12/15/2016

कैशलेस होने की भी एक कीमत है, पर इसे जनता क्यों चुकाए?


कैशलेस इकॉनमी भारत का भविष्य है. कहना आसान है, पर करना महंगा है और दिक्कत भरा.

कैशलेस इकॉनमी होने का मतलब है कि जनता अपने पेमेंट डेबिट या क्रेडिट कार्ड से करेगी. कैश से बहुत कम करेगी या नहीं करेगी. केंद्र सरकार इसके लिए प्रयत्नशील है. रिजर्व बैंक भी अपने विजन 2018 डॉक्यूमेंट में ये कह चुका है. जनता भी नई चीज को लेकर उत्साहित है औऱ सशंकित भी.

भारत में सारे पेमेंट का मात्र 5 प्रतिशत ही ऑनलाइन पेमेंट होता है. यहां तक कि मॉल में भी लोग कैश से पे करना बेहतर समझते हैं. अभी इतना होने के बाद 7-8 परसेंट हुआ है ऑनलाइन पेमेंट. देश में कुल 72 करोड़ डेबिट कार्ड हैं. कई लोग तो एक से ज्यादा कार्ड रखते हैं. मतलब बहुत कम लोगों के पास कार्ड है. क्रेडिट कार्ड तो बहुत कम हैं. 3 करोड़. मतलब देश के ज्यादातर लोगों के पास कार्ड नहीं हैं. फिर बहुत सारे लोग ऐसे होते हैं जो कार्ड का इस्तेमाल एटीएम से कैश निकालने में करते हैं.

अब जब बात हो रही है कि कैशलेस इकॉनमी हो तो इसके साथ एक चीज जुड़ी आई है. ऑनलाइन ट्रांजैक्शन फ्री नहीं होते. सर्विस चार्ज, यूजर चार्ज और कन्वीनिएंस फी के नाम पर पैसे देने पड़ते हैं. IRCTC से पेमेंट करने पर भी एक्स्ट्रा पैसे तो देने ही पड़ते हैं. हालांकि इसको लेकर एक दिन प्रेस कांफ्रेंस कर अरुण जेटली ने थोड़ी राहत दी थी, पर ये कम है और अस्थायी है-

1. 2000 रुपये तक के ट्रांजैक्शन पर कोई सर्विस चार्ज नहीं लगेगा. (इसके ऊपर के पेमेंट पर लगेगा. क्रेडिट कार्ड पर 1-2.5 परसेंट चार्ज लगता है. अगर दो परसेंट लें तो 3000 रुपये की खरीददारी किये तो 60 रुपये एक्स्ट्रा देना होगा.)

2. पेट्रोल, डीजल और रेलवे पास पर ट्रांजैक्शन टैक्स में थोड़ा डिस्काउंट मिला. (थोड़ा मतलब थोड़ा तो टैक्स देना ही है.)

3. इंश्योरेंस, हाईवे टॉल टैक्स के ऑनलाइन ट्रांजैक्शन में 8-10 परसेंट डिस्काउंट मिलेगा. ट्रांजैक्शन कॉस्ट में डिस्काउंट. मतलब जो पे कर रहे हैं वो तो करना ही है. बस ऑनलाइन एक्स्ट्रा जो देते थे, उसमें थोड़ी राहत हो जाएगी. पर एक्स्ट्रा तो देना ही है.)

तो जो काम हम कैश से आसानी से और सस्ते में कर सकते थे, उसके लिए हम ज्यादा पैसा क्यों खर्च करें?

ऑनलाइन पेमेंट करने के लिए हमें इंटरनेट चाहिए. इसके लिए एक स्मार्टफोन चाहिए. सिग्नल बढ़िया आना चाहिए. डेटा खर्च करना पड़ेगा. मतलब एक ब्रेड का पैकेट खरीदना है तो पहले इतना सारा जुगाड़ करना ही होगा. अब जब इतना जुगाड़ हो जाएगा कि आईडी-पासवर्ड और कार्ड स्वाइप, ऑनलाइन मोबाइल पेमेंट तो क्या हम अपने बच्चों को दुकान पर सामान लेने के लिए भेज पाएंगे? जिस देश में एटीएम से पैसे निकालने के दौरान लोग पिन चोरी कर लेते हैं, वहां पर चौबीसों घंटे ऑनलाइन पेमेंट होने पर सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा?

