8/29/2016

सेंधा नमक भारत से कैसे गायब कर दिया गया

सेंधा नमक : भारत से कैसे गायब कर दिया गया.
सेंधा नमक वात, पित्त और कफ को दूर करता है
सेंधा नमक :-
आप सोच रहे होंगे की ये सेंधा नमक बनता कैसे है ? आइये आज हम आपको बताते हैं कि नमक मुख्य कितने प्रकार होते हैं !
एक होता है समुद्री नमक दूसरा होता है काला नमक और तीसरा सेंधा नमक (rock slat)
सेंधा नमक बनता नहीं है पहले से ही बना बनाया है। पूरे उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप में खनिज पत्थर के नमक को ‘सेंधा नमक’ या
सैन्धव नमक’, लाहोरी नमक आदि आदि नाम से जाना जाता है।जिसका मतलब है ‘सिंध या
सिन्धु के इलाक़े से आया हुआ। वहाँ नमक के बड़े बड़े पहाड़ है सुरंगे है,वहाँ से ये नमक आता है मोटे मोटे टुकड़ो मे होता है आजकल पीसा हुआ भी आने लगा है ।यह ह्रदय के लिये उत्तम, दीपन और पाचन मे मदद रूप, त्रिदोष शामक, शीतवीर्य अर्थात ठंडी तासीर वाला, पचने मे हल्का है । इससे पाचक रस बढते हैं। तों अंत आप ये समुद्री नमक के चक्कर से बाहर निकले काला नमक ,सेंधा नमक प्रयोग करे ,क्यूंकि ये प्रकति का बनाया है ईश्वर का बनाया हुआ है  और सदैव याद रखे इंसान जरूर शैतान हो सकता है लेकिन भगवान कभी शैतान नहीं होता।
आयोडीन के नाम पर हम जो नमक खाते हैं उसमें कोर्इ तत्व नहीं होता। आयोडीन और फ्रीफ्लो नमक बनाते समय नमक से सारे तत्व निकाल लिए जाते हैं और उनकी बिक्री अलग से करके बाजार में सिर्फ सोडियम वाला नमक ही उपलब्ध होता है जो आयोडीन की कमी के नाम पर पूरे देश में बेचा जाता है, जबकि आयोडीन की कमी सिर्फ पर्वतीय क्षेत्रों में ही पार्इ जाती है इसलिए आयोडीन युक्त नमक केवल उन्ही क्षेत्रों के लिए जरुरी है।
भारत मे 1930 से पहले कोई भी समुद्री नमक नहीं खाता था विदेशी कंपनीया भारत मे नमक के व्यापार मे आज़ादी के पहले से उतरी हुई है ,उनके कहने पर ही भारत के अँग्रेजी प्रशासन द्वारा भारत की भोली भली जनता को आयोडिन मिलाकर समुद्री नमक खिलाया जा रहा है
हुआ ये कि जब ग्लोबलाईसेशन के बाद बहुत सी विदेशी कंपनियो( कैपटन कुक ) ने नमक बेचना शुरू किया तब ये सारा खेल शुरू हुआ। अब समझिए खेल क्या था ,खेल ये था कि विदेशी कंपनियो को नमक बेचना है और बहुत मोटा लाभ कमाना है और लूट मचानी है तो पूरे भारत मे एक नई बात फैलाई गई कि आयोडीन युक्त नामक खाओ ,आयोडीन युक्त नमक खाओ ! आप सबको आयोडीन की कमी हो गई है !
ये सेहत के लिए बहुत अच्छा है आदि आदि बातें पूरे देश मे प्रायोजित ढंग से फैलाई गई और जो नमक किसी जमाने मे 2 से 3 रूपये किलो मे बिकता था ! उसकी जगह आयोडीन नमक के नाम पर सीधा भाव पहुँच गया 8 रूपये प्रति किलो ! और आज तो 20 Rs को भी पार कर गया है।
दुनिया के 56 देशों ने अतिरिक्त आयोडीन युक्त नमक 40 साल पहले बेन कर दिया अमेरिका मे नहीं है जर्मनी मे नहीं है फ्रांस मे नहीं ,डेन्मार्क मे नहीं , यही बेचा जा रहा है डेन्मार्क की सरकार ने 1956 मे आयोडीन युक्त नमक बैन कर दिया क्यों उनकी सरकार ने कहा हमने मे आयोडीन युक्त नमक खिलाया (1940 से 1956 तक ) अधिकांश लोग नपुंसक हो गए,जनसंख्या इतनी कम हो गई कि देश के खत्म होने का खतरा हो गया।उनके वैज्ञानिको ने कहा कि आयोडीन युक्त नमक बंद करवाओ तो उन्होने बैन लगाया और शुरू के दिनो मे जब हमारे देश मे ये आयोडीन का खेल शुरू हुआ इस देश के बेशर्म नेताओ ने कानून बना दिया कि बिना आयोडीन युक्त नमक बिक नहीं सकता भारत मे  वो कुछ समय पूर्व किसी ने कोर्ट मे मुकदमा दाखिल किया और ये बैन हटाया गया।
आज से कुछ वर्ष पहले कोई भी समुद्री नमक नहीं खाता था सब सेंधा नमक ही खाते थे !
