6/18/2016

Most Qualified Indian

क्या आप ‘Most Qualified Indian’ के बारे में जानते हैं ? यदि नही, तो जान लीजिये ।

पढ़ाई के लिए ऐसा जूनून किसी दूसरे भारतीय में शायद ही देखा गया हो …. 20 डिग्रियां, 42 यूनिवर्सिटी परीक्षाएं … ज्यादातर में फर्स्ट क्लास या गोल्ड मैडल !
एक ही व्यक्ति डॉक्टर, वकील, एमबीए, पीएचडी, आईएएस, आईपीएस, एमएलए, मंत्री, पेंटर और फोटोग्राफर सब कुछ बन गया अपने 50 साल के जीवनकाल में ।

असंभव सा लगता है, लेकिन ये सब संभव कर दिखाया था एक भारतीय श्रीकांत जिचकर ने. आखिर तभी तो उनका नाम लिम्का बुक ऑफ़ रिकार्ड्स में “Most Qualified Indian’ के रूप में दर्ज है।

श्रीकांत का जन्म 14 सितंबर 1954 को नागपुर में हुआ था. बेसिक शिक्षा के बाद उन्होंने एमबीबीएस व एमडी की डिग्री ली. इसके बाद एलएलबी, एलएलएम किया।

दूसरे किसी के लिए इतनी पढ़ाई पर्याप्त से भी अधिक थी पर श्रीकांत को इतने से संतोष नहीं था. उन्होंने MBA किया, पत्रकारिता में डिग्री ली फिर दस विषयों में एमए किया. संस्कृत विषय में डी.लिट्. की उपाधि ली जो किसी भी यूनिवर्सिटी द्वारा दी जाने वाली सर्वोच्च डिग्री मानी जाती है । कुल मिला कर 1973 से 1990 तक उन्होंने 42 विश्वविद्यालयीन परीक्षाएं दे डाली।

इसी बीच 1978 में वे आईपीएस के लिए चयनित हुए, लेकिन रिजाइन कर आये. । 1980 में आईएएस के लिए चयनित हुए, लेकिन चार महीने बाद उसे भी छोड़ दिया ।

1980 में ही महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव लड़ा और 25 साल की आयु में ही विधायक बन गए । इसके बाद उन्हें मंत्री भी बनाया गया । 12 साल महाराष्ट्र विधानसभा में रहने के बाद 1992 में वे राज्यसभा सांसद भी बने ।

2 जून 2004 को एक कार दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल होने के कारण उनका दुखद निधन हो गया ।
श्रीकांत जिचकर बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे । वह एक अच्छे पेंटर, फोटोग्राफर और एक्टर भी थे । उनके पास लगभग 52000 किताबों की एक विशाल लाइब्रेरी थी । भारतीयों को उन पर हमेशा गर्व रहेगा ।

पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम के साथ श्रीकांत जिचकर लाल घेरे में (फोटो : भास्कर)

व्हाट्स अप वाले

सुबह उठकर जो काम हम आज सूसू टट्टी करने से पहले करते हैं वो है मोबाइल चेक करना. सबसे पहले भटसप’व्हाट्सऐप’. उसके हरे वाले आइकन पर उंगली छूते ही आप जिम्मेदारी से भर उठते हैं. भले जब गले तक मूत भर आता हो तो साइंस को कोसते हों. कि अब तक वैज्ञानिकों ने मूत बंद करने की तकनीक क्यों न विकसित की. साला बार बार बिस्तर से उठना पड़ता है. ऐसे लोग जिस तेजी से टाइप करते हुए, कर को kr, हां को h, ओके को k लिखते हुए रिप्लाई करते हैं. वो दिखाता है कि सारे जहां का दर्द उनके जिगर में है.
जिल्लेइलाही ये तो हुई जिम्मेदारी. लेकिन ये रोग जीका वायरस से भी तेज स्पीड में फैल गया है. और ये बढ़कर एड्स बन जाता है जब कॉन्टैक्ट्स ग्रुप में ढलकर आ जाते हैं. तब भाईसाब जो भसड़ मचती है. उसे ही महाभारत में महाभारत कहा गया है.

