8/20/2016

पाकिस्तान में कभी नहीं हुआ बलूचिस्तान का 'विलय', 1947 से ही होते रहे हैं संघर्ष

नई दिल्ली। 15 अगस्त के अपने भाषण के अंत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई एक टिप्पणी ने पाकिस्तान के रिसते बलूचिस्तान के घाव को सबके सामने लाकर रख दिया। भारत लंबे समय से जम्मू एवं कश्मीर में अशांति के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराता रहा है।

अब पाकिस्तान को उसी के अंदाज में जवाब देने की मोदी की रणनीति ने एक ऐसे भानुमति के पिटारे को खोल दिया है, जिसके अपने भू-राजनैतिक निहितार्थ हैं और जो भारत की विदेश नीति की दिशा को बदलने का माद्दा रखती है।
बलूचिस्तान, पाकिस्तान के लिए उतना ही तकलीफ देने वाला रहा है जितना कश्मीर भारत के लिए है, लेकिन पाकिस्तान के इस सबसे बड़े प्रांत पर दुनिया का ध्यान उस तरह से नहीं गया जिस तरह कश्मीर पर गया है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि इस प्रांत को एक ऐसा 'ब्लैक होल' समझा जाता रहा है जहां पत्रकारों को जाने की इजाजत नहीं मिलती। कश्मीर के साथ मामला ऐसा नहीं है।

पाकिस्तान वैश्विक मंचों पर कश्मीर का मुद्दा और भारत के इस एकमात्र मुस्लिम बहुल राज्य में मानवाधिकारों के कथित उल्लंघन को उठाता रहा है। बलूचिस्तान प्रांत क्षेत्रफल के हिसाब से पाकिस्तान में सबसे बड़ा है। इसका क्षेत्रफाल फ्रांस के बराबर है। गैस, सोना, तांबा, तेल, यूरेनियम जैसे संसाधनों से लैस होने के बावजूद यह इलाका विकास में बहुत पीछे है।
1947 में भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान अस्तित्व में आया और वह दिन है और आज का दिन है कि इस प्रांत को शांति की एक मुकम्मल सांस नहीं नसीब हुई। पाकिस्तान के कुल क्षेत्रफल का 40 फीसदी हिस्सा बलूचिस्तान में आता है, लेकिन देश की कुल जनसंख्या की महज चार फीसदी ही यहां रहती है। बलूचिस्तान के अधिकारों के लिए लड़ने वाले कहते हैं कि बलूचियों की स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र की आकांक्षा को पाकिस्तानी सुरक्षा बलों द्वारा रौंदे जाने और बलूचियों के संहार के बावजूद दुनिया की निगाह इस पर नहीं गई है।
इस क्षेत्र का इतिहास टूटे हुए वादों, मानवाधिकार उल्लंघन, गरीबी और प्रभावशाली पंजाबियों के दमनकारी शासन की गवाही देता है। पाकिस्तान का कहना है कि बलूचिस्तान की अशांति के पीछे भारत की खुफिया संस्था रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) का हाथ है। भारत इसे गलत बताता है। ऐतिहासिक रूप से बलूचिस्तान कभी भी उपमहाद्वीप का हिस्सा नहीं रहा। यह ब्रिटिश राज के तहत चार शाही सत्ताओं, कलात, लासबेला, खारन और मकरान को मिलाकर बना था। यह क्षेत्र भारत या पाकिस्तान के बजाय अफगानिस्तान और ईरान से अधिक मिलता-जुलता दिखता है।

यह आमतौर से माना जाता है कि पाकिस्तान के संस्थापक और प्रथम गवर्नर-जनरल मोहम्मद अली जिन्ना ने अंतिम स्वाधीन बलूच शासक मीर अहमद यार खान को पाकिस्तान में शामिल होने के समझौते पर दस्तखत करने के लिए मजबूर किया था।
इतिहास के कुछ पन्नों में यह भी दर्ज है कि जिन्ना ने पाकिस्तान के अस्तित्व में आने से कुछ पहले ब्रिटिश हुक्मरानों से बलूचिस्तान की आजादी पर सौदा किया था। हालांकि, इस बात को गलत बताने वाले भी मौजूद हैं।

