ईराक के कुर्दिस्तान में इस्लामिक स्टेट (आईएस) पारसी धर्म के अनुयायियों की संख्या बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रहा है।
ईराक के कुर्दिस्तान प्रांत के सीमांत क्षेत्रों में आतंकवादी संगठन आईएस (इस्लामिक स्टेट) ने लगातार बर्बरतापूर्ण कार्रवाइयां की हैं. आईएस यह सब इस्लाम को ‘विश्वविजयी’ बनाने के नाम पर कर रहा है लेकिन कुर्दिस्तान में इनका असर उल्टा हो रहा है. यहां के युवाओं में अब इस्लाम की अलग-अलग व्याख्याओं के चलते दुविधाएं बढ़ रही हैं.
दुनिया के सबसे प्राचीन धर्मों में शामिल पारसी या जोरास्ट्रियन धर्म में एक मंत्र प्रचलित है. इसका अर्थ है – अच्छे बोल, अच्छे विचार और अच्छे कर्म. कुर्दिस्तान में रह रही छोटी लेकिन, तेजी से बढ़ती पारसियों की आबादी के लिए आज भी यह मंत्र सैकड़ों साल पहले जितना ही सच्चा है.
कुर्द मानते हैं कि पारसी धर्म मूल रूप से उनके समुदाय से संबंधित है. आईएस द्वारा कुर्दों की पहचान और संस्कृति को चुनौती मिलने के बाद इस धारणा ने कुर्दों के बीच पारसी धर्म के आकर्षण को और बढ़ा दिया है
कुर्दिस्तान ईराक का अर्ध-स्वायत्तशासी प्रांत है. इस क्षेत्र में सातवीं शताब्दी के दौरान इस्लाम हावी हुआ. इससे पहले कुर्द इस्लामपूर्व के मतों जैसे पारसी या यजीदी को मानते थे. इस्लाम से मोहभंग की स्थिति से गुजर रहे यहां के कुछ युवाओं के लिए धर्मनिरपेक्षता और पश्चिमी समाज के मूल्य आदर्श बन रहे हैं तो कई अतीत की तरफ देख रहे हैं और प्राचीन कुर्द मतों व मान्यताओं की ओर आकर्षित हो रहे हैं. इसी साल अगस्त में कुर्दिस्तान की क्षेत्रीय सरकार ने पारसी मत को धर्म की मान्यता दे दी है. स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक पिछले साल यहां 10 हजार से ज्यादा युवाओं ने पारसी धर्म अपनाया है.
पहचान की तलाश
मध्य-पूर्व के कुर्द आमतौर पर अपनी जातीय पहचान को धर्म से ऊपर रखते हैं. हाल के सालों में इस पूरे क्षेत्र में इस्लाम ने क्षेत्रीय पहचान निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है लेकिन कुर्दों के लिए यह बात नहीं कही जा सकती. कुर्दिस्तान में इस्लामिक पार्टियों को राज्यस्तरीय और स्थानीय चुनावों में बमुश्किल 10-15 फीसदी वोट मिल पाते हैं.
कुर्द मानते हैं कि पारसी धर्म मूल रूप से उनके समुदाय से संबंधित है. आईएस द्वारा कुर्दों की पहचान और संस्कृति को चुनौती मिलने के बाद इस धारणा ने कुर्दों के बीच पारसी धर्म के आकर्षण को और बढ़ा दिया है. हाल ही में पारसी बने श्वान रहमान कहते हैं, ‘सभी कुर्द राष्ट्रवादी हैं और अपनी विरासत पर गर्व करते हैं और इसलिए इस धर्म की कुर्दिश प्रकृति ने मेरे धर्म परिवर्तन के फैसले को प्रभावित किया.’ 30 साल के रहमान लंदन में पले-बढ़े हैं और अपनी किशोरावस्था तक एक आस्थावान मुसलमान रहे हैं. लेकिन जब वे 2010 में कुर्दिस्तान लौटे तो नास्तिक बन गए. यहां वकालत करने वाले रहमान बताते हैं कि पारसियों का झेन मत जैसा शांतिपूर्ण दर्शन इसका सबसे बड़ा आकर्षण है. वे कहते हैं, ‘पारसी धर्म का मुख्य सिद्धांत है - अच्छे बोल, अच्छे विचार और अच्छे कर्म. यह मेरी सोच से मेल खाता है.’