हिंदी मीडियम के समाजशास्त्र वाले गुरुजी की भाषा में आज हम ऐसे ही भटसप ग्रुप्स के प्रकार, सिर्फ नुकसानों और उनसे बढ़ने वाली सिरदर्दी की समीक्षा करेंगे.

रिश्तेदारों वाले ग्रुप:
अगर आप भी रिश्तेदारों वाले ग्रुप में ऐड हैं तो ‘वेलकम टू द हेल.’ भाईसाब नरक बेहतर होता है इससे. एक बार इसमें फंसकर निकलने के सभी रास्ते बंद हो जाते हैं. आप ऑफिस से थककर घर पहुंचे थे पिछली रात. सोते सोते 12 बज गए. घड़ी के भी और देह के भी. सुबह 4 बजे ही आपका उस ग्रुप में जुड़ा कोई न कोई रिश्तेदार जाग जाता है. वो नाचते हुए सफेद मोर या गणेश जी की तस्वीर के ऊपर लाल बोल्ड लेटर्स में गुड मॉर्निंग या सुप्रभात लिखा आता है. आप पूरा लालकिला बेच कर सो रहे हैं. इसलिए देख नहीं सकते. दो मिनट के अंदर एक सूक्ष्म, महीन, अति बारीक मिसकॉल आती है. आप ऊंघ कर फिर सो जाते हैं. अगली मिसकॉल लंबी होती है. आप झल्लाकर फोन उठाते हैं तो उधर उन्नाव वाले मामा हैं. पालागन के बाद बताते हैं “मैसेज का जवाब नहीं दिए तुम. सो रहे थे क्या.” गाली नहीं दे सकते इसका इतना अफसोस कभी न हुआ था.
अगर खानदान में किसी दूर के भाई बहन का बड्डे है तो दिन भर ग्रुप में ही केक, और पानी के बतासे बंटते हैं. ग्रुप का नाम ‘कौशिक फैमीली’ से बदलकर ‘haPp brthday PINKY’ हो जाता है. प्रोफाइल में पिंकी की फोटो लग जाती है. आप उस ग्रुप को छोड़ नहीं सकते. ये तकनीकी का श्राप है. लेना ही पड़ेगा.

स्कूल- कॉलेज के साथियों का ग्रुप:
‘CMS Rockerss’ और ‘सपना महाविद्यालय के हीरो’ नाम से होते हैं. लड़कियों के अलग, लड़कों के अलग. लड़कों के ग्रुप का हम ज्यादा जानते हैं तो बताए देते हैं. प्रचुर मात्रा में नॉनवेज जोक्स पाए जाते हैं. पढ़ाई से इतर हर चीज उसमें होती है. बंदर को कंटाप मारने वाली, सांप से बच्चा खेलने वाली, साइकिल के पीछे कुत्ता भगाने वाली वीडियो भी खूब आती हैं.

गांव के ग्रुप:
‘जुम्मनखेड़ा गैंग्स्टर्स’ और ‘भजनपुरा गैंग’ नाम के ये ग्रुप हर दीवार सरहद के पार होते हैं. इनमें सुबह उठते ही वीणावादिनी देवी सरस्वती की तस्वीर विद्या का दान मांगते हुए आती है. उसके जस्ट तीन मिनट पीछे प्रिया अंजली राय की नंगी फोटो वाला कैलेंडर आता है. वैलेंटाइन्स डे को मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाने के लिए लंबा मैसेज आता है. 10 मिनट बाद पार्क में बनी ‘हिडेन कैम क्लिप’ आ जाती है. तो इन पर किस टाइप के मैसेज का क्लेम करना है, ये वैज्ञानिक अभी पता लगा रहे हैं.

