11/30/2016

भूल चूक लेनी देनी, अब मरहम की प्रतीक्षा


          इरादे नेक हो सकते हैं। लक्ष्य भी निश्चित रूप से सही हैं। काले धन, भ्रष्टाचार और सीमा पार से नकली नोट की घुसपैठ एवं आतंकवादियों की गतिविधियों के विरुद्ध संपूर्ण भारत एकमत है। प्रधानमंत्री ने 500 और 1000 के पुराने करेंसी नोट को तत्काल प्रभाव से अवैध करार देने का फैसला इन मुद्दों से जोड़ा है।

वहीं इस निर्णय को लागू करने में रही कमियों, गड़बड़ियों, गंभीर असुविधाओं, अमीर की अपेक्षा दैनन्दिन आजीविका कमाने वाले गरीबों की गंभीर वित्तीय समस्या अब तक सरकार को भी कुछ हद तक समझ में आ जानी चाहिए थी। जमीनी राजनीति करने वाले भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को भी कार्यकर्ताओं एवं समर्थकों से समस्याओं का अहसास हुआ होगा। प्रधानमंत्री ही नहीं भाजपा अध्यक्ष की पृष्ठभूमि गुजरात की है। गुजरात सहित विभिन्न प्रदेशों के बाजारों में एक पट्टी लिखी दिखाई पड़ती है- 'भूल-चूक लेनी देनी।’ प्रतिपक्ष भी जानता है कि नोटबंदी का ऐतिहासिक फैसला अब वापस नहीं हो सकता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोची समझी राजनीतिक रणनीति के तहत अपने कार्यकाल की आधी अवधि के बाद अपने लोकप्रिय चुनावी वायदे को पूरा करने के लिए यह तोप चलाई है। इस राजनीतिक-आर्थिक गोलाबारी ने सबको हिला दिया है। वहीं साधन संपन्न उद्यमी, व्यापारी, संस्थान, बैंक से जुड़े लोग तात्कालिक गुबार के बाद आर्थिक क्रांति की नई रोशनी की आशा संजोए हुए हैं। खासकर शहरी नई पीढ़ी का बड़ा वर्ग डिजिटल लेन-देन को पसंद करता है। सरकार कैशलेस अर्थव्यवस्था को यथाशीघ्र लागू करना चाहती है। वहीं बैंकों में निजी या व्यावसायिक लेन-देन बढ़ने एवं इस नोटबंदी से जमा विपुल राशि आने पर भाजपा सरकार कुछ विकास एवं कारोबारी के लिए नए महत्वपूर्ण वित्तीय घोषणाएं कर सकी है।

नए वित्तीय वर्ष (2017-18) के आम बजट में वित्तीय सुधारों, करों में राहत, जी. एस. टी. लागू करने के लाभ, उद्योग धंधों के लिए ब्याज दरों में कमी के प्रावधान की गुंजाइश बन सकती है। लेकिन यह स्मरण रखना होगा कि हर आंदोलन और क्रांति के बाद करोड़ों लोगों की अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं। चुनावी वायदों और उन पर आंशिक अमल के बाद भी सूखे गले की प्यास की तरह चाह बढ़ जाती है। भारत की जनता बहुत धैर्यवान है। यह 'आशा पर आकाश टिका है’ वाली स्थिति को गले उतारती रहती है।

नोटबंदी ने गली-मोहल्ले से लेकर राजमार्गों, छोटे-छोटे कल-कारखानों, दुकानों इत्यादि में काम करने वाले मजदूरों के लिए बड़ी संख्या में रोजी-रोटी का संकट पैदा कर दिया  है। उन्हें काम देने वाले लघु-मध्यम उद्यमियों के लिए भी तात्कालिक वित्तीय संकट और उलझन की स्थिति है। भारत सरकार के छठे आर्थिक सेंसेस (2013-14) के अनुसार देश में लगभग 5 करोड़ 80 लाख लघु निजी व्यापारिक संस्थान हैं, जिनमें करीब 13 करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है। पिछले दो वर्षों में इसमें वृद्धि की अनुमानित संख्या 15 से 17 करोड़ बताई जाती है। नोटबंदी से उनके दु:ख-दर्द की दास्तां सड़कों पर देखी-सुनी जा रही है। इस कष्ट के बावजूद लाखों भोले-भाले लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर प्रश्न चिह्न नहीं लगा रहे हैं। दूरदराज के गांवों-खेतों-खलिहानों में काम करने वालों को भी संघर्ष की आदत है। कभी प्रकृति से लड़ना होता है, कभी पुरानी सामाजिक कुरीतियों अथवा बदलती अर्थव्यवस्था की चुनौतियों से निपटना होता है। उन्हें तो छोटे-बड़े नोट और सिक्कों का हिसाब भी दूसरों से समझना पड़ता है। कभी इलाके के दबंग साहूकारों से मदद या ज्यादती झेलनी पड़ी, तो कभी सहकारी आंदोलन में उपजे कई नेताओं अथवा अधिकारियों द्वारा रिश्वतखोरी एवं धमकियों का सामना करना पड़ा। इसलिए भ्रष्टाचार से मुक्ति के हर अभियान में हिंदुस्तान का आम आदमी झंडा लिए खड़ा रहता है। लेकिन अब उसे जयकार के साथ सरकारी खजाने से बजट में अच्छी राहत की उम्मीद है।

