2/19/2017

'त्याग का गुणगान कर आप अपनी मां को बेवकूफ बनाते हैं'

आटा सानते वक़्त मां जिस तरह सूखे आटे का पहाड़ बना, उसमें गड्ढा कर, धीरे से पानी गिराती थीं, वो जादुई होता था. फिर कुछ ही समय में वो आटा रोटी में तब्दील हो जाता. सूखे आटे का रोटी बन जाना जैसे एक असंभव काम था. जिसे सिर्फ मां ही कर सकती थी. बेतरतीबी से बंधे हुए मां के जूड़े से हमेशा बाल की एक पतली से लट छूट जाया करती जो पसीने से गर्दन में चिपकी रहती. हमारे नीची छत वाले किचन में रोटियां सकते हुए गर्मी बढ़ जाती और मां पसीने से नहा उठती. सब काम निपटा कर मां सुलाने आती. उनके ठंडे, गुलगुले पेट को छूना भी जादुई था.

पर कोई मां से पूछता, उनके लिए इसमें कुछ भी जादुई नहीं था. पेट के मुलायम होने के पीछे एक कहानी थी, बच्चा पैदा करने वाले दर्द, और उसके बाद की गई सर्जरी की. पेट की ठंडक में उनका सूखा हुआ पसीना था जो उन्होंने काम करते हुए बहाया था.
ये सिर्फ एक मां की कहानी नहीं है. मांएं हर घर में होती हैं. हमारे ‘संस्कारी’ परिवारों के अंदर, रोटियां बेलतीं, बच्चे पैदा करतीं. बहू बनतीं, पत्नियां बनतीं. और अपनी मां की सिखाई हुई बातों से अपने पति के घर को जोड़तीं.

जब आप छोटे थे, आप उनकी कद्र नहीं करते. फिर आप बड़े होते हैं. तो पाते हैं आप कितने गलत थे. मां ने आपके लिए कितने त्याग किए. फिर आप कृतज्ञ महसूस करते हैं. मां को गिफ्ट भेजते हैं. उनके लिए पिता से लड़ जाते हैं. उनको साथ तस्वीरें खींचते हैं. मदर्स डे मनाते हैं. तमाम बड़े-बड़े कवियों की मां पर लिखी कविताएं अपनी मां को भेजते हैं. उनके हर त्याग को सलाम करते हुए. और इस तरह आप उनके त्याग को सही ठहरा देते हैं. आपकी मां खुश होती हैं कि उनके त्याग का फल उन्हें मिल गया.

कुछ ऐसे भी होते हैं जो कहते हैं, मां के लिए एक दिन क्यों, सारे दिन मां के होते हैं. और इस तरह तमाम माओं के त्याग जस्टिफाई हो जाते हैं. पुरानी मांएं नई माओं के लिए मिसाल बन जाती हैं.
मां की बड़ाई करना मानो एक फेटिश है. ये आपको खुशी देता है. अगर आप पुरुष हैं, तो समाज में इज्जत कमाने का श्योरशॉट तरीका है मां की इज्जत करना. क्योंकि आप मर्द होते हुए भी मां को समझते हैं, इसे एक बड़ी बात की तरह देखा जाता है.

सोशल मीडिया पर मां के साथ तस्वीर लगा कर आपका मॉरल लेवल ऊंचा हो जाता है. मां जितनी बूढ़ी, मॉरल लेवल उतना ज्यादा. फिर अगर आप नेता या देश के प्रधानमंत्री हैं, तो बात ही क्या हो. लोग कहेंगे, देखो इतना बिजी होते हुए भी मां के लिए समय निकाल लेता है.
मां से थोड़ा कम मॉरल लेवल बहन का होता है. इसीलिए ‘घर में मां बहन नहीं हैं क्या’ कह किसी भी मर्द को आसानी से शर्मिंदा किया जा सकता है. या उसको ‘मां की गाली’ दे कर गुस्सा निकाला जा सकता है. वहीं अपने भाषण में ‘औरतों’ की जगह ‘माताओं और बहनों’ का प्रयोग कर एक ‘ज्यादा’ इज्जतदार आदमी बना जा सकता है. ये शब्द आपको लोगों का फेवरेट बनाते हैं.