11 अगस्त 1947 की एक शासकीय सूचना से पता चलता है कि पाकिस्तान और इस इलाके के बीच एक समझौता हुआ था। यह तय हुआ था कि पाकिस्तान और खान के बीच रक्षा, विदेश मामले और संचार के मामलों में सहमति तक पहुंचने के लिए चर्चा होगी। इस समझौते के बावजूद पाकिस्तानी सेना 26 मार्च 1948 को बलूचिस्तान के तटीय इलाकों में घुस आई। कुछ दिन बाद कराची में ऐलान किया गया कि खान अपने राज्य के पाकिस्तान में विलय पर राजी हो गए हैं।
इसके बाद जो हुआ, वह रक्तपात, मूल अधिकारों के हनन, हर तरह से वंचित किए जाने और क्षेत्र की आजादी के लिए उठने वाली किसी भी आवाज को बर्बरतापूर्वक कुचले जाने की दास्तान है। पिछले साल जिनेवा में 'बलूचिस्तान इन द शैडोज' नाम से कांफ्रेंस हुई थी। कांफ्रेंस के बाद तैयार एक रिपोर्ट में कहा गया था, "बलूचिस्तान में मानवाधिकारों की स्थिति बुरी तरह से खराब हो रही है। नागरिकों को सुरक्षा देने और कानून का राज कायम रखने के बुनियादी कर्तव्य में क्षेत्र की सरकारें नाकाम साबित हुई हैं।
पाकिस्तान द्वारा संसाधनों की लूट और दमनकारी शासन के खिलाफ बलूची 1948 से अब तक पांच बार कम तीव्रता का सशस्त्र संघर्ष छेड़ चुके हैं। मशहूर बलूच कार्यकर्ता नाएला कादरी ने अप्रैल में आईएएनएस से एक खास मुलाकात में आरोप लगाया था कि 'राजनैतिक, लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष स्वतंत्रता संघर्ष को दबाने के लिए पाकिस्तान नरंसहार कर रहा है।'

कादरी ने कहा था, बीते एक दशक में 2 लाख बलूचियों को मार डाला गया है। 25000 मर्द और औरतें लापता हुई हैं, जिनमें पाकिस्तान की सेना का हाथ रहा है। वो लोग नरंसहार की पहचान के लिए निर्धारित संयुक्त राष्ट्र के सभी आठ संकेतों पर अमल कर रहे हैं और इसमें अमानवीयकरण, ध्रुवीकरण, विनाश और अस्वीकार भी शामिल हैं।