जैसा भी हो काला या सफेद धन-अरबों रुपया बैंकों में आ गया है। जन-धन के खाते में तो उसने नाम मात्र की राशि जमा की। मतलब, वह भी अपनी मेहनत की कमाई थी। गरीब को गैस की सब्सिडी भी तभी मिल सकती है, जब उसके पास किसी मकान मालिक से किराए के कमरे का प्रमाण हो या अधिकृत कॉलोनी में काई कच्चा-पक्का मकान होने पर आधार कार्ड बना हो। बहरहाल, उसे मजदूरी बढ़ने, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और इलाज की अच्छी मुफ्त सुविधा, दुकान या कारोबार के लिए इंस्पेक्टर राज से मुक्ति और बैंक से कर्ज लेने पर ब्याज-दरों में कमी जैसी कामनाएं हैं। आप पूंजी निवेश अमेरिका, यूरोप, चीन, रूस या खाड़ी के देशों से लाएं, अधिकाधिक लोगों को रोजगार दिलवाने की व्यवस्था करवाएं। फिलहाल तो बेरोजगारी ही बढ़ती गई है। बैंक से कर्ज पर ब्याज दरों में कमी का दूसरा असर निम्न या मध्यम वर्ग द्वारा जमा की गई धनराशि पर मिलने वाले ब्याज की दरों में भी कटौती होगी। चिंता यही है कि बैंकों की तिजोरी बड़ी कंपनियों के लिए खुलती जाए और पेंशनभोगी लोगों अथवा बचत करने वाली महिलाओं को घाटा हो जाए। नई क्रांति के बहुत पेंच हैं। इनकम टैक्स, जी.एस.टी. ही नहीं हर राज्य में समय-समय पर नए शुल्क लगते रहते हैं। मतलब सरकार को रेगिस्तानी पहाड़ से भी मीठे पानी की गंगा लानी है। सरकार कोशिश करती रहे, लोग भूल-चूक भी माफ करते रहेंगे।

सौजन्य से
न्यूज़ मिडिया,समाचार पत्र.

नोटबंदी से छाएगी मंदी? ख़र्च करें सैलरी, वरना जा सकती है नौकरी..!

अमेरिका में अगर लोग बचत करने लगें और भारत में लोग खर्च करने लगे तो इन दोनों देशों की अर्थव्यवस्था चमकने लगेगी। हालांकि पिछले दो दशक में भारतीयों की खर्च करने की आदत बढ़ी है, लेकिन नोटबंदी ने एक बार फिर लोगों की बचत बढ़ा दी है। नोटबंदी के बाद से अब तक बैंकों के पास 8.11 लाख करोड़ रुपया जमा हुआ है, जबकि नए नोटों के साथ जनता ने करीब 2.5 लाख करोड़ रुपया बैंकों से निकाला है, यानी कुल नोटबंदी का 18 फ़ीसदी रुपया ही बाज़ार में घूम रहा है। ऐसे में इस रुपये की घूमने की गति बढ़ाना नौकरी बचाने के लिए जरूरी है। दिख रहा है कि कैश की किल्लत ने लोगों की खर्च करने की क्षमता को ना सिर्फ कम किया है, बल्कि खर्च करने की उनकी इच्छा पर भी लगाम लगा दी है।

हालांकि ऐसा बिल्‍कुल भी नहीं है कि खर्च करने के अवसर नहीं हैं, या खर्च करने के लिए पैसे नहीं हैं। डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड या फिर इंटरनेट बैंकिंग के ज़रिए नौकरीपेशा आदमी बड़े मज़े से खर्च कर सकता है। लोग ख़र्च करें इस खातिर लगभग सभी रिटेल चेन स्टोर, शॉपिंग मॉल्स, रेस्तरां और ब्रांडेड सामान बेचनेवाले स्टोर्स छोटे-मोटे डिस्काउंट स्कीम्स भी लेकर आए हैं, मगर ग्राहक है कि सीढ़ियां चढ़ने को राजी नहीं है।

नोटबंदी के पहले दो हफ्ते सकुचाने के बाद इस हफ्ते मैंने 12 हज़ार रुपये की शॉपिंग की, जिसमें से की 6 हज़ार रुपये का एक ब्रांडेड ट्रैवल सूटकेस खरीदा, आम दिनों में वही सूटकेस मुझे करीब 12 हज़ार रुपये का पड़ता। नोटबंदी से मेरी तनख्वाह या कार्ड के ज़रिए खर्च करने की क्षमता पर कोई असर नहीं पड़ा – असर पड़ा तो मेरी सोच पर, जिसने मुझे करीब दो हफ्ते तक शॉपिंग मॉल से दूर रखा। यह अनजाना डर उन तमाम 8 करोड़ लोगों में है, जो संगठित क्षेत्र की नौकरी में हैं। लेकिन वो कहते हैं ना, जो डर गया वो मर गया और अगर पहली दिसंबर को तनख्वाह मिलने के बाद भी आपने अपने खर्चों को पहले की तरह नहीं किया तो आपकी नौकरी पर भी संकट आ सकता है।

