11/12/2016

अब आने वाला है भयंकर मंदी का दौर

दोस्तों आने वाले समय में भंयकर मंदी के दौर के लिए तैयार रहें। क्योंकि कालेधन से बनी अर्थव्यवस्था के ध्वस्त होने के दूरगामी परिणाम होने वाले हैं।

जब तक नगदी जमा करने और उसके इस्तेमाल के रास्ते खुले रहेंगे, काले धन पर वास्तविक रूप से अंकुश लग पाने की संभावना कम है।

यह याद करना होगा कि वर्ष 1978 में मोरारजी देसाई सरकार द्वारा उठाए गए इसी तरह के कदम से कोई खास लाभ नहीं मिल पाया था। लगभग 40 साल बीत चुके हैं, और आज हमारी व्यवस्था में संभवतः पुराने समय की तुलना में ज़्यादा काला धन है. अगर कुछ बदला है, तो वह नगदी जमा करने के तरीके और वजहें।

अब हमारे पास भले ही 100 प्रतिशत का असामान्य टैक्स स्लैब नहीं है, जो '70 के दशक में हुआ करता था, लेकिन अब हमारे पास पूरी तरह विकसित हो चुकी नगदी की अर्थव्यवस्था है, जिसके बिना ज़मीन-जायदाद खरीदना तो असंभव ही हो जाएगा।

राजनैतिक दल चुनाव कैसे लड़ पाएंगे या हमारे देश के बाबू रिटायरमेंट के बाद के लाभ कैसे हासिल कर पाएंगे, अगर नोटों से भरे बोरों का अस्तित्व न हो...? और उन टैक्स कलेक्टरों की तो बात ही न करें, जिनकी 'सेवाओं' के बदले पांच से 10 फीसदी का रेट तय हो गया लगता है।

अब विमुद्रीकरण से 'काले धन' की इन तिजोरियों पर कड़ी चोट पड़ने वाली थी, अगर रातोंरात एक नया 'शानदार' उद्योग पैदा न हो गया होता - जिसके तहत 20 फीसदी की फीस लेकर पुराने नोटों के बदले नए नोट दिए जाने की पेशकश की जा रही है।

हम देश में मौजूद उस मनी-लॉन्डरिंग सेक्टर को भूल जाते हैं, जो अनगिनत गुमनाम शेल कंपनियों में छोटी-छोटी रकमें जमा रखता है, और मरणासन्न अवस्था में पहुंच चुके इस सेक्टर को सरकार के इस फैसले की बदौलत एक बोनस हासिल हो गया है।

इस सच्चाई को सभी ने कबूल किया है कि यह एक साहसिक कदम है, लेकिन काले धन पर इसका कोई दूरगामी प्रभाव हो पाएगा, इसमें संदेह है।

नए नोटों के अच्छी तरह प्रचलन में आने तक आने वाले कुछ महीनों में कारोबार के काफी सिकुड़ जाने की आशंका है, सो, राज्य विधानसभा चुनावों से ऐन पहले ऐसा कदम उठाया जाना किसी भी राजनैतिक मानक से खतरनाक हो सकता है।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह खतरा सोच-समझकर, नाप-तौलकर उठाया गया है, जिसका एक मकसद विपक्षी पार्टियो के चुनावी फंड को तबाह कर देना भी है। बहरहाल, जब तक नगदी की मांग बनी रहेगी, और उसे इस्तेमाल किया जा सकेगा, इसका इस्तेमाल होता ही रहेगा।

...तो हम काले धन की 'उपज' को रोकने और रिश्वतखोरी पर लगाम लगाने के लिए तकनीक का इस्तेमाल क्यों नहीं कर रहे हैं...?

