10/31/2016

खर्च के मामले में पिछली पीढ़ी से अलग है मिलेनियल्स का मिजाज

साल 1975 में फिल्म दीवार में एंटी-हीरो का किरदार निभाने वाले अमिताभ बच्चन का यह डायलॉग मशहूर है कि 'आज मेरे पास बंगला है, प्रॉपर्टी है, बैंक बैलेंस है, गाड़ी है...।' वह डायलॉग उस वक्त पैसे से खरीदी जा सकने वाली चीजों से जुड़ी चाहतों का एक संकेत था। उसमें दिक्कत सिर्फ एक थी कि उदारीकरण के दौर से पहले के उस भारत में मकान, प्रॉपर्टी, ऑटोमोबिल्स हासिल करना और यहां तक कि बैंक खाते खोलना आसान नहीं था। मिडल क्लास तब संयम, सादगी और रोजगार की सुरक्षा पर काफी जोर देता था।

अब 2016 में आएं। 27 साल की पूर्णिमा बाली गुड़गांव में एक डिजिटल ऐड एजेंसी में काम करती हैं। बाली की यह चौथी जॉब है। वह सालाना 10 लाख रुपये कमाती हैं और अपने पैरंट्स के साथ रहती हैं, जो 'दीवार' वाली पीढ़ी के हैं। बाली कहती हैं, 'मेरे पास बंगला नहीं है, प्रॉपर्टी भी नहीं है और न ही गाड़ी है।' बाली कहती हैं, 'हम पिछली पीढ़ी जैसे नहीं हैं।' उनका कहना है कि वह उन चीजों पर खर्च करना पसंद करती हैं, जिनसे उन्हें तुरंत संतोष मिले। जैसे देश-विदेश में सैर-सपाटा, शॉपिंग और डांस क्लास और मार्शल आर्ट्स जैसी हॉबीज। बाली अगले महीने न्यू जीलैंड जाने वाली हैं। यह इस साल विदेश में सैर वाली उनकी दूसरी ट्रिप होगी।

दरअसल, बाली 1981 से 2000 के बीच जन्मी जेनरेशन वाई यानी मिलेनियल्स से ताल्लुक रखती हैं। 2021 तक भारत में 20 से 35 साल की उम्र वालों की संख्या कुल आबादी का 64% से ज्यादा होने का अनुमान है। ऐसे में मिलेनियल्स खरीदारी और खर्च के तौर-तरीकों में बड़ा बदलाव लाएंगे। मनोवैज्ञानिक इस पीढ़ी को 'राइट नाउ' जेनरेशन कहते हैं। बेंगलुरु की साइकॉलजिस्ट अन्ना चांडी का कहना है, 'यह पीढ़ी कोई सामान अपने पास रखने की फीलिंग पाने के बजाय अनुभवों को तरजीह देती है।' चांडी का कहना है कि भारत के मिलेनियल्स का जोर ट्रैवल पर है और वे आंट्रप्रन्योर बनना चाहते हैं।

28 साल के अयांग्शु लाहिड़ी के लिए मकान खरीदना प्राथमिकता नहीं है। बेंगलुरु में अपनी पत्नी के साथ किराए के मकान में रहने वाले ग्राफिक डिजाइनर लाहिड़ी का कहना है, 'ओनरशिप से ज्यादा महत्वपूर्ण है एक्सेस।' लाहिड़ी की यह तीसरी जॉब है और उनका ऐनुअल पैकेज 8 लाख रुपये से ज्यादा है। यह पूछने पर कि 'ईजी ईएमआई' पर वह मकान क्यों नहीं खरीद रहे और हर महीने किराया क्यों चुका रहे हैं, लाहिड़ी कहते हैं, 'ऐसी चीज पर पैसा क्यों खर्च करें, जिससे लाइफ में ज्यादा वैल्यू ऐड न हो रही हो?'

उन्होंने कहा कि 90 के दशक में लेदर जैकेट्स, रॉक म्यूजिक, कारें और मकान स्टेटस सिंबल हुआ करते थे, लेकिन ये मेरी लिस्ट में नहीं हैं। लाहिड़ी बताते हैं कि उनके पिता कुछ पैसा बैंक एफडी में निवेश करने की सलाह देते हैं, लेकिन लाहिड़ी की सोच अलग है। उनका कहना है, 'भविष्य के लिए पूरी जिंदगी बचत करने में गुजार देने के बजाय मैं फैंसी लाइफस्टाइल पसंद करता हूं।' हालांकि किसी भी मुश्किल के लिए वह थोड़ी बचत कर रहे हैं।