सेंधा नमक के उपयोग से रक्तचाप और बहुत ही गंभीर बीमारियों पर नियन्त्रण रहता है ।! क्योंकि ये अम्लीय नहीं ये क्षारीय है (alkaline ) क्षारीय चीज जब अमल मे मिलती है तो वो न्यूटल हो जाता है ! और रक्त अमलता खत्म होते ही शरीर के 48 रोग ठीक हो जाते हैं ये नमक शरीर में पूरी तरह से घुलनशील है और सेंधा नमक की शुद्धता के कारण आप एक और बात से पहचान सकते हैं कि उपवास ,व्रत मे सब सेंधा नमक ही खाते है तो आप सोचिए जो समुंदरी नमक आपके उपवास को अपवित्र कर सकता है वो आपके शरीर के लिए कैसे लाभकारी हो सकता है ? सेंधा नमक शरीर मे 97 पोषक तत्वो की कमी को पूरा करता है। इन पोषक तत्वो की कमी ना पूरी होने के कारण ही लकवे (paralysis ) का अटैक आने का सबसे बढ़ा जोखिम होता है सेंधा नमक के बारे में आयुर्वेद में बोला गया है कि यह आपको इसलिये खाना चाहिए क्योंकि सेंधा नमक वात, पित्त और कफ को दूर करता है। यह पाचन में सहायक होता है और साथ ही इसमें पोटैशियम और मैग्नीशियम पाया जाता है जो हृदय के लिए लाभकारी होता है। यही नहीं आयुर्वेदिक औषधियों में जैसे लवण भाष्कर, पाचन चूर्ण आदि में भी प्रयोग किया जाता है।
समुद्री नमक :-
ये जो समुद्री नमक है आयुर्वेद के अनुसार ये तो अपने आप मे ही बहुत खतरनाक है ! क्योंकि कंपनियाँ इसमे अतिरिक्त आयोडीन डाल रही है । अब आयोडीन भी दो तरह का होता है एक तो भगवान का बनाया हुआ जो पहले से नमक मे होता है , दूसरा होता है industrial iodine ।ये बहुत ही खतरनाक है तो समुद्री नमक जो पहले से ही खतरनाक है उसमे कंपनिया अतिरिक्त industrial iodine डाल के पूरे देश को बेच रही है जिससे बहुत सी गंभीर बीमारियां हम लोगो को हो रही है । ये नमक मानव द्वारा फ़ैक्टरियों मे निर्मित है ।
आम तौर से उपयोग मे लाये जाने वाले समुद्री नमक से उच्च रक्तचाप (high BP ) ,डाइबिटज़,
आदि गंभीर बीमारियो का भी कारण बनता है । इसका एक कारण ये है कि ये नमक अम्लीय (acidic) होता है ! जिससे रक्त अम्लता बढ़ती है और रक्त अमलता बढने से ये सब 48 रोग आते है । ये नमक पानी कभी पूरी तरह नहीं घुलता हीरे (diamond ) की तरह चमकता रहता है इसी प्रकार शरीर के अंदर जाकर भी नहीं घुलता और अंत इसी प्रकार किडनी से भी नहीं निकल पाता और पथरी का भी कारण बनता है और ये नमक नपुंसकता और लकवा (paralysis ) का बहुत बड़ा कारण है समुद्री नमक से सिर्फ शरीर को 4 पोषक तत्व मिलते है ! और बीमारिया जरूर साथ मे मिल जाती है !
रिफाइण्ड नमक में 98% सोडियम क्लोराइड ही है शरीर इसे विजातीय पदार्थ के रुप में रखता है। यह शरीर में घुलता नही है। इस नमक में आयोडीन को बनाये रखने के लिए Tricalcium Phosphate, Magnesium Carbonate, Sodium Alumino Silicate जैसे रसायन मिलाये जाते हैं जो सीमेंट बनाने में भी इस्तेमाल होते है। विज्ञान के अनुसार यह रसायन शरीर में रक्त वाहिनियों को कड़ा बनाते हैं जिससे ब्लाक्स बनने की संभावना और आक्सीजन जाने मे परेशानी होती है, जोड़ो का दर्द और गढिया, प्रोस्टेट आदि होती है। आयोडीन नमक से पानी की जरुरत ज्यादा होती है। 1 ग्राम नमक अपने से 23 गुना अधिक पानी खींचता है। यह पानी कोशिकाओ के पानी को कम करता है। इसी कारण हमें प्यास ज्यादा लगती है।
एक निवेदन :-
पांच हजार साल पुरानी आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में भी भोजन में सेंधा नमक के ही इस्तेमाल की सलाह दी गई है। भोजन में नमक व मसाले का प्रयोग भारत, नेपाल, चीन, बंगलादेश और पाकिस्तान में अधिक होता है। आजकल बाजार में ज्यादातर समुद्री जल से तैयार नमक ही मिलता है। जबकि 1960 के दशक में देश में लाहौरी नमक मिलता था। यहां तक कि राशन की दुकानों पर भी इसी नमक का वितरण किया जाता था। स्वाद के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होता था। समुद्री नमक के बजाय सेंधा नमक का प्रयोग होना चाहिए।
आप इस अतिरिक्त आयोडीन युक्त समुद्री नमक खाना छोड़िए और उसकी जगह सेंधा नमक खाइये  सिर्फ आयोडीन के चक्कर में समुद्री नमक खाना समझदारी नहीं है, क्योंकि जैसा हमने ऊपर बताया Vआयोडीन हर नमक मे होता है सेंधा नमक मे भी आयोडीन होता है बस फर्क इतना है इस सेंधा नमक मे प्राकृति के द्वारा भगवान द्वारा बनाया आयोडीन होता है इसके इलावा आयोडीन हमें आलू, अरबी के साथ-साथ हरी सब्जियों से भी मिल जाता है।