हम निर्माण के क्षेत्र में ज़्यादा खर्च दिखाने और बड़े-बड़े व्यापारों में किए जाने वाले आयात को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने पर ज़्यादा कड़े कदम क्यों नहीं उठाते, ताकि लाखों-करोड़ों रुपये विदेशों में छिपाए न रखें जा सकें।

अगर सरकार भारतीय बैंकों के नॉन-परफॉरमिंग एसेट (एनपीए) की जांच करे, और सचमुच फॉरेन्सिक सबूतों पर कार्रवाई करे, तो शायद ज़्यादा अहम नतीजे सामने आएंगे।

हमने ज़मीन-जायदाद के क्षेत्र में बोली लगाने के लिए एक पारदर्शी व्यवस्था की स्थापना क्यों नहीं की, जैसा पश्चिमी देशों में होता है, बल्कि हमने तो ग्राहकों को दलालों और बिचौलियों के रहमोकरम पर छोड़ा हुआ है।

नगदी के लेन-देन को खत्म कर देने की जगह हमने एक नियामक लाने का फैसला किया, जिसके आदेशों की पालना होने में सालों का वक्त लगना तय है, क्योंकि न्यायिक व्यवस्था पहले से ही ज़रूरत से ज़्यादा केसों के दबाव में है।

सोने तथा जेवरों के प्रति भारतीयों की दीवानगी से सारी दुनिया परिचित है, लेकिन आज तक हम उसके निर्माण तथा बिक्री की जांच के लिए बेहतर व्यवस्था नहीं बना पाए हैं।

अंत में, सिर्फ इतना कहना चाहूंगा कि उस पारदर्शी वातावरण में हमारी राजनैतिक व्यवस्था कैसे टिकी रह सकेगी, जहां वोट तो आम आदमी के नाम पर तैयार किए जाते हैं, लेकिन कंपनियों तथा लॉबियों से मिलने वाले राजनैतिक चंदे जिसके सिद्धांतों के खिलाफ हैं।

यह नोटबंदी उस बदलाव के सामने कुछ नहीं जो रुपये में 16 आना वाली व्यवस्था खत्म होने से आया था

यह नोटबंदी उस बदलाव के सामने कुछ नहीं जो रुपये में 16 आना वाली व्यवस्था खत्म होने से आया था

इस बदलाव के साथ ही भारतीय मुद्रा पूरी तरह अंतर्राष्ट्रीय मानकों के मुताबिक हो गई थी.

मंगलवार को केंद्र सरकार द्वारा हजार-पांच सौ के नोट बंद करने का फैसला हैरान करने वाला तो कुछ को अभूतपूर्व लग सकता है. हालांकि भारत में ऐसा पहली बार नहीं हुआ. 1946 में तत्कालीन सरकार ने 1000 और 10,000 रुपये के नोट बंद किए थे. हालांकि इसके बाद 1954 में इन नोटों को फिर से जारी कर दिया गया. इनके साथ 5000 रुपये का नोट भी जारी हुआ था. 1980 के दशक तक ये चलते रहे. फिर 1977 में जब मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी गठबंधन वाली सरकार बनी तो उसने भी काला धन पर लगाम लगाने के मकसद से 1978 में इन नोटों को बंद कर दिया था.

इसमें कोई दोराय नहीं कि इतनी बड़ी आबादी के बीच प्रचलित नोटों को बंद करना कोई छोटा-मोटा बदलाव नहीं है. लेकिन बीते दौर की इन घटनाओं के इतर अगर आपकी जेब में पड़े रुपये की विनिमय दर ही बदल जाए या उससे लेनदेन का तौर-तरीका सरकारी आदेश से परिवर्तित हो जाए तो इसे क्रांतिकारी घटना माना जाना चाहिए. ऐसा भारत में भी हो चुका है और तब हमारे यहां दशकों से चल रही रुपये की आना-पाई प्रणाली को खत्म कर दाशमिक प्रणाली को अपनाया गया था.

आना-पाई प्रणाली को खत्म करने की दिशा में कई दिक्कतें थीं. पहली तो यही कि इतनी विशाल जनसंख्या को इस बदलाव के बारे में जानकारी कैसे दी जाए.

पहली बार अमेरिका ने 1792 में अपनी मुद्रा के लिए दाशमिक प्रणाली (मुद्रा को न्यूनतम मूल्य की दस, सौ या एक हजार इकाइयों में विभाजित करना) अपनाई थी. इसके बाद यह प्रणाली इतनी लोकप्रिय हुई कि ब्रिटेन को छोड़कर यूरोप के सभी देशों ने इसे अपना लिया. भारत में तब एक रुपये में 16 आने (एक आना = चार पैसा, एक पैसा = तीन पाई) प्रणाली प्रचलित थी. इंग्लैंड में चूंकि उस समय इसी से मिलती-जुलती मुद्रा प्रणाली प्रचलित थी इसलिए ब्रिटिश शासन ने भारत में इससे कोई छेड़छाड़ नहीं की.