दरअसल, इसे इस तरह समझिए कि अर्थव्यवस्था में एक व्यक्ति का ख़र्च ही दूसरे व्यक्ति की आय बनता है, तो सीधे शब्दों में अगर हम सबने अपने खर्च कम करने शुरु कर दिए तो अर्थव्यवस्था में मंदी आएगी और उसका असर पक्का हमारी आमदनी और नौकरी पर पड़ेगा। अब इसी बात को दूसरी तरह ऐसे समझिए कि आखिर 100 रुपये की कीमत कितनी है? आप कहेंगे 100 रुपये की कीमत 100 रुपये है, लेकिन मैं कहूंगा कि 100 रुपये की कई हज़ार– कई लाख या कई करोड़ रुपये हो सकती है, और वह इस बात पर निर्भर करता है कि आपकी जेब में रखा सौ रुपया कितनी तेज़ी से आपकी जेब से निकलकर किसी दूसरे तीसरे चौथे और हज़ारों-लाखों-करोड़ो लोगों की जेब का सफ़र तय करता है। यानी की सौ रुपये का एक नोट जितनी तेजी से जेब बदलेगा, या यूं कहें कि बार-बार खर्च होगा, वह उतनी ही बार किसी दूसरे व्यक्ति की आमदनी बनेगा, वह उतनी ही बार 100 रुपये कीमत का सामान या सेवा का उत्पादन करेगा और यूं अर्थवस्वस्था में उसका योगदान, लगातार बढ़ता ही जाएगा।

यकीनन, जिस डिजिटल रुपये वाली अर्थव्यवस्था में देश कदम रख रहा है, उसमें रुपये के घूमने की गति बढ़ जाएगी और जितने वक्त में कैश का एक सौदा होता था, उतने वक्त में ही डिजिटल मनी के सैकड़ों सौदे हो सकेंगे। ठीक वैसे ही जैसे पहले चिठ्ठी के ज़रिए संदेश एक हफ्ते में पहुंचता था और फिर ई-मेल और अब चैट के ज़रिए संदेश रिअल टाइम में पहुंच जाता है। इससे संवाद करने की हमारी शक्ति बढ़ी है। जैसे डिजिटल मैसेजिंग एप्स के ज़रिए संदेश भेजने के अलावा लाइव वीडियो कॉल भी हो रहा है, ठीक वैसे ही डिजिटल इकोनॉमी में ना सिर्फ सौदे तेज़ी से होंगें, उनमें पारदर्शिता और कारोबार में गुणवत्ता भी आएगी।

दरअसल, नोटबंदी से बाज़ार में मौजूद रोकड़ा या कैश, या यूं कहें कि साक्षात नोट की कमी भले ही हो गई है, मगर रुपया कम नहीं हुआ है। यह रुपया आपके बैंक में सुरक्षित है, और आपका ही है और आप जब चाहें जितना चाहें जैसे जिसपर चाहें खर्च करें, मगर क्‍योंकि फिलहाल नए नोटों की कमी है और आप अपना पैसा डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, इंटरनेट बैंकिंग या पेटीएम जैसे डिजिटल बटुए के ज़रिए खर्च कर सकते हैं।

इधर, अलग-अलग विशेषज्ञ अलग-अलग आंकड़े दे रहे हैं कि नोटबंदी से देश की जीडीपी या सकल घरेलू उत्पाद में 2 से 3 फ़ीसदी की गिरावट आएगी और सालाना विकास दर भी घटेगी। ऐसा तभी होगा जब नोट या रोकड़ा की कमी से लोग कम खर्च करेंगे और छोटे मध्यम तथा लघु उद्योगों में काम करने वाले करीब 40 करोड़ असंगठित क्षेत्र के लोगों की आय पर इसका असर पड़ेगा।

मेरे पत्रकार मित्र यतीश राजावत ने अपने एक ताज़ा लेख में कहा है कि अर्थव्यस्था में मंदी ना आए, इसके लिए सरकार को भी खर्च करना होगा और उसे ऐसा तुरंत ही करना पड़ेगा। आमतौर पर सरकार बजट में खर्च के प्रावधान करती है। मगर यह एक असामान्य परिस्थिति है और सरकार को तुरंत ऐसे कदम उठाने होंगे जिससे उन तमाम क्षेत्रों में तेज़ी आए जिनपर नोटबंदी का सीधा असर पड़ा है मसलन, ट्रेड, टूरिज़्म, लॉजिस्टिक, रियल स्टेट, ज्वैलरी और छोटे तथा लघु उद्योग।

दरअसल, इन सभी क्षेत्रों पर नोटबंदी का असर अभी अगले साल भर तक नज़र आएगा ऐसे में सरकार को विदेशी निवेश लाने तथा सामाजिक क्षेत्र एवं आधारभूत क्षेत्र में निवेश को प्राथमिकता देनी होगी। खर्च करने की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी सिर्फ आम जनता पर ही नहीं, बल्कि सरकार पर है ताकि बाज़ार का उत्साह और व्यापार का उत्साह बढ़े। अगर नोटबंदी का मतलब खर्चबंदी बन गई तो समझो कि नौकरी गई, आपकी भी और सरकार की भी।

