10/03/2016

व्रत वाला साबूदाना

ये तो पता ही होगा कि डॉमिनोज वाले फुल वेज पिज्जा निकाले हैं. साबूदाने वाला. पिज्जा तो आज का है, लेकिन साबूदाना काफी पहले से है. व्रत के लिए सबसे खास आइटम है. धकापेल उड़ाया जाता है. हलवा, खिचड़ी और खीर बनाकर खाई जाती है. इसलिए अब पिज्जा का छोड़ो. उसका रिव्यू तो खाने के बाद किया जाएगा. तुम साबूदाने की पोल-पट्टी सुन लो. फिर साबूदाने की खीर और हलवा और ये लेटेस्ट पिज्जा खाते रहिना. कोई हाथ तो पकड़ेगा नहीं.
एक पेड़ होता है. सागो. इसी की जड़ का गूदा निकालकर साबूदाना बनाया जाता है. केरल वाले इसको कप्पा कहते हैं. मजे की बात ये है कि ये खाया तो सबसे ज्यादा उत्तर भारत में जाता है. और पैदा होता है दक्षिण भारत में. वैसे तो स्मार्ट टेक्नॉलजी के वक्त ये दूरी कुछ नहीं है. चाहे तो कोई भी एक क्लिक में पूरी जानकारी ले ले. लेकिन कोई रिस्क नहीं लेता. कि एक तो व्रत में गिनी-चुनी चीजें खाने को मिलती हैं, उसमें से भी एक आइटम कट जाए, तो क्या बचेगा.
है तो शाकाहारी. लेकिन बनते-बनते इसकी दुर्गति हो जाती है. कचूमर निकल जाता है. कायाकल्प हो जाता है. जड़ें काटकर, ट्रकों में लादकर तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक की फैक्ट्रियों में पहुंचता है. वहां उसके साथ कांड शुरू होता है. छीलकर मेन चीज निकाल ली जाती है. वो फैक्ट्रियों में कई चक्कर घिसकर, कटकर महीन टुकड़ों में बंट जाता है. फिर उसे पानी में डालकर बड़े-बड़े खुले टैंकों में रखा जाता है. बस इसी जगह सारी छीछालेदर हो जाती है. यहां पड़ा-पड़ा वो फूलता है. सड़ता है. इसमें तमाम कीड़े पड़ जाते हैं.
वही कीड़े साबूदाने को लज़ीज़ बनाते हैं भाईसाब. बहुत दिनों तक उन खुली टंकियों में रखने के बाद उसे दानेदार बनाते हैं. पॉलिश करते हैं और बोरों में भरकर पैकिंग के लिए भेज देते हैं. जो मन्नू किराना स्टोर पर पहुंचता है. वहां से आपके घर, किचन से होकर प्लेट में.
वैसे खास बात ये है कि ये मांसाहारी नहीं होता. अमा कीड़ों के न हड्डियां होती हैं न मांस, न खून. तो वो चाहे जित्ता पड़ा हो, मांसाहारी नहिये होगा. लेकिन अगर डिस्कवरी चैनल वाले बेर ग्रिल्स नहीं हो. और कीड़े में प्रोटीन नजर नहीं आता, घिन आती है खाने में, तो ये आपके लिए नहीं है. अगर व्रत रखते हुए अंतर्यामी दुर्गे को साबूदाना खाकर चकमा दे रहे हो तो वो तुमको त्रिशूल भोंक देंगी.