बेटी बचाओ अभियान की शुरुआत लगभग 1450 साल पहले ”मुहम्मद मुस्तफा सअव’ ने की थी


बेटी बचाओ अभियान की शुरुआत लगभग 1450 साल पहले ”मुहम्मद मुस्तफा सअव’ ने की थी।

उस जाहिलियत के ज़माने में लोग अपनी मासूम बच्चियों को सामने बिठाकर कब्र खोदते थे, फिर उस बच्ची के हाथ में गुड़िया देकर, उसे मिठाई का टुकड़ा थमाकर, उसे नीले पीले और सुर्ख रंग के कपड़े देकर उस कब्र में बिठा देते थे, बच्ची उसे खेल समझती थी, वो क़ब्र में कपड़ों, मिठाई के टुकड़ों और गुड़ियाओं के साथ खेलने लगती थी फिर ये लोग अचानक उस खेलती, मुस्कुराती और खिलखिलाती बच्ची पर रेत और मिट्टी डालने लगते थे।
बच्ची शुरू-शुरू में उसे भी खेल ही समझती थी, लेकिन जब रेत मिट्टी उसकी गर्दन तक पहुँच जाती तो वो घबराकर अपने वालिद, अपनी माँ को आवाजें देने लगती थी, लेकिन ज़ालिम वालिद मिट्टी डालने की रफ्तार और तेज कर देता था।
ये लोग इस अमल के बाद वापस जाते थे तो उन मासूम बच्चियों की सिसकियाँ घरों के दरवाजों तक उनका पीछा करती थीं, लेकिन उन ज़ालिमों के दिल स्याह हो चुके थे जो नर्म नहीं होते थे।
बहुत से ऐसे भी लोग थे जिनसे “इस्लाम” कुबूल करने से पहले माज़ी में ऐसी गलतियाँ हुई थीं
एक ने वाक़या सुनाया
मैं अपनी बेटी को क़ब्रस्तान लेकर जा रहा था, बच्ची ने मेरी उंगली पकड़ रखी थी, उसे बाप की उंगली पकड़े हुऐ खुशी हो रही थी, वो सारा रस्ता अपनी तोतली
ज़बान में मुझसे फरमाइशें भी करती रही और मैं सारा रस्ता उसे और उसकी फरमाइशों को बहलाता रहा।
मैं उसे लेकर क़ब्रस्तान पहुँचा, मैंने उसके लिये क़ब्र की जगह चुनी, मैं नीचे ज़मीन पर बैठा अपने हाथों से रेत मिट्टी उठाने लगा, मेरी बेटी ने मुझे काम करते देखा तो वो भी मेरा हाथ बँटाने लगी, वो भी अपने नन्हें हाथों से मिट्टी खोदने लगी, हम दोनों बाप बेटी मिलकर मिट्टी खोदते रहे, मैंने उस दिन साफ कपड़े पहन रखे थे, मिट्टी खोदने के दौरान मेरे कपड़ों पर मिट्टी लग गई, मेरी बेटी ने कपड़ों पर मिट्टी देखा तो उसने अपने हाथ झाड़े, अपने हाथ अपनी कमीज़ में पोंछे और मेरे कपड़ों में लगी मिट्टी साफ़ करने लगी…।
क़ब्र तय्यार हुई तो मैंने उसे क़ब्र में बैठाया और उस पर मिट्टी डालना शुरू कर दिया, वो भी अपने नन्हे हाथों से अपने ऊपर मिट्टी डालने लगी, वो मिट्टी डालती जाती खिलखिलाती रहती और मुझ से फरमाइशें करती जाती थी, लेकिन मैं दिल ही दिल में अपने झूठे खुदाओं से दुवा कर रहा था कि तुम मेरी बेटी की कुरबानी कुबूल कर लो और मुझे अगले साल बेटा दे दो…। मैं दुवा करता रहा और बेटी मिट्टी में दफ़्न होती रही…।
मैंने आखिर में जब उसके सर पर मिट्टी डालना शुरू किया तो उसने सहमी सी नज़रों से मुझे देखा और तोतली ज़बान में पूछा: “अब्बाजान! मेरी जान आप पर कुरबान मगर आप मुझे मिट्टी में दफ़्न क्यूँ कर रहे हो…” ?
मैंने अपने दिल पर पत्थर रख लिया और दोनों हाथों से और तेजी के साथ कब्र पर मिट्टी फेंकने लगा…।
मेरी बेटी रोती रही, चींखती रही, दुहाइयाँ देती रही लेकिन मैंने उसे मिट्टी में दफ़्न कर दिया…।
ये वो आखिरी अल्फ़ाज़ थे, जहाँ रहमतुल आलमीन नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ज़ब्त जवाब दे गया… आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हिचकियाँ बँध गईं, दाढ़ी मुबारक आँसुओं से तर हो गई और आवाज़ हलक मुबारक में फंसने लगी…।
वो शख्स दहाड़े मार-मार के रो रहा था और रहमतुल आलमीन सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हिचकियाँ ले रहे थे, उसने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पूछा- “या रसूलल्लाह! (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) क्या मेरा ये गुनाह भी माफ हो जायेगा…” ?
रहमतुल आलमीन सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आँखों से अश्क़ों की नहरें बह रही थीं…।
अरब के ऐसे माहौल में अल्लाह के रसूल ने उन लोगों को दीन-ए-इस्लाम का सन्देश सुनाया और तमाम मुसीबतें उठा कर दीन को उनके दिलों में उतरा, ये रसूल की बरकत और क़ुरआन की शिक्षा का असर था कि अरब के तमाम बुरे रस्मो रवाज़ एक के बाद एक ख़तम होते चले गए और जो लोग गर्दनों तक बुराइयों में डूबे हुए थे उन्होंने इस्लाम मज़हब अपनाने के बाद मिसालें कायम कर दीं।

