6/11/2016

चीनी


आधुनिक विश्व के निर्माण में चीनी की अहम भूमिका रही लेकिन यह अनुपयोगी कृषि उत्पाद अब विश्वसमुदाय के लिए एक बड़ा खतरा बन चुका है.

दुनिया में कोई ऐसी चीज नहीं है जो इतनी कम उपयोगी होने के बाद भी धरती का इतना ज्यादा हिस्सा घेरे हुए हो. ताजा आंकड़ों के अनुसार इस समय तकरीबन 27 लाख हेक्टेयर जमीन घेरे गन्ना दुनिया की तीसरी सबसे कीमती फसल है. चीनी गन्ने का सबसे महत्वपूर्ण कारोबारी उत्पाद है जिसके बिना दुनिया की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अपने रोजमर्रा के जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता. लेकिन यही चीनी एक वैश्विक स्वास्थ्य संकट की वजह भी बन चुकी है जो लगातार बढ़ता जा रहा है.
जिन देशों में कार्बोहाइड्रेट के स्रोत के रूप में या बस स्वाद के लिए ही खाद्य पदार्थों में चीनी का ज्यादा प्रयोग होता है वहां की आबादी में मोटापा एक महामारी की तरह फैल रहा है. साथ ही वहां इससे जुड़ी बीमारियां जैसे कैंसर, डिमेंशिया, दिल की बीमारियां भी आम होती जा रही हैं. इन देशों में भारत का स्थान काफी आगे है.

दूसरी जगह के आदिमानवों की तरह भारतीयों के लिए गन्ना चारा नहीं था. ढाई हजार साल पहले उन्होंने सबसे पहले रसायनों का प्रयोग कर चीनी बनाने की कला में महारत हासिल कर ली थी
चीनी किस तरह धरती और हमारे स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा बनी, यह समझने के लिए गन्ने की फसल और चीनी निर्माण का इतिहास हमारी काफी मदद कर सकता है.गन्ना सबसे पहले चारे के रूप में उपयोगी माना गया थामानव शरीर का विकास इस तरह हुआ है कि उसे काफी कम मात्रा में चीनी की जरूरत है और जो रिफाइंड चीनी हम इस्तेमाल करते हैं उसकी जरूरत तकरीबन नहीं है. चीनी हमारे भोजन में संयोगवश शामिल हो गई. ऐसा माना जाता है कि गन्ने का इस्तेमाल पहले-पहल ‘चारे’ के रूप में हुआ. यह सुअरों का चारा था और इस दौरान आदिमानव कभी-कभार उसे चबाता भी होगा.

गन्ने के प्राचीन अवशेष और मानव डीएनए पर हुए शोध बताते हैं कि सबसे पहले यह फसल दक्षिण-पूर्व एशिया में लगाई गई. अनुसंधानकर्ता इस समय प्रशांत महासागर में स्थित देश पापुआ न्यूगिनी में गन्ने की सबसे प्राचीन फसल के अवशेष खोज रहे हैं. यहीं ईसा से 8000 साल पहले अरबी और केले जैसी फसलें लगाने की शुरुआत हुई थी. माना जाता है कि इस क्षेत्र से गन्ना पूर्वी प्रशांत महासागर और हिंद महासागर के देशों तक 3,500 साल पहले पहुंचा.
यहां के आदिमानवों के जरिए ही गन्ने से भारतीय प्रायद्वीप के लोग परिचित हुए. भारतीयों के लिए यह सिर्फ चारा नहीं था. ढाई हजार साल पहले उन्होंने सबसे पहले रसायनों का प्रयोग कर चीनी बनाने की कला में महारत हासिल कर ली. फिर यह तकनीकी उत्तर-पूर्व में चीन की तरफ फैली तो साथ ही अरब देशों के यात्री इसे अपने-अपने मुल्कों में ले गए. 13वीं शताब्दी में यह तकनीक भू-मध्य सागर के देशों, मोटे अर्थों में समझें तो रूस, यूरोप और अफ्रीका के कुछ देशों तक पहुंच गई. जल्दी ही साइप्रस और सिसेली (वर्तमान में इटली का एक स्वायत्तशासी प्रांत) चीनी उत्पादन के मुख्य केंद्र बन गए. मजेदार बात है कि मध्ययुग में चीनी एक दुर्लभ और बेहद कीमती मसाला मानी जाती थी. यह रोजाना के इस्तेमाल की वस्तु नहीं थी.

