11/13/2016

, काले धन वाला चार हजार के लिए लाइन में लगा है “ कह कर मोदी ने किया देश का अपमान ,

गरीबी , महंगाई , बेरोजगारी से त्रस्त भारत की जनता पर एक के बाद एक सितम ढाह रहा है प्रधानमंत्री मोदी जी सबसे पहले तो दुःख की यही बात थी की मोदी जी जैसा व्यक्ति इस देश का प्रधानमंत्री बन गया उसके बाद लगातार महंगाई , गरीबी और बेरोजगारी बढती चली गई . अपनी नकामीओ को छिपाने के लिए भाजपा अपने सरदार मोदी के जरिये न जाने कौन कौन से प्रपंच रचते जा रहे है , कभी गो-आतंक , कभी कैराना , कभी कश्मीर और अब ५०० – १००० के नोट बंद करने की कवायद .

मोदी जी के इस फैसले को जिसके बारे में मोदी जी खुद ही डींग मार मार कर खुद अपनी तारीफ़ करता रहते है इसके बारे में सभी अर्थ-शास्त्रियो ने यह कह दिया है की यह सिर्फ एक निरर्थक प्रयास है इससे देश की अर्थ वयवस्था पर कोई फर्क नहीं पढने वाला और न ही इससे काला धन निकलेगा .

इसके अलावा मोदी जी के इस मानसिक विक्षिप्त वाले फैसले से पुरे देश में एक अराजकता का माहौल बन गया है
बिहार ,मध्य प्रदेश , दिल्ली , गुजरात , यु पी हर जगह बैंक और डाकघर कर्मचारी सही ढंग से काम नहीं कर रहे है जिससे लोग काफी परेशान है .कही किसी के घर की अर्थी नहीं उठ पा रही है तो कही किसी का बच्चा बिना इलाज के इस लिए मर गया क्योकि डॉक्टर ने कहा पहले पैसे ले कर आओ .

दिल्ली के भोगल में सेन्ट्रल बैंक के कर्मचारी लोगो को पैसा न दे कर अपने जानने वाले लोग जिनके साथ उनकी सेटिंग है उनका पैसा ज्यादा बदल रहे है , इस बारे में स्थानीय लोग श्री लक्ष्मी नारायण ने जब आवाज उठाई तो न सिर्फ उन्हें धमकी दी गई बल्कि सुरक्षा गार्ड से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया . इसी तरह साहिबाबाद की मोहन मेकिंस में एक अस्थमा की मरीज महिला डाकघर में पैसा लेने गई तो उसको मना कर दिया गया और डाकघर का पैसा सारा कम्पनी के काले धन को गोरा करने में लगा दिया गया.

यही नहीं यही हाल पुरे देश में हो रहा है लेकिन मोदी जी इतना बड़ा बेशर्म है की गोवा की सभा में कह रहा है की काले धन वाले चार हजार के लिए लाइन में लगे पड़े है ,

जबकि ये लोग लाइन में लगने वाले लोग वो है जिनके पास खाने के सामान के लिए पैसा नहीं है इनके घर में दूध नहीं है सब्जी नहीं है परचून और रसोई का सामान नहीं है इन लाइन में लगने वाला कोई धन्ना सेठ नहीं है , लेकिन मोदी मानसिक रूप से विक्षिप्त हो चुका है और अपनी विफलताओ को छिपाने के लिए कुछ भी अंट शंट बोले जा रहा है ...

मोदी के कदम देश में शान्ति के लिए काफी खतरनाक है है क्योकि अब आम लोगो को खाना पीना कुछ भी नहीं मिलेगा तो देश में अराजकता फ़ैल जाएगी ,

हो सकता है मोदी सरकार चाहती भी हो ताकि इस अराजकता का फायदा उठा मोदी देश में एक हथियारबंद कदम उठा ले और उसकी आड़ में बी जे पी के विरुद्ध बोलने वाले सभी लोगो को गोली से उड़ा दिया जाए या जेल में ठूंस दिया जाए .