मिलेनियल्स के ऐसे रुख से मार्केटर्स को हैरानी नहीं है। मार्केटिंग और ब्रैंड कंसल्टेंट स्मिता सरमा रंगनाथन का कहना है, 'यही जेनरेशन तो ऊबर और एयरबीएनबी जैसी कंपनियों को रफ्तार दे रही है।' गोल्डमैन सैक्स ने 2013 में अमेरिकी मिलेनियल्स पर एक स्टडी की। रिपोर्ट में कहा गया कि पिछली पीढ़ी जिन चीजों पर जोर देती थी, उन्हें नई पीढ़ी तवज्जो नहीं दे रही और बड़ी खरीदारियों को या तो यह टाल रही है या कर ही नहीं रही है।

कारों का ही मामला लें। सर्वे में शामिल 30% लोगों ने कहा कि वे कार नहीं खरीदना चाहते। जरूरतों की वरीयता के हिसाब से मकान 40% लोगों के लिए जरूरी है, लेकिन 30% की प्राथमिकता में यह नहीं है। लग्जरी बैग्स को 30% लोग महत्वपूर्ण मानते हैं, लेकिन बड़ी प्राथमिकता में शामिल नहीं करते। बड़ी खरीदारियों से परहेज करने वाली इस प्रवृत्ति ने रेंटर जेनरेशन को जन्म दिया है, जो किराए पर सेवाएं और चीजें लेने में सहूलियत महसूस करती है।

बेंगलुरु में रहने वाले पति-पत्नी शिल्पी शर्मा और दीपांकर गौड़ किराए के मकान में रहते हैं और उन्होंने फ्रिज, टीवी और वॉशिंग मशीन जैसे कन्ज्यूमर ड्यूरेबल्स को भी किराए पर लिया है। एचआर मैनेजर शिल्पी कहती हैं, 'किराए के सामान को हटाकर आप दूसरा बेहतर सामान किराए पर आसानी से ले सकते हैं।' शिल्पी का कहना है कि मिलेनियल्स निवेश और खरीदारी के मामले में अच्छी जानकारी के साथ कदम बढ़ाते हैं। उनका कहना है कि मिलेनियल्स की परचेजिंग पावर पर शक नहीं किया जाना चाहिए और मामला अफोर्डेबिलिटी का नहीं, बल्कि प्रायॉरिटी का है। उन्होंने कहा कि उनकी और उनके पति की कुल सैलरी 12 लाख रुपये से ज्यादा है।

कन्ज्यूमर ड्यूरेबल रेंटिंग प्लेटफॉर्म Guarented के को-फाउंडर हर्षवर्द्धन रैकवार कहते हैं कि शिल्पी जैसे कन्ज्यूमर रेंटिंग के बिजनस को रफ्तार दे रहे हैं। पिछले साल अक्टूबर में शुरू हुई Guarented ने इस साल अगस्त में कलारी कैपिटल से 3.4 करोड़ रुपये जुटाए हैं। इसके 95% ग्राहक 21 से 35 साल के बीच के हैं। भारत सहित कई देशों के 7,700 मिलेनियल्स पर किए गए डेलॉयट के पांचवें ऐनुअल सर्वे के मुताबिक भारत के 52% मिलेनियल्स अगले दो वर्षों में अपने एंप्लॉयर्स को छोड़ने की चाहत रखते हैं। यह सर्वे इसी साल किया गया था। अगर 2020 तक मौका मिलने की बात तो ऐसे लोगों का आंकड़ा 76% है।

10/30/2016

आप अपने मोबाइल फ़ोन के बिना कितनी देर रह सकते हैं

कई बार ऐसा होता है, आपके मोबाइल फ़ोन की घंटी बजती है. या फ़ोन आपकी जेब में वाइब्रेट करता है. आप तुरंत अपना फ़ोन निकाल कर देखते हैं. कोई कॉल नहीं. कोई मैसेज नहीं. लेकिन आपने तो एकदम साफ़ सुना था. कोई भूत-वूत तो कॉल नहीं किया था?  ज़रूर कान बज रहे होंगे. ये जो हुआ ना आपके साथ अभी-अभी, इसमें टेंशन वाली बात नहीं है. इसको कहते हैं फैंटम फ़ोन सिंड्रोम. अरे, घबराने वाली कोई बात नहीं है. ये कोई बीमारी नहीं है. खाली इसका नाम ही इतना भारी है. कि अच्छा-भला आदमी सोचे कौन सा रोग लग गया बैठे-बिठाए.