8/27/2016

बॉयफ्रेंड के बावजूद लड़कियां इसलिए करती है दूसरे लड़कों के साथ बेवफ़ाई

लड़कियां अपने बॉयफ्रेंड के होते हुए भी दूसरे लड़कों के साथ प्यार भरी बातें करती नजर आतीं हैं। जानें इसका कारण...

किसी भी रिलेशनशिप में प्यार और विश्वास का होना बहुत जरूरी है, लेकिन कई बार सुनने को मिलता है कि फलां शख्स अपने पार्टनर को छोड़कर किसी अन्य के साथ फ्लर्ट कर रहा है। ऐसा सिर्फ लड़के ही नहीं बल्कि लड़कियां भी करतीं हैं। लड़कियां अपने बॉयफ्रेंड के होते हुए भी दूसरे लड़कों के साथ प्यार भरी बातें करती नजर आतीं हैं। यदि आपके साथ भी ऐसा ही कुछ हो रहा है तो हैरान नहीं हों। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं।

इनमें से एक ये हो सकता है कि कई लड़कियों को औरों के मुकाबले थोड़ा ज्यादा केयर व अटेंशन चाहिए होता है। यदि उन्हें अपने बॉयफ्रेंड से ये नहीं मिलता तो वो दूसरे लड़कों की तरफ खिंचने लगती हैं। ऐसे कई और कारण हो सकते हैं जिन्हें जान लेना आपके लिए मददगार साबित हो सकता है और आप अपनी गर्लफ्रेंड को खोने से बच सकते हैं।

कई बार लोग रिश्ते में ताजगी बनाए रखने के लिए भी ऐसा करते हैं और फ्लर्ट करने को अच्छा भी मानते हैं। हो सकता है आपकी पार्टनर सिर्फ मस्ती-मजाक कर रही हो तो पहले सारी बातें जान लेना ही बेहतर है।
कहीं आपकी पार्टनर आपके होते हुए भी खुद को अकेला तो महसूस नहीं करती। कई बार लड़कियां असुरक्षा की भावना में आकर भी ऐसा कर बैठती हैं।
अगर आपकी गर्लफ्रेंड बहुत ज्यादा अटेंशन मांगती है तो आपको उसका बहुत ज्यादा ख्याल रखने और प्यार देने की जरूरत है क्योंकि ऐसे स्वभाव की लड़कियां कभी नहीं बदलती हैं।

चौथा कारण ये हो सकता है कि आप रोमांटिक नहीं हैं इसलिए आपकी पार्टनर आपको बोरिंग इंसान समझती है। कई बार ऐसी समस्या भी फ्लर्ट करने का कारण बन जाती है।
अगर आपकी पार्टनर आपको जलाने के लिए ऐसा करती है तो फिर आपको परेशान होने की जरूरत नहीं क्योंकि वह आपका ध्यान अपनी तरफ खींचने के लिए ऐसा कर रही है।
कई बार तो लड़कियां अपना रिश्ता खत्म करने के लिए भी ऐसा करती हैं।

8/25/2016

आखिर कैसे एक जनजाति विशेष के देवता श्रीकृष्ण हिंदू धर्म के परम ईश्वर बन गए?

आखिर कैसे एक जनजाति विशेष के देवता श्रीकृष्ण हिंदू धर्म के परम ईश्वर बन गए?

कृष्ण की कहानी वृष्णिवंशी जनजाति के नायक के तौर पर शुरू होती है और अंत होने तक यहां उन्हें विष्णु के अवतार के साथ ही परम ईश्वर भी मान लिया जाता है।

