11/02/2016

शादी का विकल्प नहीं बन सकता फिर भी हमारे यहां लिव-इन फलफूल क्यों रहा है?

आधुनिक समाज में यह पहली बार हो रहा है जब लड़कियां भी अपनी यौन ज़रूरतों को समझ रही हैं और शादी में बंधे बिना लिव-इन के माध्यम से उनको पूरा कर रही हैं.

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन रिलेशन के समर्थन में बोलते हुए कहा कि जब दो युवा लोग साथ रहना चाहते हैं तो इसमें गलत क्या है? सुप्रीम कोर्ट का यह बयान सिर्फ कानूनी राय नहीं है बल्कि शहरी युवाओं के एक बड़े तबके की सोच भी है. आज भारतीय समाज में परंपरागत शादियों के साथ-साथ प्रेम विवाहों की संख्या भी काफी बढ़ चुकी है इसके बावजूद लिव-इन रिलेशनशिप या सहजीवन संबंध महानगरीय युवाओं में एक बड़े तबके की पसंद बनता जा रहा है. ‘लिव-इन’ यानी लड़के-लड़की का बिना शादी के पति-पत्नी की तरह साथ में रहना.

यह संबंध कई सवालों को जन्म देता है. मसलन, जब समाज में प्रेम विवाह करके मनचाहे जीवनसाथी के साथ रहने का विकल्प खुल गया है तो फिर लिव-इन क्यों पनप रहा है? लड़के-लड़कियां शादी के बजाय लिव-इन के लिए ज्यादा सहज क्यों हैं? और यह भी कि क्या लिव-इन शादी का विकल्प बन रहा है?

पहले यह देखना ज़रूरी है कि लोग शादी करते क्यों है? दुनियावी अर्थों में सीधे-सीधे समझें तो किसी भी इंसान को शादी से मुख्यरूप से तीन चीजें मिलती हैं; साथ, सेक्स और बच्चा. यूं तो शादी, लड़के-लड़की, दोनों की जिंदगी को बदलती है, लेकिन आमूल-चूल बदलाव लड़की की जिंदगी में आते हैं. यूं कह सकते हैं कि कई मामलों में शादी के बाद लड़की की परिस्थितियां पहले की तुलना में लगभग 180 डिग्री का घुमाव ले लेती हैं. शादी से मिलने वाली इन तीनों बुनियादी चीजों को पाने के लिए अक्सर ही लड़कियों को अपनी सोच, पसंद-नापसंद, आज़ादी, आदतों को छोड़ना या बदलना और कई अनचाही चीजों को अपनाना पड़ता है. शादी का मुहूर्त निकलते ही अंतहीन ज़िम्मेदारियां अक्सर लड़की के ही पाले आ जाती हैं.

उम्र, वक्त, कैरियर और ज़रूरत का तकाज़ा ऐसा होता है कि लिव-इन के रिश्ते में जाना लड़के-लड़की दोनों को ही समय और ऊर्जा की बचत लगता है.

इस लेन-देन की सौदेबाज़ी के बिना शादी का लड्डू खाने को नहीं मिलता. लेकिन शादी से मिलने वाली तीन में से दो सुविधाएं (साथ और सेक्स) लिव-इन में बिना किसी शर्त या सौदेबाज़ी के मिल जाती हैं! शादी के इन साइड इफेक्टस के कारण शहरी लड़कियां लिव-इन के प्रति ज्यादा आकर्षित हो रही हैं.

सीधे-सीधे कहा जाए तो करियर के चरम पर शादी के साथ मुफ्त में मिलने वाली ज़िम्मेदारियों से बचने और शादी से मिलने वाली सुविधाएं पाने का एकमात्र तरीका है लिव-इन. उम्र, वक्त, कैरियर और ज़रूरत का तकाज़ा ऐसा होता है कि लिव-इन के रिश्ते में जाना लड़के-लड़की दोनों को ही समय और ऊर्जा की बचत लगता है. कई बार महंगे किराए के फ्लैट को शेयर करना, घर से दूर किसी सहयोगी की कमी, साथी मिलने से आत्मविश्वास और सुरक्षा के अहसास में बढ़ोतरी आदि भी लिव-इन में जाने के कारण बनते हैं.