15वीं शताब्दी यानी आज से महज 500 साल पहले बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती और शुद्ध चीनी का निर्माण मेडीरा (पुर्तगाल) नाम के द्वीप समूह पर शुरू हुआ था

15वीं शताब्दी यानी आज से महज 500 साल पहले बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती और शुद्ध चीनी का निर्माण मेडीरा (पुर्तगाल) नाम के द्वीप समूह पर शुरू हुआ था. उस समय पुर्तगाल का ब्राजील पर कब्जा था और उन्हें लगा कि यहां गन्ना उत्पादन के लिहाज से अनुकूल जलवायु है. फिर यहां गुलाम लाकर गन्ने की खेती और इसपर आधारित अर्थव्यवस्था शुरू हुई. 1647 के कुछ समय पहले कैरेबियन द्वीप समूह पर भी गन्ने की खेती शुरू हो गई. अब चीनी का औद्योगिक उत्पादन शुरू हो गया था और इसके सबसे बड़े उपभोक्ता पश्चिमी यूरोप के देश थे.चीनी की अर्थव्यवस्था गुलामों के कारोबार पर फलीफूलीचीनी के बारे में कहा जा सकता है कि यह ऐसा खाद्य पदार्थ है जो हर किसी को पसंद है लेकिन इसकी जरूरत किसी को नहीं है. इसके बावजूद आज हम विश्व का जो स्वरूप देख रहे हैं उसके निर्माण में इसका काफी योगदान है. जैसा हमने ऊपर लिखा है कि ब्राजील और कैरेबियन द्वीप समूह में औद्योगिक उत्पादन के लिए इसकी खेती शुरू हुई थी. और तब बड़े पैमाने पर पहली बार गुलामों को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाया गया. एक अनुमान के मुताबिक 1501 से 1867 के बीच तकरीबन सवा करोड़ लोग अफ्रीका महाद्वीप से अमेरिका महाद्वीप भेजे गए थे. इस फसल ने लोगों को सिर्फ अपना घरबार छोड़ने पर ही मजबूर नहीं किया बल्कि लाखों लोगों की जान भी ली. माना जाता है कि गुलामों के हर जत्थे में 25 फीसदी तक लोग बीच सफर में ही मर जाया करते थे और इस दौरान 10 से 20 लाख लोगों के मारे जाने का अनुमान है.


चीनी के कारोबार का शिकार भारतीय भी हुए हैं. 19वीं शताब्दी के मध्य में अंग्रेजों ने हजारों भारतीय बंधुआ मजदूरों को सूरीनाम, मॉरीशस, फिजी द्वीपों के साथ-साथ अपने कई दूसरे उपनिवेशों पर भेजा था. आज ये इन मजदूरों के वंशज इन देशों की आबादी का एक बड़ा हिस्सा हैं.
चीनी के कारोबार का शिकार भारतीय भी हुए हैं. 19वीं शताब्दी के मध्य में अंग्रेजों ने हजारों भारतीय बंधुआ मजदूरों को सूरीनाम, मॉरीशस, फिजी द्वीपों के साथ-साथ अपने कई दूसरे उपनिवेशों पर भेजा था

