आज से 36 साल पहले की बात है ये. दिन था 23 जून 1980 का. सुबह का वक्त. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के घर से एक गाड़ी बाहर निकली. हरे रंग की मेटाडोर. चला रहे थे उनके छोटे बेटे संजय गांधी. अमेठी से सांसद. और एक महीने पहले ही कांग्रेस के महासचिव बने. मगर संजय को अपनी सत्ता और शक्ति के लिए इन पदों की दरकार नहीं थी. सब जानते थे कि पिछले पांच बरस से वही कांग्रेस के सर्वेसर्वा थे.
बहरहाल. संजय घर से निकले. जल्दी में मां को बाय भी नहीं बोला. बेटा वरुण सो रहा था. 3 महीने 10 दिन का बच्चा. पत्नी मेनका उसे संभालने में लगी थीं.
संजय पहुंचे एक किलोमीटर दूर सफदरजंग एयरपोर्ट. यहां उनका इंतजार कर रहे थे दिल्ली फ्लाइंग क्लब के चीफ इन्स्ट्रक्टर सुभाष सक्सेना. और एक मशीन. लाल रंग की शोख चिड़िया. एक नया एयरक्राफ्ट. पिट्स एस 2 ए. हल्का इंजन. कलाबाजी खाने के लिए मुफीद विंग्स.
बस एक चीज मुफीद नहीं थी. संजय का रवैया. सियासत की तरह फ्लाइंग में भी वह दुस्साहस की हद तक लापरवाह और जोखिम लेने वाले थे. अकसर सुरक्षा नियमों को तोड़ते थे. कहने वाले तो ये भी कहते हैं कि जूतों के बजाय कोल्हापुरी चप्पलों में ही प्लेन उड़ाने लग जाते थे. संजय की मां इंदिरा को तमाम ब्यूरोक्रेट्स और नेताओं ने इस बारे में बताया था. मगर बात संजय की थी. जिसकी जिद के आगे पहले भी एक बार बेबस मां ने पूरे देश को रेहन रख दिया था. यहां तो सिर्फ कुछ नियमों भर की बात थी.
मगर नहीं, बात दो जिंदगियों की थी. जो सुबह 7.15 बजे उड़ान भर चुकी थीं. कुछ ही मिनटों में वह अशोका होटल के ऊपर गोल नाच रहे थे. एयरक्राफ्ट अपने नाम के मुताबिक काम दे रहा था. लेकिन 10 मिनट बीतने के बाद संजय इसे खतरनाक निचाई पर लाकर गोते खिलाने लगे. और उसके भी कुछ मिनटों के बाद उनका नियंत्रण खत्म हो गया.
और फिर घर्र घर्र की आवाज करता हुआ डिप्लोमैटिक एनक्लेव में संजय गांधी के घर से कुछ ही मिनटों की एरियल दूरी पर पिट्स क्रैश कर गया.
15 मिनट में मौके पर एंबुलैंस और एयरक्राफ्ट पहुंचे. डालियां काटी गईं. प्लेन के मलबे के बीच से संजय और सुभाष की लाश निकाली गई. ब्रेन हैमरेज के चलते दोनों की मौके पर ही मौत हो गई थी. उन्हें वहीं स्ट्रैचर पर लाल कंबल से ढंक रख दिया गया. कुछ ही मिनटों में वहां पर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पहुंचीं. अपने सचिव आरके धवन के साथ. कार से उतरते ही इंदिरा दौड़ने लगीं. फिर कुछ संभलीं. मगर बेटे की शकल देखने के बाद फूट फूट कर रोने लगीं.
इंदिरा को संभालने वाला कोई नहीं था. उनकी ताकत छोटा बेटा और राजनीतिक उत्तराधिकारी संजय एक लाश बन चुका था. संजय की बीवी मेनका घर पर थी. बड़ा बेटा राजीव, बहू सोनिया और उनके बच्चे राहुल और प्रियंका इटली में छुट्टियां मना रहे थे.