कंपनी कुलीग्स के ग्रुप:
इस ग्रुप में तीन कैटेगरी होती हैं. क्रमशः
1- जिनमें बॉस भी ऐड रहता है. ‘pureit’ जैसे नाम वाले इन ग्रुप्स में सिर्फ ऑफिस की मीटिंग्स, एंप्लॉई की पेलाई और आगे की स्ट्रैटजी तय की जाती है. अगर सेल्स कंपनी है तो जिन जिन लोगों को कॉल करके जिंदगी मुहाल करनी है उनके नंबर भी एक्सचेंज किए जाते हैं.
2- जिनमें ऑफिस की महिलाएं भी ऐड रहती हैं. हालांकि बॉस नहीं होता इसमें. ‘pureit friends’ नाम के इस ग्रुप में बड़े सलीके से बातचीत होती है. हर बंदा-बंदी किसी न किसी पर लाइन मार रहा होता/होती है. लेकिन सब किसी के बारे में कुछ न जानने का नाटक करते हैं. हर नाम के आखिर में ‘जी’ लगाने का चलन होता है. बॉस की बुराई इस ग्रुप का स्थाई भाव है.
3- जिनमें बॉस और महिलाएं कोई न हो. वो ग्रुप मन्नू कबाड़ी की दुकान होता है. रिश्तेदारों वाले ग्रुप से लेकर जितने आगे बताए जाने वाले हैं उन सबके मैसेज फॉरवर्ड होकर यहीं डम्प होते हैं.

धर्म वाले ग्रुप:
हिंदुओं के लिए ‘विराट हिंदू’ और ‘विश्वगुरु जम्बूद्वीप’ जैसे नाम. मुसलमानों के लिए ‘इस्लामिक ग्रुप’ जैसे नाम. इनकी खासियत है कि ये इतिहास से बुरी तरह जुड़े होते हैं. इस्लामिक वाले अपने मजहब की शुरुआत से शुरू करते हैं. फिर आज इस्लाम की बिगड़ी हालत पर रोते हैं. फिर कैसे खुद को पाक़ करें. वुज़ू करने के कायदे, नमाज़ पढ़ने, रोज़े रखने का सही तरीका, असदुद्दीन ओवैसी और जाकिर नाइक के लॉजिकल स्पीचेज के वीडियो आते हैं.
हिंदू ग्रुप्स में भाईसाब कोई मैसेज एक किलोमीटर से कम लंबा आता है तो खुद पर शर्म आ जाती है. कभी कभी हनुमान चालीसा, 1001 बार राम या ओम नमः शिवाय भी लिखकर आते हैं. ज्यादातर में हिंदुस्तान में बिगड़ती हिंदुओं की हालत. और उसके जिम्मेदार ‘शेखुलरों’ को सबक सिखाने के मंसूबे होते हैं. हमारे गौरवशाली इतिहास की झलकियां जब हमने ऑक्सीजन से पहले ‘हवाई प्लेन’ बना लिया था. इन मैसेजेस की शुरुआत होती है “वो सच जो दलाल मीडिया आपको नहीं दिखाएगा.” और अंत में तीन चार तीन कोने वाले भगवा झंडे होते हैं.
जाति वाले ग्रुप: इनकी तो कोई गिनती ही नहीं है. भाईसाब जब जातियां अनगिनत हैं यहां तो ग्रुप्स की गिनती कैसे पॉसिबल होगी. लेकिन फिर भी कुछ ‘कोर जातियों’ के ग्रुप्स की खासियत बता देते हैं. ‘अगरौता ब्राह्मण संघ’ वाले ग्रुप में मैसेज आते हैं
‘ब्राह्मण भूखा तो सुदामा
रूठा तो परशुराम
पढ़ आया तो चाणक्य
ललचाया तो विजय माल्या’
टाइप मैसेज आते हैं. अंत में लिखा होता है ‘जय परशुराम.’
इसी तरह ‘बांका के यदुवंशी’ ‘जय भीम मकरौना’ ‘मलकमबाड़ी कायस्थ महासभा’ ‘रजमन बाजार के राजपूत’ जैसे नाम रखे हुए हज्जारों की तादाद में ग्रुप होते हैं. जिनका रात दिन अथक परिश्रम चलता है अपनी जाति को कुएं का मेढक बनाने के लिए. इन ग्रुप्स पर मैसेज करने वाले कभी नहीं चाहते कि हमारी जाति आगे बढ़ पाए. नहीं तो कौन साला यहां रिप्लाई करने आएगा. इसलिए आगे बढ़ने वाले ग्रुप मेंबर को बेइज्जत कर करके बार बार ग्रुप में वापस लाया जाता है.
इनमें से ज्यादातर ग्रुप्स की कॉमन बातें भी हैं.
जानवरों को मारने काटने वाले वीडियो, सड़क और ट्रेन हादसों के वीडियो, किसी भी तरह की ब्रूटलिटी लगभग सब ग्रुप्स में शेयर की जाती है.
इनके अलावा कुछ कीवर्ड्स हैं ‘सारे मैसेज का बाप’, ‘मार्केट में नया है’, ‘अकेले न हंसो फॉरवर्ड करो’, ‘इतना शेयर करो कि हर सच्चे हिंदू/मुसलमान तक पहुंच जाए.

