11/16/2016

एक कविता गरीबी की

कभी देखती हूँ खाली कढ़ाही को, कभी बच्चों के खाली पेट को,
साहब कभी मन को अपने मार कर देखती हूँ खाली पड़ी प्लेट को।

सभी को पता हैं हालात ऐ गरीब पर देखो साहब सभी मौन हैं,
एक वक़्त खाली ही रह जाती है थाली देखकर चीजों के रेट को।

तन पर जो कपड़ा है वो भी शर्मिंदा है घिस घिस कर फट जाने पर,
भीख क्या काम भी नहीं मिलता देखा खटखटा कर हर गेट को।

दर्द चेहरे से झलकता है हमारे कहने को यही कहते हैं सभी,
पर फिर भी लाज नहीं आती हमारा ही खून चूसते हुए सेठ को।

अपनी रोटियाँ सेंकते हैं राजनेता हमारे अरमानों के चूल्हे पर,
साहब देखिये खेल तकदीर का हम गरीबों को ही चढ़ाते भेंट को।

ख़ुशी किसे कहते हैं साहब हम गरीब भूल ही बैठे हैं कसम से,
लिखा जिस पर दर्द हमारा सुलक्षणा संभाल कर रखना उस स्लेट को।

लेखक
डॉ. सुलक्षणा अहलावत

प्रस्तुति
एल.के शर्मा

चन्दा और राजनैतिक पार्टियां

पिछले साल जब आरटीआई एक्टिविस्ट सुभाष चंद्र अग्रवाल की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने देश की छह राष्ट्रीय पार्टियों से सूचना के अधिकार के तहत आने के बाबत पूछा तो कोई भी पार्टी तैयार नहीं हुई।
सर्वोच्च अदालत ने जब इस मसले पर नरेंद्र मोदी सरकार की राय जाननी चाहिए तो उसने कहा कि अगर राजनीतिक पार्टियों को आरटीआई के तहत लाया गया तो इससे उनके सुचारू कामकाज में अड़चन आएगी।
सरकार ने कहा कि जो लोग ढाई लाख रुपए से अधिक मूल्य के पुराने नोट अपने खातों में जमा करेंगे उनके द्वारा जमा किए गए धन की उनके आय के स्रोत से मिलान किया जाएगा। जो दोषी पाया जाएगा उस पर टैक्स के अलग 200 प्रतिशत जुर्माना लगाया जाएगा।
लेकिन आपको ये जानकार हैरत होगी कि एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक (एडीआर) रिफॉर्म्स के साल 2013-14 के आंकड़ों के अनुसार देश की छह राष्ट्रीय पार्टियों की कुल आय का 69.3 प्रतिशत अज्ञात स्रोत से आया था।


एडीआर के आंकड़ों के अनुसार साल 2013-14 में छह राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के पास कुल 1518.50 करोड़ रुपए थे। राजनीतिक दलों में सबसे अधिक पैसा बीजेपी (44%) के पास था। वहीं कांग्रेस (39.4%), सीपीआई(एम) (8%), बीएसपी (4.4%) और सीपीआई (0.2%) का स्थान था। सभी राजनीतिक दलों की कुल आय का 69.30 प्रतिशत अज्ञात स्रोतों से आया था।
राजनीतिक पार्टियों को अपने आयकर रिटर्न में 20 हजार रुपये से कम चंदे का स्रोत नहीं बताना होता। पार्टी की बैठकों-मोर्चों से हुई आय भी इसी श्रेणी में आती है। साल 2013-14 तक सभी छह राष्ट्रीय पार्टियों की कुल आय में 813.6 करोड़ रुपये अज्ञात लोगों से मिले दान था। वहीं इन पार्टियों को पार्टी के कूपन बेचकर 485.8 करोड़ रुपए की आय हुई थी।
जब के आंकड़े हैं तब कांग्रेस सत्ता में थी और बीजेपी विपक्ष में और यही दोनों दल अज्ञात स्रोत से चंदे के मामले में भी बाकी पार्टियों से आगे थे। साल 2013-14 में कांग्रेस की कुल आय 598.10 करोड़ थी जिसमें 482 करोड़ अज्ञात स्रोतों से आए थे। कांग्रेस को कुल आय का 80.6 प्रतिशत अज्ञात स्रोतों से मिला था। बीजेपी की कुल आय 673.8 करोड़ रुपये थी जिसमें  453.7 करोड़ रुपये अज्ञात स्रोतों से आए थे।
बीजेपी को कुल आय का 67.5 प्रतिशत अज्ञात स्रोतों से मिला था। सीपीआई(एम) की कुल आय 121.9 करोड़ रुपये थी जिसमें अज्ञात स्रोतों से आय 58.4 करोड़ रुपये थी। सीपीआई (एम) की कुल आय के 47.9 प्रतिशत का स्रोत अज्ञात था।

विमुद्रिकरण की ये योजना कहीं ( स्विस बैंक का काला धन सफेद करने ) के लिए तो नही?