अवाल बकराजो मस्जिद के इमाम मुल्ला अब्बास खिदिर फराज भी इस बात को मानते हैं कि आईएस की वजह से जनता के बीच इस्लाम की नकारात्मक छवि बनी है. वे कहते हैं, ‘आईएस के लड़ाके अपराधी हैं और वे यह सब इस्लाम के नाम पर करने का दावा करते हैं. निश्चित रूप से हम इससे प्रभावित हो रहे हैं लेकिन, वे सच्चे मुसलमान नहीं हैं.’
अवाल बकराजो मस्जिद के इमाम मुल्ला अब्बास खिदिर फराज भी इस बात को मानते हैं कि आईएस की वजह से जनता के बीच इस्लाम की नकारात्मक छवि बनी है
पारसी धर्म की यहां एक अलग अपील है
इस बात पर काफी बहस हो सकती है लेकिन पारसी धर्म को सबसे पुराना एकेश्वरवादी धर्म माना जाता है जिसकी कांस्य युग में प्रचलित बहु-ईश्वरवादी मतों के बीच बिल्कुल अलग पहचान थी. कुर्द भाषा में जरदष्टी के नाम से पहचाने जाने वाला यह धर्म एक समय फारसी साम्राज्य के तीन राज्यों (एकेमिनिड, अर्कासिड और ससानियन) का राजधर्म भी हुआ करता था. एक अनुमान के मुताबिक फिलहाल पूरी दुनिया में पारसी धर्मावलंबियों की तादाद दो लाख से भी कम बची है. भारत और ईरान में सबसे ज्यादा पारसी हैं और इसके अलावा यूरोप के कुछ देशों में भी इनकी थोड़ी-बहुत संख्या है.
तमाम अध्ययन बताते हैं कि बीते समय में पारसियों की संख्या तेजी से घटी है लेकिन, कुर्दिस्तान में सक्रिय कार्यकर्ता इस प्रक्रिया की दिशा पलटने की कोशिश कर रहे हैं. इन्हीं में शामिल अवात तईब ने अपने एक दोस्त के साथ मिलकर यहां एक गैर-सरकारी संगठन यास्ना (पारसियों के धर्मग्रंथ अवेस्ता का एक पाठ) का गठन किया है. यास्ना इस क्षेत्र में पारसी धर्म के विभिन्न सांस्कृतिक पक्षों का प्रचार करता है. तईब पारसी धर्म में ही पली-बढ़ी हैं और अपने धर्म के बारे में पूरे उत्साह से बात करती है. वे बताती हैं कि कैसे यह धर्म शांति और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने वाला है. वे यह भी कहती हैं कि उनका धर्म पुरुष और स्त्री में बराबरी को बढ़ावा देता है. पारसी धर्मावलंबियों की संख्या बढ़ाने के लिए हाल के महीनों में यास्ना ने कई सेमिनार आयोजित किए हैं और साथ में वह सोशल मीडिया से भी इसका प्रचार करता है. तईब बताती हैं, ‘यह बात साफ हो चुकी है कि लोग आईएस की हरकतों से सकते में हैं. उन्हें लगता है कि वे इस्लाम की इस व्याख्या का प्रतिनिधित्व नहीं करते और यह उनकी कुर्दिश पहचान पर हमला कर रहा है. उन्हें लगता है कि वे पारसी धर्म के बारे में जो सीख रहे हैं वह ज्यादा कुर्दिश है, ज्यादा जाना-पहचाना.’