हिंदू धर्मग्रंथों में जितने भी देवी-देवताओं का जिक्र मिलता है, उनमें श्रीकृष्ण सबसे लोकप्रिय हैं. ग्वालों के बालगोपाल, प्रेम के देवता, धर्म के उपदेशक और एक योद्धा भी. उनकी पूरी कहानी (इसे कृष्णगाथा भी कह सकते हैं) में कई असमान तत्वों का सामंजस्यपूर्ण और सुसंगत मेल है. कृष्ण की कहानी 800 साल के लंबे अंतराल में विकसित हुई है. लेकिन दिलचस्प बात है कि कहानी का यह विकास उल्टे क्रम में हुआ है. पहले यहां पांडवों के मित्र और द्वारका के संस्थापक के रूप में युवा कृष्ण सामने आते हैं. फिर गायें चराने वाले ग्वालों के गोपाल और ग्वालिनों के साथ रास रचाने वाले प्रेम के प्रतीक कृष्ण का वर्णन आता है.
कृष्ण की कहानी यादवों से ही संबंधित वृष्णिवंशी जनजाति के नायक के तौर पर शुरू होती है. और अंत होने तक उन्हें विष्णु के अवतार के साथ ही परम ईश्वर भी मान लिया जाता है.
कृष्ण का सबसे पहला जिक्र छठी शताब्दी ईसापूर्व ‘छंदोग्य उपनिषद’ में मिलता है. इसमें उन्हें एक साधु और उपदेशक बताया गया है.

वासुदेव और कृष्ण
ब्रिटेन में लैंकास्टर विश्वविद्यालय के धार्मिक अध्ययन विभाग में मानद शोधकर्ता रहीं फ्रीडा मैशे ने एक किताब लिखी है, ‘कृष्ण; ईश्वर या अवतार? कृष्ण और विष्णु के बीच संबंध’. इसमें वे लिखती हैं कि कृष्ण-वासुदेव, पहले सतवत और वृष्णिवंशी यादवों के नायक हुआ करते थे. जिन्हें समय के साथ-साथ देवता मान लिया गया. फिर दोनों एक-दूसरे के समानार्थी हो गए, एक हो गए.

कृष्ण का सबसे पहला जिक्र छठी शताब्दी ईसापूर्व ‘छंदोग्य उपनिषद’ में मिलता है. इसमें उन्हें एक साधु और उपदेशक बताया गया है. साथ ही, देवकीपुत्र के रूप में भी उनका उल्लेख है. चौथी शताब्दी ईसापूर्व में पाणिनि की ‘अष्टाध्यायी’ (संस्कृत व्याकरण का ग्रंथ) में कृष्ण को एक देव की तरह पेश किया गया. साथ ही, वृष्णिवंशी यादव जनजाति के बारे में भी विस्तार से बताया गया, जिससे कृष्ण जुड़े हुए थे. मौर्य राजदरबार में ग्रीस के दूत रहे मेगास्थनीस की किताब ‘इंडिका’ में बताया गया है कि किस तरह शूरसेनियों (वृष्णिवंशी यादवों की ही एक शाखा) ने मथुरा में कृष्ण की देवता की तरह पूजा करना शुरू की. इस तरह चौथी शताब्दी ईसापूर्व में कृष्ण-वासुदेव न सिर्फ नायक से देवता के रूप में परिवर्तित हुए, बल्कि काफी लोकप्रिय भी हो चुके थे.

विष्णु रूप कृष्ण
दूसरी शताब्दी ईसापूर्व तक वैदिक पूजा पद्धति कठोर हो चुकी थी और उसके धार्मिक संस्कार महंगे. इसी दौरान सम्राट अशोक के समर्थन और प्रचार कार्य से ऊर्जा पाकर बौद्ध दर्शन अपना आधार बढ़ाता जा रहा था. इसी बीच, बड़े पैमाने पर विदेशी आक्रमणकारियों (जैसे शक आदि) का भारत में आना भी शुरू हो गया. उनके लिए बौद्ध दर्शन और अन्य प्रचलित साम्प्रदायिक मत ज्यादा मुफीद थे. ऐसे में, पुरोहित वर्ग के अधिकार और असर में कमी आने लगी. निचले वर्णों की आर्थिक स्थिति भी बेहतर हुई और उन्होंने वर्ण व्यवस्था को चुनौती देना शुरू कर दी. और जैसा कि सुवीरा जायसवाल अपनी किताब ‘वैष्णववाद की उत्पत्ति और विकास’ में लिखती हैं, ‘ब्राह्मणों ने कृष्ण-वासुदेव के भक्ति-पंथ पर कब्जा कर लिया. वे कृष्ण को नारायण-विष्णु का स्वरूप बताने लगे. इसके पीछे उनका मकसद संभवत: सामाजिक आचार-व्यवहार में ब्रह्मणत्व का अधिकार और प्रभुत्व एक बार फिर से स्थापित करना था.’ यहां जिक्र करना दिलचस्प होगा कि नारायण और विष्णु भी पहले अलग देवों की तरह पूजे जाते थे. बाद में दोनों को एक ही मान लिया गया.
महाभारत में तमाम जगहों पर उस असमंजस या दुविधा का भी जिक्र मिलता है कि किसी अनार्य जनजातीय देव (कृष्ण) को परमेश्वर का दर्जा कैसे दिया जाए.

यानी इस काल में कृष्ण-वासुदेव का नारायण-विष्णु के साथ घालमेल हो गया. उन्हें महाभारत के युद्ध के नायक का दर्जा मिला. साथ ही भगवद् गीता का उपदेश देने वाले उपदेशक के रूप में भी मान्यता मिली. हालांकि महाभारत में ही तमाम जगहों पर उस असमंजस या दुविधा का भी जिक्र मिलता है कि किसी अनार्य जनजातीय देव (कृष्ण) को परमेश्वर का दर्जा कैसे दिया जाए. इसीलिए शुरू-शुरू में कृष्ण-वासुदेव का विवरण नारायण-विष्णु के अंशावतार के रूप में ही दिया जाता है.