आजादी के तुरंत बाद भारत में मौद्रिक विनिमय को तर्कसंगत बनाने के लिए इस बात की जरूरत महसूस की जाने लगी थी कि रुपये के लिए दशमलव प्रणाली लागू की जाए. लेकिन यहां दशकों से प्रचलित आना-पाई प्रणाली को एक झटके में खत्म नहीं किया जा सकता था. इस दिशा में सबसे महत्वपूर्ण कदम 1955 में उठाया गया जब संसद ने सिक्का ढलाई संशोधन कानून पारित कर दिया. इसके तहत व्यवस्था दी गई कि रुपये को सौ भागों में विभाजित करके इसकी न्यूनतम इकाई एक पैसा बना दी जाए और नए सिक्कों को इसी आधार (एक पैसे, दो पैसे या तीन पैसे आदि) पर ढाला जाएगा.

इस अधिनियम के पारित होने के बाद भी आना-पाई प्रणाली को खत्म करने की दिशा में कई दिक्कतें थीं. पहली तो यही कि इतनी विशाल जनसंख्या को इस बदलाव के बारे में जानकारी कैसे दी जाए. दूसरी समस्या सरकारी सेवाओं जैसे डाक-तार और रेलवे जैसे विभागों की नई दरें तय करने की थी. इसके अलावा यह भी चिंता का विषय था कि कारोबारियों को आना-पाई प्रणाली खत्म होने के बाद अपने सामानों की मनमानी कीमतें तय करने से कैसे रोका जाए.

तब कलकत्ता में कई लोगों ने नए सिक्कों का विरोध करते हुए कुछ पोस्ट ऑफिसों में आगजनी कर दी. इन लोगों का कहना था कि सरकार उन्हें महंगी कीमत पर पोस्टकार्ड और लिफाफे दे रही है.

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने इन समस्याओं को दूर करने के लिए एक विस्तृत गुणन चार्ट छपवाकर देश के तमाम डाकघरों में उपलब्ध कराए थे ताकि लोग इनके आधार पर मुद्रा विनिमय कर सकें. इन तैयारियों के बाद 1957 में भारत सरकार ने नये सिक्के जारी कर दिए. इन पर ‘नए पैसे’ या ‘नया पैसा’ लिखा था. इन सिक्कों के बाजार में आने के साथ ही देश में कई दिलचस्प घटनाएं भी देखने को मिलीं. कहा जाता है कि नई दिल्ली के जनरल पोस्ट ऑफिस में तब पहले सिक्के को पाने के लिए तकरीबन दस हजार लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई थी. इसे संभालने के लिए विशेष सुरक्षा इंतजाम किए गए थे.

इस पूरे बदलाव में एक बड़ी दिक्कत यह भी थी कि तब कुछ सामानों की कीमत दो आना, एक आना (सवा छह पैसे के बराबर मूल्य), आधा आना या एक पैसा (पुराना) भी थी. नई प्रणाली में इनके लिए सटीक मूल्य का निर्धारण करना असंभव था और इसलिए कीमतों में आंशिक बदलाव हुए. यही वजह थी कि तब कलकत्ता में कई लोगों ने नए सिक्कों का विरोध करते हुए कुछ पोस्ट ऑफिसों में आगजनी कर दी. इन लोगों का कहना था कि सरकार उन्हें महंगी कीमत पर पोस्टकार्ड और लिफाफे दे रही है. हालांकि बाद में स्थितियां धीरे-धीरे सामान्य होती गईं और दो-एक साल के भीतर ही लोग इस नई प्रणाली में भी रच-बस गए. इस बदलाव के साथ भारतीय मुद्रा पूरी तरह अंतर्राष्ट्रीय मानकों के मुताबिक हो गई थी.

1963-64 के आसपास जब नए पैसे पूरी तरह प्रचलन में आ गए तब सरकार ने इन में से नए या नया शब्द हटा लिया. इस बारीक के बदलाव के साथ फिर ये पैसे हाल के सालों तक चलन में रहे.