पूरा देश सकते में था. सब अपने अपने ढंग से संजय को याद कर रहे थे. विरोधी दलों के लिए वह इमरजेंसी का खलनायक था. जिसकी पहली जिद थी जनता कार बनाना. मारूति के नाम से. और इस सपने के लिए मां इंदिरा ने बैकों की तिजोरियां खुलवा दीं. सरकार की हर मुमकिन मदद दी. कार फिर भी नहीं बनी. मगर बेटा तब तक सरकारें बनाने बिगाड़ने में लग गया था. इमरजेंसी के दौरान उसने कभी सेंसरशिप की आड़ में पत्रकारों को धमकाया. तो कभी पूरी की पूरी फिल्म की रील ही जलवा दी. तुर्कमान गेट पर मलिन बस्ती हटाने के लिए गोलियां चलीं. नसबंदी कार्यक्रम के लिए जबरदस्ती की गई.
मगर पब्लिक जबर थी. मसट्ट मारे बैठी रही. और जब बारी आई. तो ऐसा पलटवार किया कि मां इंदिरा रायबरेली से और बेटा संजय अमेठी से बुरी तरह चुनाव हार गए.
इसके बाद शुरू हुआ ट्रायल का दौर. संजय गांधी पर एक के बाद एक मुकदमे लदने लगे. उनका तमाम वक्त पेशी में बीतता. मगर इसे भी संजय ने शक्ति प्रदर्शन का जरिया बना लिया. अदालतों में उनके बाहुबली युवा समर्थकों का हूजूम जुटता. ऐसा लगता गोया कोर्ट रूम नहीं संजय का दरबार सज रहा हो.
एक रोज 11 महीने की सुनवाई के बाद दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट के जज वोहरा ने उन्हें
किस्सा कुर्सी का मामले में एक महीने की सजा सुना दी. और इसके बाद जमानत भी नहीं दी. संजय गांधी, जो एक साल पहले तक देश के हर खड़कते पत्ते को इजाजत देता था, दिल्ली की जेल में था. कुछ रोज बाद उन्हें ऊपरी कोर्ट से जमानत मिली.
समय बदला. लोग बदले. सत्ता बदली और संजय भी बदले.
1980 के चुनाव में उन्होंने मम्मी को वापस पीएम बनाने के लिए सब पत्ते सही फेंके. युवाओं को जमकर टिकट बांटे गए. जनता, सत्तारूढ़ जनता पार्टी के बंटरबांट से तंग थी. कांग्रेस केंद्र में वापस लौटी. और लौटा संजय का रसूख. वह पहला और इकलौता चुनाव भी तभी जीते. अमेठी से ही. जल्द ही उन्होंने मम्मी को एक काम के लिए राजी कर लिया. 9 ऐसे राज्यों में जहां कांग्रेस सत्ता में नहीं थी, विधानसभा भंग करने का फैसला किया गया. कहा गया कि देश ने नया जनादेश दिया है. इन्हें भी नए सिरे से इसे मानना होगा. चुनाव हुए तो 8 राज्यों में कांग्रेस सत्ता में वापस लौटी. इसका श्रेय भी संजय को दिया गया. उन्होंने सभी जगह अपने लोगों को सीएम की कुर्सी पर बैठाया.
संजय के राज्यारोहण की तैयारी शुरू हो चुकी थी. वह अपना राजनीतिक कौशल जाहिर कर चुके थे. ये तय था कि अब कांग्रेस में वही होगा जो संजय चाहेंगे. इसलिए तमाम बूढ़े पुराने नेता भी घुटने मोड़कर दंडवत करने लगे थे. मुख्यमंत्रियों को तो अपनी ऑक्सीजन ही यहीं से मिलती थी.