इस तरह चीनी की बढ़ती खपत मानव कारोबार को बढ़ावा तो दे ही रही थी वह दूसरे उद्योगों के विस्तार में भी मददगार साबित हुई. अफ्रीका का कुलीनवर्ग गुलामों के कारोबार में लिप्त था और उसे गुलामों के बदले तांबा-कांसा जैसी धातुओं के बर्तन, शराब, कपड़े, तंबाकू और बंदूकों की जरूरत थी. इस तरह चीनी की बढ़ती मांग ने गुलामों की मांग को बढ़ावा दिया और इससे मध्य व दक्षिण पश्चिम इंग्लैंड के दूसरे उद्योगों को बढ़ावा मिला.आधुनिक युग का अभिशापचीनी और तंबाकू ऐसे दो उत्पाद हैं जिनका कई मामलों में करीबी जुड़ाव है. दोनों के उत्पादन और कारोबार के विकास में गुलाम मजदूरों की अहम भूमिका रही है. यह भी दिलचस्प है कि चीनी और तंबाकू को शुरुआत में सेहत के लिए फायदेमंद समझा जाता था. इन दोनों ही उत्पादों की जड़ें प्राचीन सभ्यताओं के विकास में खोजी जा सकती है. 17वीं शताब्दी के मध्य से इनकी विश्वव्यापी खपत तेजी से बढ़ी और ये अब वैश्विक स्वास्थ्य संकट की वजह बन गए हैं.


बीते सालों के दौरान स्वास्थ्य के संबंध में ‘औद्योगिक महामारी’ शब्द तेजी से प्रचलित हुआ है. इसका मतलब है कि वे औद्योगिक उत्पाद जो लोगों में कई तरह की खतरनाक बीमारियों के लिए जिम्मेदार हैं, मुनाफे के लिए उनको बढ़ावा देना. चीनी और तंबाकू को भी अब इस श्रेणी में शामिल किया जा सकता है. तंबाकू के बारे में तो यह माना ही जाता है कि लोगों को इसकी लत लग सकती है लेकिन आधुनिक शोध बताते हैं कि इंसानों पर चीनी का असर भी तकरीबन ऐसा ही होता है. इस नजर से देखें तो इस समय विश्व समुदाय पर चीनी की पकड़ शराब या तंबाकू की तुलना में कहीं ज्यादा है. विश्व अर्थव्यवस्था और सांस्कृतिक विरासत का काफी अहम हिस्सा बन चुकी चीनी हमारी प्रतिदिन कैलोरी ऊर्जा का तकरीबन 20 फीसदी हिस्सा बनाती है.


तंबाकू के बारे में तो यह माना ही जाता है कि लोगों को इसकी लत लग सकती है लेकिन आधुनिक शोध बताते हैं कि इंसानों पर चीनी का असर भी तकरीबन ऐसा ही होता है
चीनी की एक तुलना पेट्रोलियम पदार्थों से भी हो सकती है. जीवाश्म से बना यह ईंधन आज पर्यावरण के लिए गंभीर संकट बनता जा रहा है लेकिन यह अब हमारे जीने के तौर-तरीके तय करता है. इसकी वजह से दुनिया की राजनीति और भूगोल में भी व्यापक बदलाव आए हैं और आ रहे हैं. इसी तरह से चीनी का कारोबार पूरे विश्व में सामाजिक-आर्थिक बदलाव की वजह बना है. इसने एक नस्ल, खासकर अफ्रीकी नस्ल की आबादी को दुनियाभर में पहुंचाया है. चीनी की उपस्थिति से हमारे रहन-सहन और सांस्कृतिक मानक भी तय हुए हैं.


2013 के आंकड़ों के मुताबिक विश्व की कुल फसल उत्पादन में 6.2 प्रतिशत हिस्सा गन्ने का था और कुल कीमत 9.4 प्रतिशत थी. यह छोटा-मोटा आंकड़ा नहीं है इसलिए चीनी की वजह से जो संकट विश्व स्वास्थ्य के लिए पैदा हो रहा है वह तब तक दूर नहीं हो सकता जबतक विभिन्न देशों की सरकारें इस संकट को स्वीकार करें और मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति के बूते इसे दूर करने की कोशिश करें.

