कैशलेस इकॉनमी भारत का भविष्य है. कहना आसान है, पर करना महंगा है और दिक्कत भरा.
कैशलेस इकॉनमी होने का मतलब है कि जनता अपने पेमेंट डेबिट या क्रेडिट कार्ड से करेगी. कैश से बहुत कम करेगी या नहीं करेगी. केंद्र सरकार इसके लिए प्रयत्नशील है. रिजर्व बैंक भी अपने विजन 2018 डॉक्यूमेंट में ये कह चुका है. जनता भी नई चीज को लेकर उत्साहित है औऱ सशंकित भी.
भारत में सारे पेमेंट का मात्र 5 प्रतिशत ही ऑनलाइन पेमेंट होता है. यहां तक कि मॉल में भी लोग कैश से पे करना बेहतर समझते हैं. अभी इतना होने के बाद 7-8 परसेंट हुआ है ऑनलाइन पेमेंट. देश में कुल 72 करोड़ डेबिट कार्ड हैं. कई लोग तो एक से ज्यादा कार्ड रखते हैं. मतलब बहुत कम लोगों के पास कार्ड है. क्रेडिट कार्ड तो बहुत कम हैं. 3 करोड़. मतलब देश के ज्यादातर लोगों के पास कार्ड नहीं हैं. फिर बहुत सारे लोग ऐसे होते हैं जो कार्ड का इस्तेमाल एटीएम से कैश निकालने में करते हैं.
अब जब बात हो रही है कि कैशलेस इकॉनमी हो तो इसके साथ एक चीज जुड़ी आई है. ऑनलाइन ट्रांजैक्शन फ्री नहीं होते. सर्विस चार्ज, यूजर चार्ज और कन्वीनिएंस फी के नाम पर पैसे देने पड़ते हैं. IRCTC से पेमेंट करने पर भी एक्स्ट्रा पैसे तो देने ही पड़ते हैं. हालांकि इसको लेकर एक दिन प्रेस कांफ्रेंस कर अरुण जेटली ने थोड़ी राहत दी थी, पर ये कम है और अस्थायी है-
1. 2000 रुपये तक के ट्रांजैक्शन पर कोई सर्विस चार्ज नहीं लगेगा. (इसके ऊपर के पेमेंट पर लगेगा. क्रेडिट कार्ड पर 1-2.5 परसेंट चार्ज लगता है. अगर दो परसेंट लें तो 3000 रुपये की खरीददारी किये तो 60 रुपये एक्स्ट्रा देना होगा.)
2. पेट्रोल, डीजल और रेलवे पास पर ट्रांजैक्शन टैक्स में थोड़ा डिस्काउंट मिला. (थोड़ा मतलब थोड़ा तो टैक्स देना ही है.)
3. इंश्योरेंस, हाईवे टॉल टैक्स के ऑनलाइन ट्रांजैक्शन में 8-10 परसेंट डिस्काउंट मिलेगा. ट्रांजैक्शन कॉस्ट में डिस्काउंट. मतलब जो पे कर रहे हैं वो तो करना ही है. बस ऑनलाइन एक्स्ट्रा जो देते थे, उसमें थोड़ी राहत हो जाएगी. पर एक्स्ट्रा तो देना ही है.)
तो जो काम हम कैश से आसानी से और सस्ते में कर सकते थे, उसके लिए हम ज्यादा पैसा क्यों खर्च करें?
ऑनलाइन पेमेंट करने के लिए हमें इंटरनेट चाहिए. इसके लिए एक स्मार्टफोन चाहिए. सिग्नल बढ़िया आना चाहिए. डेटा खर्च करना पड़ेगा. मतलब एक ब्रेड का पैकेट खरीदना है तो पहले इतना सारा जुगाड़ करना ही होगा. अब जब इतना जुगाड़ हो जाएगा कि आईडी-पासवर्ड और कार्ड स्वाइप, ऑनलाइन मोबाइल पेमेंट तो क्या हम अपने बच्चों को दुकान पर सामान लेने के लिए भेज पाएंगे? जिस देश में एटीएम से पैसे निकालने के दौरान लोग पिन चोरी कर लेते हैं, वहां पर चौबीसों घंटे ऑनलाइन पेमेंट होने पर सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा?
फिर अगर सरकार ई-पेमेंट प्रमोट कर ही रही है तो सरकार ने अपनी तरफ से क्या व्यवस्था की है? पेटीएम कोई सरकारी संस्थान नहीं है. अगर डूब जाए तो उसके साथ डूबने वाले पैसे की जिम्मेदारी कौन लेगा? फिर हम क्यों उसी को फायदा पहुंचाने के लिए काम करें? फिर सरकारी बैंक तो पेटीएम जैसी प्राइवेट एजेंसी को अपनी साइट पर जगह भी नहीं देते. बैंक अलग काम कर रहे हैं. प्राइवेट वाले अलग. सरकार अपना अलग घोषणा कर रही है.
तो जनता क्यों खर्च भरे कैशलेस इकॉनमी होने का? अगर ऑनलाइन पेमेंट को ही पॉपुलर करना है तो ये कैश यूज करने के मुकाबले सस्ता होना चाहिए. हम क्यों महंगा सामान लें? सरकार को तो सारे ट्रांजैक्शन टैक्स हटा ही देने चाहिए. नहीं तो जनता को तो कोई फायदा नहीं होगा. उलटे हमेशा इंटरनेट के लिए सिग्नल तलाशते फिरेंगे.
हालांकि सरकार 31 मार्च 2017 तक 10 लाख पॉइंट ऑफ सेल्स लगाएगी देश में. मतलब वहीं से पेमेंट होगा. तो क्या जनता अपने पेमेंट का जिम्मा किसी तीसरे के भरोसे छोड़ के रखेगी? अगर वो लोग गुंडई करने लगे तो किसके पास जाएंगे. जहां केरोसिन और गेहूं बांटने में ठेकेदार नंगई कर देता है, वहां अगर पेमेंट ही उनके हाथ में दे दें तो वो लोग क्या करेंगे? कम पढ़े-लिखे औऱ टेक्नॉल्जी से अनजान लोग तो उनके आसरे पर आ जाएंगे. जो भी देश डिजिटल हुआ है वहां पर पहले से ही इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत है. इंटरनेट की कोई समस्या नहीं है. लोगों को पता भी है. हमारे देश में तो ऐसा नहीं है अभी.
इसका मतलब ये नहीं है कि कैशलेस होना घाटे का काम है. कैशलेस होना फायदेमंद है. पर कैशलेस होने के लिए जो जरूरतें हैं, अगर वो पूरी नहीं की गईं तो घाटे का सौदा हो जाएगा. बुलेट ट्रेन की सबको जरूरत है. पर अगर ट्रैक ढंग का नहीं रहा तो क्या फायदा होगा. पहले ट्रैक तो बनाना ही पड़ेगा ना.
संकलन
न्यूज़ मिडिया,समाचार पत्र
पं. एल.के .शर्मा (अधिवक्ता)