11/29/2016

30 दिसंबर तक बदल सकती है नोटबंदी की कहानी

एक देश के रूप में मनी लॉन्ड्रिंग की हमारी क्षमता पर एक मजबूत केंद्र सरकार और एक कमजोर केंद्रीय बैंक, दोनों ही कुछ ज्यादा भरोसा करते दिख रहे हैं। डीमॉनेटाइजेशन के ऐलान से रद्द हुए 14.5 लाख करोड़ रुपये के करंसी नोटों में से करीब 8 लाख करोड़ रुपये के नोट बैंकों में जमा हो चुके हैं। आने वाले हफ्तों में घोषित और अघोषित करंसी का कुछ और हिस्सा वैध बैंक डिपॉजिट्स में आ जाएगा। सरकार और आरबीआई ने संभवत: इस कैलकुलेशन के साथ यह बड़ा अभियान शुरू नहीं किया था।

शुरुआती समीकरण बेहद आसान था।
करीब 4-5 लाख करोड़ रुपये बैंकों में आएंगे, जिन्हें सरकारी प्रयास से सामने आए काले धन के रूप में दिखाया जाएगा और बाद में यह रकम आरबीआई की देनदारी से घटा दी जाएगी जिससे बैंकों को नए सिरे से पूंजी दी जा सकेगी, अफोर्डेबल हाउसिंग प्रोजेक्ट्स को स्पॉन्सर किया जा सकेगा और फिस्कल डेफिसिट कम किया जा सकेगा। बैन करंसी में से कुछ तो शायद कभी भी डिपॉजिट में नहीं बदलेगी, लेकिन सरकारी गलियारों में आशंका पैदा हो रही है कि आंकड़ा कम रह सकता है।

सरकार के लिए यह कोई खुशनुमा नतीजा नहीं होगा।
14.5 लाख करोड़ रुपये का कुछ हिस्सा अगर डिपॉजिट्स में बदल भी जाए तो इसका अर्थ या तो यह होगा कि भारी-भरकम बेनामी कैश को इधर-उधर कर दिया गया या फिर ब्लैक मनी का बड़ा हिस्सा कैश के रूप में नहीं है। इससे विपक्ष को हथियार मिल जाएगा। कांग्रेस और वाम दल इस प्वाइंट को हाथ से नहीं जाने देंगे।

विपक्ष कर सकता है सवाल
इसे देखते हुए सरकार ने अब इनकम डिक्लेयरेशन स्कीम जैसी एक योजना का प्रस्ताव रखा है। इसके तहत नोटबंदी का ऐलान होने के बाद बैंकों में जमा की गई अनअकाउंटेड रकम का अगर कोई खुलासा करे तो टैक्स, पेनाल्टी और सरचार्ज के रूप में कुल 50 पर्सेंट भुगतान करने और अनअकाउंटेड रकम का 25 पर्सेंट हिस्सा एक सरकारी स्कीम में चार वर्षों के लिए बिना ब्याज के जमा करने पर उसे मुकदमे का सामना नहीं करना होगा।

सीताराम येचुरी और उनके दोस्तों ने अगर भांप लिया कि इस आईडीएस-2 से अनअकाउंटेड कैश रखने वालों को बचने का रास्ता दिया जा रहा है तो वे हंगामा कर सकते हैं। हालांकि छिपाई गई नकदी को कोई भी बैंक अकाउंट में तब तक नहीं रखने वाला है, जब तक फाइनेंस मिनिस्ट्री यह वादा न करे कि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट और एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट के लोग पीछा नहीं करेंगे। विपक्ष यह सवाल कर सकता है कि डीमॉनेटाइजेशन के बाद भी अगर आईडीएस-2 ही लाना था तो 50 दिनों के लिए लोगों को मुश्किल में क्यों झोंका गया?

RBI के पास सीमित विकल्प
अगर आईडीएस-2 का मकसद मुश्किल पिच पर फंसी सरकार को बचाना है तो आरबीआई के मॉनेटरी एक्शन से उसके उलझन में फंसे होने का पता चलता है। साथ ही, यह बात भी सामने आ रही है कि बैंक डिपॉजिट्स में उम्मीद से ज्यादा उछाल से निपटने में आरबीआई को दिक्कत हो रही है। आरबीआई ने बैंकों को निर्देश दिया है कि 16 सितंबर से 11 नवंबर के बीच आए समूचे डिपॉजिट को वे उसे सौंप दें।

बॉन्ड प्राइसेज में उछाल और बचत करने वालों के रिटर्न में गिरावट के बीच अचानक उठाए गए इस कदम का मकसद बैंकों से एक्स्ट्रा फंड सोखना है, लेकिन इससे शेयर मार्केट में वोलैटिलिटी बढ़ सकती है।

30 दिसंबर तक बैंकों में आने वाली करंसी की मात्रा डीमॉनेटाइजेशन के इस पूरे किस्से का चेहरा बदल सकती है। अगर इसका अधिकांश हिस्सा बैंकों में जाता है तो डीमॉनेटाइजेशन का असल मतलब काले धन पर वार नहीं, बल्कि फाइनेंशियल इन्क्लूजन हो जाएगा। अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है कि कहानी कौन सा मोड़ लेगी। अभी तो इसकी स्क्रिप्ट आंधी की स्पीड से बदल रही है।

न्यूज़ मिडिया

11/28/2016

मेहमान हमारे भगवान, नोट बंदी ने इन विदेशी मेहमानों को भी मजबूर किया मदद मांगने की लिये

अतिथि देवो भव और ग्राहक हमारा भगवान होता है, इन दोनों वाक्यों को एक में मिक्स कर दो तो एक विदेशी सैलानी तैयार होता है. एक तो वो दूर देश से आया मेहमान है. दूसरा वो हमारा कस्टमर भी है. तो वो भगवान का होल स्क्वायर होता है. लेकिन इन सैलानियों पर भी नोटबंदी की मार पड़ गई है. राजस्थान में दो टूरिस्ट ग्रुप्स के पास दिल्ली वापस आने के पैसे नहीं बचे. तो उन्होंने पैसे कमाने के लिए भीड़ का मनोरंजन किया.

ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और फ्रांस के 10- 12 लोगों के दो ग्रुप. शनिवार को पुष्कर में गऊ घाट के पास स्ट्रीट परफॉरमेंस करते दिखे. लड़के म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट बजाते और लड़कियां एक्रोबेटिक स्टंट्स करते. हाथ में “You can help us” और “Money problem” वाले पोस्टर पकड़े थे. वहां आने जाने वाले लोग इनकी प्रॉब्लम समझे और काफी हेल्प कर भी दी.

ये लोग 8 नवंबर को इंडिया आए थे. पुष्कर मेला देखने. उसी रात हजार पनसौव्वा नोट बंद हो गए. 14 तारीख को मेला खत्म हो गया. अब इनको घूम घामकर वापस जाना है. उसके लिए दिल्ली जाना है. वहां एटीएम में पैसा नहीं हैं. तो कोई रास्ता बचा नहीं. फिर इस रास्ते से तकरीबन 2600 रुपए कमाए.

हिंदुस्तान टाइम्स को फ्रेंच टूरिस्ट एडेलेन ने बताया. शुक्रवार को मैं और मेरा एक दोस्त तीन घंटे एसबीआई के एटीएम की लाइन में लगे रहे. लेकिन हमारी बारी आई तो पैसा खतम हो गया. नत्थू शर्मा यहां 45 साल से रह रहे हैं. छोटी सी दुकान है. कहा कि इतने सालों में पहली बार देख रहा हूं कि मेहमानों को पैसा पाने के लिए गली में परफॉर्म करना पड़ा.

11/27/2016

क्या नोटबंदी पर मोदी का फैसला नियम के खिलाफ है?


विचार: क्या नोटबंदी पर मोदी का फैसला नियम के खिलाफ है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में नोटबंदी की नीति की घोषणा की और इसका गजेट नोटिफिकेशन भी जारी किया। 1947 के बाद सरकार की शायद ही किसी नीति ने ईमानदार या अन्य देशवासियों को प्रत्यक्ष रूप से इतना प्रभावित किया हो। इस नीति की अच्छाई- इसका असरदार होना, सब पर समान रूप से लागू होना और इससे निकलने वाले परिणाम- बहस के मुद्दे हैं। लेकिन, एक बड़ा सवाल कि यह कितना वैधानिक है?

कम-से-कम आठ हाई कोर्टों के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट तक में इस नीति को चुनौती दी गई है। संयोग से देश की सर्वोच्च अदालत ने याचिकाओं को ट्रांसफर करने और सब पर साझी सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। हालांकि, कुछ अदालतें ऐसी चुनौतियों को खारिज कर चुकी हैं। पहले पहल ऐसा करने वालों में कर्नाटक हाई कोर्ट शामिल था।

11 नवंबर को एक याचिका को खारिज करते हुए कर्नाटक हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसके मुखर्जी ने नोटबंदी के कदम की सराहना की। कथित रूप से उन्होंने कहा कि यह एक 'बढ़िया कदम' है। उन्होंने कहा, 'यह प्रशंसनीय और अर्थव्यवस्था के हित में अच्छा कदम है।' लेकिन, यह अच्छाई का वैधता पर हावी होने जैसा है जबकि दोनों अलग-अलग बातें हैं। इसलिए, दोनों को अलग-अलग ही रखना चाहिए।

क्या कहता है कानून?
नोटबंदी को आरबीई ऐक्ट, 134 की धारा 26 के तहत लागू किया गया। सेंट्रल बोर्ड की सिफारिश पर केंद्र सरकार अधिसूचना के जरिए किसी भी सीरीज के बैंक नोटों की वैधता खत्म कर सकती है। इस प्रावधान की शर्त पर गौर कीजिएः बोर्ड की सिफारिश जरूरी है। सरकार सिर्फ फैसले की वाहक है, यह फैसला नहीं ले सकती। यह सिर्फ सिफारिश को लागू कर सकती है। इसे एक उदाहरण से समझें।

मान लीजिए कोई कानून किसी सरकारी यूनिवर्सिटी के वाइस-चांसलर को नियुक्ति करने का अधिकार देता है। तो वाइस-चांसलर को नियुक्ति के वक्त अपना दिमाग जरूर लगाना चाहिए। यह उनकी तरफ से दूसरा कोई नहीं कर सकता। मतलब, वाइस-चांसलर आसानी से अपना अधिकार छोड़ नहीं सकता। उसे तो फैसला करना ही पड़ेगा वरना बिल्कुल अलग हो जाना होगा। ना ही वह किसी दूसरी बॉडी द्वारा की गई नियुक्ति को पूर्व प्रभाव से मंजूरी दे सकता है। ऐसे में उसे नियुक्त करते वक्त अपने दिमाग का हर हाल में इस्तेमाल करना होगा।