फिर अगर सरकार ई-पेमेंट प्रमोट कर ही रही है तो सरकार ने अपनी तरफ से क्या व्यवस्था की है? पेटीएम कोई सरकारी संस्थान नहीं है. अगर डूब जाए तो उसके साथ डूबने वाले पैसे की जिम्मेदारी कौन लेगा? फिर हम क्यों उसी को फायदा पहुंचाने के लिए काम करें? फिर सरकारी बैंक तो पेटीएम जैसी प्राइवेट एजेंसी को अपनी साइट पर जगह भी नहीं देते. बैंक अलग काम कर रहे हैं. प्राइवेट वाले अलग. सरकार अपना अलग घोषणा कर रही है.

तो जनता क्यों खर्च भरे कैशलेस इकॉनमी होने का? अगर ऑनलाइन पेमेंट को ही पॉपुलर करना है तो ये कैश यूज करने के मुकाबले सस्ता होना चाहिए. हम क्यों महंगा सामान लें? सरकार को तो सारे ट्रांजैक्शन टैक्स हटा ही देने चाहिए. नहीं तो जनता को तो कोई फायदा नहीं होगा. उलटे हमेशा इंटरनेट के लिए सिग्नल तलाशते फिरेंगे.

हालांकि सरकार 31 मार्च 2017 तक 10 लाख पॉइंट ऑफ सेल्स लगाएगी देश में. मतलब वहीं से पेमेंट होगा. तो क्या जनता अपने पेमेंट का जिम्मा किसी तीसरे के भरोसे छोड़ के रखेगी? अगर वो लोग गुंडई करने लगे तो किसके पास जाएंगे. जहां केरोसिन और गेहूं बांटने में ठेकेदार नंगई कर देता है, वहां अगर पेमेंट ही उनके हाथ में दे दें तो वो लोग क्या करेंगे? कम पढ़े-लिखे औऱ टेक्नॉल्जी से अनजान लोग तो उनके आसरे पर आ जाएंगे. जो भी देश डिजिटल हुआ है वहां पर पहले से ही इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत है. इंटरनेट की कोई समस्या नहीं है. लोगों को पता भी है. हमारे देश में तो ऐसा नहीं है अभी.

इसका मतलब ये नहीं है कि कैशलेस होना घाटे का काम है. कैशलेस होना फायदेमंद है. पर कैशलेस होने के लिए जो जरूरतें हैं, अगर वो पूरी नहीं की गईं तो घाटे का सौदा हो जाएगा. बुलेट ट्रेन की सबको जरूरत है. पर अगर ट्रैक ढंग का नहीं रहा तो क्या फायदा होगा. पहले ट्रैक तो बनाना ही पड़ेगा ना.


संकलन

न्यूज़ मिडिया,समाचार पत्र

पं. एल.के .शर्मा (अधिवक्ता)

अपने आक्रामक तेवर से हमेशा विपक्ष को बैकफुट पर ला देने वाली केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार खुद ‘बैकफुट’ पर

अपने आक्रामक तेवर से हमेशा विपक्ष को बैकफुट पर ला देने वाली केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार खुद ‘बैकफुट’ पर आती जा रही है। अव्यवस्थित नोटबंदी की वजह से एक साथ कई समस्याओं से घिरी सरकार पर कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी का जुबानी हमला पीएम नरेन्द्र मोदी के सियासी ग्राफ को नीचे की ओर खिसका रहा है और सीधे तौर पर सरकार और उसके चिंतकों के लिए चिंता का विषय है।
दरअसल, 8 नवंबर को नोटबंदी के बाद से ही पूरे देश में अफरा-तफरी है। 16 नवंबर से संसद का शीतकालीन-सत्र चल रहा है, लेकिन शायद ही कोई दिन हो, जिस दिन सदन की कार्रवाई सुचारू रूप से चली हो। नोटबंदी पर संसद में हंगामे के बीच 9 नवंबर को भी राज्यसभा व लोकसभा के कामकाज में रुकावट आई। संसद के बाहर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने मीडिया से कहा कि सरकार बहस से भाग रही है, अगर मुझे बोलने देंगे तो आप देखेंगे कि भूकंप आ जाएगा। उन्होंने कहा कि नोटबंदी हिंदुस्तान के इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला है। नोटबंदी पर संसद के शीतकालीन-सत्र में केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश कर रही विपक्षी पार्टियां प्रधानमंत्री के बयान की मांग कर रही हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कांग्रेस उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि प्रधानमंत्री पूरे देश में तो भाषण दे रहे हैं, मगर लोकसभा में आने से डरते हैं। आखिर इतनी घबराहट क्यों? एक महीने से हम विमुद्रीकरण पर बहस की कोशिश कर रहे हैं, हम चाहते हैं दूध का दूध पानी का पानी हो जाए। राजनीति के जानकार बताते हैं कि राहुल का यही सवाल सरकार से जुड़े लोगों को परेशान कर रहा है, और यह समझ से परे है कि आखिर मोदी सदन में आने से क्यों कतरा रहे हैं?