बाल कृष्ण
इस तरह, पहली शताब्दी ईसापूर्व तक कृष्ण की पूजा सिर्फ उनके युवा स्वरूप में ही होती थी. वे पांडवों के मित्र, एक उपदेशक, वृष्णिवंशी यादवों के नायक और विष्णु के अंशावतार माने जा चुके थे. लेकिन उनकी महागाथा में एक सबसे अहम चीज अब भी नदारद थी. वह था- उनका बचपन, जिसका आज तक सबसे ज्यादा जिक्र होता है. मगर कालांतर में जब कृष्ण को अभीर (अहीर) जनजाति के देव का दर्जा मिला तो यह कमी भी पूरी हो गई. कृष्ण के साथ गोपाल (गाय चराने और पालने वाले) का मेल भी हो गया. हालांकि यह अब तक साफ नहीं है कि अभीर जनजाति भारतीय उपमहाद्वीप की ही मूल निवासी थी या किसी और जगह से आकर यहां बसी थी. लेकिन इतना साफ है कि ईस्वी की पहली शताब्दी में यह जनजाति सिंधु घाटी के निचले इलाकों में निवास करती थी और बाद में पलायन कर सौराष्ट्र (अब गुजरात) में जा बसी. शक और सातवाहन के शासनकाल में यह जनजाति राजनीतिक रूप से भी सक्रिय हुई.

वृष्णिवंशी यादवों और अभीरों में काफी समानताएं थीं. खासकर दोनों समाजों में महिलाओं को जिस तरह की मान्यता दी जाती थी. संभवत: इन्हीं समानताओं की वजह से वृष्णिवंशियों के कृष्ण-वासुदेव को अभीरों का आराध्य भी मान लिया गया. उदाहरण के लिए दो प्रसंग सामने रखे जा सकते हैं. पहला- महाभारत में अर्जुन को कृष्ण अपनी बहन का हरण कर लेने की सलाह देते हैं. इसके पक्ष में दलील देते हैं कि इस तरह धर्म की रक्षा होगी. लेकिन साथ ही वे शायद यह संकेत भी देते हैं कि महिलाओं का हरण करना वृष्णिवंशियों की सामान्य परंपरा रही होगी. इसी तरह, कृष्ण के श्रीधाम सिधारने के बाद जब अर्जुन अपनी छत्रछाया में वृष्णिवंशी महिलाओं को लेकर मथुरा की ओर जाते हैं, तो उनके काफिले पर अभीरों का हमला हो जाता है. और अभीर हमलावर उस काफिले में शामिल कई महिलाओं का अपहरण कर लेते हैं.

पहली से पांचवीं शताब्दी ईस्वी तक विष्णु पुराण और हरिवंश पुराण जैसे महाकाव्यों ने टूटी हुई उन कड़ियों को जोड़ने का काम किया, जिनसे कृष्ण-वासुदेव और विष्णु-नारायण को समग्र रूप से एक ही रूवरूप में स्थापित किया जा सके.

बहरहाल, कृष्ण-वासुदेव को अभीरों के देव की मान्यता मिलते ही गोपियों के साथ उनके हास-परिहास-रास की कहानियां और प्रसंग भी सामने आने लगते हैं. चूंकि अभीर खानाबदोश किस्म की जनजाति थी, इसलिए उनकी संस्कृति में महिलाओं-पुरुषों के लिए ज्यादा उन्मुक्तता का माहौल था. अभीरों में उन्मुक्तता की यही संस्कृति कृष्ण की रासलीलाओं का आधार भी बनी.

परमेश्वर-कृष्ण
हम जानते हैं कि कृष्ण की कहानी में कृष्ण-गोपाल का सम्मिश्रण बाद में हुआ. क्योंकि महाभारत की मूल कहानी में कहीं भी कृष्ण के बचपन का जिक्र नहीं मिलता. चौथी शताब्दी ईस्वी में जब परिशिष्ट या उपबंध के रूप में महाभारत के साथ हरिवंश पुराण का जोड़ हुआ, तब कृष्ण-अभीर की पहचान को एक सुनिश्चित आकार मिला. इस तरह, पहली से पांचवीं शताब्दी ईस्वी तक विष्णु पुराण और हरिवंश पुराण जैसे महाकाव्यों ने टूटी हुई उन कड़ियों को जोड़ने का काम किया, जिनसे कृष्ण-वासुदेव और विष्णु-नारायण को समग्र रूप से एक ही रूवरूप में स्थापित किया जा सके.

