क्या चल रहा है?
क्या पेटीएम सरकारी कंपनी है, जो हर जगह घुसी हुई है?
बाज़ार का स्पेस बदल गया है. मार्केटप्लेस वर्चुअल हो रहे हैं लेकिन उनमें खरीदारी तो असल ही होती है. पैसे तो सच में खर्च होते हैं.
हम लोगों के कस्बों-मोहल्लों में कोई दुकान बड़ी फेमस होती है. किराने की हो, मिठाई की हो, जनरल स्टोर हो. इनके दुकानदारों को अक्सर लोग ‘सेठ जी’ कहने लगते हैं. दूसरे दुकानदार इन सेठ लोगों से भकुआए रहते हैं. तो अब नया ज़माना आ गया है. दुकानें मोबाइलों पर भी आ गई हैं. ऑनलाइन लेन-देन करवाने के लिए कई दुकानें हैं और इनके बीच एक ‘सेठ’ आ गया है. किसी और को पनपने नहीं दे रहा. आंख दिखा रहा है और दिखाए भी क्यों न? कहा जा रहा है कि उसे सीधे सरकार से समर्थन जो मिला हुआ है. इसीलिए खुल के खेल रहा है ये सेठ. इस सेठ का नाम है ‘पेटीएम’.
8 नवंबर के नोटबंदी के फैसले के बाद पेटीएम की बांछें खिली हुई हैं. श्रीलाल शुक्ल की तरह हमें भी नहीं पता ये बांछें कहां होती हैं. कैशलेस इकॉनमी की खूब चर्चा है. ऐसे में पेटीएम के लिए चांदी हो गई है. लेकिन सवाल है कि आखिर यही कंपनी क्यों सरकार की फेवरेट है जबकि ऑनलाइन ट्रांजेक्शन के लिए कई दूसरे प्लेटफ़ॉर्म भी मौजूद हैं. पेटीएम ने जब से पीएम मोदी को अपने प्रचार के लिए मॉडल बनाया है, तब से सरकारी चीजों में भी पेटीएम की दखल बहुत ज्यादा बढ़ गई है.
क्या है पेटीएम का बैकग्राउंड?
पेटीएम ई-कॉमर्स वेबसाइट के रूप में 2010 में शुरू हुई थी. ये एक स्टार्टअप वेंचर है. प्लेन का टिकट हो या ट्रेन का, मोबाइल रीचार्ज हो, बिल पेमेंट हो सबके लिए बस ‘पेटीएम करो.’ अब उसने प्रोडक्ट्स भी बेचना शुरू कर दिया है. इसी साल उसने सिनेपॉलिस के साथ मिलकर फिल्म टिकट की भी बुकिंग शुरू कर दी है. 2014 में पेटीएम ने वॉलेट सुविधा शुरू की. नवंबर 2016 तक पेटीएम सबसे बड़ी मोबाइल पेमेंट सर्विस बन गई है. इसके करीब 150 मिलियन मोबाइल वॉलेट हैं. एंड्राइड मोबाइल में इसके करीब 75 मिलियन ऐप डाउनलोड हो चुके हैं.
पेटीएम के फाउंडर
पेटीएम के फाउंडर विजय शेखर शर्मा हैं. वही जो अखिलेश यादव से मिलने रिक्शे से पहुंचे थे. फोटो वगैरह आई थी. आंत्रप्रेन्योर हैं. यूपी के अलीगढ़ से आते हैं. अपना इंस्पिरेशन चाइना के अलीबाबा ग्रुप के जैक मा को मानते हैं. अलीबाबा ग्रुप से इनका एक और रिलेशन है. आगे बताएंगे उसके बारे में. फेसबुक की नेट न्यूट्रैलिटी सर्विस के विरोधी थे.
2005 में इन्होने One97 कम्युनिकेशन नाम से एक कंपनी खोली जो मोबाइल में न्यूज़, क्रिकेट स्कोर, रिंगटोन, जोक्स एग्जाम रिजल्ट्स भेजती थी. पेटीएम इसी कंपनी का एक पार्ट है.
पेटीएम के इन्वेस्टमेंट
पेटीएम में चाइना के अलीबाबा ग्रुप का करीब 575 मिलियन डॉलर का इन्वेस्टमेंट है. इसी ग्रुप के ही Ant Financial Services Group का 25 फीसदी इन्वेस्टमेंट है. मार्च 2015 में इस फर्म में रतन टाटा ने भी अपना पैसा लगाया था.
सरकार को पेटीएम पसंद है
2015 में पेटीएम को रिजर्व बैंक ने इंडिया का पहला पेमेंट बैंक खोलने के लिए लाइसेंस दिया है.
