10/27/2016

समाजवादी पार्टी का ड्रामा

एकता कपूर के नाटक अगर देखे होंगे, तो आपको सपा का ड्रामा बड़ी ही आसानी से समझ आ सकता है. एकता कपूर के सीरियल में लीड किरदार के चारों तरफ ऐसा जाल बुना जाता है कि शुरू में उसको हर तरफ से हार मिलती है और फिर एकदम से वो किरदार उन सब परेशानियों से उभरता है कि दुश्मनों की सारी साजिशें नाकाम हो जाती हैं. कुछ ऐसा ही अखिलेश यादव के साथ हुआ है. चाचा से भतीजा गुस्सा गया. और इस वजह से मुलायम सिंह बेटे अखिलेश से नाराज हो गए. ये ड्रामा अभी पता नहीं कब तक चले, लेकिन इसमें बाजी अखिलेश यादव के हाथ में है. इसकी वजह है पार्टी कार्यकर्ताओं का सपोर्ट और मुलायम सिंह का तकनीकी साथ. क्योंकि सारा जाल तो मुलायम सिंह का ही बुना नजर आता है जैसे उन्होंने अपने बेटे को प्रोजेक्ट करने के लिए ही ये भाई-भाई वाला नाटक खेला हो. खैर परदे के पीछे चाहे कुछ भी हो इस ड्रामे के हीरो तो अखिलेश बन ही चुके हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक अखिलेश क्यों आगे हैं, उनमें सबसे पहली वजह उनके साथ विधायकों और ग्राउंड वर्कर्स का नंबर ज्यादा होना है. दूसरा वजह उनकी पीआर टीम है, जिसमें टॉप ब्यूरोक्रेट्स शामिल हैं. तीसरा पार्टी मेंबर उन्हें अपना यंग फेस लीडर मान रहे हैं, न कि शिवपाल और मुलायम को.

परिवार और पार्टी की लड़ाई ने अखिलेश को अपना किरदार चमकाने का मौका दिया है. और इस लड़ाई में वो जीते भी. उनकी इस जीत का ऐलान तो उसी दिन हो गया, जब मुलायम सिंह की मीटिंग में अखिलेश के फेवर में कार्यकर्ताओं ने नारेबाजी की. हुआ ये था कि शिवपाल यादव बोल रहे थे. उन्होंने अखिलेश के खिलाफ बोलना शुरू किया तो कार्यकर्ता नारेबाजी करने लगे. यानी ये मैसेज क्लियर था कि पार्टी कार्यकर्ताओं को मुलायम और शिवपाल के मुकाबले अपना लीडर अखिलेश को मानने में कोई हिचक नहीं.

अखिलेश की जीत का दूसरा ऐलान उस वक्त हुआ जब मुलायम सिंह ने कहा कि सीएम पद के उम्मीदवार अखिलेश ही होंगे. और वो ही तय करेंगे कि जिन चार मंत्रियों को कैबिनेट से बाहर किया गया है, उन्हें वापस लिया जाएगा या नहीं.

अखिलेश की जीत का तीसरा ऐलान थोड़ा तकनीकी है. वो ये है कि अखिलेश यादव ने मीटिंग में कहा, वो मुख्यमंत्री हैं, उन्हें इस बात का हक़ होना चाहिए कि वो ही इलेक्शन के लिए टिकट बांटें. और इस बात पर मुलायम सिंह चुप्पी साध गए. क्योंकि वो शिवपाल को राजी रखने के साथ-साथ अखिलेश को नाराज नहीं करना चाहते. क्योंकि आगामी चुनाव में सपा के पास कुछ ऐसा नहीं है, जिसके जरिए वो चुनाव में उतर सके. अगर कुछ है तो सिर्फ अखिलेश का ही चेहरा.
दूसरी तरफ अखिलेश की पीआर टीम भी उन्हें प्रोजेक्ट करने में जुट गई है. अखिलेश को पार्टी में ईमानदार और कायापलट करने वाले शासक के तौर पर पेश किया जा रहा है, जो करप्ट और पुरानी खस्ताहाल व्यवस्था के खिलाफ लड़ रहे हैं. कहा जा रहा है कि पांच साल में अखिलेश पर कोई दाग नहीं. जबकि दूसरा खेमा करप्शन और साम्प्रदायिक हिंसा से स्टेट और पार्टी को बीमार बना रहा है.

इस लड़ाई में अखिलेश ने यूथ को खुद से जोड़ लिया है. इसका सबूत ये है कि जब मंगलवार को सपा हेडक्वॉर्टर में मुलायम सिंह मीटिंग कर रहे थे, तो बाहर अखिलेश के फेवर में नारेबाजी हो रही थी. अखिलेश के सपोर्टर की भीड़ शिवपाल के घर के बाहर जुटती है. सपोर्टर कहते हैं कि मुख्यमंत्री जी गुंडे हैं, ये गलत मैसेज फैलाया जा रहा है. वो पूछते हैं कि क्या वो एक ऐसा उदहारण अखिलेश के खिलाफ दे सकते हैं. अब ऐसे में शिवपाल के समर्थक सिर्फ मचल ही सकते हैं, लेकिन मुख्यमंत्री के खिलाफ बोल नहीं सकते. तभी तो शिवपाल समर्थक सिर्फ इतना ही कह पाते हैं कि वो हमारे मुख्यमंत्री हैं. और उनके अंडर में ही इलेक्शन लड़ा जाएगा. लेकिन बाकी लोगों का भी सम्मान होना चाहिए.

अखिलेश के सपोर्टर मुलायम सिंह के सामने जमके नारेबाजी करते हैं. यहां तक बोलते हैं कि सब कुछ अखिलेश के हाथ में होना चाहिए. यानी स्टेट पार्टी प्रेसिडेंट होने के साथ साथ उन्हें ही टिकट बांटने का अधिकार होना चाहिए.
वीमेन सपोर्टर भी उस भीड़ में थीं. जिनमें वीमेन कमीशन की मेंबर शीला चतुर्वेदी भी मौजूद थीं. सपा की वीमेन विंग की स्टेट सेक्रेटरी तरन्नुम परवीन कहती हैं कि जब चीफ मिनिस्टर के नाम पर ही वोट मांगे जाने हैं, तो उन्हें ही टिकट बांटने का अधिकार होना चाहिए. बहुत से स्टेट ब्यूरोक्रेट्स अखिलेश के पीछे हैं. जो लोगों को इस बात पर यकीन दिला रहे हैं कि अखिलेश बाकी सीनियर नेताओं के मुकाबले सही फैसले ले सकते हैं.

टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक ये वक्त अखिलेश यादव के लिए अपनी पॉलिटिकल इमेज गढ़ने और मजबूत युवा नेता के तौर पर उभरने का अहम मौका है. हालांकि वो ऐसे वक्त पर एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं, जब इलेक्शन बेहद नजदीक हैं. अब तक उन्हें साढ़े चार साल में साढ़े चार सीएम में से आधा सीएम ही कहा जाता रहा है, क्योंकि आजम खान और शिवपाल यादव का सरकार में दखल रहा है. अखिलेश ने ये दम थोड़ी देर से दिखाया. इस संघर्ष में समाजवादी पार्टी का वोटर खिसक भी सकता है.

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