क्योंकि आप और हम रोबोट बन चुके हैं

आप अपने मोबाइल फ़ोन के बिना कितनी देर रह सकते हैं ? एक-दो-तीन घंटे? मिनट? लेकिन उस दौरान भी तो आपका मन अपने फ़ोन में ही लगा रहता है. क्या है कि आजकल के टाइम में हम लोग बहुत बिज़ी लोग हैं. एक से एक इम्पोर्टेन्ट कॉल आते हैं. हर समय फ़ोन पर टिपिर-टिपिर चैट करते हैं. जेब में जो फ़ोन रखा है वो हमारे शरीर का हिस्सा ही बन जाता है. और हम लोग उसके गुलाम. हमारे दिमाग में जब कोई बात चल रही होती है. हमको लगता रहता है कि इस ख़ास बात से जुड़ा कोई कॉल आएगा. इसीलिए बार-बार फील होता है कि फ़ोन अब बजा कि तब. और हम अपना फ़ोन निकाल कर बार-बार चेक करते रहते हैं.

जब आप बहुत स्ट्रेस या टेंशन में होते हैं. तब भी लगता है कि फ़ोन बज रहा है. वो इसलिए क्योंकि आप उस जगह, उस माहौल से भाग जाना चाहते हैं. और फ़ोन पर किसी अपने से बात करना आपको उस टेंशन से दूर करने का जरिया लगता है. लेकिन असल में ये एंग्जायटी की निशानी है.

दिमाग में हो जाता है शॉर्ट सर्किट

ये हैं दिमाग के अन्दर के तार
ये हैं दिमाग के अन्दर के तार PTI
कभी टीवी या कंप्यूटर को खुला हुआ देखा है? कितने सारे तार लगे होते हैं उसके अन्दर. दिमाग भी भाईसाब बिलकुल वैसा ही है. लेकिन दिमाग जो है वो दुनिया के हर हार्डवेयर से ज्यादा समझदार चीज़ है. उसके पास याददाश्त वाला बक्सा भी होता है.तो कभी-कभी दिमाग का कोई तार अचानक से करंट भेज देता है. करंट जाकर याददाश्त वाली खिड़की खड़खड़ा देता है. हमारी अपनी रिंगटोन उस याददाश्त वाले बक्से में सेव होती है. ऐसा लगता है हमने अपनी ही रिंगटोन सुनी. एक तेज़ झटके के करंट की वजह से वाइब्रेशन भी महसूस हो जाती हैं.

ये कोई अजूबा नहीं है. ना ही भूत आपको फ़ोन करके ये बोलने वाला है ‘तुम अशुद्ध हो, तुम सड़ चुके हो’. ये बस आपका दिमाग है. और हां आप अकेले नहीं हो जिसके साथ ऐसा होता है. दुनिया भर के 90 परसेंट लोग अपनी रिंगटोन सुनते हैं. अपने फ़ोन के वाइब्रेशन महसूस करते हैं. साइंटिस्ट लोग कहते हैं कि जो इतनी सारी दिमागी बीमारियां बढ़ रही हैं. उनका एक कारण फ़ोन का एडिक्शन है.

अच्छा अगर हो सके तो एक बार ये एक्सरसाइज़ करके देखो. अपने फ़ोन से दूर कितने घंटे रह सकते हो. बिना किसी कॉल या मैसेज की परवाह किए बिना. बता रहे हैं बहुत अच्छा लगता है.

10/28/2016

टाटा ग्रुप से 5 गुना तक ज्यादा अमीर हैं ये कंपनियां, जानिए कितनी है दौलत

नई दिल्ली। टाटा ग्रुप देश का सबसे बड़ा कॉरपोरेट ग्रुप है, जिसमें 100 से ज्यादा कंपनियां शामिल है। टाटा ग्रुप की कुल मार्केट कैपिटलाइजेशन करीब 8 लाख करोड़ रुपए हैं। इसमें 4.70 लाख करोड़ रुपए अकेले टीसीएस की मार्केट कैप है। इस लिहाज से टीसीएस देश की सबसे मूल्यवान कंपनी है। लेकिन दुनिया में ऐसी कई कंपनियां हैं, जिनकी वैल्यू पूरे टाटा ग्रुप से कई गुना ज्यादा है। इनमें से अधिकतर कंपनियां अमेरिका की हैं। जानिए ऐसी कंपनियों के बारे में..