बड़े शहरों और महानगरों में तेज़ी से प्रचलित होने के बावजूद लिव-इन भारतीय समाज में शादी के विकल्प के तौर पर नहीं उभरा है. ऐसे जोड़े अभी भी अपवाद ही होंगे जो तमाम उम्र लिव-इन में ही रहना चाहते हों. कई बार लिव-इन में जी रहे लड़की-लड़के दोनों को पता होता है कि वे शादी घरवालों की ही मर्ज़ी से करेंगे. ऐसा भी होता है कि इस संबंध में रह रहे लड़का-लड़की चाहते हैं कि उनका लिव-इन का साथी ही जीवन साथी बने, लेकिन ऐसा देखा गया है कि ज्यादातर इस रिश्ते की उम्र बहुत छोटी होती है. कहा जा सकता है कि भारत में लिव-इन शादी का विकल्प तो नहीं, बल्कि शादी से पहले के पड़ाव के रूप में प्रचलित हो रहा है.

हमारे समाज में शादी से अलग भी एक-तरफा यौन संबंधों का अस्तित्व हमेशा से रहा है. ऐसे पुरुषों की संख्या हर कालखंड में पर्याप्त रही है जिन्होंने सदा ही अपनी अतिकामेच्छा को जैसे-तैसे पूरा किया है. समाज ने भी पुरुषों की यौनेच्छा पूर्ति के तमाम तरीकों पर मौन सहमति दी़ है. लड़कियों के पास अपनी सामान्य यौनेच्छा की पूर्ति के लिए भी नहीं के बराबर विकल्प रहे हैं. ज़्यादातर महिलाओं ने अक्सर ही शादी के बाहर और भीतर थोपे गए यौन संबंधों को झेला है. शादी में अकसर बलात् बनाए जाने वाले यौन संबंधों के बरक्स, लिव-इन सहमति के संबंधों को जगह दे रहा है.

भारत में लिव-इन को 1999 में तब पहली बार मान्यता मिली जब अदालत ने कहा कि दो व्यस्क लोगों का साथ रहना और संबंध बनाना गैरकानूनी नहीं है.

आधुनिक समाज में यह पहली बार हो रहा है जब लड़कियां भी अपनी यौन ज़रूरतों को समझ रही हैं और शादी में बंधे बिना भी लिव-इन के माध्यम से उनको पूरा कर रही हैं. लिव-इन एक तरफ जहां लड़कियां को ढेर सारी आज़ादी के साथ आनंद देता है, वहीं साथ में कई परेशानियां के रूप में इस आज़ादी की कीमत भी वसूल लेता है.

भारत में लिव-इन शादी का स्थाई विकल्प न होने के बावजूद भी, शादी का एक अस्थाई विकल्प बनकर तो उभरा ही है. यह भी कहा जा सकता है कि लिव-इन के माध्यम से समाज का एक तबका आधुनिक समय में आदिम युग के यौन व्यवहार की तरफ लौट रहा है. दुनियाभर के समाज बहुत सारी चीज़ों में अतीत की तरफ वापसी कर रहे हैं. ज़्यादातर पुराने चलन अब फैशन बनकर लौट रहे हैं. अब कई जगहों पर मिट्टी के घर बनाए और सराहे जा रहे हैं. जल संरक्षण की भी पुरानी तकनीकों को ज्यादा कारगर माना जा रहा है. चिकित्सा शास्त्र में भी प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद की मांग फिर तेजी से बढ़ रही है. कई तरह के तनावों से भरी दुनिया अब योग और ध्यान की प्राचीन पद्धतियों की तरफ लौट रही है.

सेक्स के मामले में भी समाज का एक वर्ग उस पुराने समय में लौट रहा है, जहां शादी नहीं थी लेकिन बहु-यौनसंबंध सामान्य बात थी. यह बात सिर्फ लिव-इन के मामले से ही साबित नहीं होती बल्कि यूरोप आैर अमेरिकी समाज को देखें तो आज के समय में बहुत सारे शहरी पति-पत्नी विवाहेतर संबंध रखते हैं. इंटरनेट ने इस काम में बहुत ज्यादा सहयोग किया है.

सेक्स के मामले में भी समाज का एक वर्ग उस पुराने समय में लौट रहा है, जहां शादी नहीं थी लेकिन बहु-यौनसंबंध सामान्य बात थी. यह बात सिर्फ लिव-इन के मामले से ही साबित नहीं होती बल्कि यूरोप आैर अमेरिकी समाज को देखें तो आज के समय में बहुत सारे शहरी पति-पत्नी विवाहेतर संबंध रखते हैं. इंटरनेट ने इस काम में बहुत ज्यादा सहयोग किया है.

