11/17/2016

जिस तैयारी के लिए अब जनता से 50 दिन मांगे जा रहे हैं वह इस फैसले को लागू करने के पहले क्यों नहीं की गई?

जिस तैयारी के लिए अब जनता से 50 दिन मांगे जा रहे हैं वह इस फैसले को लागू करने के पहले क्यों नहीं की गई?

नोटबैंक के जरिए वोटबैंक को साधने की कोशिश में केंद्र सरकार ने देश को कतार में ला खड़ा किया है. वित्त मंत्री अरुण जेटली कहते हैं कि दो से तीन हफ्ते यानी तकरीबन 21 दिन में चीजें पटरी पर आ जाएंगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसके लिए 50 दिन मांगते हैं. सवाल उठता है कि बयानों का यह गड़बड़झाला क्यों है. दोनों के अनुमान अलग-अलग क्यों हैं? दरअसल, यह ठोक बजा कर फैसला नहीं किए जाने का नतीजा है.

ढाई साल गुजर चुके हैं देश की बागडोर संभाले, पर व्यवस्थाएं अब तक नहीं संभल पाईं. जनता की उम्मीदों और उससे किए गए वादों पर हम खरे नहीं उतर पाए, यह बात भाजपा शायद शिद्दत के साथ महसूस कर रही थी. उसे शायद यह भी लग रहा था कि देशभक्ति की चाशनी में लिपटे वाक्यों या नारों से छद्म राष्ट्रवाद तो पैदा किया जा सकता है लेकिन, वह टिकाऊ नहीं होता. विदेशों में रखा काला धन हम देश में नहीं ला पाए, पर कम से कम देश में छुपे काले धन को सामने लाकर दिखाएं. जनता को दिखाना बहुत जरूरी है कि हम बदलाव की कोशिशों में लगे हैं, संभवत: यही सब सोच कर बड़े नोटों को अमान्य करने का फैसला झटके में लागू कर दिया गया.

सवाल यह है कि अगर इस योजना को अमल में लाना ही था, तो जो 50 दिन अब जनता से मांगे जा रहे हैं और जो तैयारी अब की जाएगी, वह इसे लागू करने के पहले क्यों नहीं की गई.

बेशक, यह योजना अच्छी है. बहुत हद तक कारगर भी. कम से कम नक्सलियों या आतंकियों के पास रखे पैसे पर कुछ लगाम तो लगेगी. पर इस कदम के पीछे वोटबैंक हासिल करने की जो मंशा दिखती है वह बेहद खतरनाक है. कुछ वैसे ही जैसे जाति, धर्म या आरक्षण के नाम पर देश को बांट देना और फिर इस कवायद से वोटों का इंतजाम करना. कालेधन को बाहर लाने के नाम पर देश की जनता में छद्म राष्ट्रवाद पैदा करने की कोशिश खतरनाक है. खबरें आई हैं कि मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के बैंक खाते में नोटबंदी की घोषणा से एक दिन पहले करोड़ों रुपए जमा कराए गए. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भाजपा के पंजाब शाखा के अध्यक्ष संजीव कंबोज पर आरोप लगाए कि 2000 के नोट बाजार में आने से पहले कंबोज के पास दिखे. अगर यह सच है तो कैसे?


खबरें तो और भी हैं. जैसे कि दिल्ली के कुछ इलाकों में नोटबंदी से परेशान घरेलू सहायिकाओं को खुले नोट देने का प्रलोभन दे रईसजादे कपड़े खोलने को कह रहे हैं. अब तक कतार से परेशान हो कई लोगों ने खुदकुशी कर ली. सच तो यह है कि केंद्र सरकार के इस फैसले से मध्य और निम्न वर्ग बुरी तरह त्रस्त हुआ है. खाने-पीने से लेकर आने-जाने तक का संकट उठ खड़ा हुआ है. महज हफ्ते भर में जिंदगी बेपटरी हो चुकी है. आम आदमी की इस परेशानी को प्रधानमंत्री जैसा खास शख्स नहीं समझ सकता.

सवाल यह है कि अगर इस योजना को अमल में लाना ही था, तो जो 50 दिन अब जनता से मांगे जा रहे हैं और जो तैयारी अब की जाएगी, वह इसे लागू करने के पहले क्यों नहीं की गई? किस बात की हड़बड़ी थी? यह नाटकीय भावुक अपील कर किन मुद्दों से देश का ध्यान हटाने की साजिश रची जा रही है?

