिल गया.

कुछ ऐसे भी होते हैं जो कहते हैं, मां के लिए एक दिन क्यों, सारे दिन मां के होते हैं. और इस तरह तमाम माओं के त्याग जस्टिफाई हो जाते हैं. पुरानी मांएं नई माओं के लिए मिसाल बन जाती हैं.
मां की बड़ाई करना मानो एक फेटिश है. ये आपको खुशी देता है. अगर आप पुरुष हैं, तो समाज में इज्जत कमाने का श्योरशॉट तरीका है मां की इज्जत करना. क्योंकि आप मर्द होते हुए भी मां को समझते हैं, इसे एक बड़ी बात की तरह देखा जाता है.

सोशल मीडिया पर मां के साथ तस्वीर लगा कर आपका मॉरल लेवल ऊंचा हो जाता है. मां जितनी बूढ़ी, मॉरल लेवल उतना ज्यादा. फिर अगर आप नेता या देश के प्रधानमंत्री हैं, तो बात ही क्या हो. लोग कहेंगे, देखो इतना बिजी होते हुए भी मां के लिए समय निकाल लेता है.
मां से थोड़ा कम मॉरल लेवल बहन का होता है. इसीलिए ‘घर में मां बहन नहीं हैं क्या’ कह किसी भी मर्द को आसानी से शर्मिंदा किया जा सकता है. या उसको ‘मां की गाली’ दे कर गुस्सा निकाला जा सकता है. वहीं अपने भाषण में ‘औरतों’ की जगह ‘माताओं और बहनों’ का प्रयोग कर एक ‘ज्यादा’ इज्जतदार आदमी बना जा सकता है. ये शब्द आपको लोगों का फेवरेट बनाते हैं.

मां आपके लिए एक मॉरल शब्द है, क्योंकि आप उसके साथ मॉरल जोड़ देते हैं. जिस मां के बारे में आप फेसबुक पर लिख रहे होते हैं, वो आपको पैदा करने वाली, आपसे प्रेम करने वाली, आपके लिए त्याग करने वाली मां होती है. क्या आप उस मां के बारे में बाखुशी लिख सकते हैं जो अपनी मर्ज़ी से मां नहीं बनी? या जो शादी के पहले प्रेगनेंट हुई? जिसने अबॉर्शन कराया? जो रेप की वजह से मां बनी? क्या आप उस मां की तारीफ़ करते हैं जिसके बच्चे के बाप का पता नहीं होता? जो सेक्स वर्क करने के कारण मां बनी? या जिसने बच्चा पैदा कर अनाथालय में छोड़ दिया? या जिसे दो देशों में युद्ध के समय दुश्मनों ने गैंगरेप कर मां बना दिया? क्या आप सोचते हैं कि जिस वक़्त आपकी मां प्रेगनेंट हुई, उसने प्रेगनेंट होना प्लान भी किया था या नहीं?
आप नहीं सोचते. क्योंकि आप मां होने को सेक्स से जोड़कर नहीं देख पाते. क्योंकि मां का मॉरल लेवल जितना बड़ा होता है, सेक्स का उतना ही कम. बल्कि सेक्स का कोई मॉरल लेवल होता ही नहीं है. जबकि आपकी पैदाइश ही सेक्स के कारण होती है.

आपके दिमाग में मातृत्व की एक छवि है. कि मां दर्द सहन कर आपको दुनिया में लाई. उसने आपको पाल-पोसकर बड़ा किया. क्या आप उस मातृत्व को समझते हैं, जब घर छोड़ कर बाहर पढ़ने आई एक लड़की अपनी सहेली के सीने पर फूट-फूटकर रोती है. और उसकी सहेली उसे चिपका लेती है. जब किसी सस्ते होटल या किसी सीले हुए किराए के कमरे में एक प्रेमी अपनी प्रेमिका से मिलता है और अपना सारा पुरुषत्व गला कर खुद को अपनी प्रेमिका के सीने पर छोड़ देता है. उसकी प्रेमिका उसके सर पर हाथ फेरते हुए जिस मातृत्व को महसूस करती है, उसे समझते हैं आप? नहीं, क्योंकि वो आपके मॉरल खांचे में फिट नहीं होता. उन मूल्यों पर खरा नहीं उतरता जिसकी नींव पर मदर्स डे खड़ा होता है.

जब आप औरतों को पढ़ाने की बात करते हैं, तो ये तर्क देते हैं कि पढ़ी-लिखी लड़की, एक बेहतर मां बनेगी. अपने बच्चों को पढ़ाएगी. और देश की सेवा के लिए बेहतर बच्चे जनेगी. जब आप एक लड़के की पढ़ने की बात करते हैं, तो क्या आप कहते हैं कि वो बेहतर बाप बनेगा?
आज जब मैं आटा सानने बैठती हूं, मुझे मां की याद आती है. लहसुन छीलते हुए मां की उंगलियों से आने वाली महक याद आती है. पार्टी करते वक़्त मां की याद नहीं आती. क्योंकि मां को कभी पार्टियों में झूमते नहीं देखा.

मां, तुम ‘त्याग की मूर्ति’ नहीं, भोली थीं, डरपोक थीं

आपने जब भी मां को याद किया, उसके त्याग को याद किया. लेकिन कभी सवाल किया कि वो ये सारे त्याग क्यों करती रही? क्यों उसने अपनी मर्ज़ी का खाना नहीं बनाया? क्यों उसने कभी नहीं कहा मैं सिर्फ तब खाना बनाउंगी, जब जी करेगा. क्यों उसने सर पर पल्लू रखने पर सवाल नहीं उठाया? क्यों अपनी सास की हर बात मानती रही? क्यों नौकरों की तरह अपने पति की सेवा करती रही? क्यों सबको खिलाकर ही खाया? क्यों कभी नहीं कहा, बहुत भूख लगी है, ज़रा चाट खा कर आती हूं? उसने क्यों अपने जीवन को वैसे नहीं जिया, जैसे आप जी रहे हैं?

क्यों आप अपनी मां से नहीं कहते, मां, तुम भोली थीं. तुम दूसरी मांओं की तरह डरपोक थीं. जो तुमने जिया नहीं.
जितनी बार आप उसके त्याग का गुणगान करते हैं, आप अपनी मां को बेवकूफ बनाते हैं. और सिर्फ आपने ही नहीं, दुनिया की तमाम होने वाली मांओं को भी. उन मांओं की बेइज्जती करते हैं, जो आपके मॉरल खांचे में फिट नहीं होतीं. उन औरतों की बेइज्जती करते हैं जो मां नहीं बनना चाहतीं.

संकलन 

न्यूज़ मिडिया,समाचार पत्र

आपका
पं. एल.के.शर्मा
अधिवक्ता,लेखक,प्रद्यापक,समाजसेवी।