वोट की राजनीति

राजनीतिक पार्टियों का क्या है, उन्हें तो बस वोट लेना है, अब वो वोट चाहे समाज को बाँट कर मिले या इंसान को काट कर l समाज में दलित और सवर्ण की राजनीती करने वाले नेताओं को ये सच्चाई शायद समझ ना में आये, लेकिन सवर्ण और दलित के सदभाव और सहयोग की भावना का बेजोड़ उदाहारण है, महाराज सयाजी के मदद की कहानी l जिन सवर्णों के खिलाफ बाबा साहब के नाम का इस्तेमाल किया जाता है, उन्हीं भारत रत्न अम्बेडकर को उनके एक ब्राह्मण शिक्षक महादेव अम्बेडकर ने सामाजिक रूप से भेदभाव होने के कारण अपने नाम के आगे “अम्बेडकर” जोड़ने को कहा था l आज आज़ादी के इतने साल हो गये है, लेकिन ये सामाजिक भेदभाव और दलित-सवर्ण की राजनीती खत्म होने का नाम ही नही ले रही lऐसा कौन होगा जो बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर को नही जानता होगा, जिन्होंने हमारे देश के संविधान को एक बेहतरीन रूप दिया l अम्बेडकर साहब ने तो संविधान को किसी विशेष धर्म या जाति के लिए नही बनाया था, लेकिन आज का परिवेश ऐसा हो गया है, कि अम्बेडकर को राजनीती के तहत जाति विशेष से जोड़ कर देखा जाता है l कुछ राजनैतिक पार्टियाँ तो उन्हें दलित बताकर चुनाव में वोट हड़पने की घटिया राजनीती भी करती हैं l राजनीती भी ऐसी कि बाबा साहब पर सिर्फ और सिर्फ अपना अधिकार समझती हैं l हद तो तब हो जाती है, जब यही राजनीतिक पार्टियाँ भाषण देकर समाज में दलितों को सवर्णों के खिलाफ भड़काती हैं l जिसको आप “तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार” जैसे नारों से समझ सकते हैं, लेकिन आज हम आपको बताते हैं कि आखिर वो कौन थे, जिन्होंने, दलितों के आदर्श माने जाने वाले भीमराव को बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर बनाया l

आपने नेताओं से भाषण के दौरान भीमराव अम्बेडकर का नाम अक्सर सुना होगा, लेकिन जिन्होंने अम्बेडकर को आर्थिक सहायता की, जिससे भीमराव विदेशों में जाकर अपनी पढ़ाई पूरी कर सके, उनका नाम कभी नही सुना होगा l जिनकी वजह से अम्बेडकर ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों में जाकर अपनी पढ़ाई पूरी कर पाये उनका नाम कोई नही लेता l अब इसे दलितों की राजनीति का हिस्सा समझ लीजिये, या फिर कुछ और लेकिन किसी नेता ने कभी नही बताया कि आखिर कौन था वो, जिसने अम्बेडकर को आर्थिक मदद कर उनकी पढ़ाई पूरी करवाई, और इस लायक बनाया कि देश का संविधान बनाने में देश की मदद कर सके l तो चलिए हम आपको बताते हैं, कि क्या है पूरी कहानी l

बड़ोदरा रियासत के महाराजा सयाजी गायकवाड़ जी को एक बार एक दलित युवक ने चिट्ठी लिखी, और पढ़ाई के लिए ब्रिटेन और अमेरिका जाने के लिए आर्थिक मदद लिए निवेदन किया l चिट्ठी के साथ उसने अपनी मार्कशीट भी लगाकर भेजी थी l पत्र के बाद महाराज ने उस युवक को बुलाने का आदेश दिया, और जब युवक महाराज के सामने आया तो राजा ने उसकी प्रशंसा करते हुए कहा, कि ‘पढने में अच्छे हो’, उसके बाद महाराजा ने उसे पूरा खर्च दिया, और पढने के लिए भेज दिया l इतना ही नहीं उन्होंने उसके रहने का इन्तजाम भी करवा दिया l

