11/12/2016

यह नोटबंदी उस बदलाव के सामने कुछ नहीं जो रुपये में 16 आना वाली व्यवस्था खत्म होने से आया था

यह नोटबंदी उस बदलाव के सामने कुछ नहीं जो रुपये में 16 आना वाली व्यवस्था खत्म होने से आया था

इस बदलाव के साथ ही भारतीय मुद्रा पूरी तरह अंतर्राष्ट्रीय मानकों के मुताबिक हो गई थी.

मंगलवार को केंद्र सरकार द्वारा हजार-पांच सौ के नोट बंद करने का फैसला हैरान करने वाला तो कुछ को अभूतपूर्व लग सकता है. हालांकि भारत में ऐसा पहली बार नहीं हुआ. 1946 में तत्कालीन सरकार ने 1000 और 10,000 रुपये के नोट बंद किए थे. हालांकि इसके बाद 1954 में इन नोटों को फिर से जारी कर दिया गया. इनके साथ 5000 रुपये का नोट भी जारी हुआ था. 1980 के दशक तक ये चलते रहे. फिर 1977 में जब मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी गठबंधन वाली सरकार बनी तो उसने भी काला धन पर लगाम लगाने के मकसद से 1978 में इन नोटों को बंद कर दिया था.

इसमें कोई दोराय नहीं कि इतनी बड़ी आबादी के बीच प्रचलित नोटों को बंद करना कोई छोटा-मोटा बदलाव नहीं है. लेकिन बीते दौर की इन घटनाओं के इतर अगर आपकी जेब में पड़े रुपये की विनिमय दर ही बदल जाए या उससे लेनदेन का तौर-तरीका सरकारी आदेश से परिवर्तित हो जाए तो इसे क्रांतिकारी घटना माना जाना चाहिए. ऐसा भारत में भी हो चुका है और तब हमारे यहां दशकों से चल रही रुपये की आना-पाई प्रणाली को खत्म कर दाशमिक प्रणाली को अपनाया गया था.

आना-पाई प्रणाली को खत्म करने की दिशा में कई दिक्कतें थीं. पहली तो यही कि इतनी विशाल जनसंख्या को इस बदलाव के बारे में जानकारी कैसे दी जाए.

पहली बार अमेरिका ने 1792 में अपनी मुद्रा के लिए दाशमिक प्रणाली (मुद्रा को न्यूनतम मूल्य की दस, सौ या एक हजार इकाइयों में विभाजित करना) अपनाई थी. इसके बाद यह प्रणाली इतनी लोकप्रिय हुई कि ब्रिटेन को छोड़कर यूरोप के सभी देशों ने इसे अपना लिया. भारत में तब एक रुपये में 16 आने (एक आना = चार पैसा, एक पैसा = तीन पाई) प्रणाली प्रचलित थी. इंग्लैंड में चूंकि उस समय इसी से मिलती-जुलती मुद्रा प्रणाली प्रचलित थी इसलिए ब्रिटिश शासन ने भारत में इससे कोई छेड़छाड़ नहीं की.

आजादी के तुरंत बाद भारत में मौद्रिक विनिमय को तर्कसंगत बनाने के लिए इस बात की जरूरत महसूस की जाने लगी थी कि रुपये के लिए दशमलव प्रणाली लागू की जाए. लेकिन यहां दशकों से प्रचलित आना-पाई प्रणाली को एक झटके में खत्म नहीं किया जा सकता था. इस दिशा में सबसे महत्वपूर्ण कदम 1955 में उठाया गया जब संसद ने सिक्का ढलाई संशोधन कानून पारित कर दिया. इसके तहत व्यवस्था दी गई कि रुपये को सौ भागों में विभाजित करके इसकी न्यूनतम इकाई एक पैसा बना दी जाए और नए सिक्कों को इसी आधार (एक पैसे, दो पैसे या तीन पैसे आदि) पर ढाला जाएगा.

इस अधिनियम के पारित होने के बाद भी आना-पाई प्रणाली को खत्म करने की दिशा में कई दिक्कतें थीं. पहली तो यही कि इतनी विशाल जनसंख्या को इस बदलाव के बारे में जानकारी कैसे दी जाए. दूसरी समस्या सरकारी सेवाओं जैसे डाक-तार और रेलवे जैसे विभागों की नई दरें तय करने की थी. इसके अलावा यह भी चिंता का विषय था कि कारोबारियों को आना-पाई प्रणाली खत्म होने के बाद अपने सामानों की मनमानी कीमतें तय करने से कैसे रोका जाए.

तब कलकत्ता में कई लोगों ने नए सिक्कों का विरोध करते हुए कुछ पोस्ट ऑफिसों में आगजनी कर दी. इन लोगों का कहना था कि सरकार उन्हें महंगी कीमत पर पोस्टकार्ड और लिफाफे दे रही है.

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने इन समस्याओं को दूर करने के लिए एक विस्तृत गुणन चार्ट छपवाकर देश के तमाम डाकघरों में उपलब्ध कराए थे ताकि लोग इनके आधार पर मुद्रा विनिमय कर सकें. इन तैयारियों के बाद 1957 में भारत सरकार ने नये सिक्के जारी कर दिए. इन पर ‘नए पैसे’ या ‘नया पैसा’ लिखा था. इन सिक्कों के बाजार में आने के साथ ही देश में कई दिलचस्प घटनाएं भी देखने को मिलीं. कहा जाता है कि नई दिल्ली के जनरल पोस्ट ऑफिस में तब पहले सिक्के को पाने के लिए तकरीबन दस हजार लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई थी. इसे संभालने के लिए विशेष सुरक्षा इंतजाम किए गए थे.

इस पूरे बदलाव में एक बड़ी दिक्कत यह भी थी कि तब कुछ सामानों की कीमत दो आना, एक आना (सवा छह पैसे के बराबर मूल्य), आधा आना या एक पैसा (पुराना) भी थी. नई प्रणाली में इनके लिए सटीक मूल्य का निर्धारण करना असंभव था और इसलिए कीमतों में आंशिक बदलाव हुए. यही वजह थी कि तब कलकत्ता में कई लोगों ने नए सिक्कों का विरोध करते हुए कुछ पोस्ट ऑफिसों में आगजनी कर दी. इन लोगों का कहना था कि सरकार उन्हें महंगी कीमत पर पोस्टकार्ड और लिफाफे दे रही है. हालांकि बाद में स्थितियां धीरे-धीरे सामान्य होती गईं और दो-एक साल के भीतर ही लोग इस नई प्रणाली में भी रच-बस गए. इस बदलाव के साथ भारतीय मुद्रा पूरी तरह अंतर्राष्ट्रीय मानकों के मुताबिक हो गई थी.

1963-64 के आसपास जब नए पैसे पूरी तरह प्रचलन में आ गए तब सरकार ने इन में से नए या नया शब्द हटा लिया. इस बारीक के बदलाव के साथ फिर ये पैसे हाल के सालों तक चलन में रहे.

सौजन्य से
सत्याग्रह डॉट कॉम

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