और तब अचानक संजय चल बसे. सबके समीकऱण हिल गए. मगर जल्द ही समझ आ गया कि संजय के बाद बारी राजीव गांधी की है. जो नहीं समझे, वे संजय की नाराज विधवा मेनका गांधी संग हो लिए. मेनका ने संजय विचार मंच नाम से पार्टी बनाई. अलग चुनाव लड़ा. 1984 में अमेठी से राजीव को चुनौती देने पहुंचीं और खेत रहीं. मगर जनता दल के उदय के साथ उनकी किस्मत भी चमकी. बाद में वह बीजेपी में आ गईं. और बेटा वरुण भी कमल सहारे खिलने की कोशिशों में लगा है.
संजय गांधी की मौत भी उनकी जिंदगी की तरह थी. अचानक. क्रूर. सबको चौंकाने वाली.
और उनका जनाजा उनके राजनीतिक कद की गवाही दे रहा था. हर राज्य का मुख्यमंत्री चिता के 200 मीटर के दायरे में मौजूद था. दिल्ली में मौजूद हर देश का प्रतिनिधि कतार लगा कर खड़ा था. रेडियो पर प्रोटोकॉल तोड़ते हुए शोक धुन बज रही थी. अगले रोज यानी 24 जून को मद्रास में पूर्व राष्ट्रपति वीवी गिरि का भी निधन हुआ था. मगर उस तरफ किसका ध्यान होता.
संजय ने आखिरी बार अपनी तरफ पूरा ध्यान खींचा. और चले गए. मारुति बनाने की चाह रखने वाला मारुति नंदन की तरह हवा में उड़ना चाह रहा था. मगर वो ईश्वर थे. उन्हें गिरने का भय नहीं होता. ये इंसान था. जिसके अंत के लिए एक चूक काफी थी.
7/10/2016
पेड़ काटकर उतारी गई थी इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी की लाश!
देश की हर ATM लाइन में दिखते हैं ये 15 लोग
ATM बनाए गए बैंक की लाइन में खपने वाला वक़्त बचाने को. लेकिन ATM के कॉन्सेप्ट ने हमारे आस-पास के लोगों को भी बदल दिया. ATM जाते वक्त आदमी थोड़ा सतर्क हो जाता है और थोड़ा शक्की. अगली बार आप पैसे निकालने जाएं तो नजर घुमाकर देखिएगा. ये 15 लोग हर एटीएम के बाहर खड़े मिलेंगे.
1. फुरसतिए
वे लोग जो ATM के सामने फुरसत में वक़्त बिताते हैं. उन्हें देख लगता है नानी के घर गर्मी की छुट्टी मेें आए हैं. हमको पता है. एसी के मजे लेने के लिए आते हैं ये जंतु.
2. शक्की मिजाज
कुछ लोग अपने अगल-बगल खड़े लोगों को घूरते हैं. उन्हें लगता है कि बाकी लोग, लोग नहीं गुंडे हैं. लुटेरे हैं. और जैसे ही हम पइसा निकालेंगे ये तमंचा सटाकर लूट लेंगे. ऐसे लोग जब मेरी तरफ देखते हैं तो लगता है कि महीने में एकाध दफा दाढ़ी बना लेना कितना जरूरी होता है.
3. भुलक्कड़ बुद्धू
ख़ुदा-न-ख़ास्ता किसी भले दिन जल्दी में हुए तो आपसे ठीक पहले वाले भाई साहब को अपना पासवर्ड भूल जाता है.
4. हड़बड़ चंद
एक बंदा इतना हड़बड़ाया सा पैसे निकाल रहा होता है, जैसे उसे सत्तर के दशक की फिल्मों वाले किसी डॉक्टर ने कह के भेजा है, ‘अगर आप आधे घंटे में डेढ़ लाख रुपयों का बंदोबस्त कर सकें, तभी हम आपके भाई की जान बचा सकते हैं.’