जहां आईएस की बर्बरता के चलते लोग इस्लाम छोड़कर पारसी बन रहे हैं


ईराक के कुर्दिस्तान में इस्लामिक स्टेट (आईएस) पारसी धर्म के अनुयायियों की संख्या बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रहा है।

ईराक के कुर्दिस्तान प्रांत के सीमांत क्षेत्रों में आतंकवादी संगठन आईएस (इस्लामिक स्टेट) ने लगातार बर्बरतापूर्ण कार्रवाइयां की हैं. आईएस यह सब इस्लाम को ‘विश्वविजयी’ बनाने के नाम पर कर रहा है लेकिन कुर्दिस्तान में इनका असर उल्टा हो रहा है. यहां के युवाओं में अब इस्लाम की अलग-अलग व्याख्याओं के चलते दुविधाएं बढ़ रही हैं.

दुनिया के सबसे प्राचीन धर्मों में शामिल पारसी या जोरास्ट्रियन धर्म में एक मंत्र प्रचलित है. इसका अर्थ है – अच्छे बोल, अच्छे विचार और अच्छे कर्म. कुर्दिस्तान में रह रही छोटी लेकिन, तेजी से बढ़ती पारसियों की आबादी के लिए आज भी यह मंत्र सैकड़ों साल पहले जितना ही सच्चा है.

कुर्द मानते हैं कि पारसी धर्म मूल रूप से उनके समुदाय से संबंधित है. आईएस द्वारा कुर्दों की पहचान और संस्कृति को चुनौती मिलने के बाद इस धारणा ने कुर्दों के बीच पारसी धर्म के आकर्षण को और बढ़ा दिया है
कुर्दिस्तान ईराक का अर्ध-स्वायत्तशासी प्रांत है. इस क्षेत्र में सातवीं शताब्दी के दौरान इस्लाम हावी हुआ. इससे पहले कुर्द इस्लामपूर्व के मतों जैसे पारसी या यजीदी को मानते थे. इस्लाम से मोहभंग की स्थिति से गुजर रहे यहां के कुछ युवाओं के लिए धर्मनिरपेक्षता और पश्चिमी समाज के मूल्य आदर्श बन रहे हैं तो कई अतीत की तरफ देख रहे हैं और प्राचीन कुर्द मतों व मान्यताओं की ओर आकर्षित हो रहे हैं. इसी साल अगस्त में कुर्दिस्तान की क्षेत्रीय सरकार ने पारसी मत को धर्म की मान्यता दे दी है. स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक पिछले साल यहां 10 हजार से ज्यादा युवाओं ने पारसी धर्म अपनाया है.
पहचान की तलाश

मध्य-पूर्व के कुर्द आमतौर पर अपनी जातीय पहचान को धर्म से ऊपर रखते हैं. हाल के सालों में इस पूरे क्षेत्र में इस्लाम ने क्षेत्रीय पहचान निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है लेकिन कुर्दों के लिए यह बात नहीं कही जा सकती. कुर्दिस्तान में इस्लामिक पार्टियों को राज्यस्तरीय और स्थानीय चुनावों में बमुश्किल 10-15 फीसदी वोट मिल पाते हैं.