बड़े नोटों को अमान्य करने के ऐलान के एक महीना (8 नवम्बर) पूरा होने पर विपक्ष ने संसद और संसद के बाहर ‘काला दिवस’ मनाया। संसद परिसर में महात्मा गांधी की मूर्ति के पास सांसदों ने प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में शामिल कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने पीएम मोदी पर तीखा हमला करते हुए कहा कि उनके मूर्खतापूर्ण फैसले ने देश को बर्बाद कर दिया है। प्रधानमंत्री संसद में जवाब देने से बच रहे हैं, लेकिन हम लोग उन्हें भागने नहीं देंगे। संसद में चर्चा में प्रधानमंत्री हिस्सा लें, सभी चीजें स्वत: स्पष्ट हो जाएंगी। विमुद्रीकरण के फैसले ने मजदूरों और किसानों को बर्बाद कर दिया है। हम बहस चाहते हैं, वोटिंग चाहते हैं। लेकिन सरकार ऐसा नहीं चाहती। राहुल गांधी ने कहा कि लोकसभा में मैं सब बता दूंगा कि पेटीएम कैसे पे टू मोदी हो जाता है। पिछले एक महीने से इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री अपनी बातें बदल रहे हैं। लोग कठिनाइयों के बोझ में दबते जा रहे हैं। प्रधानमंत्री मुस्करा रहे हैं। वह अच्छा समय व्यतीत कर रहे हैं, जबकि देश की जनता परेशान है, इसलिए वे एक मुद्दे से दूसरे मुद्दे पर जा रहे हैं। हम उन्हें सदन में घेरेंगे। वे सदन से भाग नहीं पाएंगे।
इस प्रकार आप देखेंगे कि सत्तापक्ष के अक्रामक रूख के कारण हमेशा कथित रक्षात्मक रुख अपनाने वाले कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी आक्रामक हैं, और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत उनकी पूरी जम्बोजेट कैबिनेट रक्षात्मक मुद्रा में नजर आ रही है। निश्चित रूप से प्रधानमंत्री के बारे में लोगों के मन में जो छवि बनी थी, वह धीरे-धीरे खत्म हो रही है।
दरअसल, विपक्ष का आरोप है कि नोटबंदी की घोषणा को चुनिंदा तरीके से लीक किया गया, जिन लोगों को उन्हें बताना था, उन्हें बता दिया गया था। यदि मामले लीक नहीं हुए होते तो भाजपा की पश्चिम बंगाल इकाई ने बैंकों में करोड़ों रुपये जमा किए, पार्टी ने बिहार में जमीन खरीदी, ये सब नहीं हो पाता। कर्नाटक में भाजपा सरकार में पूर्व मंत्री रहे एक नेता ने अपनी पुत्री के विवाह में 500 करोड़ रुपए खर्च किए। नोटबंदी के कारण हजारों की संख्या में लोगों की नौकरियों से छंटनी हो रही है। किसान मर रहे हैं। अब तक 100 से अधिक लोग कतारों में मर चुके हैं।
आपको बता दें कि 8 नवम्बर को हुई नोटबंदी का मकसद कालेधन पर चोट करना था, लेकिन सरकार को इसमें कोई कामयाबी नहीं मिल सकी है। कालेधन वालों ने देश की कथित भ्रष्ट बैंकिग सिस्टम से सेटिंग कर अपने पुराने नोट को बदल लिया। जबकि आम जनता नोटबंदी के एक माह बाद तक कतार में खड़ी होकर धक्के खा रही है और सरकार को कोस रही है। नोटबंदी के बाद से आम लोगों को काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। सरकार कहती है कि नोटबंदी की वजह से साढ़े ग्यारह लाख करोड़ रुपए बैंकों में जमा हो गए। इसमें से चार लाख करोड़ रुपए बैंकों ने लोगों को दे दिए। इस हिसाब से बैंकों के पास साढ़े सात लाख करोड़ रुपए जमा हो गए। सरकार के पास पैसे आ गए, पर लोगों के पास नहीं रहे।