मां आपके लिए एक मॉरल शब्द है, क्योंकि आप उसके साथ मॉरल जोड़ देते हैं. जिस मां के बारे में आप फेसबुक पर लिख रहे होते हैं, वो आपको पैदा करने वाली, आपसे प्रेम करने वाली, आपके लिए त्याग करने वाली मां होती है. क्या आप उस मां के बारे में बाखुशी लिख सकते हैं जो अपनी मर्ज़ी से मां नहीं बनी? या जो शादी के पहले प्रेगनेंट हुई? जिसने अबॉर्शन कराया? जो रेप की वजह से मां बनी? क्या आप उस मां की तारीफ़ करते हैं जिसके बच्चे के बाप का पता नहीं होता? जो सेक्स वर्क करने के कारण मां बनी? या जिसने बच्चा पैदा कर अनाथालय में छोड़ दिया? या जिसे दो देशों में युद्ध के समय दुश्मनों ने गैंगरेप कर मां बना दिया? क्या आप सोचते हैं कि जिस वक़्त आपकी मां प्रेगनेंट हुई, उसने प्रेगनेंट होना प्लान भी किया था या नहीं?
आप नहीं सोचते. क्योंकि आप मां होने को सेक्स से जोड़कर नहीं देख पाते. क्योंकि मां का मॉरल लेवल जितना बड़ा होता है, सेक्स का उतना ही कम. बल्कि सेक्स का कोई मॉरल लेवल होता ही नहीं है. जबकि आपकी पैदाइश ही सेक्स के कारण होती है.

आपके दिमाग में मातृत्व की एक छवि है. कि मां दर्द सहन कर आपको दुनिया में लाई. उसने आपको पाल-पोसकर बड़ा किया. क्या आप उस मातृत्व को समझते हैं, जब घर छोड़ कर बाहर पढ़ने आई एक लड़की अपनी सहेली के सीने पर फूट-फूटकर रोती है. और उसकी सहेली उसे चिपका लेती है. जब किसी सस्ते होटल या किसी सीले हुए किराए के कमरे में एक प्रेमी अपनी प्रेमिका से मिलता है और अपना सारा पुरुषत्व गला कर खुद को अपनी प्रेमिका के सीने पर छोड़ देता है. उसकी प्रेमिका उसके सर पर हाथ फेरते हुए जिस मातृत्व को महसूस करती है, उसे समझते हैं आप? नहीं, क्योंकि वो आपके मॉरल खांचे में फिट नहीं होता. उन मूल्यों पर खरा नहीं उतरता जिसकी नींव पर मदर्स डे खड़ा होता है.

जब आप औरतों को पढ़ाने की बात करते हैं, तो ये तर्क देते हैं कि पढ़ी-लिखी लड़की, एक बेहतर मां बनेगी. अपने बच्चों को पढ़ाएगी. और देश की सेवा के लिए बेहतर बच्चे जनेगी. जब आप एक लड़के की पढ़ने की बात करते हैं, तो क्या आप कहते हैं कि वो बेहतर बाप बनेगा?
आज जब मैं आटा सानने बैठती हूं, मुझे मां की याद आती है. लहसुन छीलते हुए मां की उंगलियों से आने वाली महक याद आती है. पार्टी करते वक़्त मां की याद नहीं आती. क्योंकि मां को कभी पार्टियों में झूमते नहीं देखा.

मां, तुम ‘त्याग की मूर्ति’ नहीं, भोली थीं, डरपोक थीं

आपने जब भी मां को याद किया, उसके त्याग को याद किया. लेकिन कभी सवाल किया कि वो ये सारे त्याग क्यों करती रही? क्यों उसने अपनी मर्ज़ी का खाना नहीं बनाया? क्यों उसने कभी नहीं कहा मैं सिर्फ तब खाना बनाउंगी, जब जी करेगा. क्यों उसने सर पर पल्लू रखने पर सवाल नहीं उठाया? क्यों अपनी सास की हर बात मानती रही? क्यों नौकरों की तरह अपने पति की सेवा करती रही? क्यों सबको खिलाकर ही खाया? क्यों कभी नहीं कहा, बहुत भूख लगी है, ज़रा चाट खा कर आती हूं? उसने क्यों अपने जीवन को वैसे नहीं जिया, जैसे आप जी रहे हैं?

क्यों आप अपनी मां से नहीं कहते, मां, तुम भोली थीं. तुम दूसरी मांओं की तरह डरपोक थीं. जो तुमने जिया नहीं.
जितनी बार आप उसके त्याग का गुणगान करते हैं, आप अपनी मां को बेवकूफ बनाते हैं. और सिर्फ आपने ही नहीं, दुनिया की तमाम होने वाली मांओं को भी. उन मांओं की बेइज्जती करते हैं, जो आपके मॉरल खांचे में फिट नहीं होतीं. उन औरतों की बेइज्जती करते हैं जो मां नहीं बनना चाहतीं.

संकलन 

न्यूज़ मिडिया,समाचार पत्र

आपका
पं. एल.के.शर्मा
अधिवक्ता,लेखक,प्रद्यापक,समाजसेवी।