IAS_Notes

News Digest for UPSC Aspirants -10-06-2016-
Railways to install 35,000 CCTVs in 1,000 stations for women passengers’ safety
Indian Railway plans to install 35,000 CCTV cameras that scan every corner of 1,000 railway stations across the country is the NDA government’s latest bid to ensure that woman passengers feel safe in railways premises. Once set up, this would be the biggest monitoring system ever installed by Indian Railways.
Railways has decided to draw up this plan that would utilise Rs 500 crore from Centre’s Nirbhaya Fund. Considering all the top priorities of the project, Finance Ministry ratified it within three days of the meeting at PMO and allocated Rs 200 crore of dividend-free money for this financial year so that work can begin at once. The balance amount will be given next year.
Railways has numerated a list of 1,000 stations and has ordered zonal authorities on how much money they would be allowed to spend on the project this year.

India ranked 141 in global peace index
India was ranked 141 on a Global Peace Index making it not much peaceful than countries like Burundi, Serbia and Burkina Faso owing to violence soaring up to a USD 680-billion toll on its economy in 2015.
In a ranking of total 163 countries, compiled by global think tank Institute for Economics and Peace (IEP), Syria has been the least peaceful, followed by South Sudan, Iraq, Afghanistan and Somalia. On the other hand, Iceland retained the same stature and was ranked as the world’s most peaceful country, followed by Denmark and Austria.
India has ascended two positions, from 141st the previous year, but the study depicted that the country’s peace score has “deteriorated” over the past year which means the slight rise in ranking could be due to worse performance of others.
Among South Asian nations, Bhutan was ranked best (13th overall rank), while India was fifth followed by Pakistan at sixth (overall 153rd) and Afghanistan at sixth place (global 160th).

President adopts 5 Haryana villages for development
President Pranab Mukherjee has taken the first presidential move to develop five villages in Haryana, including four in Gurgaon and one in Mewat district, as model villages.
Haryana Chief Minister Manohar Lal Khattar met the President in New Delhi and handed over the list of five villages.
With the assistance of the Rashtrapati Bhawan, the state government will pool resources to make these smart villages to set an example for development of other villages in the state.

Railways will invest $140 billion in infrastructure in five years
Railway Minister Suresh Prabhu announced that Indian Railways will invest $140 billion over the time span of next five years in areas of infrastructure and bettering the mobility of its services.
"Indian Railways will invest $140 billion in the next five years. We have invested Rs 94,000 crore and additionally we have decided to issue contract of Rs 40,000 crore for locomotives," Prabhu said at an event organised by MCC Chamber of Commerce and Industry.
According to Prabhu, country needs to invest 10-11 percent of GDP in infrastructure in order to give a shot in the arm to economic growth. Focus has always been on infrastructure and among various sectors in infrastructure transportation is the towering one.
Indian Railways was previously working on a "mobility directory" to bring in all the elements of infrastructure to step up the average speed of travel. High speed railways project is completed with an estimated cost of Rs one lakh crore and are in a process to bring semi high speed trains. Three dedicated freight corridors will also be developed.

US introduces bill to designate India as its special global partner
Two top United States legislators have introduced legislation in the House of Representatives to denominate India as a special global partner of America and adopt necessary measures to ramp up engagement and deepen bilateral collaboration on a host of issues including defence.
The Special Global Partnership with India Act of 2016 triggers Congress to promote the US-India relationship by designating India as a special global partner of the US, leading to greater cooperation across sectors ranging from defense and space to entrepreneurship and innovation.
It would also make changes in the Arms Export Control Act, thereby ushering the President to include India among US's closest allies.
This bill would also authorize the US President to give India an exception to allow for strategic trade authority, and codify assistance in all areas that would support key priorities, such as education, growth in the digital sector, and environmental protection.