आइये मिलकर सोचते है। हो सकता है आपके दिमाग की बत्ती जल जाए सबसे पहले सरकार द्वारा जीरो बैलेंस और सरल कागजी कार्यवाही में जनधन बैंक अकाउंट खुलवाने की मुहिम चलाई जाती है।

इस योजना के प्रसार में इतनी रूचि ली गयी की बैंक खुद गली नुक्कड़ पे बैठकर थोक के भाव खाते खोल रही थी,उसी दौरान टेलीकॉम कम्पनिया सभी तरह की संचार सेवाओं के शुल्क 200% तक बढ़ा देती है जिसे सरकार का मूक समर्थन होता है।

ऐसे में देश की सबसे बड़ी कॉर्पोरेट कम्पनी "रिलाइंस"( वाई फाई के टावर ) खड़े कर रही होती है और मुफ्त वाई फाई सेवा भी प्रदान कर देती है।

सितम्बर 2016 में अचानक (रिलाइंस समूह) 21 बिलियन डॉलर यानि 1407 अरब रुपये के निवेश से पनपे जियो प्रोजेक्ट को सभी तरह की दरों से दिसम्बर तक के लिए मुफ्त कर देता है।
रिलाइंस इंडस्ट्री ये नही बताती की वो इससे मुनाफा कैसे कमाएगी..

ये सवाल अब तक सवाल ही है। देशभर के करोड़ो मोबाइल उपभोक्ता जियो की सिम लेने के लिए कतार में लग जाते है। सिम लेने के लिए आधार कार्ड अनिवार्य को दिया जाता है।

हाल फिलहाल देश में 15 करोड़ ब्रॉडबैंड उपभोक्ता है और रिलाइंस का टारगेट 10 करोड़ ग्राहक कवर करने का है।
टेलिकॉम रेगुलेरिटी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (Trai) के अंतर्गत ऐसा (कोई नियम नही है) जिसमे उपभोक्ता को सिम प्राप्त करने के लिए आधार कार्ड देना अनिवार्य हो।

सिम प्राप्त करने के लिए आधार कार्ड या कोई भी वेध दस्तावेज दिया जा सकता है। रिलाइंस ने सिर्फ आधार कार्ड अनिवार्य किया और फिंगर बॉयोमेट्रिक मशीन पे उपभोक्ता का अंगूठा ले लिया।

अब उपभोक्ता को नही पता किस डीड पे उसने अंगूठा लगाया है। इस योजना को लेकर प्रश्न बहुत थे और मुफ्त मिल रही चीज़ लेने की होड़ भी बहुत थी। सितम्बर माह में ही उर्जित पटेल जो की रिलाइंस के पूर्व सलाहकार रह चुके है उन्हें गवर्नर नियुक्त किया जाता है।

नवम्बर में मोदी जी अचानक ( विमुद्रिकरण की घोषणा ) राष्ट्र को संबोधित कर देते हैं.
अब सिक्के का दूसरा पहलु..
वित्त मंत्रालय के अनुसार देश में कुल काले धन का 6% केश के रूप में है। 94% कालाधन अन्य तरीकों से दबाया गया है। इस 6% केश में से सिर्फ 15% निकलने की संभावना है बाकी बचा 85% किसी ना किसी तरीके से शुद्ध कर दिया जाएगा। जो 15% काला धन उजागर होगा वो एक बड़ा विज्ञापन बनेगा सरकार की सफलता का.