इस नोटबंदी के फरमान के बाद बड़ी तेजी से बैंकों में नकदी की सप्लाई हुई है. ये बैंक पैसा आने के बाद दोबारा जो कर्ज देंगे तो आखिर किन बड़े आसामियों को? इस पर नजर रखने की जरूरत है.

2008 की आर्थिक मंदी से अगर यह देश उबर सका था या कहें कि उस तरह चपेट में नहीं आया था जैसे अमेरिका या बाकी यूरोपीय देश तो इसकी एक बड़ी वजह थी कि यहां के बैंक केंद्रीकृत रहे. एक दूसरी बड़ी वजह यह भी थी कि इस देश के मध्य और निम्न वर्ग की महिलाओं के पास घर में एक छुपा हुआ ‘निजी बैंक’ है. यानी वे पैसे जो अपने बुरे दौर के लिए वे अपनी हैसियत के मुताबिक खाद्यानों के डब्बों में घर के पुरुषों से बचाकर रखती रही थीं. यह ‘निजी बैंक’ उन धनाढ्यों के ‘निजी बैंक’ की तरह नहीं जिसका मकसद ही काला धन छुपाना होता है. इस फैसले ने उस निजी बैंक को तोड़ कर रख दिया. इस ‘निजी बैंक’ के पैसे तेजी से देश के केंद्रीकृत और निजी हाथों के बैंकों में जमा होने लग गए.

गौर करें तो ये बैंक अभी नकदी के संकट से जूझ रहे थे. इस नकदी के संकट की दो बड़ी वजहें हैं. एक तो यह कि बड़े उद्योगपतियों ने बैंकों का पैसा दबा लिया है और दूसरा कि रियल एस्टेट के कारोबार में बैंकों का पैसा डूबा है. इस नोटबंदी के फरमान के बाद बड़ी तेजी से बैंकों में नकदी की सप्लाई हुई है. ये बैंक पैसा आने के बाद दोबारा जो कर्ज देंगे तो आखिर किन बड़े आसामियों को? इस पर नजर रखने की जरूरत है.

केंद्र के इस फैसले से जाहिर तौर पर मध्य और निम्न वर्ग के ‘निजी बैंक’ टूट गए. बड़े कारोबारियों के निजी बैंक अब भी सुरक्षित हैं. हम राष्ट्रवाद के नाम पर छले जा रहे हैं. अब जो 50 दिन हमसे मांगे जा रहे हैं और जो तैयारी की जाएगी, पहले कर ली जाती तो शायद इस देश का गरीब तबका न ऐसे परेशान होता, न ही उसके निजी बैंक टूटते.

संकलन
न्यूज़ मिडिया एंव समाचार पत्र

प्रस्तुति
पं.एल.के.शर्मा
अधिवक्ता
राज.उच्च.न्यायालय,जोधपुर।

नोट की छपाई का तिलस्मी धंधा

बहुत कम लोग जानते हैं कि नब्बे‍ के दशक में कांग्रेसी प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव के कार्यकाल में दुनिया की करंसी नोट छापने की मशीन बनाने वाली स्विटजरलैंड की एकाधिकार प्राप्त कंपनी डी लारू जियोरी ने चेतावनी दी कि भारत अपनी सिक्यू‍रिटी प्रिंटिंग प्रेसों के आधुनिकीकरण को दो हिस्सों में बांटकर जापान को न दें क्यों‍कि इससे इंडियन करंसी के जाली बनने की संभावना बढ़ जाएगी। जियोरी ने चेताया कि अमेरिकन डॉलर्स सबसे ज्यादा जाली बनते हैं। दूसरे विश्व युद्ध में जापान ने सबसे ज्यादा डॉलर जाली छापे थे।

आज 20 वर्ष बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 500 और 1000 रुपयों की नोटबंदी पर कहा कि अरबों रुपयों के जाली नोटों का प्रचलन रोकने की यह कोशिश है। विदेश से 'ब्लै‍क मनी’ कब आएगा, इसकी कोई बात नहीं कर रही सरकार। दिलचस्प सवाल यह है कि प्रधानमंत्री पुराने नोटों को बंद करने और नए नोटों को उतारने की घोषणा के तुरंत बाद जापान यात्रा पर क्यों‍ चले गए?