काटजू जो आज करते हैं, वो काम ये लड़की 50 साल से कर रही अमूल गर्ल


 
गोल चेहरा, उससे भी गोल आंखें, पोल्का डॉट्स वाली फ्रॉक, ऊपर उठी हुई चुटिया और उससे बंधा मैचिंग रिबन. बिना नाक वाली इस बच्ची के पास हर खबर पर एक मजेदार कमेंट है. जो इसकी बात सुनता है, होंठों पर मुस्कान तैर जाती है.

ये है ‘अमूल गर्ल’, जिसके 50 साल पूरे हो गए हैं. हर खबर पर बरसों से ‘वर्डप्ले’ वाले जोक्स मारने वाली ‘अमूल गर्ल’ की कहानी बड़ी दिलचस्प है.

कैसे जन्म हुआ ‘अमूल गर्ल’ का
ये साल 1966 था. अमूल बटर मार्केट में आए लगभग 10 साल हो चुके थे. उस समय डेयरी प्रॉडक्ट्स बेचने वाली कंपनी ‘पॉल्सन’ अपनी ‘पॉल्सन गर्ल’ के लिए फेमस थी. इसका जवाब देने के लिए अमूल ने ऐड एजेंसी ASP (ऐडवरटाइजिंग ऐंड सेल्स प्रमोशन) को हायर किया. ASP के मालिक और इसके आर्ट डायरेक्टर यूस्टस फर्नांडिस अमूल के लिए एक ऐसा ‘मस्कट’ तैयार करना चाहते थे, जो भारत की हर हाउसवाइफ को पसंद आए.

अमूल के नाम से अपने डेयरी प्रॉडक्ट बेचने वाले GCMMF के चेयरमैन और देश में ‘श्वेत क्रांति’ लाने वाले डॉ. वर्गीस कुरियन ने सुझाव दिया कि कुछ ऐसा तैयार किया जाए, जिसे बनाना आसान हो और लोगों को याद रहे. फिर सिल्वेस्टर डा कूना के दिमाग में ‘अमूल गर्ल’ का आइडिया आया, जिसे यूस्टस फर्नांडिस ने कागज पर उतारा. और इस तरह अमूल गर्ल का ‘मस्कट’ तैयार हुआ.

मस्कट से ऐड कैंपेन तक का सफर
बाजार में ‘अमूल गर्ल’ के पहले गवाह बने मुंबई के लोग. वहां बसों पर इसकी पेटिंग और सड़कों पर होर्डिंग लगाई गईं. सबसे दिलचस्प बात ये कि ये कैंपेन डिजाइन करने वाली टीम में सिर्फ तीन लोग थे. सिल्वेस्टर डा कूना, यूस्टेस फर्नांडिस और उषा कतरक. 1969 में सिल्वेस्टर ASP के अकेले मालिक बन गए और कंपनी का नाम बदलकर ‘डा कूना कम्युनिकेशंस’ कर दिया गया. इसके बाद से अमूल गर्ल ने नेशनल और पॉलिटिकल चीजों पर बोलना शुरू किया और लोगों ने इसे हाथों-हाथ लिया.

अमूल की टैगलाइन ‘अटर्ली बटर्ली अमूल’ की कहानी भी रोचक है. इससे पहले टैगलाइन ‘प्योरली द बेस्ट’ थी, लेकिन जब सिल्वेस्टर अपनी वाइफ निशा से इस बारे में बात कर रहे थे, तो निशा ने कहा कि नई टैगलाइन ‘अटर्ली अमूल’ रखनी चाहिए. तब सिल्वेस्टर ने इसमें ‘बटर्ली’ जोड़कर इसे ‘अटर्ली बटर्ली अमूल’ कर दिया.

अमूल गर्ल का पहला ऐड मार्च, 1966 में आया था, जिसका नाम था ‘थ्रूब्रेड’. हालांकि, इसमें अमूल गर्ल वैसी नहीं थी, जैसी अब दिखती है. अमूल गर्ल की पहली होर्डिंग में भी उसके कपड़े अब से काफी अलग थे, जिसमें उसे प्रेयर करते दिखाया गया था.