2011 में 648 लोगो की लिस्ट आयी थी जिनका स्विस बैंक में कालाधन था.. उनपे कार्यवाही करना तो दूर उनकी लिस्ट तक "कांग्रेस भाजपा" सार्वजनिक नही कर पाई।

ये कितने पहुँच वाले लोग होंगे और इनके कितने प्रगाढ़ सम्बंध होंगे सरकार और विपक्ष से इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है। ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि पूर्व और वर्तमान सरकार इन्ही 648 लोगो की जेब में है।
इन लोगो ने कुछ तो योजना बनाई होगी स्विस बैंक का खजाना सफेद करने की.. आज एक मामूली व्यापारी, जुआरी,सटोरिया, मिलावटखोर भी अपनी अघोषित जमा पूंजी सफेद करने की भरकस कोशिस कर रहा है तो जाहिर है इन्होंने भी भरकस प्रयास किये होंगे।

इन्ही भरकस प्रयासों का हिस्सा है ये::"विमुद्रिकरण" की योजना..

स्विस का पैसा कब का भारत आ गया होगा..

एक व्यक्ति जिसका बैंक में खाता हो या ना हो उसे 4000 रु एक दिन में किसी भी बैंक से बदलवाने की अनुमति है।
कुछ दिन से सोशल मिडिया पे एक जनहित मैसेज भी चल रहा है कि【 बैंक में दी जाने वाली अपने आधारकार्ड फोटोकॉपी पे बदली जाने वाली पूंजी और तारीख जरूर डाले 】

ताकि आपके दस्तावेज से कोई अन्य व्यक्ति अपनी पूंजी ना बदलवा ले हो सकता है यही हो विमुद्रिकरण कि योजना की आप { आधार नम्बर और अंगूठा तो रिलाइंस को सिम के बदले में दे चुके..}

अब वे करोड़ो लोगो के स्कैन किये आधार और अंगूठे को उन (648 लोगो में बाँट कर ) अपनी निवेश की लागत वसूल करेंगे

और उसी 1407 अरब निवेश को ( दिसम्बर अथवा मार्च तक फ्री देने) के बाद शुद्ध एक नम्बर कमाई में बदल लेंगे।

सिम के बदले दिये गये आपके आधार से प्रति व्यक्ति ढाई लाख से कम मुद्रा सफेद पैसे में बदल दी जाएगी...
करोड़ो लोगो को कभी खबर नही लगेगी की उनके आधार नम्बर का इतना बेहतरीन इस्तेमाल हुआ है।ये वही करोड़ो लोग हे जिन्हें अपना खुद का बैंक स्टेटमेंट निकालने में 4 दिन लग जाते है तो आधार कार्ड से हुए मुद्रा विनिमय* की तो कभी ( जिंदगी में खबर नही लगेगी..।)

अपने 5 साल पूरे होने से पहले ( सरकार ) इन 648 लोगो की लिस्ट घोषित करके हरिशचंद्र बन जाएगी। और कोर्ट इन्हें आरोप से बाइज़्ज़त बरी कर देगा क्योकि तब तक स्विस के उन खातों में कुछ बचा ही नही होगा। इन 648 लोगो के अलावा जिनके खाते स्विस में हे( सरकार इन्हें दबोच कर 56" की हो जाएगी। ) छोटे मोटे सटोरिये रिश्र्वतखोर, व्यापारी, जमाखोर, चोर डाकू और तमाम देश विदेश के दो नम्बरिए बर्बाद हो जाएंगे.. उनकी बर्बादी से राजकोष में चार चांद लग जाएंगे।

(विपक्ष के रूप में कांग्रेस) इतनी कमज़ोर क्यों है इसका कारण यही है कि विपक्ष स्विस बैंक खाता धारियों की जेब में है और खुद कांग्रेस भाजपा के नेता भी इन 648 में शामिल है।

पं.एल.के.शर्मा

एक दो गन्दी मछली पकड़ने के लिये पुरे तालाब को है सूखा दिया

सरकार द्वारा काला धन और भ्रष्टाचार को रोकने के उद्देश्य से ५०० और १००० की मुद्रा को चलन से हटा दिया गया है। इस वजह से जो अफ़रातफ़री का माहौल बना है, उसमें अब तक पाँच लोगों की जान जा चुकी है। भक्त टाइप के प्राणी अभी भी कह रहे है, ये राष्ट्र हित में है, सरहद पर जवान देश की सुरक्षा के लिए गोली खा कर जान दे रहे है तो आप राष्ट्र हित में लाइन में खड़े रहकर नहीं मर सकते..? ये तथाकथित राष्ट्रवादियों के देश हित में रखे गए विचार है। लेकिन अब तक किसी राष्ट्रवादी टाइप भक्त ने ये नहीं बताया कि नोट बदलने से कैसे भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी, और देश में जो काला धन है उसमें से कितना और किनके पास से बाहर लाया जाएगा..? भ्रष्टाचार पर कैसे लगाम कसेगी..?