प्रश्न अब यह है कि क्या‍ 2000 रुपये के नोटों का कागज उन्हीं विदेशी कंपनियों से आया जिन्हें कुछ समय पहले ब्लै‍कलिस्ट किया गया और बाद में यह बैन हटा दिया गया। सबसे गौर करने और पूछने की बात यह है कि क्या यह वही ब्लै‍कलिस्टेड विदेशी कंपनियां तो नहीं हैं जो पाकिस्तान को भी नोट बनाने का कागज, स्याही और प्रिटिंग प्रेस सप्लाई करती हैं।
भाजपा नेता डॉ. सुब्रह्मïण्यम स्वामी ने हाल ही में चेतावनी दी थी कि पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम को वह जेल भिजवाएंगे क्यों‍कि उन्होंने यूरोप की उसी कंपनी को नोटों के कागज सप्लाई करने का आर्डर दिया था जो पाकिस्तान को भी यह सामग्री देती है। पाकिस्तान ही भारत में जाली नोटों को छापकर मार्केट में डालने का सबसे बड़ा स्रोत माना जाता है। यही जाली नोट कश्मीर में तथा अन्य राज्यों में उग्रवाद की जीवनरेखा हैं। नोट बनाने की एक विधा है। इसके डिजाइन बनाने वाले कुछ ही चुनिंदा लोग और समूह हैं। जियोरी विश्व के 150 देशों से ज्यादा को नोटों का कागज, स्याही और प्रिटिंग प्रेस मुहैया कराती रही है।
नब्बे‍ के दशक में जियोरी ने दिल्ली हाई कोर्ट में पेंटेंट के उल्लंघन से जुड़ी एक याचिका दायर की थी। भारत जापान की कुमोरी प्रिंटिंग प्रेस को कुछ सिक्यू‍रिटी प्रेसों के नवीनीकरण का ठेका दे रहा था। जियोरी ने कहा था कि कुमोरी ने उससे दो प्रिंटिंग प्रेस खरीदकर अपनी प्रेस बनाई और रूस और दक्षिण कोरिया को सप्लाई की। जियोरी के अनुसार रूस और कोरिया में यह जापानी प्रिटिंग प्रेस फेल हो गई और अब वह इन्हें पासपोर्ट और स्टांप छापने के लिए इस्तेमाल करता है। नरसिंह राव सरकार में वित्त मंत्री रहे डॉ. मनमोहन सिंह ने, जियोरी के तीन मुख्य शेयरधारकों स्विटजरलैंड, जर्मनी और बैंक ऑफ इंग्लैंड की नहीं सुनी और नामालूम कारणों से जापान को कुछ प्रिंटिंग पे्रसों के नवीनीकरण का ठेका दे दिया।
बहरहाल, नोटों के विशेष कागज, स्याही और प्रिंटिंग प्रेस का विश्वभर में सालाना अरबों डॉलर का बिजनेस है। और इसमें भी एजेंटों को देशों से ठेके प्राप्त करने के लिए अच्छा-खासा कमीशन दिया जाता है। वर्ष 2009-10 में सीबीआई ने भारत-नेपाल सीमा पर भारतीय बैंकों की कई शाखाओं पर छापे मारकर जाली नोट जब्त किए थे। इन बैंकों ने कहा कि यह 'जाली नोटÓ रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से आने वाले कैश लाने वाले संदूकों में ही आए थे। सीबीआई ने तब आरबीआई के करंसी चेस्ट में छापे मारे और वह दंग हो गए जब उन्हें वहां भी काफी संख्या‍ में 500 और 1000 रुपये के जाली नोट असली नोटों के साथ मिले। सवाल है कि यह नोट रिजर्व बैंक में कैसे पहुंचे? जब यही नोट देशभर के बैंकों में पहुंचते हैं, तो यह बैंक क्या‍ करें? वह अपना काम आसान करते हैं और उन्हें जनता को थमा देते हैं।
वर्ष 2010 में संसद की कमेटी ऑन पब्लिक अंडरटेकिंग्स को झटका लगा जब इसने पाया कि सरकार ने एक लाख करोड़ के नोटों को छापने का ठेका अमेरिका, इंग्लैंड और जर्मनी की कंपनियों को दे दिया था। कितना खतरनाक था यह, कमेटी सोचकर स्तब्ध‍ रह गई। इसमें से इंग्लैंड की कंपनी को ब्लै‍कलिस्ट कर दिया गया था मगर 2015 में यह बैन उठा लिया गया। कहा गया कि यह कंपनियां भरोसे में काम करती हैं और इनक्वा‍यरी में पाया गया कि इनने किसी और देश को हमारे नोटों के छपाई के डिजाइन और अन्य सूचनाएं नहीं दी थीं।