'कुर्दिस्तान में लोगों को लगता है कि वे पारसी धर्म के बारे में जो सीख रहे हैं वह ज्यादा कुर्दिश है, ज्यादा जाना पहचाना'
कुर्दों की पारसी पहचान पर सवाल भी उठ रहे हैं
मुल्ला फराज सवाल उठाते हैं कि ईराक के कुर्दों का पारसी धर्म से कोई लेना देना नहीं है. वे कहते हैं, ‘पारसी कुर्द मूल रूप से ईरान के कुर्दिस्तान में रहने वाले हैं. इस इलाके में पारसियों का कोई इतिहास नहीं है. मेरे ख्याल से यह वजह उन्हें कुर्दिस्तान में सफल नहीं होने देगी.’ सुलैमेनिया के निवासी गलाविझ गुलाम भी पारसी धर्म में परिवर्तन के लिए चल रही मुहिम पर संदेह व्यक्त करते हैं. वे कहते हैं, ‘अखबारों में धर्म परिवर्तन करने वालों की जो संख्या आई थी वह बहुत ज्यादा थी. यह मैं समझ सकता हूं कि आईएस की वजह से नई पीढ़ी का इस्लाम से मोहभंग हो रहा है ... फिर भी मुझे नहीं लगता कि इतनी बड़ी संख्या में लोग धर्म परिवर्तन कर रहे होंगे.’
इस्लाम में धर्म परिवर्तन एक विवादास्पद मुद्दा है. इस्लामिक जगत में इन लोगों के प्रति सहिष्णुता नहीं बरती जाएगी. हालांकि इस मसले पर मुल्ला फराज की राय है कि धर्म परिवर्तन करने वालों के खिलाफ बदले की कोई प्रतिक्रियाएं नहीं होंगी. वे कहते हैं, ‘आप किसी पर दबाव नहीं डाल सकते कि वो आपका अनुयायी बने. यदि वे आपको मानते हैं तो वे आपके अनुयायी बनेंगे.’
तईब और रहमान को भी इतने बड़ी संख्या में धर्म परिवर्तन करने वालों के भविष्य को लेकर आशंकाएं हैं. तईब बताती हैं कि उन्हें अभी से कई इस्लामी संगठनों की तरफ से धमकियां मिल चुकी हैं और इस वजह से वे अभी तक खुद को पारसी धर्म के सांस्कृतिक पहलू के बारे में बात करने तक ही सीमित किए हुए हैं. वे कहती हैं, ‘हमें अब तक कई धमकियां मिल चुकी हैं और लोग हमारे बारे में गलत धारणाएं फैला रहे हैं कि हम अग्नि के उपासक हैं लेकिन यह सही नहीं है. हमें धीरे-धीरे और सतर्कता के साथ काम करना होगा लेकिन, हम शांतिपूर्ण धर्म के लोग हैं.’
कुर्दिस्तान में राजनीति में धर्म की भूमिका पर बहस आसान नहीं है. ज्यादातर राजनीतिज्ञ इससे बचते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इस्लामिक संगठनों की तरफ से उन्हें विरोध की कार्रवाइयां झेलनी पड़ सकती हैं. यहां इस बात पर भी खुलकर चर्चा नहीं हो सकती कि आईएस इस्लाम का प्रतिनिधित्व करता है कि नहीं. इस्लामिक संगठनों को यहां भले ही कम वोट मिलते हों लेकिन, वे यहां काफी ताकतवर हैं. पिछले दिनों कुर्दिस्तान सरकार ने अपने चार्टर में लैंगिक समानता से जुड़ा एक प्रावधान जोड़ने की कोशिश की थी लेकिन, इस्लामी संगठनों के विरोध की वजह से सरकार को अपने कदम वापस खींचने पड़े. फिलहाल इस क्षेत्र में पारसी धर्म के चर्चा में आने की वजह से अब गुंजाइश बन रही है कि भविष्य में इन सब मसलों पर यहां बहस हो सकती है.
सौजन्य से
सत्याग्रह.कॉम
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