Child labour awareness campaign on Goa beaches
Goa Tourism and State Children's Commission for Protection of Child Rights jointly have initiated a big move with spirited campaigns to discourage tourists in the state from buying products and services involving child labour.
Commission had conducted several inspections and raids along the beaches to scrutinise the extent of child labour in the area. The campaign would start during the upcoming tourist season and aimed at discouraging tourists from assisting in child labour, especially along the tourism-centric coastal areas.
The 2011 census estimates there are around 10,000 children between the ages of five and 17 who are employed in various capacities in the state by wooing money. The coastal belt which attracts around four million tourists in the state, accounts for a chunk of child workforce which engages in seasonal chores like working at beach shacks, food and trinket-stalls etc.

मानसून आ गया रे

बेसन-चायपत्ती खरीद लो, झमाझम बारिश होने वाली है ... बारिश का इंतजार सबको है. फसल बारिश के चलते खराब हो जाती थी. हमें भी झमाझम बारिश में भीगे कितने दिन हुए. पिछले दो साल ऐसे सूखे निकले कि दिल टूट गया. इस साल कहा जा रहा है कि जबरदस्त बारिश होने वाली है. पर मानसून इस बार भी लेट हो गया है. इंडिया में बारिश होती कैसे है, ढूंढ के लाये हैं. लो पढ़ लो- मानसून को 1 जून को केरल आना होता है. पर पिछले कुछ सालों से मानसून हमेशा लेट रहा है. अमूमन मानसून 1 जून तक केरल के तट पर आ जाता है. पर इस बार भी मानसून थोड़ा लेट है. 7 जून को आएगा. 30 मई को अंडमान निकोबार पहुंचने के बाद से मानसून अभी वहीं अटका हुआ है. इस बार मौसम विभाग कि भविष्यवाणी के बाद से शोर बहुत मचा है कि बारिश बढ़िया होगी. लोग खुश हैं. औसत से ज्यादा बारिश होगी. जून से सितम्बर, चार महीने को बारिश का मौसम माना जाता है. मौसम विभाग का 2016 के लिए अनुमान ये है कि भारत में औसत से छः फीसदी ज़्यादा बारिश होगी. पिछले साल के मुकाबले ये 20 फीसदी ज्यादा है. इस बार जब पानी बरसेगा तो पनारा जाम हो जाएगा. सींक वाली झाडू कस लो. और हो जाओ तैयार. खुश हो जाइये क्योंकि सब सही चल रहा है. दक्षिणी अमेरिका से चलकर मानसून जब भारत आता है. तो रस्ते में ऑस्ट्रेलिया पड़ता है. ऑस्ट्रेलियाई मौसम विभाग के हिसाब से ऑस्ट्रेलिया में सब ठीक-ठाक है. इस लिहाज़ से भारत में भी सब ठीक-ठाक होगा. उनका कहना है कि गॉडजिला एल नीनो का वक्त खत्म होने की कगार पर है. गॉडजिला एल नीनो ही पिछले दो साल से हो रही खराब बारिश का कारण था. इसके लिए पहले ये बताना होगा कि एल नीनो होता क्या