कुर्द मानते हैं कि पारसी धर्म मूल रूप से उनके समुदाय से संबंधित है. आईएस द्वारा कुर्दों की पहचान और संस्कृति को चुनौती मिलने के बाद इस धारणा ने कुर्दों के बीच पारसी धर्म के आकर्षण को और बढ़ा दिया है. हाल ही में पारसी बने श्वान रहमान कहते हैं, ‘सभी कुर्द राष्ट्रवादी हैं और अपनी विरासत पर गर्व करते हैं और इसलिए इस धर्म की कुर्दिश प्रकृति ने मेरे धर्म परिवर्तन के फैसले को प्रभावित किया.’ 30 साल के रहमान लंदन में पले-बढ़े हैं और अपनी किशोरावस्था तक एक आस्थावान मुसलमान रहे हैं. लेकिन जब वे 2010 में कुर्दिस्तान लौटे तो नास्तिक बन गए. यहां वकालत करने वाले रहमान बताते हैं कि पारसियों का झेन मत जैसा शांतिपूर्ण दर्शन इसका सबसे बड़ा आकर्षण है. वे कहते हैं, ‘पारसी धर्म का मुख्य सिद्धांत है - अच्छे बोल, अच्छे विचार और अच्छे कर्म. यह मेरी सोच से मेल खाता है.’

अवाल बकराजो मस्जिद के इमाम मुल्ला अब्बास खिदिर फराज भी इस बात को मानते हैं कि आईएस की वजह से जनता के बीच इस्लाम की नकारात्मक छवि बनी है. वे कहते हैं, ‘आईएस के लड़ाके अपराधी हैं और वे यह सब इस्लाम के नाम पर करने का दावा करते हैं. निश्चित रूप से हम इससे प्रभावित हो रहे हैं लेकिन, वे सच्चे मुसलमान नहीं हैं.’
अवाल बकराजो मस्जिद के इमाम मुल्ला अब्बास खिदिर फराज भी इस बात को मानते हैं कि आईएस की वजह से जनता के बीच इस्लाम की नकारात्मक छवि बनी है

पारसी धर्म की यहां एक अलग अपील है
इस बात पर काफी बहस हो सकती है लेकिन पारसी धर्म को सबसे पुराना एकेश्वरवादी धर्म माना जाता है जिसकी कांस्य युग में प्रचलित बहु-ईश्वरवादी मतों के बीच बिल्कुल अलग पहचान थी. कुर्द भाषा में जरदष्टी के नाम से पहचाने जाने वाला यह धर्म एक समय फारसी साम्राज्य के तीन राज्यों (एकेमिनिड, अर्कासिड और ससानियन) का राजधर्म भी हुआ करता था. एक अनुमान के मुताबिक फिलहाल पूरी दुनिया में पारसी धर्मावलंबियों की तादाद दो लाख से भी कम बची है. भारत और ईरान में सबसे ज्यादा पारसी हैं और इसके अलावा यूरोप के कुछ देशों में भी इनकी थोड़ी-बहुत संख्या है.

तमाम अध्ययन बताते हैं कि बीते समय में पारसियों की संख्या तेजी से घटी है लेकिन, कुर्दिस्तान में सक्रिय कार्यकर्ता इस प्रक्रिया की दिशा पलटने की कोशिश कर रहे हैं. इन्हीं में शामिल अवात तईब ने अपने एक दोस्त के साथ मिलकर यहां एक गैर-सरकारी संगठन यास्ना (पारसियों के धर्मग्रंथ अवेस्ता का एक पाठ) का गठन किया है. यास्ना इस क्षेत्र में पारसी धर्म के विभिन्न सांस्कृतिक पक्षों का प्रचार करता है. तईब पारसी धर्म में ही पली-बढ़ी हैं और अपने धर्म के बारे में पूरे उत्साह से बात करती है. वे बताती हैं कि कैसे यह धर्म शांति और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने वाला है. वे यह भी कहती हैं कि उनका धर्म पुरुष और स्त्री में बराबरी को बढ़ावा देता है. पारसी धर्मावलंबियों की संख्या बढ़ाने के लिए हाल के महीनों में यास्ना ने कई सेमिनार आयोजित किए हैं और साथ में वह सोशल मीडिया से भी इसका प्रचार करता है. तईब बताती हैं, ‘यह बात साफ हो चुकी है कि लोग आईएस की हरकतों से सकते में हैं. उन्हें लगता है कि वे इस्लाम की इस व्याख्या का प्रतिनिधित्व नहीं करते और यह उनकी कुर्दिश पहचान पर हमला कर रहा है. उन्हें लगता है कि वे पारसी धर्म के बारे में जो सीख रहे हैं वह ज्यादा कुर्दिश है, ज्यादा जाना-पहचाना.’
'कुर्दिस्तान में लोगों को लगता है कि वे पारसी धर्म के बारे में जो सीख रहे हैं वह ज्यादा कुर्दिश है, ज्यादा जाना पहचाना'

