11/18/2016

कहीं देश दिवालिया तो नहीं हो रहा ,जिसको छिपाने के लिए नोट-बंदी की नोटंकी चल रही है

बात सब जानते है की मोदी गरीबी मिटाने में ,महंगाई को कम करने में विफल रही , बेरोजगारी को मोदी सरकार कम नहीं कर पाई है , यही कारण रहा की मोदी सरकार कभी भी शासन में कम और ध्यान- भंग प्रक्रिया में जयादा लगी रही , कभी रोहित वेमुला की संस्थानिक हत्या हुई , कभी जे एन यु के माध्यम से राष्ट्रवाद को जगाने की कोशिस की गई तो गो आतंक के जरिये हिन्दू वाद , कैराना मुजफरनगर आदि सब होता रहा , और अंत में अपनी पुरानी चाल चलते हुए उडी का हमला करा दिया गया और उसके बाद सैनिको की लाशो का तमाशा दिखा दिखा अपने पक्ष में राष्ट्रवाद को जगाने लग गए और इसी बीच मोदी अपने पूंजीपति आकाओं के पक्ष में निर्णय लेते रहे और देश की अर्थ वाव्यस्था पूरी तरह चरमराने लगी और हालात दिलालियापन तक पहुँच गये।

भारत के इन आर्थिक हालातो को छिपाना बहुत मुश्किल रहा और इसलिए आनन् फानन में मोदी ने अपनी पुरानी चाल चलते हुए नोट्बंदी का आदेश जारी कर दिया और यह निर्णय भी अपने आप में एक अकेले श्री मान मोदी जी का था।

नोटबंदी को लेकर पूरे देश में अफरातफरी का माहौल है, मौतों का आकड़ा लगभग 50 तक पहुँच चुका है। यह वह आकड़ें हैं जो रिपोर्ट हो पाएं हैं वास्तिक आकड़ों का कोई खुलासा नहीं। यूँ अचानक से नोट बंदी के फैसले के पीछे की वजह बताते हुए वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने अपनी वाल पर लिखा है कि

क्या आपको अब भी नोटबंदी का मतलब समझ में नहीं आ रहा है? वित्त मंत्रालय में राज्य मंत्री(श्री संतोष कुमार गंगवार)1- 31 मार्च, 2016 की स्थिति के अनुसार, सरकारी क्षेत्र के बैंकों(पीएसबी) के शीर्ष 100 उधारकर्ताओं की बकाया राशि 13,71,885 करोड रूपये थी।

2-सरकारी क्षेत्रों के बैंकों की सकल अनर्जक आस्तियां 2,16,739 करोड रुपये (वित्तीय वर्ष 2014 के लिए), 2,67,065 करोड रुपये (वित्तीय वर्ष 2015 के लिए) और 4,76,816 करोड़ रुपये (वित्तीय वर्ष 2016 के लिए) थी।
वित्त मंत्रालय का राज्यसभा में जवाब है। सवाल संख्या 2506. जवाब देने की तारीख 9 अगस्त, 2016. मोदी सरकार बनने के बाद सरकारी बैंकों की लूट किस तरह दोगुनी हो गई, यह सरकार ख़ुद बता रही है।

बाज़ार में कुल करेंसी लगभग 18 लाख करोड़ है। उसमें से लगभग पौने पाँच लाख करोड़ कंपनियों ने दबा लिए हैं, जिनके लौटने की उम्मीद भी नहीं है। इसकी भरपाई के लिए हुई है नोटबंदी।

नोटबंदी में अब तक कोई घोटाला नहीं हुआ है। घोटाला जनवरी-फ़रवरी महीने में होगा जब RBI उतने नोट छापेगी, जितने कि बैंकों में वापस नहीं लौट पाए हैं। सरकार इस रक़म को अपनी आमदनी के तौर पर दिखाएगी। यह रक़म पाँच लाख करोड़ तक हो सकती है।

उन नए छापे गए नोटों की लूट भारतीय आर्थिक इतिहास की सबसे बड़ी लूट होगी। इसका बड़ा हिस्सा बड़ी कंपनियों के पास जाएगा। उनका क़र्ज़ माफ होगा। इस वजह से कंगाल हो चुके सरकारी बैंकों में नए सिरे से नक़दी डाली जाएगी।
मिडिल क्लास को ख़ुश रखने के लिए इनकम टैक्स की छूट की सीमा बढाई जाएगी और टैक्स दर में थोड़ी कटौती होना भी मुमकिन है। उस लूट की तलछट पर चंद नोट ग़रीबों के खाते में भी आ सकते है।

सवाल यह है की काला धन की समस्या को दूर करने के लिए मोदी या राजनैतिक पार्टी अपने आप से शुरू क्यों नहीं करते जैसे किसी भी पार्टी का पैन कार्ड नहीं ये लोग अपनी आय के न तो श्रोत बताते है और न ही ऑडिट करते है ?? वरिष्ट पत्रकार ने इन्ही बातो को राष्ट्रवाद और काले धन पर बार बार उठाया है

एक और वरिश पत्रकार प्रकाश रे ने यह बताया की भारत की कुल सम्पति ka 70 % भाग केवल १० % लोगो के पास है
अगर सच में सरकार कला धन वापिस लाना चाहती है तो सबसे पहले पूंजीपतियो से वैट और टैक्स वसूल ले और आम आदमी के पैसे को अपना बना कर दिखा कर दुसरे देशो और देश में भ्रामकता न फैलाए ।