है. प्रशांत महासागर में भूमध्यरेखा के आस-पास के रीजन में कई बार समुद्र का टेम्परेचर अजीबोगरीब ढंग से बढ़ जाता है. ये ज़्यादातर पेरू और इक्वेडोर के तट के आस पास होता है. समुद्र कि सतह गर्म हो जाती है. और वहां कम प्रेशर का रीजन बन जाता है. जिसकी वजह से वहां पर तूफानों का आना और बादलों का बनना शुरू हो जाता है. इस तरह से एल नीनो की वजह से दुनिया भर के मौसम में बदलाव होते हैं. और साथ ही ये एल नीनो भारत के मानसून को कमजोर कर देता है. तो कहने का मतलब ये कि जब अगली बार बदली छाये तो समझ लेना कि पेरू में सब ठीक है. इस बार का ये एल नीनो बहुत गजब टाइप से काम कर रहा था. ऐसा कि लग रहा था जैसे कुछ कम ही नहीं होगा. इसीलिए इसको नाम दिया गॉडज़िला. एकदम गॉडज़िला कि फ़िल्म में आए भयानक डायनासोर जैसे शैतान जैसा. जो कब क्या तहस नहस कर दे मालूम नहीं. जिसको रोकना किसी के बस कि नहीं. पिछले 15 दिनों में समुद्र के सर्फेस का तापमान पेरू और ईक्वेडोर के इन हिस्सों में कम हुआ है. समुद्र के निचले हिस्से के ठंडे पानी से भी मदद मिल रही है. ऑस्ट्रेलिया के मौसम विभाग के हिसाब से इस साल दोबारा समुद्र के सर्फेस के गर्म होने की कम ही उम्मीद है. जिसके हिसाब से कहा जा सकता है कि इस साल का एल नीनो अब खात्मे पर है. हालांकि एक और अमेरिकी एजेंसी को छोड़ दूसरी किसी मौसम एजेंसी ने अभी इसकी घोषणा नहीं की है. पहले ये कहा जा रहा था कि गर्मियों के अंत तक एल नीनो कमजोर होगा. अमेरिका की नोआ (NOAA) नाम की एजेंसी ने भी कहा है कि एल नीनो कमजोर हो रहा है. जैसे राम का उल्टा लखन. जैसे दिन का उल्टा रात. जैसे आग का उल्टा पानी. वैसे एल नीनो का उल्टा ला नीना. और जब एल नीनो कमजोर पड़ेगा तो बनेगा ला नीना. 2016 की गर्मियों का मौसम ला नीना के बनने के लिए एकदम परफेक्ट है. ऑस्ट्रेलियन न्यूज एजेंसी ने भी कहा है कि ला नीना की संभावनाएं बन रही हैं. दुनिया भर के मौसम के हिसाब से भूमध्यरेखा के पास का प्रशांत महासागर अब ठंडा ही होता जायेगा. जून से अगस्त के बीच ला नीना के डेवलप होने के चांसेस को लेकर 8 मॉडल बनाए गए. ला नीना के डेवलप होने के 8 मॉडल में से 6 मॉडल के हिसाब से इस बार ला नीना के बनने के पक्के-पोढ़े चांसेस हैं. IOD माने I ndian Ocean Dipole . हिन्द महासागर डाईपोल एल नीनो की तरह से ही एक लोकल फैक्टर है. इस बार वो भी एकदम सही जा रहा है. कहने का मतलब ये कि इसको पश्चिम में ठंडा और पूर्व में गरम होना चाहिए. ऐसा हो भी रहा है. तो इस पूरे शास्त्रार्थ का रस ये निकलता है कि बेसन खरीद लिया जाए. आलू और बैंगन का स्टॉक भर लिया जाए. गैस सिलिंडर भरवा लिया जाए. पौव्वा भर अदरक हर टाइम किचन में रहे. जब भी बरसे, दोस्तों को बुलाएं और पकौड़े बनें. थोड़ा पेरू को याद कर लें. मन करे तो मन ही मन थैंक यू भी कह दें.

