किस्मत और सत्ता से नजदीकियों के दम पर एक अदना सा आदमी कैसा देश के सबसे अमीर लोगों में से एक हो जाता है, यह जानना हो तो अडानी को पढ़िए।
कभी अपने दोस्त मलय महादेविया को पीछे बैठाकर ग्रे कलर की बजाज स्कूटर से अहमदाबाद की गली-चौराहे नापते फिरने वाले गौतम अडानी को इसका अंदाजा कतई नहीं रहा होगा कि एक दिन उन पर छप्पर फाड़कर धनवर्षा होगी। जिससे वे 55 से 60 हजार करोड़ का भारी-भरकम साम्राज्य खड़ा कर लेंगे। उनके क्रोनी कैपिटलिज्म(पूंजीवादी सांठगांठ) का खेल इस कदर सफल होगा कि वे अनिल अंबानी जैसे दिग्गज को भी देश के टॉप-10 कारोबारियों की लिस्ट से निकालकर बाहर कर देंगे। मगर हाथ की लकीरों में दम हो और 12 साल सीएम और फिर पीएम राज मे मोदी का साथ मिले। भाजपा की सरकार न रहे भी रहे तो कांग्रेस में कमलनाथ व एनसीपी के शरद पवार जैसे खैरख्वाह आप पर मेहरबान हो जाएं तो कुछ भी संभव है। जिससे बिजनेस की दुनिया का पहलवान बनने से आपको कोई रोक नहीं सकता। फोर्ब्स ने तो अंबानी की संपत्ति करीब दस अरब डॉलर से ज्यादा आंकी है।
जी हां बिल्कुल फिल्मी कहानी है देश में सबसे अप्रत्याशित तरीके से खरबपति बनने वाले बहुधंधी गौतम अडानी की।
18 साल में घर छोड़ मुंबई भागे अडानी
गौतम अडानी के दिमाग में हमेशा रातोंरात अमीर बनने के सपने आते थे। 12 वीं पास होते ही बीकाम करने के लिए अहमदाबाद के कॉलेज में दाखिला लिया। मगर मन नहीं लगा तो 18 साल की उम्र में अहमदाबाद में पिता शांतिलाल के कपड़ों का व्यापार छोड़कर मुंबई भाग निकले। यहां हीरे की कंपनी महिंद्रा ब्रदर्स में महज तीन सौ रुपये पगार पर अडानी काम करने लगे। दिमाग तो था ही इधर-उधर से कुछ पैसा जुटा तो 20 साल की उम्र में ही हीरे का ब्रोकरेज आउटफिट खोलकर बैठ गए। किस्मत ने साथ दिया और पहले ही साल कंपनी ने लाखों का टर्नओवर किया। फिर भाई मनसुखलाल के कहने पर अडानी मुंबई से अहमदाबाद आकर भाई की प्लास्टिक फैक्ट्री में काम करने लगे। पीवीसी इंपोर्ट का सफल बिजनेस शुरू हुआ। डेंटिस्ट प्रीति से उन्होंने शादी रचा ली। दोस्त मलय महादेविया को अपने साथ साये की तरह इसलिए अडानी रखते थे क्योंकि कम पढ़ाई के कारण उनकी अंग्रेजी खराब थी। अफसर व कारोबारियों से धारा प्रवाह अंग्रेजी में बिजनेस डील करने में परेशानी होती थी। अडानी की यह खूबी कही जाएगी कि उन्होंने अपनी कंपनियों में आज भी मलय को बड़े पद दे रखे हैं।
1988 में गौतम ने डाली अपने अडानी ग्रुप की नींव
जब प्लास्टिक कारोबार से पूंजी इकट्ठा हुई तो 1988 में गौतम ने अडानी एक्सपोर्ट लिमिटेड की नींव शुरू की। यह कंपनी पॉवर व एग्रीकल्चर कमोडिटीज के सेक्टर में काम करने लगी। गौतम अडानी के पेशेवर हुनर ने तीन साल में ही कंपनी के पैर जमा दिए। इस बीच धीरे-धीरे एक्सपोर्ट का कारोबार गति पकड़ता रहा। अडानी के बारे में बताया जाता है कि एक बार उनकी कंपनी के एकाउंटेंट ने कोई बड़ी गलती कर दी, जिससे लाखों का नुकसान होने पर उसने बिना कुछ कहे-सुने अडानी के सामने इस्तीफा रख दिया। इस्तीफा हाथ में लेकर अडानी ने फाड़ दिया। कहा कि तुम्हें गलती का अहसास हो गया, यही बहुत है। अब तुम दोबारा गलती नहीं करोगे। अगर तुम्हें रिलीव कर दूंगा तो नुकसान मेरा हुआ और यहां से गलती से जो सीखे हो उसका फायदा दूसरे कंपनी को मिलेगा। इससे पता चलता है कि अडानी किस तरह बिजनेस कार्यकुशलता रखते हैं।