एप्पल
मार्केट कैप- 42 लाख करोड़ रुपए
मार्केट कैप के लिहाज से एप्पल दुनिया की सबसे अमीर कंपनी है। कंपनी की कुल मार्केट कैप 42 लाख करोड़ रुपए है। मार्केट कैप के अलावा एप्पल दुनिया की सबसे बड़ी कैश रिच कंपनी भी है। 2015तक एप्पल के पास 21,500 करोड़ डॉलर (14.4 लाख करोड़) कैश था। हाल में एप्पल को दुनिया का सबसे वैल्युएबल ब्रांड का खिताब दिया गया है।

अल्फाबेट
मार्केट कैप-37 लाख करोड़ रुपए

अल्फाबेट, गूगल की पैरेंट कंपनी है। फोर्ब्स की लिस्ट के मुताबिक मार्केट कैप के लिहाज से अल्फाबेट दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी है। नैसडेक पर लिस्टेड अल्फाबेट का एक शेयर 55 हजार रुपए का है, जबकि काम करने के लिहाज से गूगल दुनिया की सबसे बेस्ट कंपनी मानी जाती है। भारत में गूगल के 4 जगह ऑफिस हैं, जो हैदराबाद, बेंगलुरु, मुंबई और गुड़गांव में हैं।

माइक्रोसॉफ्ट
मार्केट कैप-32 लाख करोड़ रुपए

दुनिया की सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी माइक्रोसॉफ्ट दुनिया की तीसरी सबसे मूल्यवान कंपनी है। कंपनी के स्टॉक ने हाल ही में अपने ऑल टाइम हाई लेवल को छुआ है। माइक्रोसॉफ्ट के इंडिया में कई जगह ऑफिस हैं, जबकि इसका हेडक्वार्टर हैदराबाद में है। टाटा ग्रुप के मुकाबले माइक्रोसॉफ्ट 4 गुना ज्यादा बड़ी कंपनी है।


एक्सॉन मोबिल
मार्केट कैप- 25 लाख करोड़ रुपए

एक्सॉन मोबिल दुनिया की चौथी सबसे मूल्यवान और टाटा ग्रुप के मुकाबले तीन गुना ज्यादा बड़ी कंपनी है। वहीं देश की सबसे मूल्यवान कंपनी टीसीएस के मुकाबले यह 5 गुना ज्यादा बड़ी है। एक्सॉन मोबिल ऑयल एंड नेचुरल गैस बिजनेस से जुड़ी अमेरिकी कंपनी है। कंपनी के कुल कर्मचारियों की संख्या करीब 76 हजार रुपए है।

बर्कशायर हैथवे
मार्केट कैप- 24 लाख करोड़ रुपए

बर्कशायर हैथवे, वारेन बफे की कंपनी है जो अमेरिका के साथ दुनिया की पांचवीं सबसे मूल्यवान कंपनी है। न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टेड इस कंपनी के एक स्टॉक की कीमत करीब 2.15 लाख डॉलर (1.46 करोड़ रुपए) है। बर्कशायर हैथवे के मालिक वारेन बफे दुनिया के तीसरे सबसे रईस व्यक्ति हैं। वारेन बफे की कुल दौलत करीब 6080 करोड़ डॉलर (4 लाख करोड़ रुपए) है, जिसे वे दान में देने का ऐलान कर चुके हैं।

10/27/2016

कभी टाटा ने लिया था 2 करोड़ का कर्ज, मिस्त्री फैमिली के लिए ऐसे बना 1.4 लाख करोड़

चेयरमैन सायरस मिस्‍त्री को पद से हटाने के चलते विवाद में आए टाटा सन्‍स की इस समय कुल वैल्‍यू करीब 8 हजार करोड़ रुपए मानी जाती है। हालांकि एक दौर ऐसा भी था, जब टाटा सन्‍स वित्‍तीय परेशानी से जूझ रही थी। ग्रुप की ओर से लिए 2 करोड़ रुपए के उधार के चलते ही पलोनजी मिस्‍त्री फैमिली के पास टाटा के 18 फीसदी शेयर आने का रास्‍ता साफ हुआ था। उस जमाने मे टाटा फैमिली की ओर से लिया गया यही 2 करोड़ आज मिस्‍त्री फैमिली के लिए 1.4 लाख करोड़ (8 लाख करोड़ का 18 फीसदी) बन गए। हालांकि रोचक बात यह है कि टाटा फैमिली ने पलोनजी मिस्‍त्री के परिवार से कोई भी उधर नहींं लिया था। इसके पीछे एक इन्‍ट्रेस्टिंग स्‍टोरी है। आइए जानते हैं पूरी कहानी के बारे में...

