10/23/2016

हम सपने में भाग क्यों नहीं पाते और कभी मरते क्यों नहीं हैं?

अक्सर ऐसा होता है कि जो काम हम रोजमर्रा की जिंदगी में बड़ी आसानी से कर लेते हैं उन्हें सपनों में पूरा करते-करते हमें पसीने आ जाते हैं. यह बात हममें से हर किसी ने महसूस की होगी कि अगर सपने देखते हुए हमें भागने की नौबत आ जाए तो हम उतनी तेजी से नहीं भाग पाते जितनी तेज दौड़ने की हमें जरूरत होती है. ऐसा ही सपने में मुक्के मारने या चीखने की कोशिश करते वक्त भी होता है. यहां तक कि सपने में तो हमें मरना भी नसीब नहीं होता.

सपने मनोविज्ञान के लिए अभी भी पहेली बने हुए हैं. उनके स्पष्ट परिभाषित न हो सकने के कारण उनमें देखी गई घटनाओं की हमें तरह-तरह की व्याख्याएं सुनने-पढ़ने को मिलती हैं. सपनों पर किये गये कई शोध बताते हैं कि हमारी बाहरी परिस्थितियों हमारे द्वारा देखे गये सपनों को प्रभावित करती हैं. जैसे अगर आप लगातार किसी काम के लिए मेहनत कर रहे हैं और उसमें सफल नहीं हो पा रहे हैं तो आपको न दौड़ पाने या न बोल पाने जैसे सपने आते हैं. इस तरह के सपने किसी व्यक्ति के चेतन और अचेतन मन में लगातार चल रहे संघर्ष को दिखाते हैं. अचेतन मन सपनों के जरिये लगातार यह इशारा देने की कोशिश कर रहा होता है कि कुछ ऐसा है जो उसे सफल होने से रोक रहा है.

सपनों के विश्लेषक लगातार या तेजी से न दौड़ पाने की स्थिति को आत्मविश्वास की कमी से भी जोड़कर देखते हैं. उसी तरह से अगर आप सपने में बोल नहीं पा रहे हैं तो इसका अर्थ यह समझा जाता है कि आप दूसरों तक अपनी सोच नहीं पहुंचा पा रहे हैं. आपको ऐसा लगता है कि आपके विचारों से कोई सहमत नहीं होगा.

मनोविज्ञान का दूसरा विचार यह कहता है कि किसी को मुक्का मारना या भागना शरीर के कई अंगों के समन्वय से होने वाली गतिविधि है. इस तरह के कामों में शरीर के अलग-अलग अंग अलग-अलग भूमिका निभा रहे होते हैं. वहीं जब हम सपने देख रहे होते हैं तो शरीर के बाकी अंग शिथिल होते हैं केवल दिमाग ही सक्रिय होता है और शरीर को निर्देश भेज रहा होता है. लेकिन दिमाग के पास इसकी जो प्रतिक्रिया वापस पहुंचती है वह बताती है कि शरीर उसके निर्देश का पालन करने में असमर्थ है. ऐसा ही कुछ हमें सपने में दिखाई देता है.

कुछ वैज्ञानिक प्रयोग बताते हैं कि सपने असलियत के मुकाबले काफी धीमी गति से घटते हैं. स्विट्ज़रलैंड की बर्न यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डेनियल एर्लाकर ने नींद में सपने देखते हुए दिमाग की क्रियाओं का विश्लेषण किया और पाया कि सपने देखते हुए इंसान किसी भी काम को करने में सामान्य से डेढ़ गुना ज्यादा समय लेता है. यानी कि अगर आप सपने में भागने की कोशिश करते हुए अपने पैरों को आगे बढ़ा रहे हैं तो वे बहुत धीमी गति से आगे बढ़ेंगे. उस समय आपको महसूस होगा कि कोई आपको आगे बढ़ने से रोक रहा है.

इसी तरह से नींद में आपको बार-बार लगता है कि आप मरने वाले हैं लेकिन ऐसा कभी होता नहीं है. इसका कारण दौड़ने-भागने के कारणों से बिलकुल अलग है. सपने में हम जो भी देखते हैं, सुनते हैं या महसूस करते हैं वह हमारे पिछले अनुभवों पर आधारित ही होता है. लेकिन हमारे दिमाग को यह मालूम ही नहीं होता कि मरने का अनुभव कैसा होता है. इसलिए आप सपने में खुद को कभी मरता हुआ नहीं देख पाते.

इस अकल्पनीय फिगर वाली कैरेक्टर ने महिलाओं के लिए क्या किया है?

शुक्रवार को यूनाइटेड नेशंस ने कॉमिक्स कैरेक्टर ‘वंडर वुमन’ को औरतों के सशक्तिकरण का एंबेसडर बनाया है. ये मौका था यूनाइटेड नेशंस के लगभग साल भर के सोशल मीडिया कैंपेन शुरू होने का. जिसमें औरतों के सशक्तिकरण और जेंडर इक्वैलिटी को प्रमोट किया जायेगा.

