कई बार ऐसा होता है, आपके मोबाइल फ़ोन की घंटी बजती है. या फ़ोन आपकी जेब में वाइब्रेट करता है. आप तुरंत अपना फ़ोन निकाल कर देखते हैं. कोई कॉल नहीं. कोई मैसेज नहीं. लेकिन आपने तो एकदम साफ़ सुना था. कोई भूत-वूत तो कॉल नहीं किया था? ज़रूर कान बज रहे होंगे. ये जो हुआ ना आपके साथ अभी-अभी, इसमें टेंशन वाली बात नहीं है. इसको कहते हैं फैंटम फ़ोन सिंड्रोम. अरे, घबराने वाली कोई बात नहीं है. ये कोई बीमारी नहीं है. खाली इसका नाम ही इतना भारी है. कि अच्छा-भला आदमी सोचे कौन सा रोग लग गया बैठे-बिठाए.
क्योंकि आप और हम रोबोट बन चुके हैं
आप अपने मोबाइल फ़ोन के बिना कितनी देर रह सकते हैं ? एक-दो-तीन घंटे? मिनट? लेकिन उस दौरान भी तो आपका मन अपने फ़ोन में ही लगा रहता है. क्या है कि आजकल के टाइम में हम लोग बहुत बिज़ी लोग हैं. एक से एक इम्पोर्टेन्ट कॉल आते हैं. हर समय फ़ोन पर टिपिर-टिपिर चैट करते हैं. जेब में जो फ़ोन रखा है वो हमारे शरीर का हिस्सा ही बन जाता है. और हम लोग उसके गुलाम. हमारे दिमाग में जब कोई बात चल रही होती है. हमको लगता रहता है कि इस ख़ास बात से जुड़ा कोई कॉल आएगा. इसीलिए बार-बार फील होता है कि फ़ोन अब बजा कि तब. और हम अपना फ़ोन निकाल कर बार-बार चेक करते रहते हैं.
जब आप बहुत स्ट्रेस या टेंशन में होते हैं. तब भी लगता है कि फ़ोन बज रहा है. वो इसलिए क्योंकि आप उस जगह, उस माहौल से भाग जाना चाहते हैं. और फ़ोन पर किसी अपने से बात करना आपको उस टेंशन से दूर करने का जरिया लगता है. लेकिन असल में ये एंग्जायटी की निशानी है.
दिमाग में हो जाता है शॉर्ट सर्किट
ये हैं दिमाग के अन्दर के तार
ये हैं दिमाग के अन्दर के तार PTI
कभी टीवी या कंप्यूटर को खुला हुआ देखा है? कितने सारे तार लगे होते हैं उसके अन्दर. दिमाग भी भाईसाब बिलकुल वैसा ही है. लेकिन दिमाग जो है वो दुनिया के हर हार्डवेयर से ज्यादा समझदार चीज़ है. उसके पास याददाश्त वाला बक्सा भी होता है.तो कभी-कभी दिमाग का कोई तार अचानक से करंट भेज देता है. करंट जाकर याददाश्त वाली खिड़की खड़खड़ा देता है. हमारी अपनी रिंगटोन उस याददाश्त वाले बक्से में सेव होती है. ऐसा लगता है हमने अपनी ही रिंगटोन सुनी. एक तेज़ झटके के करंट की वजह से वाइब्रेशन भी महसूस हो जाती हैं.
ये कोई अजूबा नहीं है. ना ही भूत आपको फ़ोन करके ये बोलने वाला है ‘तुम अशुद्ध हो, तुम सड़ चुके हो’. ये बस आपका दिमाग है. और हां आप अकेले नहीं हो जिसके साथ ऐसा होता है. दुनिया भर के 90 परसेंट लोग अपनी रिंगटोन सुनते हैं. अपने फ़ोन के वाइब्रेशन महसूस करते हैं. साइंटिस्ट लोग कहते हैं कि जो इतनी सारी दिमागी बीमारियां बढ़ रही हैं. उनका एक कारण फ़ोन का एडिक्शन है.
अच्छा अगर हो सके तो एक बार ये एक्सरसाइज़ करके देखो. अपने फ़ोन से दूर कितने घंटे रह सकते हो. बिना किसी कॉल या मैसेज की परवाह किए बिना. बता रहे हैं बहुत अच्छा लगता है.