90 साल पहले परेशानी से गुजर रही थी टाटा सन्‍स
बात करीब 90 साल  पुरानी है, उस वक्‍त टाटा सन्‍स की माली हालत ठीक नहीं चल रही थी।
टाटा सन्‍स की दो कंपनियों टाटा स्‍टील और टाटा हाइड्रो पॉवर को पैसों की सख्‍त जरूरत थी।
तब ग्रुप की कमान संभालने वाले दोराबजी टाटा ने अपनी फैमिली के पुुराने दोस्‍त और मनी लेंडर FE दिनशा से संपर्क किया था।
दिनशा ने 1924 से 1926 के बीच टाटा फैमिली को 2 करोड़ रुपए का कर्ज दिया।इसी 2 करोड़ रुपए रुपए की बदौलत ही टाटा सन्‍स की दोनों कंपनियों टाटा इाइड्रो पावर और टाटा स्‍टील को उबारने में मदद मिली।

दो करोड़ के बदले दिनशा को मिली हिस्‍सेदारी
दिनशा की ओर से दिए गए पैसों से टाटा ने दोनों कंपननियों में दिनशा को हिस्‍सेदारी दी।
इसके तहत जहां दिनशा को टाटा स्‍टील में प्रॉफिट का 25 फीसदी  दिया गया वहीं टाटा हाइड्रोपॉवर में प्रॉफिट का 12.5 फीसदी देने पर सहमति बनी।
हालांकि 1930 के दौर में दिनशा के इस कर्ज को टाटा सन्‍स की हिस्‍सेदारी में बदल दिया गया और वह टाटा सन्‍स में 12.5 फीसदी के हिस्‍सेदार हो गए।

जानिए कौन थे दिनशा
फ्रामरोज ईदुल्‍जी  (FE) दिनशा के पिता कराची के सबसे बड़े लैंड लॉर्ड थे।
दिनशाा अपने दौर के बड़े वकील और सफल कारोबारी माने जाते थे।
दिनशा "FE दिनशा एंड को" नाम से अपनी फाइनेंशियल कंपनी चलाते थे।
इसी कंपनी ने टाटा फैमिली को करीब 2 करोड़ रुपए का कर्ज दिया था।
उन्‍हें टाटा समूह का बेहद नजदीकी भी माना जाता था।
जेआरडी टाटा के मुताबिक, वह अपने जीवन में जितने भी लोगों से मिले, दिनशा उनमें सबसे बेस्‍ट थे।
ऐसे मिस्‍त्री फैमिली को मिली टाटा में हिस्‍सेदारी
टाटा ने अपने करीबी दिनशा को कंपनी की 12.5 फीसदी हिस्‍सेदारी दी थी, लेकिन यही हिस्‍सेदारी एक दिन मिस्‍त्री फैमिली के पास आ गई।
दरअसल 1936 में दिनशा की मौत हो गई, मौत के बाद दिनशा के बच्‍चों ने दिनशा की फाइनेंशिय कंपनी " FE दिनशा एंड को" को सायरस मिस्‍त्री के ग्रैंड फादर शापोरजी पलोनजी मिस्‍त्री को बेच दी।
इसी के साथ कंपनी की टाटा संन्‍स में 12.5 फीसदी की हिस्‍सेदारी भी मिस्‍त्री फैमिली के पास आ गई।
मिस्‍त्री फैमिली की हिस्‍सेदार पहुंची 18.5 फीसदी
मिस्‍त्री फैमिली ने दिनशा से 12.5 फीसदी की हिस्‍सेदारी खरीदी, लेकिन इस हिस्‍सेदारी के 18.5 फीसदी के लेवल पर पहुंचने का अपना इतिहास रहा है।
इसके मुताबिक, पलोनजी ग्रुप ने जेआरडी टाटा की दो बहनों सिला और दराब से भी हिस्‍सेदारी खरीदी।
1936 से 38 के बीच खरीदी गई इस हिस्‍सेदारी की बदौलत ही मिस्‍त्री फैमिली का टाटा में हिस्‍सा 17.5 फीसदी हो गया।
मिस्‍त्री फैमिली ने 1975 में कुछ शेयर और खरीदे जिसके चलते परिवार का शेयर करीब 18.5 फीसदी हो गया।
हालांकि 2003 में बाईबैक के बाद मिस्‍त्री फैमिली की हिस्‍सेदारी 18 फीसदी रह गई।

जानिए टाटा फैमिली में किसकी कितनी हिस्‍सेदारी
टाटा सन्‍स में सबसे बड़ी हिस्‍सेदारी मौजूदा समय में टाटा ट्रस्‍ट की है, 66 फीसदी शेयर के साथ वह टॉप पर है।
इसके बाद 18 फीसदी की हिस्‍सेदारी सायर मिस्‍त्री की फैमिली के पास है।
ग्रुप में 13 फीसदी की हिस्‍सेदारी समूह से जुड़ी फर्मो की है।
साथ ही परिवार के अन्‍य सदस्‍यों के पास ग्रुप के 3 फीसदी शेयर हैं।