महीने में एक ऐड से हफ्ते में पांच ऐड

90 के दशक की शुरुआत में ही कंपनी सिल्वेस्टर के बेटे राहुल डा कूना के हाथों में आ गई और वो अमूल के ऐड का काम देखने लगे. राहुल बताते हैं कि उनके पापा ने उन्हें सिखाया, ‘विवादों में मत पड़ो और हर चीज को वैसे ही कहो, जैसे वो कही जानी चाहिए.’ शुरुआती दिनों में डा कूना कम्युनिकेशन हर महीने एक अमूल ऐड बनाती थी. 70 के दशक में उन्होंने हर 15 दिनों में एक ऐड बनाना शुरू किया और ऐसा 80 के दशक तक चलता रहा. 90 के दशक में अमूल ने हर हफ्ते एक ऐड बनाना शुरू किया और अब ये कंपनी हर हफ्ते चार से पांच ऐड बनाती है.

लोगों को खूब पसंद आए अमूल ऐड
अमूल ने देश के पॉलिटिकल-सोशल मसलों से लेकर खेल, सिनेमा और इंटरनेशनल मुद्दों पर ऐड बनाए हैं, जिसे लोगों ने खूब पसंद किया. अमूल के ऐड की खास बात ये है कि इनका स्टैंडर्स 50 सालों में कभी बदला नहीं. ये जितनी बेबाकी और क्रिएटिव से तब ऐड बनाते थे, उसी तरह आज भी बनाते हैं. पिछले कुछ सालों से लोग ह्यूमर पर ऑफेंड होते दिख रहे हैं और अमूल भी इसका शिकार हुआ, लेकिन इसके ऐड ह्यूमर में लॉजिक खोजने वालों को भी निराश नहीं करते. उनके अपने पैमाने हैं, जिनके साथ उन्होंने कभी समझौता नहीं किया.

इन ऐड पर हुआ बवाल
अमूल ने गणेश चतुर्थी पर एक ऐड बनाया था, जिसमें ‘अमूल गर्ल’ गणेश से कह रही थी, ‘गणपति बप्पा MORE घा’ यानी गणपति बप्पा और खाइए. इस पर शिवसेना ऑफेंड हो गई थी और उसने अमूल के ऑफिस पर पथराव की धमकी दे डाली थी.

जिस समय जगमोहन डालमिया करप्शन के आरोपों में घिरे थे, तब अमूल ने ऐड बनाया था, ‘डालमिया में कुछ काला है?’ इससे नाराज डालमिया ने 500 करोड़ की मानहानि का मुकदमा करने की धमकी दी, लेकिन जब कोर्ट ने उनसे इसका 10 परसेंट जमा करने के लिए कहा, तो वो बात टाल गए.

IPL के दौरान अमूल गर्ल को छोटे कपड़ों चीयरलीडर्स के तौर पर दिखाने के लिए अमूल की काफी आलोचना हुई थी. सत्यम कंप्यूटर्स के घोटाले के बाद अमूल ने एक ऐड बनाया था, ‘सत्यम शिवम स्कैंडलम’. इससे नाराज हुई कंपनी ने अमूल को धमकी दी थी कि उसके सारे कर्मचारी अमूल बटर खाना बंद कर देंगे.

अब भी सिर्फ तीन लोगों की ही टीम है
अमूल को दुनिया का सबसे लंबा चलने वाला ऐड कैंपेन माना जाता है. इतने सालों तक ऐड कैंपेन चलाना और उसकी क्वालिटी बरकरार रखना वाकई मुश्किल काम है. रोचक बात ये है कि इतना सारा काम अब भी सिर्फ तीन लोगों के कंधे पर है. डा कूना कम्युनिकेशन के मालिक राहुल डा कूना के अलावा टीम में एक कॉपी राइटर हैं मनीष जावेरी, जो टीम से 22 साल से जुड़े हैं और एक इलस्ट्रेटर हैं जयंत राने, जो पिछले 30 साल से अमूल ऐड के इलस्ट्रेशन बना रहे हैं.