इन सबके पीछे बिल्कुल साफ सिद्धांत है। वह यह कि अगर कोई कानून किसी को कुछ अधिकार देता है तो वह अन्य सभी को इसके इस्तेमाल करने से मना भी करता है। यानी, अधिकार प्राप्त बॉडी के सिवा दूसरा कोई भी इसका इस्तेमाल नहीं कर सकता। केएन गुरुस्वामी केस (1954) में सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा, 'कानून की लगाई बेड़ियों को सरकार या इनके अधिकारियों की मर्जी पर यूं ही किनारे नहीं किया जा सकता है।' डीमॉनेटाइजेशन के परिप्रेक्ष्य में भी यह सिद्धांत रिजर्व बैंक और उसके अधिकार पर लागू होता है।

सरकार का दावा
तो क्या, आरबीआई ने डीमॉनेटाइजेशन की सिफारिश की? अगर हां, तो कब की? केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने नोटबंदी की नीति का पक्ष लेते हुए राज्यसभा में दावा किया कि इसका फैसला आरबीआई बोर्ड ने लिया। लेकिन, उन्होंने तुरंत विरोधाभासी बयान दे दिया। उन्होंने कहा कि इस संबंध में अध्यादेश लाने की जरूरत नहीं है क्योंकि प्रधानमंत्री यह कदम उठाने के लिए अधिकृत हैं। गोयल की ये दोनों बातें सही नहीं हो सकतीं क्योंकि अगर पीएम खुद ही अधिकृत हैं तो आरबीआई बोर्ड ने निश्चित रूप से फैसला नहीं लिया होगा। इसके उलट, अगर आरबीआई बोर्ड के पास यह अधिकार है तो पीएम यह काम नहीं कर सकते हैं।

सरकारी दावे के उलट इशारे
खास तौर से गोयल का यह दावा कि आरबीआई बोर्ड ने डीमॉनेटाइजेशन पॉलिसी की सिफारिश की, की किसी ने पुष्टी नहीं की। बल्कि अब तक सारे इशारे इसके विपरीत ही हैं। आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल हैरतअंगेज रूप से चुप्पी साधे हैं। आरबीआई अधिकारियों से संपर्क साधने की तमाम कोशिशों का कोई जवाब नहीं मिला। ना ही आरबीआई ने उस मीटिंग के मिनट्स ही जारी किए हैं जिसमें नोटबंदी की नीति की सिफारिश करने की सहमति बनने की बात कही जा रही है। पटेल की चुप्पी, मिनट्स जारी नहीं होना, लागू करने में जल्दबाजी और करीब-करीब हर दिन कुछ ना कुछ नया ऐलान उस अंदेशे को बल देते हैं कि यह पीएमओ का अचानक और गुप्त रूप से उठाया गया कदम है, ना कि आरबीआई की सिफारिश। यहीं पर कानूनी पेचीदगियों का सहारा लिया जा सकता है।

सरकार को उबार सकता है यह कानून?
सरकार इस संकट से उबरने के लिए आरबीआई ऐक्ट की धारा 7 का हवाला दे सकती है जिसमें 'जनता के हित में रिजर्व बैंक को निर्देश दिए जाने' की बात कही गई है। जनहित में शायद बोर्ड को डीमॉनेटाइज करने का निर्देश दिया गया होगा? लेकिन, सरकार इससे बच नहीं सकती। क्यों? क्योंकि कोई खास प्रावधान किसी सामान्य प्रावधान से हमेशा ऊपर होता है। आरबीआई ऐक्ट में डीमॉनेटाइजेशन का विशेष अधिकार मिला हुआ है जो दूसरे किसी भी स्वीकृत सामान्य अधिकारों पर हावी होगा। वरना, विशेष अधिकारों का तो कोई मायने ही नहीं रहेगा।

आरबीआई ऐक्ट की धारा 30 का एक और प्रावधान इसे स्पष्ट करता है। यह केंद्र सरकार को उन हालात में बोर्ड को दरकिनार करने का अधिकार देता है जब आरबीआई अपने दायित्वों के निर्वहन में असफल रहता है। हालांकि, तब भी सरकार बोर्ड के अधिकारों का इस्तेमाल नहीं कर सकती। इसके लिए उसे किसी अन्य एजेंसी को नियुक्त करना होगा जो बोर्ड की तरफ से काम करे। मतलब स्पष्ट है कि एक दीवार सरकार को आरबीआई से अलग करती है। ये दोनों ना एक हैं और ना एक जैसे। दोनों की अलग-अलग पहचान है, दोनों के अलग-अलग अधिकार हैं और उन्हें इन्हीं आधार पर काम करना चाहिए।

अगर मोरारजी के रास्ते पर चले होते मोदी
1978 में मोरारजी देसाई सरकार ने इसे समझा था। उस सरकार ने नोटिफिकेशन जारी करने की जगह अध्यादेश के जरिए 10,000 रुपये के नोट निरस्त कर दिए। तो क्या पीएम मोदी को भी यही रास्ता अपनाना चाहिए था? शायद उन्होंने राज्यसभा में विपक्ष की ताकत को भांप लिया था। संसद के इस ऊपरी सदन में अब जारी नाटक, लगातार बहानेबाजी, बार-बार के स्थगन ने उन्हें सही साबित किया है। हालांकि, इनमें से कुछ के लिए वह खुद ही जिम्मेदार हैं। उन्हें सदन को संबोधित करना चाहिए था।