इस तरह, कृष्ण की जो कहानी अब सामने आती है, उसके मुताबिक, वे यादव क्षत्रियों (एक योद्धा जाति) के कुल में पैदा हुए. उनके पिता का नाम वसुदेव था, इसी आधार पर उनका एक नाम वासुदेव भी पड़ गया. उनका मामा कंस आततायी था, उन्हें मारना चाहता था, इसलिए उसके डर से उन्हें रातों-रात चोरी-छिपे ले जाकर अभीरों के संरक्षण में (नंद नामक गोप के घर) छोड़ आया गया. इसके बाद इस गाथा में समय के साथ-साथ गोपियों के प्रेमी, अर्जुन के सारथी और गीता में धर्म का उपदेश देने वाले उपदेशक के तौर पर कृष्ण परिपक्व होते हैं. और इस तरह कृष्णगाथा आखिरकार पूरी होती है. इसके बाद जनजातीय समुदाय के देवता को परम ईश्वर मानने को लेकर महाभारत में शुरू-शुरू दिखी दुविधा भी खत्म हो जाती है. और छठी शताब्दी ईस्वी में लिखी गई भागवत पुराण में उन्हें परमपिता परमेश्वर का दर्जा मिल जाता है.

रुचिका शर्मा
साभार
सत्याग्रह डॉट कॉम

8/24/2016

मुहँ पर नकाब

Wednesday, August 24, 2016 at 11:02 PM फेस कवर कर वाहन चलाने वाली महिलाओं और लड़कियों को एसीपी ने चेतावनी देकर जाने दिया। एसीपी रिचा ने कहा कि दिन में मुंह कवर कर जा रही 46 महिलाओं लड़कियों को रोककर चेक किया गया, लेकिन किसी भी लड़की और महिला को इस संबंधी जानकारी नहीं थी कि पुलिस कमिश्नर की तरफ से इस संबंधी पाबंदी लगाई हुई है और ऐसा करने वालों के खिलाफ 188 के तहत केस दर्ज किया जा रहा है। जानकारी का अभाव होने के कारण उन्होंने लड़कियों को केवल चेतावनी दी है कि अगर भविष्य में फेस कवर कर जाती है तो उनके खिलाफ भी केस दर्ज कर दिया जाएगा। अमृतसर | दोपहिया वाहनों पर फेस कवर करके जा रही लड़कियों और महिलाओं को भी सोमवार दोपहर को राम बाग चौक में रोककर एसीपी ईस्ट रिचा अग्निहोत्री ने चेक किया। इस दौरान लड़कियों से मुंह कवर करने का कारण पूछा गया और साथ ही बताया कि इस पर पाबंदी है, लेकिन महिलाओं और लड़कियों ने साॅरी बोल और यह कहकर अपनी जान छुड़वाई कि उन्हें इस संबंधी जानकारी नहीं है। वह भविष्य में वाहन पर जाते समय अपने मुंह कपड़े के साथ कवर नहीं करेंगी। एसीपी ने इन्हें भी चेतावनी देकर जाने दिया।

8/20/2016

पाकिस्तान में कभी नहीं हुआ बलूचिस्तान का 'विलय', 1947 से ही होते रहे हैं संघर्ष

नई दिल्ली। 15 अगस्त के अपने भाषण के अंत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई एक टिप्पणी ने पाकिस्तान के रिसते बलूचिस्तान के घाव को सबके सामने लाकर रख दिया। भारत लंबे समय से जम्मू एवं कश्मीर में अशांति के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराता रहा है।

अब पाकिस्तान को उसी के अंदाज में जवाब देने की मोदी की रणनीति ने एक ऐसे भानुमति के पिटारे को खोल दिया है, जिसके अपने भू-राजनैतिक निहितार्थ हैं और जो भारत की विदेश नीति की दिशा को बदलने का माद्दा रखती है।
बलूचिस्तान, पाकिस्तान के लिए उतना ही तकलीफ देने वाला रहा है जितना कश्मीर भारत के लिए है, लेकिन पाकिस्तान के इस सबसे बड़े प्रांत पर दुनिया का ध्यान उस तरह से नहीं गया जिस तरह कश्मीर पर गया है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि इस प्रांत को एक ऐसा 'ब्लैक होल' समझा जाता रहा है जहां पत्रकारों को जाने की इजाजत नहीं मिलती। कश्मीर के साथ मामला ऐसा नहीं है।

