2/17/2017

'मैं धारक को मूर्ख बनाने का वचन देता हूं'


'मैं धारक को मूर्ख बनाने का वचन देता हूं'

नोटबंदी हुए 100 से कुछ ज़्यादा दिन हो गए हैं. हालांकि प्रधानमंत्री ने 50 दिन मांगे थे. लेकिन हालात हैं कि सामान्य होने का नाम नहीं ले रहे हैं. न लोगों के लिए, न रिजर्व बैंक और सरकार के लिए. नोटबंदी के फैसले और उसे लागू करने के तरीके पर लगातार सवाल उठाए गए. नोटबंदी का एजेंडा जिस तरह कालेधन से ई-पेमेंट पर आया, उससे लोगों को ये भी लगा कि उन्हें मूर्ख बनाने की कोशिश हुई. अब एक मीडिया रिपोर्ट आई है जिसके मुताबिक इस बात की संभावना है कि रिजर्व बैंक ने रघुराम राजन के गवर्नर रहते उर्जित पटेल के दस्तखत वाले नोट छाप दिए हों.

हर नोट एक कागज़ का टुकड़ा बस होता है. इसकी कीमत उस गारंटी से होती है जो केंद्र सरकार देती है. ‘ मैं धारक को…’ वाली लाइन के नीचे रिजर्व बैंक गवर्नर का दस्तखत इस बात की तस्दीक करता है. एक गवर्नर के कार्यकाल में छपने वाले नोटों पर उसके दस्तखत होते हैं.

गवर्नर पद के लिए उर्जित का नाम 21 अगस्त को सामने आया था. उन्होंने गवर्नर पद का चार्ज 4 सितंबर को लिया. लेकिन ‘हिंदुस्तान टाइम्स’  के हवाले से खबर है कि रिज़र्व बैंक के दो प्रेस में 2000 के नोट छापने के ‘प्रारंभिक कदम’ 22 अगस्त 2016 को ही उठाए लिए गए थे. इस तरह कम से कम कुछ नोटों पर रघुराम राजन के दस्तखत होने चाहिए थे.

एक बात ये भी है कि रिजर्व बैंक को 2000 के नए नोटों को छापने की अनुमति केंद्र सरकार ने 7 जून 2016 को ही दे दी थी. इसके बाद नई सीरीज़ छापने की तैयारी शुरू कर दी थी. आमतौर पर नए नोट छापने का आदेश मिलते ही प्रेस में छपाई शुरू हो जाती है. ये सब खुद रिजर्व बैंक ने दिसंबर में एक संसद समीति को बताया था.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट में एक बात और सामने आई है. 500 के नए नोटों की छपाई 23 नवंबर को ही शुरू हुई. साफ है कि नोटबंदी की घोषणा के वक्त सरकार (और रिज़र्व बैंक का भी) ध्यान केवल 2000 के नोट छापने पर था. इस से बाज़ार में चिल्लर की जो कमी हुई, उस पर पर्याप्त लिखा जा चुका है.

इस बात से दो महत्वपू्र्ण सवाल खड़े होते हैंः

पहला ये कि क्या नोटों पर पटेल के दस्तखत होने से किसी नियम की अनदेखी हुई?

दूसरा ये कि रघुराम राजन का जाना तय होने के बाद बड़े लंबे समय तक इस बात पर संशय था कि उनकी जगह कौन लेगा. राजन के रिटायर होने की तारीख के बहुत नज़दीक आने पर ही उर्जित का नाम सामने आया. यदि मीडिया रिपोर्ट में जताई संभावना वाकई में सच है तो क्या सरकार ने गवर्नर पद की अपनी पसंद जानबूझ कर लोगों से छुपाई? ऐसा क्यों हुआ?

रिज़र्व बैंक एक महत्वपूर्ण संस्था है जिसके काम करने के तरीके पर पिछले दिनों कई प्रश्न उठे हैं. खासकर इस बात पर कि कहीं बैंक सरकार के प्रभाव में तो काम नहीं कर रहा, जिसका डर जताया जा रहा है.