सरकार की तरफ से अम्बानी के जियो सिम की तरह ही पेटीएम को भी लोगों के आधार कार्ड का डेटा दिया गया है.
IRCTC पर रेलवे टिकट की बुकिंग को भी सीधे पेटीएम से जोड़ा गया है.
पिछले दिनों नेशनल हाईवे ऑथोरिटी ऑफ़ इंडिया (NHAI) के साथ पेटीएम का करार हुआ. इससे देश भर के टोल प्लाजा में कैशलेस ट्रांजेक्शन के लिए पेटीएम का गेटवे इस्तेमाल होगा.
मेट्रो के टिकट, बिजली बिल का पेमेंट वगैरह पहले ही पेटीएम से जोड़े जा चुके हैं.
क्यों उठते हैं सवाल?
बाज़ार के अपने कुछ नियम होते हैं. अगर वो कहीं लिखे न भी हों तो भी बाज़ार वाले एक दूसरे से तालमेल रखते हैं जिससे बढ़िया कम्पटीशन हो. कोई किसी दूसरे का हक़ ना मार ले.
इसके लिए बाकायदा एक कम्पटीशन लॉ भी है. इसे 2002 में पार्लियामेंट ने पास किया था. इसने 1969 के The Monopolies and Restrictve Trade Practices Act की जगह ली थी. बाज़ार में कोई एक आका ना बन पाए इसलिए ये एक्ट पास किया गया.
मार्केट में नज़र बनाए रखने के लिए ये एक्ट बना था ताकि सरकारों को मार्केट में ज्यादा हस्तक्षेप ना करना पड़े. 2007 और 2009 में इसमें संशोधन किया गया.
एक्ट का मकसद
मार्केट में किसी एक की मोनोपली यानी प्रभुत्व बढ़ने से रोकना.
नए एंटरप्रेन्योर को मार्केट में जगह बनाने का मौका देना.
मार्केट में हेल्दी कॉम्पटीशन को बढ़ावा देना.
किसी भी इस तरह के एग्रीमेंट को रोकना जो इस तरह के कॉम्पटीशन के उलट जाता हो.
इस तरह के एग्रीमेंट दो तरह के होते हैं. एक Horizontal competition जो एक ही तरह का बिजनेस करने वालों के बीच होता है.
दूसरा, Vertical Agreement जो अलग-अलग बिजनेस वालों के बीच होता है.
इस एक्ट का सीधा सा मतलब है कि न तुम हमारे फटे में टांग फंसाओ, ना मैं तुम्हारे में. सारे प्यार से कमाए खाएं.
इसके लिए Competition Commission of India नाम से एक अलग बॉडी भी है. ये एक इंडिपेंडेंट बॉडी है जिसका काम मार्केट पर नज़र रखना है.
पेटीएम से दिक्कत क्या है?
पेटीएम से ट्रांजेक्शन पर कमीशन कटता है. पेटीएम गलत ट्रांजेक्शन हो जाने पर कोई जिम्मेदारी भी नहीं लेती.
पिछले कई दिनों से पेटीएम को लेकर लोगों की शिकायतें बढ़ रही हैं. लोगों का कहना है कि उनके बैंक अकाउंट से पैसे काट लिए गए, लेकिन उनके E-Wallet में नहीं पहुंचे. ये भी शिकायत आ रही हैं कि उनके वॉलेट में बैलेंस भी नहीं दिख रहा है.
सरकार के पास रुपे जैसे प्लेटफॉर्म पहले से हैं, फिर वो एक प्राइवेट कंपनी को ही क्यों बढ़ावा दे रही है? सरकार को ‘रुपे’ को ज्यादा डेवलप करना चाहिए.
अगर सिर्फ पेटीएम ही ऑनलाइन ट्रांजेक्शन के बिजनेस में हावी है तो ये सरासर कम्पटीशन लॉ का भी उल्लंघन है क्योंकि बिजनेस चाहे ज़मीन पर हो रहा हो या मोबाइल पर, है तो वो बिजनेस ही. कुछ लोगों ने पेटीएम के साथ कुछ लाख रुपए की धोखाधड़ी की और केस CBI ने दर्ज कर लिया, जबकि देश में दर्जनों और जांच एजेंसियां हैं. पेटीएम वाले ही सरकार के इतने मुंहबोले क्यों बने हुए हैं, ये सोचने वाली बात है. फिलहाल तो बस पेटीएम करो.
संकलन
न्यूज़,मिडिया,समाचार पत्र.
पं.एल.के.शर्मा