गुजरात दंगे से मोदी के करीबी हुए अडानी
गुजरात दंगे से मोदी के करीबी हुए अडानी
हर किसी के मन में हमेशा उत्सुकता रही कि किसी को भी आमतौर पर भाव नहीं देने वाले मोदी अडानी के मामले में पिघल क्यों जाते हैं। दरअसल जब 2002 में गुजरात का दंगा हुआ तो कारोबार को भारी नुकसान पहुंचने से उद्योगपतियों ने मोदी की आलोचना शुरू की। इस काम में सबसे आगे रहाऔद्यौगिक संगठन कन्फडरेशन आफ इंडियन इंडस्ट्रीज(सीआईआई)। तब गौतम अडानी इकलौते उद्योगपति थे, जो मोदी के साथ चट्टान की तरह खड़े रहे। यही नहीं अडानी ने तब गुजरात व देश के अन्य कारोबारियों के साथ लाबिंग कर गुजरात में मुश्किल हालात के बीज भी निवेश करने के लिए राजी किया। क्योंकि मोदी आलोचकों को दिखाना चाहते थे कि वे दंगे के बाद भी राज्य में कारोबार को फिर से खड़ा करने का माद्दा रखते हैं। जब सीआईआई ने इस पर अडंगा डालने की कोशिश की तो अडानी ने उसके समानांतर नयासंगठन खड़ा करने की चेतावनी दे डाली। तब से मोदी अडानी के मुरीद हो गए। गुजरात सरकार पर अडानी को कौड़ियों के भाव महंगी जमीनें व बंदरगाह देने के आरोप लगे। मोदी से अडानी की नजदीकियां इतनी हैं कि जब व्हॉटर्न स्कूल आफ बिजनेस ने मोदी का नाम एक बार मुख्य वक्ता के रूप में हटा दिया तो इस आयोजन के सबसे बड़े स्पांसर के रूप में रहे अडानी ने तत्काल आयोजन से हाथ खींच लिए। यानी मोदी के संकट के समय हमेशा अडानी खड़े रहे।
मोदी सीएम रहे तो खूब विदेशी मुद्रा बटोरी, पीएम बने तो पूंजी बढ़ी
जब भाजपा ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाया था तभी से गौतम अडानी की अडानी इंटरप्राइजेज, अडानी पोर्ट और अडानी पावर का कुल बाजार पूंजी में चौंकाने वाले रूप से 85.35 प्रतिशत का इजाफा हुआ था। जबकि उस समय सेंसेक्स में बमुश्किल से 14.76 प्रतिशत ही बढ़ोत्तरी हुई थी। इससे पहले 2003-04 में जब मोदी गुजरात में सीएम रहे तो अडानी ने विदेशी पूंजी मुद्रा कमाने में रिकार्ड तोड़ दिया। दो सौ प्रतिशत से ज्यादा मुनाफा कमाया। अहम बात रही कि तब उनका 76.50 करोड़ डॉलर का कारोबार रहा जो मोदी के पीएम बनने पर दस अरब डॉलर तक पहुंच गया। हर साल करीब तीस हजार करोड़ रुपये का अडानी ग्रुप का टर्नओवर है।
आस्ट्रेलिया से लेकर दुनिया के 28 देशों में कारोबार
करीब 30 चीजों में अडानी का कारोबार आज आस्ट्रेलिया सहित दुनिया के 28 देशों तक फैल गया है। कोयला खनन, बिजली, पोर्ट, अनाज, तेल मुख्य बिजनेस हैं। आस्ट्रेलिया से अडानी ने 15.5 अरब डॉलर का कोयला खनन का प्रोजेक्ट भी रसूख के दम में हाल में हथियाने में सफलता हासिल की। उन्हें आस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड में बंदरगाह भी आवंटित हो चुका है। यही नहीं कोयला उतारने का दुनिया का सबसे बड़ा बंदरगाह मुंरदा भी अडानी के कब्जे में है। जिसमें निजी रेल लाइन व निजी हवाई जहाज पट्टी का अडानी विस्तार कर रहे हैं।
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