शुक्रवार को वंडर वुमन का 75वां बर्थडे था. 1941 में पहली बार इनका कॉमिक्स आया था. इनको ‘प्रिंसेस ऑफ थर्मिस्काइरा’ भी कहा जाता है.

पर ये कोई इमोशनल करने वाला मौका नहीं था. यूनाइटेड नेशंस के ही 1000 लोगों ने तुरंत ऑनलाइन पेटीशन दिया कि वंडर वुमन इस काम के लिये उपयुक्त चॉइस नहीं है. कहा गया कि,

‘बड़े-बड़े स्तनों वाली एक व्हाइट लड़की, जिसने छोटे कपड़े पहने हुये हैं. जिसके शरीर के अंग इस कदर हैं जो रियल लाइफ में हो नहीं सकते. थाई दिखाते हुये बूट पहने हुये ये लड़की पिन-अप गर्ल है. जो मर्दों के मन की उपज है.’

जिन लोगों ने साइन किया, उन्होंने कहा कि यूएन से ये उम्मीद नहीं थी. ये लोग एक रियल लाइफ लड़की नहीं खोज पाये. और ये बात करते हैं वुमन इम्पावरमेंट और जेंडर इक्वलिटी की.

वंडर वुमन पर फिल्म भी आ रही है 2017 में. इसमें इजराइली एक्ट्रेस गेल गडोट वंडर वुमन बनी हैं. 1941 में इस कैरेक्टर को एक साइकॉलॉजिस्ट विलियम मार्सटन ने बनाया था. इस कैरेक्टर ने को फेमिनिस्ट आइकन भी माना जाता है.

यूनाइटेड नेशंस का जवाब था,

‘हमने इसका फेमिनिस्ट बैकग्राउंड देखा. पहली औरत जो सुपरहीरो बनी. जिस दुनिया में सिर्फ मर्द सुपरहीरो हुआ करते थे. इस लड़की ने हमेशा ही फेयरनेस, जस्टिस और पीस के लिये लड़ाई की है.’

लेकिन यूनाइटेड नेशंस का जवाब बड़ा ही बचकाना है. क्योंकि अभी पुर्तगाल के एंटोनियो गटरेस को यूएन का अगला सेक्रेटरी जनरल चुना गया है. जबकि पूरी दुनिया में ये मांग चल रही थी कि एक औरत को चुना जाये. ये भी पता चला है कि यूएन के टॉप 10 पोस्ट में से 9 मर्दों को ही जाते हैं. ऐसा नहीं था कि टॉप पोस्ट के लिये औरतों की कमी थी. इसमें न्यूजीलैंड की पूर्व प्रधानमंत्री, यूनेस्को की डायरेक्टर जनरल और यूरोपियन यूनियन की एक अधिकारी भी हैं. इनके अलावा खोजा जाए तो दुनिया में इस पोस्ट के लिये औरतों की कमी नहीं है. कितनी औरतें तो ऐसी हैं जो शांति के लिये नोबल जीत चुकी हैं. दूसरे देशों में जाकर लोगों के लिये काम कर रही हैं. बाकी पोस्टों के लिये भी तो औरतें चुनी जा सकती हैं.

सबसे मजेदार बात है कि वंडर वुमन 1941 में जन्मी थी और यूएन 1945 में. और वंडर वुमन को लड़कियों के इम्पॉवरमेंट के लिये चुना गया है. कॉमिक्स में वंडर वुमन एक बार अमेरिकी प्रेसिडेंट के लिये लड़ी भी थी और हार गई थी. वहां भी नहीं जिता पाये.

मतलब वुमन इम्पॉवरमेंट सिर्फ कल्पना में हो रहा है. असल जिंदगी में पावर शेयर नहीं किया जायेगा. जब भी औरत को दिखाना हो तो उसी तरह दिखाइये जैसा लोग कल्पना में औरतों को देखते हैं. एकदम अकल्पनीय फिगर. जो मर्दों के तन-मन को सुख पहुंचाये. जो औरत लड़-झगड़ के अपना मुकाम बना रही है, वो एम्बेसडर बनने लायक भी नहीं है.

सेक्रेटरी जनरल और प्रेसिडेंट तो दूर की बात है. हिलेरी क्लिंटन जब से चुनाव लड़ रही हैं तब से डॉनल्ड ट्रंप उन के चरित्र पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं. जबकि उनके खुद के बारे में तरह-तरह की चीजें सामने आ रही हैं. यूएन का ये फैसला अंतत: मर्दवादी सोच का ही नतीजा है, जिसमें एम्पावर्ड औरत वह है जिसके स्तन बड़े हैं और जिसे देखकर कामुक हुआ जा सकता है. अगर वो प्रेसिडेंट का चुनाव कॉमिक्स में भी लड़े तो जीतने नहीं देना है.