कभी टाटा ने लिया था 2 करोड़ का कर्ज, मिस्त्री फैमिली के लिए ऐसे बना 1.4 लाख करोड़

चेयरमैन सायरस मिस्‍त्री को पद से हटाने के चलते विवाद में आए टाटा सन्‍स की इस समय कुल वैल्‍यू करीब 8 हजार करोड़ रुपए मानी जाती है। हालांकि एक दौर ऐसा भी था, जब टाटा सन्‍स वित्‍तीय परेशानी से जूझ रही थी। ग्रुप की ओर से लिए 2 करोड़ रुपए के उधार के चलते ही पलोनजी मिस्‍त्री फैमिली के पास टाटा के 18 फीसदी शेयर आने का रास्‍ता साफ हुआ था। उस जमाने मे टाटा फैमिली की ओर से लिया गया यही 2 करोड़ आज मिस्‍त्री फैमिली के लिए 1.4 लाख करोड़ (8 लाख करोड़ का 18 फीसदी) बन गए। हालांकि रोचक बात यह है कि टाटा फैमिली ने पलोनजी मिस्‍त्री के परिवार से कोई भी उधर नहींं लिया था। इसके पीछे एक इन्‍ट्रेस्टिंग स्‍टोरी है। आइए जानते हैं पूरी कहानी के बारे में...

90 साल पहले परेशानी से गुजर रही थी टाटा सन्‍स
बात करीब 90 साल  पुरानी है, उस वक्‍त टाटा सन्‍स की माली हालत ठीक नहीं चल रही थी।
टाटा सन्‍स की दो कंपनियों टाटा स्‍टील और टाटा हाइड्रो पॉवर को पैसों की सख्‍त जरूरत थी।
तब ग्रुप की कमान संभालने वाले दोराबजी टाटा ने अपनी फैमिली के पुुराने दोस्‍त और मनी लेंडर FE दिनशा से संपर्क किया था।
दिनशा ने 1924 से 1926 के बीच टाटा फैमिली को 2 करोड़ रुपए का कर्ज दिया।इसी 2 करोड़ रुपए रुपए की बदौलत ही टाटा सन्‍स की दोनों कंपनियों टाटा इाइड्रो पावर और टाटा स्‍टील को उबारने में मदद मिली।

दो करोड़ के बदले दिनशा को मिली हिस्‍सेदारी
दिनशा की ओर से दिए गए पैसों से टाटा ने दोनों कंपननियों में दिनशा को हिस्‍सेदारी दी।
इसके तहत जहां दिनशा को टाटा स्‍टील में प्रॉफिट का 25 फीसदी  दिया गया वहीं टाटा हाइड्रोपॉवर में प्रॉफिट का 12.5 फीसदी देने पर सहमति बनी।
हालांकि 1930 के दौर में दिनशा के इस कर्ज को टाटा सन्‍स की हिस्‍सेदारी में बदल दिया गया और वह टाटा सन्‍स में 12.5 फीसदी के हिस्‍सेदार हो गए।

जानिए कौन थे दिनशा
फ्रामरोज ईदुल्‍जी  (FE) दिनशा के पिता कराची के सबसे बड़े लैंड लॉर्ड थे।
दिनशाा अपने दौर के बड़े वकील और सफल कारोबारी माने जाते थे।
दिनशा "FE दिनशा एंड को" नाम से अपनी फाइनेंशियल कंपनी चलाते थे।
इसी कंपनी ने टाटा फैमिली को करीब 2 करोड़ रुपए का कर्ज दिया था।
उन्‍हें टाटा समूह का बेहद नजदीकी भी माना जाता था।
जेआरडी टाटा के मुताबिक, वह अपने जीवन में जितने भी लोगों से मिले, दिनशा उनमें सबसे बेस्‍ट थे।
ऐसे मिस्‍त्री फैमिली को मिली टाटा में हिस्‍सेदारी
टाटा ने अपने करीबी दिनशा को कंपनी की 12.5 फीसदी हिस्‍सेदारी दी थी, लेकिन यही हिस्‍सेदारी एक दिन मिस्‍त्री फैमिली के पास आ गई।
दरअसल 1936 में दिनशा की मौत हो गई, मौत के बाद दिनशा के बच्‍चों ने दिनशा की फाइनेंशिय कंपनी " FE दिनशा एंड को" को सायरस मिस्‍त्री के ग्रैंड फादर शापोरजी पलोनजी मिस्‍त्री को बेच दी।
इसी के साथ कंपनी की टाटा संन्‍स में 12.5 फीसदी की हिस्‍सेदारी भी मिस्‍त्री फैमिली के पास आ गई।
मिस्‍त्री फैमिली की हिस्‍सेदार पहुंची 18.5 फीसदी
मिस्‍त्री फैमिली ने दिनशा से 12.5 फीसदी की हिस्‍सेदारी खरीदी, लेकिन इस हिस्‍सेदारी के 18.5 फीसदी के लेवल पर पहुंचने का अपना इतिहास रहा है।
इसके मुताबिक, पलोनजी ग्रुप ने जेआरडी टाटा की दो बहनों सिला और दराब से भी हिस्‍सेदारी खरीदी।
1936 से 38 के बीच खरीदी गई इस हिस्‍सेदारी की बदौलत ही मिस्‍त्री फैमिली का टाटा में हिस्‍सा 17.5 फीसदी हो गया।
मिस्‍त्री फैमिली ने 1975 में कुछ शेयर और खरीदे जिसके चलते परिवार का शेयर करीब 18.5 फीसदी हो गया।
हालांकि 2003 में बाईबैक के बाद मिस्‍त्री फैमिली की हिस्‍सेदारी 18 फीसदी रह गई।