कुर्दों की पारसी पहचान पर सवाल भी उठ रहे हैं
मुल्ला फराज सवाल उठाते हैं कि ईराक के कुर्दों का पारसी धर्म से कोई लेना देना नहीं है. वे कहते हैं, ‘पारसी कुर्द मूल रूप से ईरान के कुर्दिस्तान में रहने वाले हैं. इस इलाके में पारसियों का कोई इतिहास नहीं है. मेरे ख्याल से यह वजह उन्हें कुर्दिस्तान में सफल नहीं होने देगी.’ सुलैमेनिया के निवासी गलाविझ गुलाम भी पारसी धर्म में परिवर्तन के लिए चल रही मुहिम पर संदेह व्यक्त करते हैं. वे कहते हैं, ‘अखबारों में धर्म परिवर्तन करने वालों की जो संख्या आई थी वह बहुत ज्यादा थी. यह मैं समझ सकता हूं कि आईएस की वजह से नई पीढ़ी का इस्लाम से मोहभंग हो रहा है ... फिर भी मुझे नहीं लगता कि इतनी बड़ी संख्या में लोग धर्म परिवर्तन कर रहे होंगे.’

इस्लाम में धर्म परिवर्तन एक विवादास्पद मुद्दा है. इस्लामिक जगत में इन लोगों के प्रति सहिष्णुता नहीं बरती जाएगी. हालांकि इस मसले पर मुल्ला फराज की राय है कि धर्म परिवर्तन करने वालों के खिलाफ बदले की कोई प्रतिक्रियाएं नहीं होंगी. वे कहते हैं, ‘आप किसी पर दबाव नहीं डाल सकते कि वो आपका अनुयायी बने. यदि वे आपको मानते हैं तो वे आपके अनुयायी बनेंगे.’

तईब और रहमान को भी इतने बड़ी संख्या में धर्म परिवर्तन करने वालों के भविष्य को लेकर आशंकाएं हैं. तईब बताती हैं कि उन्हें अभी से कई इस्लामी संगठनों की तरफ से धमकियां मिल चुकी हैं और इस वजह से वे अभी तक खुद को पारसी धर्म के सांस्कृतिक पहलू के बारे में बात करने तक ही सीमित किए हुए हैं. वे कहती हैं, ‘हमें अब तक कई धमकियां मिल चुकी हैं और लोग हमारे बारे में गलत धारणाएं फैला रहे हैं कि हम अग्नि के उपासक हैं लेकिन यह सही नहीं है. हमें धीरे-धीरे और सतर्कता के साथ काम करना होगा लेकिन, हम शांतिपूर्ण धर्म के लोग हैं.’
कुर्दिस्तान में राजनीति में धर्म की भूमिका पर बहस आसान नहीं है. ज्यादातर राजनीतिज्ञ इससे बचते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इस्लामिक संगठनों की तरफ से उन्हें विरोध की कार्रवाइयां झेलनी पड़ सकती हैं. यहां इस बात पर भी खुलकर चर्चा नहीं हो सकती कि आईएस इस्लाम का प्रतिनिधित्व करता है कि नहीं. इस्लामिक संगठनों को यहां भले ही कम वोट मिलते हों लेकिन, वे यहां काफी ताकतवर हैं. पिछले दिनों कुर्दिस्तान सरकार ने अपने चार्टर में लैंगिक समानता से जुड़ा एक प्रावधान जोड़ने की कोशिश की थी लेकिन, इस्लामी संगठनों के विरोध की वजह से सरकार को अपने कदम वापस खींचने पड़े. फिलहाल इस क्षेत्र में पारसी धर्म के चर्चा में आने की वजह से अब गुंजाइश बन रही है कि भविष्य में इन सब मसलों पर यहां बहस हो सकती है.

सौजन्य से
सत्याग्रह.कॉम
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