राजनीतिक पार्टियों का क्या है, उन्हें तो बस वोट लेना है, अब वो वोट चाहे समाज को बाँट कर मिले या इंसान को काट कर l समाज में दलित और सवर्ण की राजनीती करने वाले नेताओं को ये सच्चाई शायद समझ ना में आये, लेकिन सवर्ण और दलित के सदभाव और सहयोग की भावना का बेजोड़ उदाहारण है, महाराज सयाजी के मदद की कहानी l जिन सवर्णों के खिलाफ बाबा साहब के नाम का इस्तेमाल किया जाता है, उन्हीं भारत रत्न अम्बेडकर को उनके एक ब्राह्मण शिक्षक महादेव अम्बेडकर ने सामाजिक रूप से भेदभाव होने के कारण अपने नाम के आगे “अम्बेडकर” जोड़ने को कहा था l आज आज़ादी के इतने साल हो गये है, लेकिन ये सामाजिक भेदभाव और दलित-सवर्ण की राजनीती खत्म होने का नाम ही नही ले रही l

अब 6 GB-8 GB डेटा पैक के साथ कीजिए अनलिमिटेड फोन कॉल, फ्री रोमिंग भी

वोडाफोन ने डाटा और फ्री कॉल्‍स ऑफर के बाद अब पोस्‍टपेड कस्‍टमर्स को लुभाने के लिए नए ऑफर जारी किए हैं। कंपनी ने गुरुवार को वोडाफोन रेड नाम से प्‍लान जारी किया। यह प्‍लान ज्‍यादातर सफर करने वाले और वॉइस कॉल्‍स व डाटा इस्‍तेमाल करने वाले लोगों को ध्‍यान में रखते हुए तैयार किया गया है। यह प्‍लान 499 रुपये से शुरू होता है और 1999 रुपये तक जारी रहता है। इसमें रोमिंग सुविधा के साथ ही फ्री कॉलिंग और सस्‍ता डाटा भी मिलता है। उदाहरण के लिए 1999 रुपये के पैक में पोस्‍टपेड कस्‍टमर्स को अनलिमिटेड रोमिंग, अनलिमिटेड वॉइस कॉलिंग और 8 जीबी डाटा मिलेगा।
वहीं 1699 रुपये के प्‍लान में फ्री रोमिंग(इनकमिंग कॉल्‍स), अनलिमिटेड वॉइस कालिंग और 6 जीबी डाटा मिलता है। वोडाफोन रेड में शुरुआती स्‍तर के प्‍लान भी शामिल है। इनकी कीमतें 499, 699 और 999 रुपये है। इनमें डबल डाटा और आकर्षक टॉकटाइम की सुविधा मिलती है। इससे पहले महीने की शुरुआत में वोडाफोन ने एलान किया था कि जिन ग्राहकों के फोन किसी कारण से कट जाएंगे उन्‍हें बात करने के लिए 10 मिनट दिए जाएंगे। कंपनी की ओर से कहा गया है, ”वोडाफोन रेड ऑल इन वन प्‍लान है। इसे हाई वैल्‍यू पोस्‍टपेड उपभोक्‍ताओं के लिए बनाया गया है। पोस्‍टपेड कस्‍टमर के व्‍यवहार में देखा गया है कि वह काफी समय रोमिंग में गुजारते हैं और डाटा यूज करते हैं।”
हाल के दिनों में एयरटेल, वोडाफोन और आइडिया सेल्‍युलर ने डाटा टैरिफ में 67 प्रतिशत तक की कटौती की है। बताया जा रहा है कि यह सब मुकेश अंबानी की रिलायंस जियो के चलते कंपनियां अपने प्‍लान सस्‍ते कर रही हैं। माना जा रहा है कि जियो अगले कुछ महीनों में अपनी सेवाएं जारी कर देगी।

साभार
वोडाफ़ोन डॉट कॉम