5. सीखने-सिखाने को आतुर
एक वो जोड़ा होता है जिसमे पहला खुद एक बार पैसे निकालकर दिखाता है और फिर दूसरे को यही दोहराने को कहता है. दो-तीन रीटेक के बाद ट्यूटोरियल ख़त्म होता है. 15 मिनट बाद किसी गहरी खाई में कूद पड़ने का जी करता है जब दोनों कुल जमा तीन सौ रुपये निकाल के मशीन छोड़ते हैं.
6. बहुतै केयरलेस
ऐसे ही किसी ATM पर आपका सामना उस लड़की से होता है जो पैसे निकालने के बाद अक्सर अपना कार्ड मशीन में ही भूल जाती है. यहीं आपको जिज्ञासुओं के दर्शन भी होते हैं ये वो शख्स होता है जो एक बार पैसे निकालने से पहले और दूसरी बार पैसे निकालने के बाद बैलेंस चेक करता है.
7. भयभीत
एक वो सयाने से अंकल होते हैं जो इतना डर-डरकर हर बटन दबाते हैं कि कहीं कोई गलत बटन दबा देने पर उनके पैसे किसी और के अकाउंट में न चले जाएं.
8. बेसब्र
ऐसे लोग भी आते हैं जिन्हें इतना सब्र नहीं होता कि पैसे निकल आने दें. इनका बस चले तो पैसे निकलने की जगह से हाथ डालकर गड्डी बटोर लें.
9. कैमरा फ्रेंडली
एक वो जिन्हें ATM और पैसों से ज्यादा रुचि सामने लगे कैमरे में होती है. ये कैमरे की ओर देखते हुए छोटा-मोटा सा ऑडिशन ही दे डालते हैं. इन्हें लगता है कैमरे की दूसरी तरफ आदित्य चोपड़ा और अनुराग कश्यप ही बैठे हैं.
10. बेरहम
एक वो जो ATM से ट्रांजैक्शन की रसीद निकलते ही उसे बिन में ऐसे मसलकर फेंकते हैं मानो एक्स-गर्लफ्रेंड का वैलेंटाइंस डे पर दिया ‘लव यू फॉरेवर’ वाला कार्ड हो.
11. बटोरू चंद
दूसरे वो जो ATM से ट्रांजैक्शन की रसीद निकलते ही उसे पर्स में ऐसे संभालकर रखते हैं मानो अगली बार वो पर्ची मंगतराम पंसेरी की दुकान पर दिखाने के बदले आधा पाव आमचूर में दस रुपए छूट मिलेगी.
12. प्रोग्रामिंग एक्सपर्ट
कुछ लोग अपने व्यवहार से एटीएम ऑपरेट करने में इतनी दक्षता दिखाते हैं,कि उन्हें देखकर लगता है एटीएम से पैसे नहीं निकाल रहे बल्कि जावा में प्रोग्रामिंग कर रहे हैं.
13. पलटू
एक वो जो इस तरह से बार-बार पलटकर पीछे देखता है मानो सकल ब्रह्मांड का ध्यान इस वक़्त सिर्फ उस पर ही लगा हो. इन्हें देख शक होता है कहीं ये CIA के एजेंट तो नहीं जो ATM से पैसों की बजाय हथगोले निकालने आए हैं.
14. कैंसल प्रेमी
वहीं एक शख्स ऐसा होता है,जिसका सारा ध्यान कैंसल दबाने में लगा होता है. आपको जल्दी हो और अगला भीतर कैंसल पर कैंसल दबाए जा रहा हो. तो ऐसा लगता है मानो किसी क़त्ल के बाद अगला फिंगरप्रिंट मिटा रहा है.
15 . पूछताछ को आतुर
इन सबसे जूझकर, बचकर और छूटकर आप पैसे निकालते हैं और जैसे ही बाहर निकलते हैं आपका सामना उस लड़के से होता है जो हर बाहर आने वाले से एक ही सवाल कर रहा होता है. “चल रहा है न?”