12/01/2016

कौन थे वो दो लोग, जिन्होंने 1984 में भाजपा को दो सीटें दिलाई थीं?

अभी पंजाब और उत्तर प्रदेश में चुनाव हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरा जोर लगा रहे हैं भारत के हर राज्य में भाजपा की सरकार बनाने के लिये. केंद्र सहित कई राज्यों में भाजपा की सरकार है. कांग्रेस सिमट रही है. ये सारा डेवलपमेंट पिछले ढाई सालों में हुआ है. 2014 चुनाव में भाजपा बहुमत से सरकार में आई. 6 अप्रैल 1980 को अपना स्थापना के 34 वर्षों बाद. खूब सेलिब्रेशन हुआ.

इसमें ये बात भी याद आई कि जब भाजपा ने अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था 1980 में तो अपनी पार्टी से नहीं लड़ा. बल्कि जनता पार्टी से उम्मीदवार खड़े किये गये थे. 1984 में पहली बार भाजपा ने अपने कमल निशान से चुनाव लड़ा. पर उस वक्त कांग्रेस की लहर थी. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जनता की भावनाएं राजीव गांधी के साथ थीं. राजीव ने इसके लिये कोई कसर भी नहीं छोड़ी. विपक्षियों के खिलाफ बड़े-बड़े लोगों को उतारा गया. अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ राजघराने के माधवराव सिंधिया और हेमवती नंदन बहुगुणा के खिलाफ अमिताभ बच्चन को उतारा गया. प्रचार में कोई कमी नहीं छोड़ी गई. इस लहर में कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने 415 सीटें जीत लीं. भाजपा को दो मिलीं.

पर कौन थे ये दोनों लोग जो इस लहर में भी जीत गये? अटल बिहारी वाजपेयी भी हार गये थे. सारे बड़े नेता हार गये थे.

ये दोनों लोग थे- ए के पटेल जो गुजरात के मेहसाणा से जीते और दूसरे थे सी जे रेड्डी जो आंध्र प्रदेश के हनमकोंडा से जीते थे.

ए के पटेल

डॉक्टर थे. MBBS. गुजरात असेंबली में 1975 से 1984 तक सदस्य रहे थे. वीजापुर सीट से. 1984 के चुनाव में मेहसाणा में इंदिरा गांधी के खिलाफ नाराजगी थी. पटेल पॉवर दिखाई गई क्योंकि लोगों के मन में था कि सरदार पटेल को इंदिरा ने उचित सम्मान नहीं दिया था. मेहसाणा पटेलों के वर्चस्व का इलाका है. यहां के पटेल बाकी जगहों के लोगों से धनी हैं. डायमंड कटिंग सूरत में होता है. पॉलिशिंग सौराष्ट्र के पटेल करते हैं. पर सबसे खतरे वाला काम कूरियर का होता है. वो मेहसाणा के पटेल करते हैं. संयोग से इंदिरा गांधी की मौत 31 अक्टूबर को हुई और ये दिन सरदार पटेल का जन्मदिन है. ए के पटेल की इमेज क्लीन थी. वो जीत गये.

पर बाद में नरेंद्र मोदी से उनकी झंझट हो गई. नरेंद्र मोदी का होमटाउन वाडनगर भी मेहसाणा में ही आता है. झंझट के बाद पटेल का करियर डूब गया. 1999 में वो चुनाव हार गये. कहा कि नरेंद्र मोदी ने ही हरवाया है चुनाव. बाद में कांग्रेस ने यहां से पटेल उम्मीदवार खड़ा करना शुरू किया. और अब सीट उनके पास है. जैसा कि यहां के लोग कहते हैं. पार्टी नहीं यहां तय होता है कि दो पटेलों में से कौन ज्यादा काबिल पटेल है.

ए के पटेल 1984, 1989, 1991, 1996 और 1998 में लोकसभा पहुंचे. 2000 से 2006 तक राज्यसभा में रहे. 1998 में मिनिस्टर ऑफ स्टेट रहे. केमिकल्स और फर्टिलाइजर के.

अभी गुजरात के मुख्यमंत्री हैं विजय रूपानी. 2007 में ये गुजराज भाजपा के प्रवक्ता हुआ करते थे. 2007 में ही विजय ने घोषणा की कि ए के पटेल को पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण बाहर किया जा रहा है.

चेंदूपातला जंगा रेड्डी

वारंगल के हनमकोंडा से. आंध्र प्रदेश की विधानसभा में 1967-72, 1978-83 और 1983-84 तक रहे. 1984 में लोकसभा का चुनाव हनमकोंडा से लड़े. यहां उनके विपक्षी थे आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और भविष्य के प्रधानमंत्री नरसिंहा राव. और यहां पर सी जे रेड्डी ने राव को हरा दिया. राव के खिलाफ वारंगल में सेंटिमेंट बना हुआ था. लोग नाराज थे कि राव ने कुछ किया ही नहीं था.

आन्ध्र प्रदेश में कांग्रेस की करारी हार हुई थी. 1982 में NTR ने आंध्र की राजनीति में हीरो वाली एंट्री मारी थी. 300 फ़िल्में बनाया हुआ हीरो तेलुगु सेल्फ-रेस्पेक्ट को आधार बनाकर चीफ मिनिस्टर बन गया. 1983 में NTR ओपन हार्ट सर्जरी करने अमेरिका गए. इसी बीच आंध्र के गवर्नर ने अपने पॉवर का बेजा इस्तेमाल करते हुए NTR को हटाकर उनकी ही पार्टी के पूर्व कांग्रेस भास्कर राव को मुख्यमंत्री बना दिया. NTR तुरंत लौटे. अपने समर्थकों को लेकर गवर्नर के पास गए. एक महीने तक ड्रामा चला. खरीद-बिक्री रोकने के लिए एक महीने तक अपने विधायकों को फाइव-स्टार माहौल में छुपाकर रखा गया. हार कर इंदिरा ने रामलाल को हटाकर भविष्य के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा को गवर्नर बना दिया. उन्होंने NTR को फिर चीफ मिनिस्टर बनाया. तो कांग्रेस के खिलाफ सेंटिमेंट बना हुआ था. कांग्रेस के छः पूर्व कैबिनेट मिनिस्टर आंध्र से ही आते थे. चुनावों में वो सारे हारे.

पहले मास्टर हुआ करते थे रेड्डी. खेती की. सोशल कामों में आये. फिर राजनीति में आ गये. शुरूआत से ही तेलंगाना सत्याग्रह आंदोलनों में भाग लेते रहे. केरल तक के आंदोलनों में जाकर प्रोटेस्ट करते रहे. 1970 में बांग्लादेश को बनाने के पक्ष में दिल्ली में आंदोलन किया. गिरफ्तार हुए. इमरजेंसी के दौर में गिरफ्तार हुए. 1984 में गोल्डन टेंपल में आर्मी के घुसने को लेकर भी आंदोलन किया. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में शामिल रहे.

पर बाद में आंध्र प्रदेश में बीजेपी ही उखड़ गई. वहां की राजनीति बदल गई. और रेड्डी का करियर रुक गया.

संकलन
न्यूज़ मिडिया,समाचार पत्र