गर्भनिरोधकों और गर्भपात की आधुनिक सुविधाओं के साथ लड़कियां बिना कोई शर्त रखे या माने इस संबंध को जी रही हैं. निःसंदेह सभी रिश्तों की अपनी चुनौतियां होती हैं, लिव-इन की भी हैं. लेकिन लिव इन को नाजायज़, अवैध और संस्कृति विरूद्ध मान लेने भर से यह रिश्ता खत्म तो बिल्कुल नहीं होगा. इस रिश्ते की जटिलता और चुनौतियां कम करने के लिए ज़रूरी है कि बिना किसी पूर्वाग्रह के इस पर बात की जाए.

सब फोन चार्ज के किस्से जितने देखो उतने कम

माना स्मार्टफोन लाइफलाइन है भाई. इसके बिना जीने से अच्छा है लंगोटा मारकर जंगल चले जाएं. बैराग्य ओढ़ लें. कमोड पर भी जो चीज साथ नहीं छोड़ती उसका नाम मोबाइल है दोस्त. लेकिन वही मोबाइल जान का दुश्मन बन जाता है अगर उसकी बैटरी खत्म हो जाए. सोचो किसी थकाऊ पकाऊ से रिश्तेदार के बगल में बैठे हो. वो अपनी रामकथा सुनाने में तुम्हारे कानों को गला के चुआ देने पर उतारू है. उसकी मार से तुमको तुम्हारा मोबाइल बचाए है. अचानक उसकी बैटरी चुक जाए. गुस्सा बहुत आएगा न. लेकिन ये जानते हुए भी कि बैटरी चुक जाएगी, तुम उसको चार्ज नहीं किए थे. कुछ अफवाहें तुम्हारे अंदर ठोंक के भर दी गई हैं. उनका जाला साफ करने का वक्त आ गया है. आओ हम बताते हैं बैटरी कैसे चार्ज करोगे तो फायदे में रहोगे.

1.
कुछ एक्स्ट्रा सयाने लोग बताते हैं कि थोड़ी थोड़ी देर पर बैटरी चार्ज करोगे तो वो खराब हो जाएगी. उसकी उम्र कम पड़ जाएगी. ऐसा कुछ न है भैया. कहीं निकलने से पहले उसको डबोडब्ब ऊपर तक भर लो. बैटरी एकदम चुके तब चार्ज करने से अच्छा है थोड़ी देर पहले ही खोंस दो चार्जर.

2.
एक सलाह कुछ ज्ञान का कीड़ा दिमाग में पाले लोग देते हैं कि सुनो, एकदम दो या चार परसेंट बैटरी बचे तो पिन खोंसना. नहीं तो बैटरी खराब हो जाएगी. उनकी बात मानकर फोन के मरने का इंतजार करते रहते हो तो चेत जाओ. ये बहुत बड़ा झूठ है साब. दरअसल लीथियम बैटरी का लोएस्ट स्ट्रेस लेवल होता है. उस पर पहुंचने से पहले बैटरी चार्ज कर लेनी चाहिए. नहीं तो वो हो जाएगा कि बैटरी की जिंदगी कम हो जाएगी.

3.
रात में सारी बैटरी चूस के अंतिम नोटिफिकेशन तक कमेंट करके जो मोबाइल चार्जिंग में लगाते हो. और सुबह निकालते हो. ये मोबाइल को गुप्त रोग दे देगा बताए देते हैं. जैसे खुद दिन भर भूखे रहने के बाद रात भर नहीं खाते रहते, वैसे ही फोन के ऊपर भी दया करो.

4.
हमेशा फुल्ल चार्जिंग के जुगाड़ में न रहो. कुछ लोगों को जैसे दीवार देखकर पेशाब लग आती है. वैसे ही बिजली का सॉकेट देखकर चार्जिंग की चाह लग जाती है. वो दौड़कर चार्जर ठांस देते हैं. भले बैटरी 70 परसेंट चार्ज हो. ये जान लो कि बैटरी कभी फुल चार्ज नहीं करना. 100 परसेंट चार्ज बैटरी भी अपनी उम्र खुद खा लेती है.

5.
चार्जिंग करने के दौरान फोन गरम हो जाता है? ओह, महंगा वाला आईफोन है. पहले तो सॉरी. उसे सिर्फ फोन कहने के लिए. अब सुनो जुगाड़. उसका कवर निकाल दो. उसको थोड़ी राहत मिलेगी. कवर निकाल के ही चार्ज करना अब. जब फोन धूप में रखा हो चार्ज होने के लिए. कभी कभी ऐसी सिचुएशन आ जाती है भाई. तब उसको कवर से न निकालना.