ग्रीन कार्ड के लिए हर सप्ताह 3 भारतीय खर्च कर रहे 5 लाख डॉलर

ग्रीन कार्ड के लिए हर सप्ताह 3 भारतीय खर्च कर रहे 5 लाख डॉलर

अमेरिका में रहने और वहां की जिंदगी जीने के सपने को पूरा करने के लिए औसतन हर सप्ताह 3 भारतीय 5 डॉलर खर्च कर रहे हैं। यह पैसा ईबी-5 इन्वेस्टर वीजा प्रोग्राम के तहत ग्रीन कार्ड पाने के लिए खर्च किया जा रहा है। ईबी-5 विदेशी नागरिकों और उनके परिवार (उनके 21 साल तक के बच्चे) को ग्रीन कार्ड और स्थायी रेजिडेंसी उपलब्ध कराता है।

ग्रीन कार्ड और स्थायी रेजिडेंसी पाने के दो तरीके हैं। पहला, 10 लाख डॉलर के निवेश के साथ बिजनस शुरू करना और कम से कम 10 लोगों के लिए फुल टाइम रोजगार पैदा करना। दूसरा तरीका सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त ईबी-5 बिजनस में 5 लाख डॉलर यानी 3.4 करोड़ रुपये का निवेश करना और ग्रामीण क्षेत्र में 10 या उससे अधिक लोगों को फुल टाइम जॉब देना।

एलसीआर कैपिटल पार्टनर्स के सह-संस्थापक रोहेलियो कासरेस ने बताया, 'हमने छोटे से वक्त में 210 निवेशकों को जोड़ा है और इसमें 42 भारतीय हैं। ईबी-5 प्रोग्राम के लिए बियान, रिलायंस, आदित्य बिड़ला और मैककिन्सी के टॉप एक्जक्युटिव ने भी अपनी रुचि दिखाई है। वे नहीं चाहते कि उनके बच्चे अमेरिका में नौकरी के लिए अनिश्चतता का सामना करें।' एलसीआर कैपिटल पार्टनर्स इन्वेस्ट ऐंड इमिग्रेशन कंसल्टेंसी है जो निवेशकों के पैसे डंकिन डोनट्स और फोर सीजन्स में निवेश करता है।

वह बताते हैं कि मौजूदा समय में ईबी-5 के लिए यह हड़बड़ी दो वजहों से है,पहला ट्रंप प्रशासन द्वारा एच-1बी पर नई नीति को लाने के संकेत देने और अप्रैल में ईबी-5 वीजा प्रोग्राम का एक्सपायर हो जाना है। पिछले सप्ताह यूनाइटे स्टेट्स सिटिजनशिप ऐंड इमिग्रेशन सर्विसेज (यूएससीआईएस) ने ईबी-5 निवेशकों के वीजा प्रोग्राम में बदलाव का प्रस्ताव रखा है, जिसमें निवेश की राशि 5 लाख डॉलर से 13.5 लाख डॉलर बढ़ाया जाना भी शामिल है।

कासरेस ने बताया, 'कुछ सालों में यूएस वीजा के लिए अन्य विकल्प कम हुए हैं। हर साल भारतीयों के ईबी-5 के तहत मिलने वाले ग्रीन कार्ड की संख्या में करीब 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।' बता दें कि अगर निवेश के बावजूद अगर लोगों के लिए रोजगार का सृजन नहीं हो पाता तो ग्रीन कार्ड रिजेक्ट किए जाने का भी प्रावधना है। निवेश के दो साल के भीतर ही निवेशकों को वीजा अप्रूव कर दिया जाता है। 2015 में 8,156 चीनी नागरिकों को वीजा जारी किया गया था, जबकि उसी अवधि में सिर्फ 111 भारतीयों को ही वीजा मिल पाया है।
संकलन
न्यूज़ मिडिया समाचार पत्र

प्रस्तुति
पं. एल.के.शर्मा
(अधिवक्ता)