तथाकथित राष्ट्रवादियों का कहना है, नोट बदलने के लिए लाइन में खड़े रहना राष्ट्र हित में है इसलिए भीड़ में खड़े रहना सम्मान की बात है! कुछ भीड़ इस तरह की भी होती है, जो राष्ट्र हित की श्रेणी में नहीं आती। लेकिन इन दोनों ही तरह की भीड़ में खड़े रहने वाले लोग एक ही है। पान की दुकान पर क्रिकेट मैच का स्कोर जानने की भीड़ हो, मंदिरों में कुचलकर मरने वाली भीड़ हो, मेले में लगी सेल में ख़रीदारी के लिए लगी भीड़ हो, चुनाव के वक़्त वोट के लिए लगी भीड़ हो, किसी नेता का घटिया भाषण सुनने के लिए भाड़े से लाई गई भीड़ हो, नौकरी के लिए इंटर्व्यू देने के लिए लगी भीड़ हो, बच्चों के दाख़िले के लिए लगी भीड़ हो, मुफ़्त चिकित्सा के केम्प के बाहर लगी भीड़ हो, राशन की दुकान के बाहर लगी भीड़ हो, सिनमा की टिकटें ख़रीदने की भीड़ हो, सरकारी आवास के लिए लगी भीड़ हो, दिहाड़ी मज़दूरी के लिए इकट्ठा भीड़ हो, सरकार के तुग़लकी फ़रमान से परेशान भीड़ हो या फिर सरहद पर देश की रक्षा के लिए गोली तक खाने की तैयारी रखते हुए सेना में भरती होने के लिए इकट्ठा हुई भीड़ हो..

ये सारी भीड़ भारत की आम जनता है, जो सदियों से ब्राह्मणवाद के प्रपंचों के कारण शोषित और पीड़ित होती आ रही है। आज अगर काले धन और भ्रष्टाचार के नाम पर आप इन्हें कंगाल करने पर तुले हुए है तो इस देश के लिए इससे दुर्भाग्यपूर्ण बात और क्या हो सकती है..! क्योंकि नागरिकों से ही देश बनता है। भीड़ जमाकर अपने खाते में पैसा जमा कराने के लिए इकट्ठा लोगों को भक्त कालाबाज़ारी और भ्रष्टाचारी कह रहे है। एक किलोमीटर तक की लाइन में पूरा दिन खड़े रहकर पैसे जमा कराने वालों में ज़्यादातर ग़रीब और मध्यमवर्गीय परिवार के लोग है।

बड़े बड़े मॉल के बाहर खिलौने बेचने के लिए ठेला लगाने वाला भी आम नागरिक है, जो ग़ुब्बारे बेचकर मुश्किल से ५०० रुपए कमाता होगा.., लेकिन प्रशासन उसे वहाँ खड़े रहने की इजाज़त नहीं देता, उसका उसका ठेला ट्राफिक को बाधारूप बताकर वहाँ से हटा दिया जाता है। जबकि कोई दबंग बिल्डर, नेता या व्यापारी के ग़ैर क़ानूनी बिल्डिंग को कोई आँच नहीं आती। ठीक उसी तरह दस बीस करोड़ के आँकड़े सुनकर काला धन पकड़े जाने का आभासी आनंद लेना छोड़ दीजिए। मानता हूँ ये दस बीस करोड़ वाले चोर है, लेकिन हज़ारों-लाखों करोड़ में अपने कारोबार करने वाले और सरकार की नाक में उँगलियाँ डालकर करोड़ों रुपयों का टेक्स माफ़ करवाने वाले कोर्पोरेट गृहों के धन्नाशेठ के सामने इनकी औक़ात मॉल के बाहर ग़ुब्बारे बेचने वाले से ज़्यादा नहीं..!

जिस काले धन को पकड़ने के लिए पूरे तालाब को सुखा दिया, उसमें सारी मछलियाँ ही तड़प रही है, जबकि मगरमच्छ तो अपने प्राइवेट स्वीमिंग पुल में ही आराम फ़रमा रहे है..