जावेरी बताते हैं कि 1995 में उन्होंने पीवी नरसिम्हा राव, सोनिया गांधी और वीपी सिंह के ट्राइंगल पर एक ऐड बनाया था, जिसमें उन्होंने लिखा था, ‘पार्टी पत्नी या वो’. उनकी ये लाइन हिंदी सिनेमा की मशहूर फिल्म ‘पति पत्नी और वो’ की याद दिलाती है. जावेरी बताते हैं कि इसके बाद उन्होंने अमूल के ऐड में ऐसे शब्द लिखने शुरू किए, जो लोगों के बीच काफी फेमस थे और उनमें काफी रीजनल पुट होता है. वक्त के साथ-साथ उनके ऐड की ये लैंग्वेज और बेहतर होती गई.

ऐड बनाने वालों के कंपनी के साथ रिश्ते
अमूल अपने टोटल टर्नओवर का 1% मार्केटिंग पर खर्च करता है. GCMMF के मैनेजिंग डायरेक्टर आरएस सोढ़ी बताते हैं कि उन्होंने कभी अपनी ऐड एजेंसी नहीं बदली और वो ऐड बनाने वाटी टीम को पूरी आजादी देते हैं. सोढ़ी के मुताबिक कई बार तो ऐड बनने के बाद वो उन्हें देखते भी नहीं और ऐड सीधे मार्केट में चले जाते हैं. ऐड एजेंसी और अमूल के बीच बहुत ही भरोसे का रिश्ता है, जिसका दोनों सम्मान करते हैं.

क्या आप जानते है Calculator के C और CE बटन का मतलब

इस टेक्नॉलजी ने हमारी ज़िंदगी जितनी आसान बना दी है उतनी ही कठिन भी बना दी है। अब इस बात से तो आप भी अनजान नहीं होंगे कि आजकल टैक्नॉलजी इतनी आगे है कि आपके account से शॉपिंग भी हो जाती है और आपको पता भी नहीं चलता। आपका फेसबूक अकाउंट हैक करके आपका पड़ोसी चलाता है और आपको भनक तक नहीं लगती है। ख़ैर टेक्नॉलजी से याद आया 'कैलक्युलेटर' जो कि हर student, bank  में काम करने वाले uncle लोग या कोई भी.. जम कर यूज़ करता है, लेकिन बस काम भर जैसे जोड़, घटाना इतना ही। वैसे कैलक्युलेटर तो हम भी बचपन से काम में लेते आ रहे हैं पर जो हम बताने जा रहे हैं वो बहुत कम लोगों को पता होगा।

कैलक्युलेटर में दिए C और CE बटन में क्या अंतर होता है। ज़्यादा लोग अपने हिसाब किताब के लिए भी कैलक्युलेटर का ही उपयोग करते हैं और कैलक्युलेटर के हर बटन के फंक्शन से वाकिफ़ भी होंगे लेकिन C और CE बटन के असली फंक्शन का शायद उन्हें भी नहीं पता होगा। आइये हम बताते हैं। 

  1. दोनों ही बटनों का उपयोग की गई गणना को डिलीट करने के लिए किया जाता है। 2. CE (Clear Entry) बटन का उपयोग लंबी गणना में सबसे लास्ट में की गई एंट्री को डिलीट करने के लिए होता है।जैसे अगर आपने कैलक्युलेटर में गणना की है 2*4-9+7 और इस गणना में आपने अंत में 7 गलती से लिख दिया तो आपको CE बटन दबाना है।

  3. वहीं आपको कैलक्युलेटर में की गई पूरी गणना को डिलीट करना है तो आप C (Clear) बटन दबाएं। (ये बात शायद आपको पता रही होगी)


तो यही है कैलक्युलेटर के C और CE बटन का असली अंतर ताकि अगर आप लंबी-लंबी गणना कर रहे हों और गलती से कोई गलत इनपुट हो जाये तो सिर्फ़ CE बटन दबाकर उसे ठीक किया जा सके। वहीं एक गणना करने के बाद नए सिरे से दूसरी गणना शुरू करने के लिए C बटन दबाकर पूरी गणना को एक साथ डिलीट किया जा सकता है। ये बात आपको पता रही होगी ये हो सकता है पर जिनको नहीं पता थी वो अब थैंक्स न बोलें।

