'मैं धारक को मूर्ख बनाने का वचन देता हूं'
नोटबंदी हुए 100 से कुछ ज़्यादा दिन हो गए हैं. हालांकि प्रधानमंत्री ने 50 दिन मांगे थे. लेकिन हालात हैं कि सामान्य होने का नाम नहीं ले रहे हैं. न लोगों के लिए, न रिजर्व बैंक और सरकार के लिए. नोटबंदी के फैसले और उसे लागू करने के तरीके पर लगातार सवाल उठाए गए. नोटबंदी का एजेंडा जिस तरह कालेधन से ई-पेमेंट पर आया, उससे लोगों को ये भी लगा कि उन्हें मूर्ख बनाने की कोशिश हुई. अब एक मीडिया रिपोर्ट आई है जिसके मुताबिक इस बात की संभावना है कि रिजर्व बैंक ने रघुराम राजन के गवर्नर रहते उर्जित पटेल के दस्तखत वाले नोट छाप दिए हों.
हर नोट एक कागज़ का टुकड़ा बस होता है. इसकी कीमत उस गारंटी से होती है जो केंद्र सरकार देती है. ‘ मैं धारक को…’ वाली लाइन के नीचे रिजर्व बैंक गवर्नर का दस्तखत इस बात की तस्दीक करता है. एक गवर्नर के कार्यकाल में छपने वाले नोटों पर उसके दस्तखत होते हैं.
गवर्नर पद के लिए उर्जित का नाम 21 अगस्त को सामने आया था. उन्होंने गवर्नर पद का चार्ज 4 सितंबर को लिया. लेकिन ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ के हवाले से खबर है कि रिज़र्व बैंक के दो प्रेस में 2000 के नोट छापने के ‘प्रारंभिक कदम’ 22 अगस्त 2016 को ही उठाए लिए गए थे. इस तरह कम से कम कुछ नोटों पर रघुराम राजन के दस्तखत होने चाहिए थे.
एक बात ये भी है कि रिजर्व बैंक को 2000 के नए नोटों को छापने की अनुमति केंद्र सरकार ने 7 जून 2016 को ही दे दी थी. इसके बाद नई सीरीज़ छापने की तैयारी शुरू कर दी थी. आमतौर पर नए नोट छापने का आदेश मिलते ही प्रेस में छपाई शुरू हो जाती है. ये सब खुद रिजर्व बैंक ने दिसंबर में एक संसद समीति को बताया था.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट में एक बात और सामने आई है. 500 के नए नोटों की छपाई 23 नवंबर को ही शुरू हुई. साफ है कि नोटबंदी की घोषणा के वक्त सरकार (और रिज़र्व बैंक का भी) ध्यान केवल 2000 के नोट छापने पर था. इस से बाज़ार में चिल्लर की जो कमी हुई, उस पर पर्याप्त लिखा जा चुका है.
इस बात से दो महत्वपू्र्ण सवाल खड़े होते हैंः
पहला ये कि क्या नोटों पर पटेल के दस्तखत होने से किसी नियम की अनदेखी हुई?
दूसरा ये कि रघुराम राजन का जाना तय होने के बाद बड़े लंबे समय तक इस बात पर संशय था कि उनकी जगह कौन लेगा. राजन के रिटायर होने की तारीख के बहुत नज़दीक आने पर ही उर्जित का नाम सामने आया. यदि मीडिया रिपोर्ट में जताई संभावना वाकई में सच है तो क्या सरकार ने गवर्नर पद की अपनी पसंद जानबूझ कर लोगों से छुपाई? ऐसा क्यों हुआ?
रिज़र्व बैंक एक महत्वपूर्ण संस्था है जिसके काम करने के तरीके पर पिछले दिनों कई प्रश्न उठे हैं. खासकर इस बात पर कि कहीं बैंक सरकार के प्रभाव में तो काम नहीं कर रहा, जिसका डर जताया जा रहा है.