माना जाता है कि 1945 के दौरान अमेरिका में जारी एक आहार संबंधी अनुशंसा की वजह से यह मिथक दुनियाभर में फैला है.
युवा शरीर में उसके कुल वजन का लगभग 60 फीसदी पानी होता है. यह शरीर के लिए एक अहम पौष्टिक तत्व भी है और बाकी तमाम चीजों से ज्यादा जरूरी भी. यह हमारे शरीर का तापमान सामान्य रखने में मदद करता है. शरीर के विभिन्न हिस्सों में पौष्टिक तत्वों की आपूर्ति करने और अपशिष्ट (बेकार चीजें) को बाहर निकालने में मददगार होता है. खून को शरीर के हर हिस्से में पहुंचाता है और सभी तरह की रस प्रक्रियाओं-प्रतिक्रियाओं (मेटाबॉलिज्म रिएक्शंस) को संभव बनाता है. शरीर के जोड़ों में लुब्रीकेन्ट (चिकनाई) की तरह रहता है, ताकि उनमें घर्षण न हो.
इस तमाम संदर्भ के साथ यह जानना बड़ा दिलचस्प है कि शरीर के लिए रोज आठ गिलास पानी की जरूरत संबंधी भ्रान्ति 1945 से चली आ रही है. उस वक्त अमेरिका में सुझाई गई आहार संबंधी अनुशंसाओं में (डाइटरी अलाउंस) में एक यह भी थी. हालांकि इन अनुशंसाओं में आगे यह भी कहा गया था कि युवा व्यक्ति को दिनभर में कम से कम ढाई लीटर पानी की जरूरत होती है और यह जरूरत खाने-पीने की विभिन्न चीजों से ही पूरी हो सकती है. ऐसे में अगर इस अनुशंसा के आखिरी हिस्से पर गौर न करें तो फिर इसकी व्याख्या इस स्पष्ट निर्देश के रूप में की जा सकती है कि रोज आठ गिलास पानी पीना जरूरी है.
जबकि वैज्ञानिक साहित्य में व्यापक खोजबीन के बाद भी ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता, जिससे ‘आठ गिलास पानी रोज’ वाला यह मिथक सही साबित हो सके. और इस ‘निर्देशात्मक सलाह’ के पक्ष में कोई सबूत न मिलने के पीछे एक बड़ी वजह यह है कि व्यक्ति अपनी जरूरतभर का पानी इसका एक गिलास उठाए बिना भी हासिल कर सकता है. सॉफ्ट ड्रिंक, फलों के जूस, दही, चाय-कॉफी, दूध-दही, फल, सूप, उबली चीजों आदि सभी खाद्य पदार्थों में पर्याप्त मात्रा में पानी होता है. यह भी हमारे शरीर में पानी की जरूरत को पूरा करते ही हैं.
यहां यह भी बता देना जरूरी हो जाता है कि ऑस्ट्रेलिया में की गई खुराक संबंधी अनुशंसाओं में भी ‘राेज आठ गिलास पानी’ पीने संबंधी सिफारिश को एक तरह से खारिज कर दिया गया है. यहां की आधिकारिक अनुशंसाओं में कहा गया है, ‘पानी पीने का कोई एक एेसा मानक स्तर पर नहीं है, जो यह सुनिश्चित करता हो कि स्वस्थ लोगों को न्यूनतम या अधिकतम इतना पानी पीना चाहिए तभी उनके शरीर पानी का सही संतुलन बरकरार रह सकता है.’
इसी तरह का ही एक मिथक और है कि ‘काॅफी पीने से शरीर में पानी की कमी हो जाती है.’ इस मिथक को भी तोड़े जाने की जरूरत है. यह सच है कि कॉफी, चाय और शीतल पेय पदार्थ पीने से शरीर में मूत्रवर्धक प्रणाली भी सक्रिय हो जाती है. इससे मूत्र के माध्यम से कुछ पानी शरीर से बाहर निकल सकता है. लेकिन इन पेय पदार्थों से जितनी मात्रा में पानी शरीर को मिलता है, उसकी तुलना में बाहर निकलने वाला पानी बहुत ही कम होता है. हां, जिन पेय पदार्थों में अल्कोहल की मात्रा अधिक होती है (जैसे शराब), उनसे जरूर शरीर में पानी की कमी हो जाती है.
लिहाजा, अब सवाल हो सकता है कि अगर ‘रोज आठ गिलास’ नहीं तो फिर किसको कितने पानी की जरूरत होती है? आप खुद यह कैसे पता कर सकते हैं, आपको रोज कितना पानी पीने की जरूरत है?
इसका जवाब बड़ा आसान है. हर घंटे में आप यह पता कर सकते हैं कि आपके शरीर में पानी का संतुलन ठीक है या कुछ कमी हो गई है. इसका तरीका ये है कि अगर मूत्र हल्का रंगीन या एकदम साफ है तो आप पर्याप्त मात्रा में पानी पी रहे हैं. या यूं कह लीजिए कि आपके शरीर में पानी का संतुलन ठीक है. लेकिन अगर मूत्र गहरा पीलापन-मटमैलापन लिए है, तो मतलब ये कि शरीर में पानी की कमी हो रही है और आपको तुरंत पानी पी लेना चाहिए.
(ऑस्ट्रेलिया की डैकिन यूनिवर्सिटी में पोषण आहार विभाग के प्रोफेसर टिम क्रो का यह आलेख ‘द कनवर्जेशन’ पर प्रकाशित हुआ था)