सौजन्य से
सत्याग्रह डॉट कॉम

माध्यम वर्ग का काला धन

पकड़े गए टैक्स चोर?

जो असली ब्लैक मनी है वो तो उच्च वर्ग की है, वो तो कब की डॉलर बन के फुर्र है स्विट्ज़रलैंड, पनामा, मौरिशिअस, ब्रिटिश द्वीपों के घोंसलो में। इनका बचा पैसा प्रॉपर्टी में सुरक्षित निवेशीत है। बैंकों का जितना भी NPA है, वो इन कारपोरेट घरानों की मेहरबानी है। आप सारे नोट बन्द कर दो, ये क्रेडिट कार्ड या paytm से cashless घर चला लेंगे। इनके लिए सरकारों के पास नीति नहीं है।

निम्न वर्ग के पास ना काला धन है न गौरा धन। उनका निर्धनता से निधन हो जाता है पर धन नही मिलता।

बचा मध्यम वर्ग । कमबख्त 100 रुपये बचाने के चक्कर में बिना बिल के सामान खरीद लेता है। इनकम टैक्स बचाने के लिए बच्चों की फीस की रसीद बढ़वा कर लेता है। यही वो अपराधी है जिसकी बीवी उसकी जेब से 100 रुपये हर हफ्ते चुरा कर फिर उसे 500 या 1000 का बना कर ब्लैक मनी बना कर रखती है। रजिस्ट्री के पैसे बचाने के लिए कम रकम में सौदे दिखाता है। बेटी की शादी के लिए अलग से गुल्लक में ब्लैक मनी रखता है। छोटा व्यापारी होने के नाते ट्रेन में फटे बैग में कपड़े या जूते बेचने के लिए लाता है ताकि सेल्स टैक्स चुरा कर काला धन जमा करता है। यही वो बदमाश वर्ग है जो सर्दी ख़त्म होने पर अगली सर्दी के गर्म कपड़े खरीदता है क्योंकि सीजन समाप्ति पर स्टॉक क्लीयर्न्स सेल जो लगती है। यही अगली सर्दी के लिए स्वेटरों की काला बाज़ारी करता है।
इस अपराधी ,आतंकवादी वर्ग को नियंत्रण में रखना जरूरी है।
अब भगदड़ भी इसी वर्ग में मची है। इसी वर्ग के पास असली काला धन है और इसी पर सरकार की नीति की गाज़ गिरेगी। इसी वर्ग ने मोदी जी को वोट दिया था, बचने ना पाये ये वर्ग मोदी जी। राष्ट्र हित में हम सब आपके साथ हैं। 2000 वाले नोट पर अच्छा gकिया जो चिप न लगाईं वरना ये वर्ग गीला होने पर नोट तीन बार प्रेस कर के सुखाता है। चिप तो ये नामाकूल खराब ही कऱ देते।
वैसे पिछले तीन दिनों में पेट्रोल पम्प में कोई मर्सिडीज़ खड़ी दिखी हो तो मुझे जरूर बताइये...

गुटखा एवं सिगरेट छोड़ने के लिए अपनाइए ये उपाय

लोग नशा छोडना चाहते है पर उनसे छूटता नहीं है! बार-बार वो कहते है हमे मालूम है ये गुटका खाना अच्छा नहीं है लेकिन तलब उठ जाती है तो क्या करे ??? बार-बार लगता है ये बीड़ी सिगरेट पीना अच्छा नहीं है लेकिन तलब उठ जाती है तो क्या करे ? बार-बार महसूस होता है यह शराब पीना अच्छा नहीं है लेकिन तलब हो जाती है तो क्या करे ?

तो आपको बीड़ी सिगरेट की तलब न आए, गुटका खाने के तलब न लगे! शराब पीने की तलब न लगे! इसके लिए बहुत अच्छे दो उपाय है जो आप बहुत आसानी से कर सकते है ! पहला ये की जिनको बार-बार तलब लगती है जो अपनी तलब पर कंट्रोल नहीं कर पाते, नियंत्रण नहीं कर पाते, इसका मतलब उनका मन कमजोर है! तो पहले मन को मजबूत बनाओ!