अगर राज्यसभा में अध्यादेश को मंजूरी नहीं मिलती तो क्या होता? यहां पर एक संवैधानिक चालबाजी काम आ जाती जिससे राज्यसभा का फैसला कोई मायने नहीं रखता। अध्यादेशों को लेकर मौजूदा कानून के तहत खारिज किए गए किसी अध्यादेश की सभी कार्रवाइयां स्थाई तौर पर वैधानिक होती हैं। एक बार लागू हो जाने के बाद नोटबंदी हमेशा के लिए वैधानिक ही रहती। इसे रोकने के लिए राज्यसभा के पास कोई अधिकार नहीं है। लगता है कि बेहद सतर्कता की वजह से मोदी सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया और वह इस कानूनी पचड़े में फंस गई।

कुल मिलाकर, अधिसूचना गैर-कानूनी है लेकिन अध्यादेश कानूनी होता। यह जनता के समर्थन का सरकार प्रायोजित सबूत तैयार करने की मूखर्तापूर्ण प्रयासों के मुकाबले कहीं बेहतर विकल्प होता।

संकलन 

न्यूज़ मिडिया,आरबीआई एक्ट.

पं.एल.के.शर्मा
(अधिवक्ता) राज.उच्च न्या.जोधपुर ,राज.

14 लाख करोड़ हो गए रद्दी, छपे कुल डेढ़ लाख करोड़, अब तुम ही बताओ कैसे कम हो कतारें

दिल्ली के लोग तो शनिवार से परेशान हैं क्योंकि दो दिन की छुट्टी होने की वजह से पैसा नहीं मिल पा रहा है. और एटीएम खली हो गए हैं. कई एटीएम में पैसा है ही नहीं तो जहां पहुंच रहा था, वहां भी छुट्टी की वजह से खत्म हो लिया. अभी ये परेशानी बनी रहेगी. क्योंकि बैंकों में कतारें और एटीएम खाली होने की एक बड़ी वजह सामने आई है वो ये कि नोट छपे ही नहीं है. जब नोट छपे नही तो मियां आपको मिलेंगे कहां से.

सामने आई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने अबतक कुल डेढ़ लाख करोड़ रुपये के नए नोट छापे हैं. जबकि 500 और 1000 रुपये के रूप में देश के 14.18 लाख करोड़ रुपयों को रद्दी बना दिया गया है. और हां डेढ़ लाख करोड़ रुपये में भी ज्यादातर नोट 2000 रुपये वाली गुलाबी पत्ती वाले हैं. जिससे कुछ सामान लेने जाओ तो छुट्टे नहीं मिलते. यानी गुलाब की पंखुड़ी समझकर बस 2000 वाले नोट को लेकर इतराते फिरो कि मेरे पास पैसे हैं.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक नोटों के बारे में ये जानकारी Credit Suisse research report में दी गई है. जो 25 नवंबर को सामने आई है. डेढ़ लाख करोड़ रुपये की नई करेंसी के अलावा 1.2 लाख करोड़ रुपये की करेंसी पहले से चलन में है.

आठ नवंबर को नोटबंदी का ऐलान हुआ. देश के पीएम ने दो जुमलों में 500 और हजार के नोट को रद्दी बना दिया. ताकि नकली नोटों और कालेधन से निपटा जा सके. लेकिन न तो नकली नोट बनना रुक पाए और न ही वो काला धन सामने आया जो चुनाव के वक्त देश की जनता के लिए लाने का वादा हुआ था.
रिपोर्ट में कहा गया है कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को अभी जल्दी में एक हजार से लेकर दो हजार करोड़ रुपये और छापने होंगे, ताकि ट्रांसेक्शन लेवल काफी हद तक पहले की स्थिति में आ सके. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने भी जानकारी दी थी कि बैंक और एटीएम के जरिए उसने 10 से 18 नवंबर के बीच 1.03 लाख करोड़ रुपये लोगों तक पहुंचा दिए हैं. 14.18 लाख करोड़ रुपये की पुरानी करेंसी में से 6 लाख करोड़ रुपये बैंकों में फिर से जमा हो गए हैं.

रिपोर्ट ने पिछले एक हफ्ते के आंकड़ों पर कहा है कि आरबीआई एक दिन में 500 रुपये के तकरीबन 4 से 5 करोड़ नोट छाप रहा है. ऐसे में अगर देखा जाए तो जनवरी 2017 तक पुरानी करेंसी का सिर्फ 64 फीसदी हिस्सा ही चलन में आ पाएगा.

11/21/2016

2000 रुपए के नोट जारी करना पीएम मोदी का गैरकानूनी कदम : शर्मा

2000 रुपए के नोट जारी करना पीएम मोदी का गैरकानूनी कदम : शर्मा

कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर 2000 रुपए के नोट जारी करते समय कानून का पालन नहीं करने का सोमवार को आरोप लगाया और इस मामले को संसद के भीतर एवं बाहर उठाने का संकल्प लिया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने दावा किया कि प्रधानमंत्री ने देश को वित्तीय अराजकता की स्थिति में डाल दिया है।

शर्मा ने कहा कि सरकार को नोटबंदी मामले में जेपीसी से जांच कराना चाहिए। इससे पता चल जाएगा कि नोटबंदी के बारे में और किन लोगों को जानकारी थी। 