पाकिस्तान वैश्विक मंचों पर कश्मीर का मुद्दा और भारत के इस एकमात्र मुस्लिम बहुल राज्य में मानवाधिकारों के कथित उल्लंघन को उठाता रहा है। बलूचिस्तान प्रांत क्षेत्रफल के हिसाब से पाकिस्तान में सबसे बड़ा है। इसका क्षेत्रफाल फ्रांस के बराबर है। गैस, सोना, तांबा, तेल, यूरेनियम जैसे संसाधनों से लैस होने के बावजूद यह इलाका विकास में बहुत पीछे है।
1947 में भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान अस्तित्व में आया और वह दिन है और आज का दिन है कि इस प्रांत को शांति की एक मुकम्मल सांस नहीं नसीब हुई। पाकिस्तान के कुल क्षेत्रफल का 40 फीसदी हिस्सा बलूचिस्तान में आता है, लेकिन देश की कुल जनसंख्या की महज चार फीसदी ही यहां रहती है। बलूचिस्तान के अधिकारों के लिए लड़ने वाले कहते हैं कि बलूचियों की स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र की आकांक्षा को पाकिस्तानी सुरक्षा बलों द्वारा रौंदे जाने और बलूचियों के संहार के बावजूद दुनिया की निगाह इस पर नहीं गई है।
इस क्षेत्र का इतिहास टूटे हुए वादों, मानवाधिकार उल्लंघन, गरीबी और प्रभावशाली पंजाबियों के दमनकारी शासन की गवाही देता है। पाकिस्तान का कहना है कि बलूचिस्तान की अशांति के पीछे भारत की खुफिया संस्था रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) का हाथ है। भारत इसे गलत बताता है। ऐतिहासिक रूप से बलूचिस्तान कभी भी उपमहाद्वीप का हिस्सा नहीं रहा। यह ब्रिटिश राज के तहत चार शाही सत्ताओं, कलात, लासबेला, खारन और मकरान को मिलाकर बना था। यह क्षेत्र भारत या पाकिस्तान के बजाय अफगानिस्तान और ईरान से अधिक मिलता-जुलता दिखता है।

यह आमतौर से माना जाता है कि पाकिस्तान के संस्थापक और प्रथम गवर्नर-जनरल मोहम्मद अली जिन्ना ने अंतिम स्वाधीन बलूच शासक मीर अहमद यार खान को पाकिस्तान में शामिल होने के समझौते पर दस्तखत करने के लिए मजबूर किया था।
इतिहास के कुछ पन्नों में यह भी दर्ज है कि जिन्ना ने पाकिस्तान के अस्तित्व में आने से कुछ पहले ब्रिटिश हुक्मरानों से बलूचिस्तान की आजादी पर सौदा किया था। हालांकि, इस बात को गलत बताने वाले भी मौजूद हैं।

11 अगस्त 1947 की एक शासकीय सूचना से पता चलता है कि पाकिस्तान और इस इलाके के बीच एक समझौता हुआ था। यह तय हुआ था कि पाकिस्तान और खान के बीच रक्षा, विदेश मामले और संचार के मामलों में सहमति तक पहुंचने के लिए चर्चा होगी। इस समझौते के बावजूद पाकिस्तानी सेना 26 मार्च 1948 को बलूचिस्तान के तटीय इलाकों में घुस आई। कुछ दिन बाद कराची में ऐलान किया गया कि खान अपने राज्य के पाकिस्तान में विलय पर राजी हो गए हैं।
इसके बाद जो हुआ, वह रक्तपात, मूल अधिकारों के हनन, हर तरह से वंचित किए जाने और क्षेत्र की आजादी के लिए उठने वाली किसी भी आवाज को बर्बरतापूर्वक कुचले जाने की दास्तान है। पिछले साल जिनेवा में 'बलूचिस्तान इन द शैडोज' नाम से कांफ्रेंस हुई थी। कांफ्रेंस के बाद तैयार एक रिपोर्ट में कहा गया था, "बलूचिस्तान में मानवाधिकारों की स्थिति बुरी तरह से खराब हो रही है। नागरिकों को सुरक्षा देने और कानून का राज कायम रखने के बुनियादी कर्तव्य में क्षेत्र की सरकारें नाकाम साबित हुई हैं।
पाकिस्तान द्वारा संसाधनों की लूट और दमनकारी शासन के खिलाफ बलूची 1948 से अब तक पांच बार कम तीव्रता का सशस्त्र संघर्ष छेड़ चुके हैं। मशहूर बलूच कार्यकर्ता नाएला कादरी ने अप्रैल में आईएएनएस से एक खास मुलाकात में आरोप लगाया था कि 'राजनैतिक, लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष स्वतंत्रता संघर्ष को दबाने के लिए पाकिस्तान नरंसहार कर रहा है।'

कादरी ने कहा था, बीते एक दशक में 2 लाख बलूचियों को मार डाला गया है। 25000 मर्द और औरतें लापता हुई हैं, जिनमें पाकिस्तान की सेना का हाथ रहा है। वो लोग नरंसहार की पहचान के लिए निर्धारित संयुक्त राष्ट्र के सभी आठ संकेतों पर अमल कर रहे हैं और इसमें अमानवीयकरण, ध्रुवीकरण, विनाश और अस्वीकार भी शामिल हैं।