कंधार कांड में करंसी किंग
ऊपर हमने विश्व की सबसे बड़ी नोट बनाने वाली, कागज, प्रिटिंग प्रेस और स्याही मुहैया कराने वाली कंपनी डी ला रू जियोरी का जिक्र किया था। इस कंपनी का भारत से बहुत बड़ा बिजनेस है। मगर एक बात बहुत कम लोग जानते हैं कि इस कंपनी का इंडियन एयरलाइंस के जहाज आईसी-814 का काठमांडू से अपहरण कर कंधार ले जाने और बाद में वाजपेयी सरकार द्वारा तीन खतरनाक आतंकवादियों को छोडऩे से गहरा संबंध है। इस फ्लाइट में जियोरी कंपनी के 58 वर्षीय 'करंसी किंग’ रिबिर्टो जियोरी अपनी महिला दोस्त क्रीस्टीना कालेब्रसी के साथ थे। यह जियोरी कंपनी के मालिक थे। वह विश्व के गिने-चुने अमीरों में हैं। मगर बहुत ही लो-प्रोफाइल। जिनकी कुछ ही लोगों ने तस्वीर देखी होगी। स्विटजरलैंड सरकार ने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार पर दबाव डाला था कि किसी भी प्रकार से सभी यात्रियों को अपहरणकर्ताओं से छुड़ाया जाए फिर चाहे इसके लिए वह कुछ भी करे। साफ था कि वह जियोरी की रिहाई चाहते थे। उनको डर था कि जियोरी के बारे में अपहरणकर्ताओं को पता न चले, नहीं तो जियोरी की जान खतरे में होगी। उनको छुड़ाने के लिए स्विटजरलैंड सरकार को ब्लैं‍क चेक देना पड़ता। जियोरी अन्य यात्रियों के साथ छूटे। मगर भारत को तीन खतरनाक आतंकवादियों को छोडऩा तबसे अभी तक कितना महंगा पड़ रहा है यह सब जानते हैं। पाकिस्तान में बैठे यह आतंकवादी कश्मीर में आतंकवाद का क्या‍ गुल खिला रहे हैं साफ नजर आ रहा है।
मोदी सरकार में अब नोटबंदी के समय सबसे
ज्वलंत प्रश्न यह उठ रहा है कि क्या‍ यही जियोरी कंपनी या इसकी इंग्लैंड में सहयोगी कंपनी 2000 रुपये का नया नोट छापने में शामिल है? खबरों के अनुसार नोट बेहद गोपनीयता के साथ मैसूर तथा नासिक की प्रिंटिंग प्रेस में छपे हैं। मगर इनका कागज इटली, जर्मनी और इंग्लैंड की कंपनियों से आया था। सूत्रों के अनुसार 2000 और 500 रुपयों की प्रिंटिंग अगस्त-सितंबर में आरंभ हुई। मैसूर की प्रिंटिंग प्रेस जियोरी द्वारा स्थापित की गई थी। भारत अपने नोटों के लिए कागज विदेशी कंपनियों से ही ले रहा है। इनमें शामिल है-जियोरी, स्वीडन की क्रैन और फ्रांस और नीदरलैंड की आरजो विगींस।
भारत ने यूरोप की नोटों के कागज मुहैया करवाने वाली दो कंपनियों को 2014 में ब्लैकलिस्ट कर दिया था। यह कहा गया था कि नोटों पर जो सिक्यू‍रिटी फीचर उभरे होते हैं वह उनके कुछ कर्मचारियों ने पाकिस्तान को दे दिए थे। गलती से या आईएसआई द्वारा उपलब्‍ध किए गए। यह कंपनियां पाकिस्तान को भी प्रिंटिंग प्रेस, कागज और स्याही बेचती हैं। मगर यह बैन 2015 में उठा लिया गया। तब कहा गया कि इन कंपनियों ने सिक्यू‍रिटी नहीं तोड़ी थी। मगर इंग्लैंड के 'सीरियस फ्रॉड ऑफिस’ ने अपनी इनक्वा‍यरी में पाया कि डी ला रू जियोरी कंपनी ने जानबूझकर नोटों के कुछ स्पेसिफिकेशन 150 देशों में कुछ को दे दिए थे।
हाल ही में पनामा पेपर्स (जिनसे विश्वभर के धनी नेताओं और कारोबारी लोगों के टैक्सस हैवन्स में अरबों डॉलर के काले धन का पता चला) से पता चला कि डी ला रू जियोरी ने नई दिल्ली के एक बड़े कारोबारी को आरबीआई से बड़ा ठेका करवाने के लिए भारी रिश्वत दी थी। यह भी कहा जा रहा है कि डी ला रू जियोरी कंपनी ने आरबीआई के साथ नोटों के कागज में विवाद होने पर 40 मिलियन डॉलर देकर समझौता किया। इसके बाद ही इसी कंपनी को हरी झंडी दे दी गई। वर्तमान भारत सरकार ने कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की है कि इस कंपनी के ऊपर कब प्रतिबंध लगा और कब हटा लिया गया लेकिन खास बात यह है कि बैन की खबर आने के बाद इस कंपनी के शेयर लुढक़ गए थे। मगर प्रतिबंध हटने की खबरें आने पर इसके शेयरों में 33.30 प्रतिशत का उछाल आ गया।