चार्टर्ड प्लेन महीनों से गुपचुप अारबीअाई को पैसा पहुंचा रहा था

मैसूर. नोटबंदी की घोषणा भले ही अचानक से हुई हो मगर नए नोट छह माह से छापे जा रहे थे। इसमें एक चार्टर्ड ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्लेन मैसूर स्थित सरकारी प्रेस से नए नोट लेकर उड़ान भरता था। पैसों को दिल्ली स्थित रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के मुख्यालय पहुंचाया जाता था। देशभर में पैसा इसी प्लेन ने पहुंचाया।

दिलचस्प यह है कि सरकार आरबीआई और मैसूर एयरपोर्ट को छोड़ किसी को भी इसकी भनक तक लगी। प्लेन की उड़ान से जुड़ी जानकारी चुनिंदा लोगों को थी। प्लेन छह माह से मैसूर हवाईहड्डे से कड़ी सुरक्षा में उड़ान भर रहा था। इस चार्टर्ड की उड़ानें बेंगलुरु समेत कई बड़े शहरों के लिए थीं। खासतौर पर वे शहर जहां आरबीआई की शाखाएं हैं। उधर, आरबीआई की शाखाएं भी सरकार की योजना को लागू करने के लिए खामोशी से तैयारियां कर रही थीं।
निजी कंपनी का चार्टर्ड था।

यह निजी कंपनी का चार्टर्ड था। केंद्र सरकार ने कंपनी को 73 लाख 42 हजार रुपये का भुगतान किया। यह रकम एसबीआई की एक शाखा मेंआरबीआई बेंगलुरु के एक अकाउंट से चुकाई गई। बता दें कि सरकार के ऐलान के बाद आरबीआई की शाखाओं से नई करेंसी को देश के विभिन्न बैंकों की शाखाओं में पहुंचाया गया। ऐसा करने के लिए हाई सिक्यॉरिटी वैन्स का इस्तेमाल किया गया। हर ब्रांच को उसके साइज के मुताबिक 20 लाख से लेकर दो करोड़ रुपये तक के 2 हजार के नोट दिए गए।

इस खास जगह छपे नोट
मैसूर में भारत रिजर्व बैंक नोट मुद्रण लिमिटेड द्वारा चलाया जा रहा करंसी प्रिटिंग प्रेस एक हाई सिक्यॉरिटी जोन है। यहां नोटों की छपाई का काम छह महीने पहले शुरू हुआ था। किसी को कानो कान खबर नहीं हुई कि क्या होने जा रहा है? इस जगह के लिए अलग से रेलवे लाइन और वॉटर सप्लाई पाइपलाइन है। यह प्रेस करीब दो दशक पुराना है। इसे दुनिया के बेहतरीन करेंसी प्रिंटिंग प्रेस में शुमार किया जाता है। 1000 के पुराने नोट भी यहीं पर छपे थे। इस प्रेस के अंदर ही करेंसी पेपर तैयार करने की यूनिट है। नोटों को बनाने में इस्तेमाल होने वाला खास कागज यहीं पर तैयार होता है।

मैसूर एयरपोर्ट की भूमिका अहम
मैसूर एयरपोर्ट की बेहद अहम भूमिका रही। बीते कुछ सालों से मैसूर एयरपोर्ट उपेक्षाओं का शिकार रहा है। यहां एक सिंगल रनवे है। हालांकि, यह इकलौता रनवे पूरे देश को झकझोरने वाले नीतिगत फैसले को अमल में लाने का रास्ता बना। मंदाकली स्थित मैसूर एयरपोर्ट को काफी उम्मीदों के साथ बनाया और शुरू किया गया था। 35 हजार वर्ग फीट में फैले इस एयरपोर्ट को 82 करोड़ की लागत से एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने बनवाया था। इसका उद्घाटन तत्कालीन सीएम बीएस येदियुरप्पा के कार्यकाल में 2010 में हुआ था।