बेटी बचाओ अभियान की शुरुआत लगभग 1450 साल पहले ”मुहम्मद मुस्तफा सअव’ ने की थी


बेटी बचाओ अभियान की शुरुआत लगभग 1450 साल पहले ”मुहम्मद मुस्तफा सअव’ ने की थी।

उस जाहिलियत के ज़माने में लोग अपनी मासूम बच्चियों को सामने बिठाकर कब्र खोदते थे, फिर उस बच्ची के हाथ में गुड़िया देकर, उसे मिठाई का टुकड़ा थमाकर, उसे नीले पीले और सुर्ख रंग के कपड़े देकर उस कब्र में बिठा देते थे, बच्ची उसे खेल समझती थी, वो क़ब्र में कपड़ों, मिठाई के टुकड़ों और गुड़ियाओं के साथ खेलने लगती थी फिर ये लोग अचानक उस खेलती, मुस्कुराती और खिलखिलाती बच्ची पर रेत और मिट्टी डालने लगते थे।
बच्ची शुरू-शुरू में उसे भी खेल ही समझती थी, लेकिन जब रेत मिट्टी उसकी गर्दन तक पहुँच जाती तो वो घबराकर अपने वालिद, अपनी माँ को आवाजें देने लगती थी, लेकिन ज़ालिम वालिद मिट्टी डालने की रफ्तार और तेज कर देता था।
ये लोग इस अमल के बाद वापस जाते थे तो उन मासूम बच्चियों की सिसकियाँ घरों के दरवाजों तक उनका पीछा करती थीं, लेकिन उन ज़ालिमों के दिल स्याह हो चुके थे जो नर्म नहीं होते थे।
बहुत से ऐसे भी लोग थे जिनसे “इस्लाम” कुबूल करने से पहले माज़ी में ऐसी गलतियाँ हुई थीं
एक ने वाक़या सुनाया
मैं अपनी बेटी को क़ब्रस्तान लेकर जा रहा था, बच्ची ने मेरी उंगली पकड़ रखी थी, उसे बाप की उंगली पकड़े हुऐ खुशी हो रही थी, वो सारा रस्ता अपनी तोतली
ज़बान में मुझसे फरमाइशें भी करती रही और मैं सारा रस्ता उसे और उसकी फरमाइशों को बहलाता रहा।
मैं उसे लेकर क़ब्रस्तान पहुँचा, मैंने उसके लिये क़ब्र की जगह चुनी, मैं नीचे ज़मीन पर बैठा अपने हाथों से रेत मिट्टी उठाने लगा, मेरी बेटी ने मुझे काम करते देखा तो वो भी मेरा हाथ बँटाने लगी, वो भी अपने नन्हें हाथों से मिट्टी खोदने लगी, हम दोनों बाप बेटी मिलकर मिट्टी खोदते रहे, मैंने उस दिन साफ कपड़े पहन रखे थे, मिट्टी खोदने के दौरान मेरे कपड़ों पर मिट्टी लग गई, मेरी बेटी ने कपड़ों पर मिट्टी देखा तो उसने अपने हाथ झाड़े, अपने हाथ अपनी कमीज़ में पोंछे और मेरे कपड़ों में लगी मिट्टी साफ़ करने लगी…।
क़ब्र तय्यार हुई तो मैंने उसे क़ब्र में बैठाया और उस पर मिट्टी डालना शुरू कर दिया, वो भी अपने नन्हे हाथों से अपने ऊपर मिट्टी डालने लगी, वो मिट्टी डालती जाती खिलखिलाती रहती और मुझ से फरमाइशें करती जाती थी, लेकिन मैं दिल ही दिल में अपने झूठे खुदाओं से दुवा कर रहा था कि तुम मेरी बेटी की कुरबानी कुबूल कर लो और मुझे अगले साल बेटा दे दो…। मैं दुवा करता रहा और बेटी मिट्टी में दफ़्न होती रही…।
मैंने आखिर में जब उसके सर पर मिट्टी डालना शुरू किया तो उसने सहमी सी नज़रों से मुझे देखा और तोतली ज़बान में पूछा: “अब्बाजान! मेरी जान आप पर कुरबान मगर आप मुझे मिट्टी में दफ़्न क्यूँ कर रहे हो…” ?
मैंने अपने दिल पर पत्थर रख लिया और दोनों हाथों से और तेजी के साथ कब्र पर मिट्टी फेंकने लगा…।
मेरी बेटी रोती रही, चींखती रही, दुहाइयाँ देती रही लेकिन मैंने उसे मिट्टी में दफ़्न कर दिया…।
ये वो आखिरी अल्फ़ाज़ थे, जहाँ रहमतुल आलमीन नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ज़ब्त जवाब दे गया… आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हिचकियाँ बँध गईं, दाढ़ी मुबारक आँसुओं से तर हो गई और आवाज़ हलक मुबारक में फंसने लगी…।
वो शख्स दहाड़े मार-मार के रो रहा था और रहमतुल आलमीन सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हिचकियाँ ले रहे थे, उसने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पूछा- “या रसूलल्लाह! (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) क्या मेरा ये गुनाह भी माफ हो जायेगा…” ?
रहमतुल आलमीन सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आँखों से अश्क़ों की नहरें बह रही थीं…।
अरब के ऐसे माहौल में अल्लाह के रसूल ने उन लोगों को दीन-ए-इस्लाम का सन्देश सुनाया और तमाम मुसीबतें उठा कर दीन को उनके दिलों में उतरा, ये रसूल की बरकत और क़ुरआन की शिक्षा का असर था कि अरब के तमाम बुरे रस्मो रवाज़ एक के बाद एक ख़तम होते चले गए और जो लोग गर्दनों तक बुराइयों में डूबे हुए थे उन्होंने इस्लाम मज़हब अपनाने के बाद मिसालें कायम कर दीं।