हमारे देश की नोट छापने वाली प्रेसों में समय-समय पर कुछ न कुछ गड़बडिय़ों की खबरें आती रहती हैं। मगर राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर उन्हें दबा दिया जाता है। कुछ समय पहले मध्यप्रदेश में होशंगाबाद में स्थित नोटों को छापने की प्रेस में 500 और 1000 नोटों में खामी पता चलने पर दो अफसरों को सस्पेंड कर दिया गया था। लगभग 500 रुपये के 80,000 और 1000 रुपये के 10,000 खराब नोट छापे गए थे। वह मार्केट में भी आ गए थे। इससे प्रेस में और जनता में बेचैनी हो गई थी। इन नोटों में सिक्यू‍रिटी धागा नहीं था। यह प्रेस प्रधानमंत्री मोदी के 'मेक इन इंडिया’ के प्रोग्राम के तहत नवीनीकृत की गई थी। इसमें भारत में ही बने नोटों का कागज इस्तेमाल किया जाता है। इस घटना से पहले होशंगाबाद प्रिंटिंग प्रेस में एक और घटना हुई थी। वर्ष 2012 में यहां छपे कुछ नोटों में मैग्मेटिक सिक्यू‍रिटी धागे में 'अरेबिक’ शद्ब्रद पाए गए। सीबीआई की जांच में पता चला कि इन धागों की सप्लाई विदेशी कंपनी ने की थी। इस कंपनी से हिमाचल प्रदेश की एक कंपनी ने धागे 'आउटसोर्स’ किए थे। जांच में पता चला कि विदेशी कंपनी ने वह धागे गलती से भेज दिए थे जो 'अल्जीरियन दीनार’ के लिए जाने थे।
रिजर्व बैंक ने पुराने 500 नोटों की जगह नया 500 का और पहली बार 2000 रुपये के नोट जारी किए हैं। पुराने नोटों को वापस करने की प्रक्रिया में कुछ जाली नोट भी जमा हो रहे हैं। एक बैंक अधिकारी ने कहा कि किसके पास समय है एक-एक नोट को जांचने का जब करोड़ों पुराने नोट जमा किए जा रहे हैं। सरकार ने अपनी फिंगर्स क्रॉस कर रखी होगी। नोटबंदी की इस अफरातफरी में कहीं 500 और 2000 के नए नोटों में कुछ 'डिफेक्ट’ न निकले। नए नोटों की प्रिंटिंग प्रेस में अफसरों की सांस अटकी हुई है क्यों‍कि तेज गति से छपाई हो रही है।

संकलन
न्यूज़ मिडिया एंव समाचार पत्र

प्रस्तुति
पं.एल.के.शर्मा
अधिवक्ता (राज.उच्च न्यायलय) जोधपुर।