जानिए टाटा फैमिली में किसकी कितनी हिस्‍सेदारी
टाटा सन्‍स में सबसे बड़ी हिस्‍सेदारी मौजूदा समय में टाटा ट्रस्‍ट की है, 66 फीसदी शेयर के साथ वह टॉप पर है।
इसके बाद 18 फीसदी की हिस्‍सेदारी सायर मिस्‍त्री की फैमिली के पास है।
ग्रुप में 13 फीसदी की हिस्‍सेदारी समूह से जुड़ी फर्मो की है।
साथ ही परिवार के अन्‍य सदस्‍यों के पास ग्रुप के 3 फीसदी शेयर हैं।

औरत दुकान जाकर कॉन्डम मांगे, तो उसे ऐसे घूरेंगे जैसे जान मांग ली हो

मंगलवार को क्रिस गेल और ड्वेन ब्रावो का एक ऐड आया. स्कोर कॉन्डम का ऐड. जिसमें दोनों नाच रहे हैं. और कह रहे हैं जब आप ‘चैंपियन’ हो सकते हैं, तो महज एक ‘प्लेयर’ क्यों हों. कहने का अर्थ ये था कि सेक्स तो सभी करते हैं. लेकिन चैंपियन वो होता है, जो सेफ सेक्स करता हो.

‘सेफ सेक्स’. कॉन्डम का काम है सेक्स को सेफ बनाना. जिसमें दो चीजें हैं. पहली, आपको या आपके पार्टनर को कोई सेक्शुअल बीमारी न हो जाए. दूसरा, सेक्स में शामिल लड़की को अनचाही प्रेगनेंसी का खतरा न हो.

जहां तक इंडिया की बात है, कई मर्द हैं जो कॉन्डम का इस्तेमाल नहीं करते. जिसके पीछे उनकी दलील होती है कि ये उनकी मर्दानगी पर हमला है. ‘पन्नी लगाकर करने में क्या मजा आएगा’ से लेकर ‘कभी केले को छिलके के साथ खाते हैं क्या’ तक की तमाम बातें सुनने को मिलती हैं. पुरुषों के दिमाग में एक कीड़ा सा है, जो उन्हें ये दिखाता है कि असली मर्दानगी तो औरत की वेजाइना में वीर्य डालने में ही है. वो प्रेगनेंट हो जाए तो ही असली मर्द का प्रमाण मिलता है. वरना शादी के बाद बच्चा न हो, तो लोग कहेंगे नपुंसक होगा लड़का.

बॉलीवुड में फिल्मों का एक पूरा दौर रहा है, जब फ़िल्में मात्र शादी नहीं, ये दिखाकर ख़त्म की गई हैं कि कपल को बच्चा हो चुका है. खैर, वो अलग मसला है.

बात कॉन्डम की. बात कॉन्डम्स के विज्ञापनों की. जब कॉन्डम के विज्ञापन शुरू हुए, लोगों को बताया गया कि ये आपकी सेफ्टी के लिए है. पर कॉन्डम के बाजार को सफलता नहीं मिली. फिर मार्केट में बोरिंग ऐड्स को पीछे छोड़ता हुआ पूजा बत्रा का ऐड आया ‘कामसूत्र’ का. लोगों ने खूब बवाल किया. मैगजीन में चर्चे हुए. कि किसी आदमी की नंगी पीठ पर अपने हाथ के नाखून कैसे चुभो सकती है.

