मंगलवार को क्रिस गेल और ड्वेन ब्रावो का एक ऐड आया. स्कोर कॉन्डम का ऐड. जिसमें दोनों नाच रहे हैं. और कह रहे हैं जब आप ‘चैंपियन’ हो सकते हैं, तो महज एक ‘प्लेयर’ क्यों हों. कहने का अर्थ ये था कि सेक्स तो सभी करते हैं. लेकिन चैंपियन वो होता है, जो सेफ सेक्स करता हो.
‘सेफ सेक्स’. कॉन्डम का काम है सेक्स को सेफ बनाना. जिसमें दो चीजें हैं. पहली, आपको या आपके पार्टनर को कोई सेक्शुअल बीमारी न हो जाए. दूसरा, सेक्स में शामिल लड़की को अनचाही प्रेगनेंसी का खतरा न हो.
जहां तक इंडिया की बात है, कई मर्द हैं जो कॉन्डम का इस्तेमाल नहीं करते. जिसके पीछे उनकी दलील होती है कि ये उनकी मर्दानगी पर हमला है. ‘पन्नी लगाकर करने में क्या मजा आएगा’ से लेकर ‘कभी केले को छिलके के साथ खाते हैं क्या’ तक की तमाम बातें सुनने को मिलती हैं. पुरुषों के दिमाग में एक कीड़ा सा है, जो उन्हें ये दिखाता है कि असली मर्दानगी तो औरत की वेजाइना में वीर्य डालने में ही है. वो प्रेगनेंट हो जाए तो ही असली मर्द का प्रमाण मिलता है. वरना शादी के बाद बच्चा न हो, तो लोग कहेंगे नपुंसक होगा लड़का.
बॉलीवुड में फिल्मों का एक पूरा दौर रहा है, जब फ़िल्में मात्र शादी नहीं, ये दिखाकर ख़त्म की गई हैं कि कपल को बच्चा हो चुका है. खैर, वो अलग मसला है.
बात कॉन्डम की. बात कॉन्डम्स के विज्ञापनों की. जब कॉन्डम के विज्ञापन शुरू हुए, लोगों को बताया गया कि ये आपकी सेफ्टी के लिए है. पर कॉन्डम के बाजार को सफलता नहीं मिली. फिर मार्केट में बोरिंग ऐड्स को पीछे छोड़ता हुआ पूजा बत्रा का ऐड आया ‘कामसूत्र’ का. लोगों ने खूब बवाल किया. मैगजीन में चर्चे हुए. कि किसी आदमी की नंगी पीठ पर अपने हाथ के नाखून कैसे चुभो सकती है.
फिर तो कॉन्डम ऐड्स की भाषा ही बदल गई. और जो कॉन्डम मर्दानगी घटाने के लिए जाने जाते थे, उन्हें मर्दानगी बढ़ाने वाला बताया जाने लगा. अब कॉन्डम मजे का पर्याय होने लगे. अब कॉन्डम औरत को संतुष्ट करने की चीज हो गए. कॉन्डम के विज्ञापनों ने मर्दों को बताया, अगर इसे यूज करोगे तो स्टार हो जाओगे. मजा आएगा. पत्नी आपसे खुश रहेगी.
एक लंबे समय कामसूत्र कॉन्डम की पंचलाइन थी ‘मोस्ट वॉन्टेड मेन’. यानी वो मर्द, जिनकी मांग हो. मांग उन मर्दों की होती है, जो औरत को संतुष्ट कर सकते हैं. जिसके साथ सोना औरतें पसंद करती हैं. नीचे वीडियो में आप कामसूत्र के ऐड्स का 20 साल का सफ़र देख सकते हैं. इनमें कुछ ऐड ऐसे भी हैं, जिनमें पुरुष अपने आस-पास हो रही हरकतों को देखकर डबल मीनिंग बातें सोचते हैं.
कुछ महीनों पहले सनी लियोनी के इस विज्ञापन ने मार्केट में आग लगा दी थी. ये ऐड, ऐड कम, सॉफ्ट पॉर्न ज्यादा लग रहा था. जिसे यूट्यूब पर ‘अनसेंसर्ड’ बताकर खूब बेचा गया.
फिर से स्कोर कॉन्डम के ऐड पर लौटकर आते हैं. ये ऐड देखकर तुरंत रणवीर सिंह का ड्यूरेक्स का ऐड याद आता है. जिसमें रणवीर सिंह के इर्दगिर्द नाचती लड़कियां कोरस में गाती हैं.
लड़कियां: वाओ दैट वॉज गुड
रणवीर: है न!
लड़कियां: यू ब्ल्यू मी अवे
रणवीर: ओफ्फो
लड़कियां: इट वॉज अमेजिंग
रणवीर: आई नो
इसी तरह की चीज क्रिस गेल और ड्वेन ब्रावो वाले ऐड में देखने को मिलती है. दोनों क्रिकेटर नाचते हैं. और ये बताते हैं कि चाहे लड़की एयर होस्टेस हो, नर्स हो, अमेरिकन हो, एशियन हो, सेक्स करते वक़्त कॉन्डम जरूर इस्तेमाल करें.
विज्ञापनों की भाषा बदल तो रही थी, लेकिन टारगेट नहीं बदलता दिखा. इंडिया में बनने वाले सभी ऐड मूलतः मर्दों को टारगेट कर बनाए जाते हैं. और ये बात हमें अजीब भी नहीं लगती, क्योंकि मर्द ही होते हैं, जिन्हें आखिरकार कॉन्डम का इस्तेमाल करना होता है. लेकिन जब हम ये मानकर चलते हैं कि कॉन्डम सिर्फ पुरुषों की चीज है, हम महिलाओं को सेक्स की क्रिया से बिलकुल अलग कर देते हैं. नतीजा ये होता है कि औरत अगर किसी मेडिकल स्टोर में जाकर कॉन्डम खरीदे, तो उसे ऐसे घूरा जाएगा जैसे दुकान वाले की जान मांग ली हो.
कोई कॉन्डम का ऐड कभी ये कहता नहीं दिखता कि औरत कॉन्डम को यूज करने की पहल करे. पुरुष से कहे कि अगर कॉन्डम नहीं यूज करोगे, तो मैं सेक्स नहीं करूंगी. या यूं कह दे कि मेरे मजे के लिए कॉन्डम यूज करो. औरत सेक्स का हिस्सा है, लेकिन सेक्स का केंद्र नहीं. शायद इसके पीछे बाजार को ये डर है कि अगर औरत सेक्स का केंद्र हो गई, तो मर्द कॉन्डम नहीं खरीदेंगे. मर्द कॉन्डम खरीदें, इसके लिए जरूरी है कि उनकी मर्दानगी को संबोधित करते हुए विज्ञापन बनाए जाएं.
जाते हुए एक ऐड देख जाइए. जिसमें एक लड़की जेब में कॉन्डम रख के चलती है. दूसरी औरत उससे पूछती है कि ये तो मर्दों का प्रोडक्ट है. तो वो कहती है, ‘तो क्या हुआ, इसे इस्तेमाल तो हम दोनों करते हैं.’
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