उन्होंने कहा कि 2000 रुपए के नोटों को लाना एक अवैध कृत्य है क्योंकि नए नोट छापने के लिए आरबीआई अधिनियम के तहत जो अधिसूचना जारी करना आवश्यक होता है, वह जारी नहीं की गई और कानून के तहत अनिवार्य बात को नजरअंदाज किया गया। शर्मा ने नोट बदलवाने वालों की उंगलियों पर अमिट स्याही लगाए जाने के सरकार के कदम की भी आलोचना की। कांग्रेस ने कहा कि एकजुट विपक्ष इस मामले को जन आंदोलन का विषय बनाने के अलावा संसद में जोरदार तरीके से उठाएगा।

राज्यसभा में कांग्रेस के उपनेता ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री जानबूझकर अहम मामलों से ध्यान हटाने की कोशिश कर रहे हैं और राष्‍ट्रवाद की आड़ में कालेधन के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले का ढाेंग करके गरीब लोगों को मूर्ख बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री और इस कदम को सही बताते हुए उनके तर्कों का समर्थन कर रहे लोग संविधान और कानून के मामले में अनपढ़ हैं। शर्मा ने कहा, देश को वित्तीय अराजकता की स्थिति में डालने के लिए पूरी तरह से प्रधानमंत्री जिम्मेदार हैं। संविधान के अनुच्छेद 360 के प्रावधानों को लागू किए बिना ही देश में अघोषित वित्तीय आपातकाल लग गया है।

उन्होंने कहा, नोटों का चलन बंद करने के संबंध में प्रधानमंत्री ने आठ नवंबर को जो सनसनीखेज और नाटकीय घोषणा की थी उसका कोई कानूनी आधार नहीं है क्योंकि मौद्रिक नीति भारतीय रिजर्व बैंक का क्षेत्राधिकार है।शर्मा ने कहा कि 2000 रुपए के नोट जारी करना एक अवैध कदम है क्योंकि आरबीआई अधिनियम के तहत कोई अधिसूचना जारी नहीं की गई थी और कोई नया नोट लाने से पहले इस प्रकार की अधिसूचना जारी करना अनिवार्य है। उन्होंने कहा, 2000 रुपए के इन अवैध नए नोटों का चलन काले धन के प्रसार को नियंत्रित करने के सरकार के कदम के विपरीत है।

कांग्रेस नेता ने प्रधानमंत्री पर कई बार कानून एवं संविधान का उल्लंघन करने और भ्रामक बयान देने का आरोप लगाया। शर्मा ने नोट बदलवाने वाले आम लोगों की उंगलियों पर स्याही लगाने के सरकार के कदम पर तीखा प्रहार करते हुए कहा, तानाशाहों ने भी वह काम नहीं किया जो इस सरकार ने किया है। उन्होंने कहा, केवल नाजी लोगों पर निशान लगाते थे। धन निकालने के कारण हमारे नागरिकों एवं विदेशी मेहमानों पर निशान लगाए जा रहे हैं। यह चिंता एवं शर्म की बात है। अतुल्य भारत रात भर में अमिट स्याही वाले भारत में बदल गया। शर्मा ने कहा कि 500 एवं 1000 रुपए के पुराने नोटों की जगह लेने वाले नए नोट अभी तैयार नहीं है और इस कमी के कारण लोगों को असुविधा हो रही है। उन्होंने कहा, इससे लोगों, खासकर गरीबों, किसानों और असंगिठत क्षेत्र एवं खेतों में मजदूरी करने वाले कुल 33 करोड़ भारतीय कार्यबल को बहुत परेशानी हो रही है। शर्मा ने प्रधानमंत्री पर नियम आधारित देश वाली भारत की अंतरराष्‍ट्रीय छवि को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया।

नोटों का चलन बंद करने और इसके क्रियान्वयन को लेकर सरकार को आड़े हाथों लेने के लिए संसद में बड़े राजनीतिक दल पहले ही साथ आ चुके हैं। शर्मा ने कहा कि न तो प्रधानमंत्री और न ही वित्त मंत्री के पास इस बात की कोई कानूनी मंजूरी या अधिकार है कि वे लोगों की उनके अपने ही बैंक खातों तक पहुंच रोक सकें और परिवारों, नागरिकों एवं वेतनभोगी कर्मियों के बचत खातों से धन निकालने को लेकर सीमा लागू कर सके।

उन्होंने कहा, विपक्षी न्यायोचित काम कर रहे हैं और सरकार के कदम की कुछ लोगों को पहले से जानकारी होने के मामले में जेपीसी जांच संबंधी अपनी मांग को लेकर दृढ़ हैं। यह सूचना लीक होना गोपनीयता का उल्लंघन है और इससे काला धन रखने वालों को प्रत्यक्ष मदद मिली, इससे विदेशों में धनशोधन और सोना-चांदी, स्टाॅक, बाॅन्ड एवं सिक्योरिटी के जरिए निवेश परिवर्तित करने में सहायता मिली। शर्मा ने कहा, हम इसे एक तर्कसंगत निष्कर्ष तक पहुंचाने और इस सरकार के कदमों एवं इरादों पर से पर्दाफाश करने को लेकर दृढ है। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि नोटों का चलन बंद करने के कदम से बड़े स्तर पर रोजगार प्रभावित हुआ है। उन्होंने कहा, यह लोगों का धन है और आप उन्हें अपना ही धन प्राप्त करने के लिए भीख मंगवा रहे है। यह किसी भी देश में कभी नहीं हुआ।