मन को मजबूत बनाने का सबसे आसान उपाय है पहले थोड़ी देर आराम से बैठ जाओ! आलती पालती मारकर कर बैठ जाओ! जिसको सुख आसन कहते हैं! और फिर अपनी दोनों आँखें बंद कर लो और अपनी दाहिनी नाक बंद कर लो और खाली बायी नाक से सांस भरो और छोड़ो ! फिर सांस भरो और छोड़ो फिर सांस भरो और छोड़ो !

बायीं नाक मे चंद्र नाड़ी होती है और दाई नाक मे सूर्य नाड़ी !चंद्र नाड़ी जितनी सक्रिये (Active) होगी उतना इंसान का मन मजबूत होता है! और इससे संकल्प शक्ति बढ़ती है !चंद्र नाड़ी जीतने सक्रिये होती जाएगी आपकी मन की शक्ति उतनी ही मजबूत होती जाएगी और आप इतने संकल्पवान हो जाएंगे कि जो बात ठान लेंगे उसको बहुत आसानी से कर लेगें !तो पहले रोज सुबह 5 मिनट तक नाक की Right Side को दबा कर Left Side से सांस भरे और छोड़ो! ये तो एक तरीका है और बहुत आसान है!

दूसरा एक तरीका है आपके घर मे एक आयुर्वेदिक ओषधि है जिसको आप सब अच्छे से जानते है और पहचानते हैं! राजीव भाई ने उसका बहुत इस्तेमाल किया है लोगो का नशा छुड्वने के लिए और उस औषधि का नाम है अदरक जो आसानी से सबके घर मे होती है !इस अदरक के टुकड़े कर लो छोटे-छोटे उस मे नींबू निचोड़ दो, थोड़ा सा काला नमक मिला लो, और इसको धूप मे सुखा लो! सुखाने के बाद जब इसका पूरा पानी खतम हो जाए तो इन अदरक के टुकड़ो को अपनी जेब मे रख लो! जब भी दिल करे गुटका खाना है तंबाकू खाना है बीड़ी सिगरेट पीनी है! तो आप एक अदरक का टुकड़ा निकालो मुंह मे रखो और चूसना शुरू कर दो! और यह अदरक ऐसी अद्भुत चीज है कि आप इसे दाँत से काटो मत और सवेरे से शाम तक मुंह मे रखो तो शाम तक आपके मुंह मे सुरक्षित रहता है! जैसे ही इसका रस, लार मे घुलना शुरू हो जाएगा आप देखना इसका चमत्कारी असर होगा, इसको चूसते रहो आपको गुटका खाने की तलब ही नहीं उठेगी! तंबाकू सिगरेट लेने की इच्छा ही नहीं होगी, शराब पीने का मन ही नहीं करेगा!

10 -15 -20 दिन लगातार कर लिया! तो हमेशा के लिए आपका नशा छूट जाएगा! आप बोलेगे ये अदरक में ऐसी क्या चीज है ? अदरक मे एक ऐसी चीज है जिसे हम रसायनशास्त्र (केमिस्ट्री) मे कहते है सल्फर! अदरक मे सल्फर बहुत अधिक मात्रा मे है! और जब हम अदरक को चूसते है जो हमारी लार के साथ मिल कर अंदर जाने लगता है! तो ये सल्फर जब खून मे मिलने लगता है! तो यह अंदर ऐसे हारमोन्स को सक्रिय कर देता है जो हमारे नशा करने की इच्छा को खत्म कर देता है! और विज्ञान की जो रिसर्च है सारी दुनिया मे वो यह मानती है की कोई आदमी नशा तब करता है! जब उसके शरीर मे सल्फर की कमी होती है! तो उसको बार-बार तलब लगती है बीड़ी सिगरेट तंबाकू आदि की! तो सल्फर की मात्रा आप पूरी कर दो बाहर से, ये तलब खत्म हो जाएगी! इसका राजीव भाई ने हजारो लोगो पर परीक्षण किया और बहुत ही सुखद परिणाम सामने आए है! बिना किसी खर्चे के शराब छूट जाती है बीड़ी सिगरेट शराब गुटका आदि छूट जाता है! तो आप इसका प्रयोग अवश्य करे !