फिर तो कॉन्डम ऐड्स की भाषा ही बदल गई. और जो कॉन्डम मर्दानगी घटाने के लिए जाने जाते थे, उन्हें मर्दानगी बढ़ाने वाला बताया जाने लगा. अब कॉन्डम मजे का पर्याय होने लगे. अब कॉन्डम औरत को संतुष्ट करने की चीज हो गए. कॉन्डम के विज्ञापनों ने मर्दों को बताया, अगर इसे यूज करोगे तो स्टार हो जाओगे. मजा आएगा. पत्नी आपसे खुश रहेगी.

एक लंबे समय कामसूत्र कॉन्डम की पंचलाइन थी ‘मोस्ट वॉन्टेड मेन’. यानी वो मर्द, जिनकी मांग हो. मांग उन मर्दों की होती है, जो औरत को संतुष्ट कर सकते हैं. जिसके साथ सोना औरतें पसंद करती हैं. नीचे वीडियो में आप कामसूत्र के ऐड्स का 20 साल का सफ़र देख सकते हैं. इनमें कुछ ऐड ऐसे भी हैं, जिनमें पुरुष अपने आस-पास हो रही हरकतों को देखकर डबल मीनिंग बातें सोचते हैं.

कुछ महीनों पहले सनी लियोनी के इस विज्ञापन ने मार्केट में आग लगा दी थी. ये ऐड, ऐड कम, सॉफ्ट पॉर्न ज्यादा लग रहा था. जिसे यूट्यूब पर ‘अनसेंसर्ड’ बताकर खूब बेचा गया.

फिर से स्कोर कॉन्डम के ऐड पर लौटकर आते हैं. ये ऐड देखकर तुरंत रणवीर सिंह का ड्यूरेक्स का ऐड याद आता है. जिसमें रणवीर सिंह के इर्दगिर्द नाचती लड़कियां कोरस में गाती हैं.

लड़कियां: वाओ दैट वॉज गुड
रणवीर: है न!
लड़कियां: यू ब्ल्यू मी अवे
रणवीर: ओफ्फो
लड़कियां: इट वॉज अमेजिंग
रणवीर: आई नो

इसी तरह की चीज क्रिस गेल और ड्वेन ब्रावो वाले ऐड में देखने को मिलती है. दोनों क्रिकेटर नाचते हैं. और ये बताते हैं कि चाहे लड़की एयर होस्टेस हो, नर्स हो, अमेरिकन हो, एशियन हो, सेक्स करते वक़्त कॉन्डम जरूर इस्तेमाल करें.

विज्ञापनों की भाषा बदल तो रही थी, लेकिन टारगेट नहीं बदलता दिखा. इंडिया में बनने वाले सभी ऐड मूलतः मर्दों को टारगेट कर बनाए जाते हैं. और ये बात हमें अजीब भी नहीं लगती, क्योंकि मर्द ही होते हैं, जिन्हें आखिरकार कॉन्डम का इस्तेमाल करना होता है. लेकिन जब हम ये मानकर चलते हैं कि कॉन्डम सिर्फ पुरुषों की चीज है, हम महिलाओं को सेक्स की क्रिया से बिलकुल अलग कर देते हैं. नतीजा ये होता है कि औरत अगर किसी मेडिकल स्टोर में जाकर कॉन्डम खरीदे, तो उसे ऐसे घूरा जाएगा जैसे दुकान वाले की जान मांग ली हो.

कोई कॉन्डम का ऐड कभी ये कहता नहीं दिखता कि औरत कॉन्डम को यूज करने की पहल करे. पुरुष से कहे कि अगर कॉन्डम नहीं यूज करोगे, तो मैं सेक्स नहीं करूंगी. या यूं कह दे कि मेरे मजे के लिए कॉन्डम यूज करो. औरत सेक्स का हिस्सा है, लेकिन सेक्स का केंद्र नहीं. शायद इसके पीछे बाजार को ये डर है कि अगर औरत सेक्स का केंद्र हो गई, तो मर्द कॉन्डम नहीं खरीदेंगे. मर्द कॉन्डम खरीदें, इसके लिए जरूरी है कि उनकी मर्दानगी को संबोधित करते हुए विज्ञापन बनाए जाएं.

जाते हुए एक ऐड देख जाइए. जिसमें एक लड़की जेब में कॉन्डम रख के चलती है. दूसरी औरत उससे पूछती है कि ये तो मर्दों का प्रोडक्ट है. तो वो कहती है, ‘तो क्या हुआ, इसे इस्तेमाल तो हम दोनों करते हैं.’