अपनापन

एक युवती बगीचे में बहुत गुस्से में बैठी थी , पास ही एक बुजुर्ग बैठे थे उन्होने उस परेशान युवती से पूछा क्या हुआ बेटी ? क्यूं इतना परेशान हो ? युवती ने गुस्से में अपने पति की गल्तीयों के बारे में बताया बुजुर्ग ने मंद मंद मुस्कराते हुए युवती से पूछा बेटी क्या तुम बता सकती हो तुम्हारे घर का नौकर कौन है ? युवती ने हैरानी से पूछा क्या मतलब ? बुजुर्ग ने कहा :- तुम्हारे घर की सारी जरूरतों का ध्यान रख कर उनको पूरा कौन करता है ? युवती :- मेरे पति बुजुर्ग ने पूछा :- तुम्हारे खाने पीने की और पहनने ओढ़ने की जरूरतों को कौन पूरा करता है ? युवती :- मेरे पति बुजुर्ग :- तुम्हें और बच्चों को किसी बात की कमी ना हो और तुम सबका भविष्य सुरक्षित रहे इसके लिए हमेशा चिंतित कौन रहता है ? युवती :- मेरे पति बुजुर्ग ने फिर पूछा :- सुबह से शाम तक कुछ रुपयों के लिए बाहर वालों की और अपने अधिकारियों की खरी खोटी हमेशा कौन सुनता है ? युवती :- मेरे पति बुजुर्ग :- परेशानी ऒर गम में कॊन साथ देता है ? युवती :- मेरे पति बुजुर्ग :- तुम लोगोँ के अच्छे जीवन और रहन सहन के लिए दूरदराज जाकर, सारे सगे संबंधियों को यहां तक अपने माँ बाप को भी छोड़कर जंगलों में भी नौकरी करने को कौन तैयार होता है ? युवती :- मेरे पति बुजुर्ग :- घर के गैस बिजली पानी, मकान, मरम्मत एवं रखरखाव, सुख सुविधाओं, दवाईयों, किराना, मनोरंजन भविष्य के लिए बचत, बैंक, बीमा, अस्पताल, स्कूल, कॉलेज, पास पड़ोस, ऑफिस और ऐसी ही ना जाने कितनी सारीजिम्मेदारियों को एक साथ लेकर कौन चलता है ? युवती :- मेरे पति बुजुर्ग :- बीमारी में तुम्हारा ध्यान ऒर सेवा कॊन करता है ? युवती :- मेरे पति बुजुर्ग बोले :- एक बात ऒर बताओ तुम्हारे पति इतना काम ऒर सबका ध्यान रखते है क्या कभी उसने तुमसे इस बात के पैसे लिए ? युवती :- कभी नहीं इस बात पर बुजुर्ग बोले कि पति की एक कमी तुम्हें नजर आ गई मगर उसकी इतनी सारी खुबियां तुम्हें कभी नजर नही आई ?आखिर पत्नी के लिए पति क्यों जरूरी है ?मानो न मानो जब तुम दुःखी हो तो वो तुम्हे कभी अकेला नहीं छोड़ेगा।वो अपने दुःख अपने ही मन में रखता है लेकिन तुम्हें नहीं बताता ताकि तुम दुखी ना हो। हर वक्त, हर दिन तुम्हे कुछ अच्छी बातें सिखाने की कोशिश करता रहता है ताकि वो कुछ समय शान्ति के साथ घर पर व्यतीत कर सके और दिन भर की परेशानियों को भूला सके।हर छोटी छोटी बात पर तुमसे झगड़ा तो कर सकता है, तुम्हें दो बातें बोल भी लेगा परंतु किसी और को तुम्हारे लिए कभी कुछ नहीं बोलने देगा। तुम्हें आर्थिक मजबूती देगा और तुम्हारा भविष्य भी सुरक्षित करेगा।कुछ भी अच्छा ना हो फिर भी तुम्हें यही कहेगा- चिन्ता मत करो, सब ठीक हो जाएगा। माँ बाप के बाद तुम्हारा पूरा ध्यान रखना और तुम्हे हर प्रकार की सुविधा और सुरक्षा देने का काम करेगा।तुम्हें समय का पाबंद बनाएगा।तुम्हे चिंता ना हो इसलिए दिन भर परेशानियों में घिरे होने पर भी तुम्हारे 15 बार फ़ोन करने पर भी सुनेगा और हर समस्या का समाधान करेगा।चूंकि पति ईश्वर का दिया एक स्पेशल उपहार है, इसलिए उसकी उपयोगिता जानो और उसकी देखभाल करो। ये मैसेज हर विवाहित स्त्री के मोबाइल मे होना चाहिए, ताकि उन्हें अपने पति के महत्व का अंदाजा हो।