बताते हैं कि नोटबंदी का जीडीपी पर तीन तरह से असर पड़ेगा। भारत का कालाधन अब विदेश चला जाएगा, क्योंकि लोगों के मन में डर बन गया है। लोग डॉलर खरीदने लगे हैं, इसका सबूत यह है कि डॉलर के मुक़ाबले रुपया लगातार टूट रहा है। छोटे उद्योगों को भी नकद न होने से दिक्कतें हो रही है। आशंका है कि भारतीय अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आ सकती है।
खैर, पांच सौ, हजार रुपए की नोटबंदी के अच्छे नतीजे तो जाने कब दिखाई देंगे, मगर उसके खराब पहलू पूरी तरह सामने आ गए हैं। दावे के हिसाब से न कालाधन पकड़ा गया न ही भ्रष्टाचार में कोई कमी आई है। मकान-दुकान आदि के सस्ते होने की बात कही गई थी, बैंकों के कर्ज की ब्याज-दरों में कमी आने का भी दावा था, मगर ऐसा कुछ खास नहीं हुआ है। रिजर्व बैंक ने अपनी ताजा मौद्रिक नीति में ब्याज दरें यथावत रखी हैं और विकास दर का अनुमान घटा दिया है। मगर प्रधानमंत्री दिवास्वप्न दिखाए जा रहे हैं।
नोटबंदी का सबसे बड़ा कहर आम आदमी पर टूटा है, चाहे वह शहरी हो या ग्रामीण। बैंकों और एटीएम के सामने दो-चार हजार रुपए निकालने के लिए लग रही कतारें टूटने का नाम नहीं ले रहीं। राहत की सरकारी घोषणाओं और उनके अमल में कोई तालमेल नहीं है। सरकार का कहना है कि कोई भी खाताधारक एक हफ्ते में बैंक से चौबीस हजार और एटीएम से एक दिन में ढाई हजार रुपए निकाल सकता है, मगर बैंकों और एटीम में जब पैसे ही नहीं होते, तो इस फरमान का क्या मतलब है?

इधर, केन्द्र सरकार की नाकामी पर विपक्ष को उस वक्त और बल मिल गया जब सत्तारूढ़ भाजपा के वरिष्ठ सांसद लालकृष्ण आडवाणी ने संसद ठप्प रहने पर सरकार को घेरा। आडवाणी ने सदन बाधित होने पर लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन और संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार को ठहराया। आडवाणी अपने वाणी-संयम के लिए विख्यात हैं, फिर भी लोकसभा अध्यक्षा सुमित्रा महाजन की आलोचना करनी पड़ी।
उधर, इस मसले पर सोशल मीडिया पर जबर्दस्त गर्माहट दिख रही है। दिल्ली कांग्रेस आईटी सेल के कन्वेनर विशाल कुन्द्रा फेसबुक, ट्वीटर और व्हाट्स एप्प के जरिए ताबड़तोड़ हमले कर रहे हैं। बिना तैयारी की गई नोटबंदी को जनविरोधी करार देते हुए ट्वीटर पर विशाल कुन्द्रा लिखते हैं-‘इस सरकार ने देश के आम नागरिकों का निवाला छीन लिया है।’
दरअसल, नोटबंदी के मुद्दे पर संसद में प्रधानमंत्री के बयान देने की मांग लेकर विपक्ष द्वारा हंगामा किया जा रहा है। जबकि भाजपा बहस तो चाहती है लेकिन नोटबंदी पर मतदान नहीं चाहती। वजह स्पष्ट है कि यदि मतदान होगा तो राज्यसभा में सरकार निश्‍चित ही हार जाएगी, जबकि विपक्ष मतदान पर जोर दे रहा है। बहरहाल, सरकार का डर विपक्ष के आरोप के अनुसार किसी बड़े घपले-घोटाले की ओर इशारा कर रहा है। वैसे सच्चाई का पता तो तब चलेगा जब प्रधानमंत्री जिद छोड़कर सदन में आएं और बहस में हिस्सा लें, जो सम्भव होता नहीं दिख रहा है।