सरकार द्वारा काला धन और भ्रष्टाचार को रोकने के उद्देश्य से ५०० और १००० की मुद्रा को चलन से हटा दिया गया है। इस वजह से जो अफ़रातफ़री का माहौल बना है, उसमें अब तक पाँच लोगों की जान जा चुकी है। भक्त टाइप के प्राणी अभी भी कह रहे है, ये राष्ट्र हित में है, सरहद पर जवान देश की सुरक्षा के लिए गोली खा कर जान दे रहे है तो आप राष्ट्र हित में लाइन में खड़े रहकर नहीं मर सकते..? ये तथाकथित राष्ट्रवादियों के देश हित में रखे गए विचार है। लेकिन अब तक किसी राष्ट्रवादी टाइप भक्त ने ये नहीं बताया कि नोट बदलने से कैसे भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी, और देश में जो काला धन है उसमें से कितना और किनके पास से बाहर लाया जाएगा..? भ्रष्टाचार पर कैसे लगाम कसेगी..?
तथाकथित राष्ट्रवादियों का कहना है, नोट बदलने के लिए लाइन में खड़े रहना राष्ट्र हित में है इसलिए भीड़ में खड़े रहना सम्मान की बात है! कुछ भीड़ इस तरह की भी होती है, जो राष्ट्र हित की श्रेणी में नहीं आती। लेकिन इन दोनों ही तरह की भीड़ में खड़े रहने वाले लोग एक ही है। पान की दुकान पर क्रिकेट मैच का स्कोर जानने की भीड़ हो, मंदिरों में कुचलकर मरने वाली भीड़ हो, मेले में लगी सेल में ख़रीदारी के लिए लगी भीड़ हो, चुनाव के वक़्त वोट के लिए लगी भीड़ हो, किसी नेता का घटिया भाषण सुनने के लिए भाड़े से लाई गई भीड़ हो, नौकरी के लिए इंटर्व्यू देने के लिए लगी भीड़ हो, बच्चों के दाख़िले के लिए लगी भीड़ हो, मुफ़्त चिकित्सा के केम्प के बाहर लगी भीड़ हो, राशन की दुकान के बाहर लगी भीड़ हो, सिनमा की टिकटें ख़रीदने की भीड़ हो, सरकारी आवास के लिए लगी भीड़ हो, दिहाड़ी मज़दूरी के लिए इकट्ठा भीड़ हो, सरकार के तुग़लकी फ़रमान से परेशान भीड़ हो या फिर सरहद पर देश की रक्षा के लिए गोली तक खाने की तैयारी रखते हुए सेना में भरती होने के लिए इकट्ठा हुई भीड़ हो..
ये सारी भीड़ भारत की आम जनता है, जो सदियों से ब्राह्मणवाद के प्रपंचों के कारण शोषित और पीड़ित होती आ रही है। आज अगर काले धन और भ्रष्टाचार के नाम पर आप इन्हें कंगाल करने पर तुले हुए है तो इस देश के लिए इससे दुर्भाग्यपूर्ण बात और क्या हो सकती है..! क्योंकि नागरिकों से ही देश बनता है। भीड़ जमाकर अपने खाते में पैसा जमा कराने के लिए इकट्ठा लोगों को भक्त कालाबाज़ारी और भ्रष्टाचारी कह रहे है। एक किलोमीटर तक की लाइन में पूरा दिन खड़े रहकर पैसे जमा कराने वालों में ज़्यादातर ग़रीब और मध्यमवर्गीय परिवार के लोग है।
बड़े बड़े मॉल के बाहर खिलौने बेचने के लिए ठेला लगाने वाला भी आम नागरिक है, जो ग़ुब्बारे बेचकर मुश्किल से ५०० रुपए कमाता होगा.., लेकिन प्रशासन उसे वहाँ खड़े रहने की इजाज़त नहीं देता, उसका उसका ठेला ट्राफिक को बाधारूप बताकर वहाँ से हटा दिया जाता है। जबकि कोई दबंग बिल्डर, नेता या व्यापारी के ग़ैर क़ानूनी बिल्डिंग को कोई आँच नहीं आती। ठीक उसी तरह दस बीस करोड़ के आँकड़े सुनकर काला धन पकड़े जाने का आभासी आनंद लेना छोड़ दीजिए। मानता हूँ ये दस बीस करोड़ वाले चोर है, लेकिन हज़ारों-लाखों करोड़ में अपने कारोबार करने वाले और सरकार की नाक में उँगलियाँ डालकर करोड़ों रुपयों का टेक्स माफ़ करवाने वाले कोर्पोरेट गृहों के धन्नाशेठ के सामने इनकी औक़ात मॉल के बाहर ग़ुब्बारे बेचने वाले से ज़्यादा नहीं..!
जिस काले धन को पकड़ने के लिए पूरे तालाब को सुखा दिया, उसमें सारी मछलियाँ ही तड़प रही है, जबकि मगरमच्छ तो अपने प्राइवेट स्वीमिंग पुल में ही आराम फ़रमा रहे है..
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